जानने और समझने का मतलब क्या है इसे जानना बहुत जरूरी है क्योंकि आम तौर पर हम जानने और समझने को एक ही समझ बैठते है। फिर न कुछ जान पाते हैं और न ही समझ पाते हैं या थोड़ा-थोड़ा समझते है थोड़ा-थोड़ा जानते हैं।

इस लेख में हम जानने और समझने के मध्य अंतर स्थापित करने की कोशिश करेंगे। तो लेख को अंत तक जरूर पढ़िये और देखिये आगे क्या होता है..

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जानने और समझने में अंतर

| जानने और समझने में अंतर

मैं जानता हूँ कि आप समझने को उत्सुक है कि जानने और समझने में अंतर क्या है? और मैं समझता हूँ कि आपको जानना भी चाहिए कि जानने और समझने में अंतर क्या है?

हमें हमेशा समझने पर ध्यान देने को कहा जाता है। हमारा अवचेतन मन भी जानता है कि समझना बेहतर होता है क्योंकि हम समझेंगे तभी तो समझदार कहलायंगे।

पर अगर हम जानबूझकर समझना नहीं चाहते है तो फिर ये कैसी समझदारी हुई और अगर यही समझदारी है तो हम जानना क्यूँ चाहते हैं।

हम जानना चाहते है क्योंकि जानने में समझने की गुंजाइश होती है और एक बार जैसे ही हममें समझ आ गयी, समझ-समझ के हम और भी बहुत कुछ समझ सकते हैं क्योंकि तब तक हम जान चुके होते हैं कि समझ को समझना भी एक समझ है।

समझने में काफी गहराई है और जानने में थोड़ा उथलापन पर जैसे ही जानने में गहराई बढ़ने लगे समझ लो वो समझने की ओर कूंच कर गया। जैसे कि मेरे एक शुभचिंतक ने एक बार मुझसे कहा कि अच्छे लोग और अच्छी किताबें जल्दी समझ में नहीं आती।

मुझे दो बातें तुरंत ही समझ में आ गया या तो वे जानती है कि – अच्छे लोग और अच्छी किताबें जल्दी समझ में नहीं आती, या फिर वे समझती है कि अच्छे लोग और अच्छी किताबें समझ में नहीं आती है।

अब वे जानती है या समझती है ये उसके समझ में निर्भर करती है क्योंकि मेरे लिए ये जानना मुश्किल है कि वे कितना समझती या कितना जानती है क्योंकि मैं ये बात अच्छी तरह से समझता हूँ।

अब यहाँ पर आप को ये लग सकता है कि जानना और समझना एक दूसरे का पर्याय है, पर एक बात जहां तक मैं समझता हूँ कि आपके लिए ये जानना जरूरी है कि अच्छे लोग और अच्छी किताबें जल्दी समझ में नहीं आती है इसका मतलब जरूर समझने में जानने से ज्यादा गहराई है। कितनी गहराई?

इन दोनों शब्दों में इतनी समानताएं दिखाई पड़ती है कि हमारे लिए ये समझना मुश्किल हो जाता है कि हम समझ को कितना गहरा माने और जानने को कितना उथला।

पर मैं जानता हूँ कि इसे एक उदाहरण से बिलकुल स्पष्ट किया जा सकता है। मेरी समझ तो कम से कम यही कहती है, इसीलिए आइए हम एक उदाहरण के जरिये समझ की गहराई का और जानने के उथलापन का पता लगाते हैं।

जब भी हम किसी से मिलते हैं तो उस व्यक्ति से जुड़े कुछ चीजों को तुरंत ही पता कर लेते हैं या फिर पता कर सकते हैं। जैसे कि उस अमुक व्यक्ति का नाम क्या है, उसका धर्म क्या है, वो कौन सी भाषा बोलता है, वो कहाँ से आता है और करता क्या है, उसक पहनावा क्या है, बातचीत करने का तरीका क्या है?, इत्यादि। इसी प्रकार की और भी चीज़ें हम उससे पूछ कर पता कर सकते हैं। इस प्रकार की सामान्य जानकारी को जैसे ही हम समझ लेते हैं हम उसे जानने लग जाते हैं।

पर क्या हम उस व्यक्ति को समझते हैं? बिलकुल नहीं। क्योकि किसी को जानना और समझना दोनों ही अलग-अलग चीज़ें है। जहां हम किसी व्यक्ति को कुछ मिनटों की बातचीत में ही जान सकते हैं वही समझना एक लंबी और अनवरत प्रक्रिया है।

इसीलिए किसी को समझना इतना मुश्किल होता है क्योंकि इसके लिए हमें उस व्यक्ति के भीतर झांकना पड़ता है, खंगालना पड़ता है, आइडियोलॉजी समझनी पड़ती है। जो तुरंत तो किया नहीं जा सकता।

जब हम किसी व्यक्ति के; खुद को अभिव्यक्त करने के तरीकों को, उसके भावनाओं का दूसरों के सामने प्रस्तुत करने के तरीकों को, विभिन्न प्रकार के सामाजिक परिस्थितियों में संतुलन बिठाने के उसके तरीकों को, उसके आवाज के टोन के तारतम्यता को जानने लगते है तो हम कह सकते हैं अब थोड़ा-थोड़ा समझने लगे हैं।

जब हम उसके संस्कारों को, उसके दोस्तो को उसके आंतरिक अच्छाइयों को, उसके समस्याओं से निपटने के तरीकों को जान लेते हैं तो हम उसे पहले की अपेक्षा और अधिक समझने लगते हैं।

जब हम उसके नजरिए को, खास तौर पर अतीत, वर्तमान और भविष्य के प्रति उसके नजरिए को, सच, झूठ और न्याय के प्रति उसके नजरिए को, खुद के प्रति उसके नजरिए को, लिंग, जाति, धर्म, परिवार समाज और देश के प्रति उसके नजरिए को जान लेते हैं तो समझ लीजिये की हम अब उसे बहुत हद तक समझने लगे है।

जब हम उसके नैतिक मूल्यों को, निर्णय लेने की क्षमता को उसके कमजोरियों को उसके ताकतों को, वो क्या कर सकता है और क्या नहीं, इसको जान लेते हैं तो तब हम उसे पूरी तरह से समझने लगते हैं।

⚫⚫ उम्मीद है अब आप जान गए होंगे कि समझने में कितनी गहराई है और समझ गए होंगे कि जानने में कितना उथलापन है।

मेरी समझ मुझे यही कहती है कि आप जरूर मुझे इसके लिए गलत नहीं समझेंगे कि आप को अभी भी ठीक से समझ नहीं आया कि जानने और समझने में क्या समझना था और क्या जानना था। पर अंत में मैं आपसे यही कहूँगा कि अगर आपने जानने को समझ लिया है तो समझने को समझना बिल्कुल मुश्किल नहीं है,

और अगर आपकी समझ अच्छी है तो आप जानते होंगे कि जानने को जानने से बेहतर है कि जानने को समझा जाए क्योंकि समझ हमारी जानने की काबिलियत को और अधिक बढ़ा सकता है। ये बात अगर आपकी समझ में आ गयी हो तो मैं जानना चाहता हूँ कि मैं आपको समझाने में कामयाब हो पाया हूँ कि नहीं।

आपका बहुत-बहुत शुक्रिया इतने धैर्य से जानने और समझने के लिए।

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