इस लेख में हम राजनीति पर सरल एवं सहज चर्चा करेंगे और समझने का प्रयास करेंगे राजनीति क्या है और आखिर हम क्यों राजनीति को समझे बिना इससे दूर भागते रहते हैं? क्या राजनीति इतनी खराब चीज़ है?

तो इस लेख को पूरा पढ़ें बहुत सारी चीज़ें आपको जानने को मिलेंगी; और फिर इस पर विचार भी करें। अगर आपको यह लेख पसंद आए तो इस लेख को शेयर जरूर करें। और इसी तरह के और भी लेख पढ़ने के लिए दिए गए लिंक को विजिट करें; 🔮 Cool Facts

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राजनीति और हमारा नजरिया

राजनीति नाम तो सुना ही होगा! हाँ क्यों नहीं सुनते ही रहते हैं, सुबह-शाम, रात-दिन, सर्दी, गर्मी, बरसात हर मौसम में सुनते ही रहते हैं। और सुनते ही इससे पीछा छुड़ाकर जितना दूर भाग सकते हैं, भागने की कोशिश भी करते हैं।

क्योंकि आमतौर पर राजनीति का नाम सुनते ही दिमाग में एक ही चीज़ आती है ये बिक गयी है गोवरमेंट, अब इस गोवरमेंट में कुछ नहीं रखा। ये इतने……………।

गज़ब-गज़ब के लोग हैं यहाँ पर, उसमें से कुछ राजनीति को एक दावपेंच मानते है जिसमें कोई व्यक्ति अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

वहीं कुछ लोगों के लिए राजनीति झूठे वायदे करने वाले नेताओं का एक अड्डा है, घोटालेबाज़ों का अड्डा है, धर्म और जाति के नाम पर वोट लेकर अपना उल्लू सीधा करने वालों का एक अड्डा है।

राजनीति एक कीचड़ है – जहां करेंगे कोई और पर छीटें तुम पर भी पड़ेंगे, ”राजनीति एक कालिख की कोठरी है” किसी भी तरह से बच कर निकलने की कोशिश करो तब भी कहीं न कहीं कालिख लग ही जाएगी। अधिकतर लोगों का राजनीति के प्रति धारणा कुछ इसी तरह का तो होता है न।

जैसे ही हम हर संभव तरीके से अपने स्वार्थ को साधने में लगे लोगों को देखते हैं तो हम उसे कहते है कि ‘ये तो राजनीति कर रहा है।’

और अगर उन लोगों से पूछो कि आप अच्छे इंसान है तो फिर आप राजनीति में क्यों नहीं आते, आप यहाँ आकार सबकुछ दुरुस्त क्यूँ नहीं कर देते, आप एक अच्छी परंपरा शुरू क्यूँ नहीं करते, तो ऐसे लोगों का सिर्फ एक ही जवाब होता है – मुझे न राजनीति में कोई दिलचस्पी ही नहीं है।

बेशक वे ऐसा कहते हुए एक प्रकार की राजनीति ही कर रहे होते हैं, घटिया दर्जे की राजनीति। इन्ही लोगों के निकम्मेपन की वजह से राजनीति इतनी विकृत होते चली गयी है। और फिर वे लोग कोसते रहते हैं कि राजनीति कितनी बुरी चीज़ है।

यहाँ पर ये भी याद रखिए कि अक्सर राजनीति को ख़राब करने का काम तथाकथित तटस्थ (neutral) लोग भी करते हैं। उदाहरण के लिए आप रद्द हो चुके तीनों किसान क़ानूनों को ले सकते हैं।

तटस्थ बुद्धिजीवियों के लगभग हर वर्ग ने इसे सपोर्ट किया, कुछ ने इसमें कुछ कानूनी बदलाव के सुझाव दिए तो कुछ लोगों ने व्यावहारिक पक्षों पर पुनर्विचार की सलाह सरकार को दिए पर आमतौर पर किसी ने इसे रद्द करने की मांग नहीं की। फिर भी सरकार को वो रद्द करना पड़ा क्योंकि तथाकथित तटस्थ लोगों ने अपनी पूर्ण उदासीनता दिखायी।

अगर यहीं राजनीति है तो फिर क्या ही कहने। पर जाहिर है ऐसा है नहीं। राजनीति बहुत ही व्यापक है, वैसे तो ये एक छोटा सा शब्द मालूम पड़ता है, पर जन्म से लेकर मृत्यु तक ये हमें किसी न किसी रूप में प्रभावित करता ही रहता है। तो सवाल यही है कि आखिर राजनीति है क्या?

| राजनीति क्या है?

