इस लेख में हम शिक्षा और विद्या (Education and Knowledge) में अंतर को जानेंगे।
Difference between Education and Knowledge
📊 शिक्षा (Education)
📊 जैसा कि हम जानते हैं शिक्षा की उत्पत्ति ‘शिक्ष’ धातु से हुई है। जिसका अर्थ सीखना और सीखाना है। सीखते हम तभी है जब हम उस चीज़ का अध्ययन और अभ्यास करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो यह ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया है; जैसे- वह इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करने के लिए जर्मनी गया है।
📊 अन्य शब्दों में कहें तो शिक्षा का अर्थ होता है, सीखने या सिखाने की क्रिया द्वारा व्यवहार में परिवर्तन लाना। अब व्यवहार में परिवर्तन सकारात्मक भी हो सकता है और नकारात्मक भी । जैसे कि कोई अगर अपने व्यवहार में कुछ इस कदर परिवर्तन करें कि, आतंकवादी बन जाये तो आप उसे क्या कहेंगे। संभवतः आप यही कहेंगे कि उसे गलत शिक्षा मिली है या गलत तालीम मिली है।
📊 इसको अरबी में तालीम और अँग्रेजी एजुकेशन कहते है। किसी भी प्रकार की कला, भाषा, विज्ञान, वाणिज्य, आभियांत्रिकी, चिकित्सा, वास्तु, शिल्प, चित्र, संगीत, नृत्य, नाटक, प्रबंधन आदि का ज्ञान प्राप्त करना शिक्षा है।
📊 इसका उद्देश्य मनुष्य का सर्वांगीण विकास है यानी कि नैतिक, बौद्धिक, शारीरिक और चारित्रिक विकास आदि ताकि हम योग्य, सभ्य, कर्मठ, स्वावलंबी और समर्थ बन सकें।
📊 किसी चीज़ से नसीहत प्राप्त होना भी शिक्षा है; जैसे- इस घटना से मुझे यह शिक्षा मिली कि हमेशा कुछ न कुछ घटना घटती ही रहती है।
📊 किसी को सबक सिखाना भी शिक्षा का ही एक रूप है। जैसे कि- उसे ऐसी शिक्षा दो या ऐसी सबक सिखाओ कि नाना न मरे कि फिर वो ऐसा काम करे।
📖 विद्या (Knowledge)
📖 विद्या की उत्पत्ति ‘विद’ धातु से हुई है । जिसका अर्थ जानना, समझना, सीखना, अनुभव करना, विवेचना या व्याख्या करना आदि है। विद्या का अर्थ किसी तथ्य या विषय का व्यवस्थित ज्ञान है।
📖 एक तरह से कहें तो विद्या, शिक्षा का परिणाम है। मतलब कि हम अध्ययन करते है, अभ्यास करते हैं परिणामस्वरूप कुछ सीखते हैं, कुछ अनुभव होता है पर बहुत सारी चीजों को हम भूल भी जाते हैं। इस सब के बावजूद भी जो बचा रह जाता है वो विद्या है।
📖 विद्या को अरबी में इल्म कहा जाता है इससे एक चीज़ स्पष्ट हो जाती है कि विद्या में कौशल भी समाहित है। इस प्रकार कह सकते हैं कि खास कौशल युक्त शिक्षा, विद्या है।
📝 एक संस्कृत का श्लोक है – विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥
यानी कि विद्या विनय देती है; विनय से पात्रता, पात्रता से धन, धन से धर्म, और धर्म से सुख प्राप्त होता है।
📝 यहाँ आप एक चीज़ गौर करेंगे कि विद्या से विनय (humility) आती है, न कि शिक्षा से। इससे आप समझ सकते हैं कि विद्या, शिक्षा से कहीं आगे की चीज़ है। हमें विद्या प्राप्त करने पर ज़ोर देना चाहिए, शिक्षा तो अपने आप मिलती चली जाएगी।
✒️शिक्षा और विद्या में कुल मिलाकर अंतर
✒️ कुल मिलाकर देखें तो हम ये कह सकते हैं कि शिक्षा इनपुट है जबकि विद्या आउटपुट। विद्या एक बहुत ही व्यापक शब्द है जिसमें सीखने-सिखाने के साथ ही कौशल, चातुर्य, तजुर्बा आदि का भी समावेशन होता हैं।
✒️ शिक्षा एक प्रकार से किताबी या यूं कहें कि सैद्धांतिक होती है, जब उसमें हमारा अनुभव जुड़ता है, जब उससे हमारी चेतना जुड़ता है,
और तब कहीं जाकर के शिक्षा कोई बाहरी चीज़ न होकर के हमारा ही एक अंग बनने लग जाता है, तब वो हमारे आचरण में उतरने लग जाता है। तब जाकर हम ये कहते हैं कि शिक्षा अब विद्या में बदलने लग गया है।
✒️ इसीलिए शिक्षित होने और विद्वान होने में फर्क होता है, शिक्षित होने के बस कुछ खास पैमाने होते हैं उस पैमाने के अनुसार शिक्षा ग्रहण लेने के बाद हम शिक्षित हो जाते हैं
लेकिन जब उसी शिक्षा का इस्तेमाल करके अपनी समझ को और विस्तार देते हैं, नई चीजों का सृजन करते हैं, स्थापित ज्ञान को और अधिक बढ़ा देते हैं। तब हम विद्वान हो जाते हैं।
✒️ इस प्रकार देखें तो शिक्षा एक स्थापित मानदंड है, पर जब हम अपने विवेक, समझबूझ, अनुभव, योग्यता का इस्तेमाल करके उस स्थापित मानदंड के बैरियर को तोड़कर आगे आते हैं। तो शिक्षा के उस स्तर को विद्या कहते हैं।
✒️ इसीलिए आप एक चीज़ गौर करेंगे कि सरस्वती को विद्या की देवी या ज्ञान की देवी माना गया है न कि शिक्षा की देवी।
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शिक्षा और विद्या में अंतर
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