एक बात समझिए कि इंसान बहुत ही खास प्राणी है, वो इसीलिए क्योंकि इसके पास बुद्धि और विवेक जैसी चीज़ें हैं। अब ये जो चीज़ें है वो हर एक इंसान को मुख्तलिफ़ बनाता है। अलग होने की एक बुरी बात ये है कि ये समस्याएं पैदा करता है। ये समस्याएं इसीलिए पैदा करता है क्योंकि एक ही चीज़ के बारे सब की अपनी एक अलग राय होती है या हो सकती है।

ऐसे में अगर इन समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो जंगलराज स्थापित हो जाएगा, और वहाँ पर वही राज कर पाएगा जो दूसरों को खा सकने में समर्थ हो।

पर चूंकि इन्सानों के पास बुद्धि और विवेक जैसी चीज़ें है इसीलिए उन्होने इस समस्या के समाधान के लिए सबकी सहमति से एक कॉमन कानून बना लिया और कुछ लोगों को उस कानून के देख-रेख या संचालन की ज़िम्मेदारी सौंप दी।

इसे ही राज या राज्य कहा गया। जब राजा ऐसे क़ानूनों की देख-रेख और संचालन करते थे तब इसे राज कहा जाता था पर जब यहीं काम सरकार करने लगी हो उसे राज्य कहा गया।

अब राज्य जो है वो शक्ति का प्रतीक बन गया और जनता स्वतंत्रता का। यानी कि राज्य को और शक्ति चाहिए होती है या फिर जो शक्ति उसे मिली है उसे कायम रखना चाहती है, वहीं जनता को और स्वतंत्रता चाहिए होती है।

और ये खेल किसी भी राज्य में हमेशा चलता ही रहता है और इससे समस्याएं भी उत्पन्न होती ही रहती है। और इन्ही समस्याओं को निपटाने में राज्य हमेशा नीतियों के निर्माण और उसे खत्म करने के काम में लगा ही रहता है।

इससे जनता और राज्य के बीच हमेशा परस्पर क्रियाएं होती ही रहती है, दोनों एक दूसरे पर अपना प्रभाव डालते ही रहते हैं। ऐसे में जो कुल घटनाक्रम हमारे सामने आता है या जो वैचारिक स्तर पर हमारे भीतर घटता है उसे हम राजनीति कह देते हैं।

तो कुल मिलाकर अब अगर हमें कहना हो कि राजनीति क्या है तो हम कहेंगे कि………

राजनीति एक जनसेवा है। और अगर ये जनसेवा है तो हम ज़िंदगी में कभी न कभी, किसी न किसी प्रकार की जनसेवा तो करते ही हैं अगर करते हैं तो फिर हम राजनीति से अपने आप को अलग कैसे मान सकते हैं।

हमारे और हमारे समाज के लिए क्या उचित और वांछनीय हैये राजनीति है। अगर ये राजनीति है तो क्या हम कभी इस पर नहीं सोचते हैं कि हमारे लिए या हमारे समझ के लिए क्या बेहतर है। बेशक सोचते है और कमोबेश इसके लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से काम भी करते हैं। अगर करते हैं तो फिर हम राजनीति से अपने आप को अलग कैसे मान सकते हैं।

राजनीति खुद एक समाधान है और साथ ही साथ समाधान सुझाने वाली एक व्यवस्था भी है। हमारे और हमारे समाज की न जाने कितनी ही समस्याएँ होती है पर देर-सवेर उसका समाधान तलाश ही लिया जाता है। भले ही उसके पीछे का मकसद कुछ भी हो पर ये सच है कि उसके केंद्र में हम ही होते हैं। अगर ऐसा है तो फिर हम राजनीति से अपने आप को अलग कैसे मान सकते हैं।

राजनीति, एक विशेष नीति के तहत एक विशेष उद्देश्य को प्राप्त करने की व्यवस्था है। किसी भी परिवार की बात करें वहाँ भी किसी न किसी का शासन होता है, किसी न किसी प्रकार के नीति बनाए जाते हैं किसी न किसी प्रकार के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए। और सभी सदस्य इस विशेष नीति का एक हिस्सा होता है। यही बात तो देश के स्तर पर भी होता है और उस विशेष नीति का हम भी एक हिस्सा होते हैं। अगर ऐसा है तो हम अपने आप को राजनीति से अलग कैसे मान सकते हैं।

आप खुद ही देखिये कि हम हमेशा राजनीति का एक हिस्सा होते हैं, पर सवाल यही है कि फिर हम इससे अपने आप दूर क्यूँ रखने की कोशिश करते हैं।

इसका एक कारण ये है कि हमारी चेतना में ये घर कर चुका है कि राजनीति अलग से कोई एक चीज़ होती है जो हमें अलग से करनी पड़ती है। पर सच तो ये है कि हम हमेशा इसी का एक हिस्सा होते हैं। अब आप खुद ही देखिये कि मैं अभी ये लिख रहा हूँ इसका मतलब मैं एक राजनीतिक अधिकारअभिव्यक्ति की आजादी‘ इस्तेमाल कर रहा हूँ।

ये मानने के अच्छे-भले कारण है कि राजनीति में काफी विकृति है, राजनीति काफी गंदी चीज़ है। पर ये सब हमारा ही किया-धरा है इसके लिए हम किसी और को दोष नहीं दे सकते हैं। पर अच्छी बात ये है कि हम इसे ठीक भी कर सकते है। बहुत सारी चीज़ें तो अपने आप ही ठीक हो जाएंगी जब हम इसके प्रति अपना नजरिया बदल लेंगे और कुछ चीजों के लिए हमें थोड़ी सक्रियता दिखाने की जरूरत पड़ेगी।

जो भी हो पर एक बात तो स्पष्ट है कि इससे भागने के बजाय हमें इसे अपनाने की तरफ ध्यान केन्द्रित करना चाहिए और अंततः हमें याद रखना चाहिए कि हम राजनीति से भाग नहीं सकते हैं क्योंकि हम जहां भी जाएँ उसी के दायरे में होंगे…….!

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