किसी लोकतंत्र में चुनाव बहुत ही आम बात है लेकिन चुनाव होता कैसे है ये कई बार खास हो जाता है, जैसे कि राष्ट्रपति चुनाव को ही लें तो ये अपनी जटिलता को लेकर काफी खास है।

इस लेख में हम राष्ट्रपति चुनाव (Presidential election) की पूरी प्रक्रिया को जितना हो सके आसान भाषा में समझेंगे, एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा करेंगे। तो लेख को अंत तक जरूर पढ़ें;

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राष्ट्रपति चुनाव

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भारत में राष्ट्रपति चुनाव (Presidential election in India)

अनुच्छेद 52 के तहत भारत में एक राष्ट्रपति का पद बनाया गया है। भारत का राष्ट्रपति भारत का प्रथम नागरिक होता है और एक औपचारिक कार्यपालिका भी होता है।

भारत में संसद के सदस्यों का चुनाव “फ़र्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम” के आधार पर होता है जबकि राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के आधार पर एकल हस्तांतरणीय मत के द्वारा होता है।

◾ अगर आपने राष्ट्रपति पर पिछला लेख पढ़ा है तो आपको अच्छे से पता होगा कि अनुच्छेद 54 के तहत यह बताया गया है कि राष्ट्रपति के चुनाव में कौन-कौन से लोग भाग लेंगे।

◾ वहीं अनुच्छेद 55 के तहत बताया गया है कि राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया क्या होगी। ये दो अनुच्छेद मुख्य रूप से राष्ट्रपति चुनाव के बारे में बताता है।

◾ साथ ही साथ कुछ अन्य अनुच्छेद भी हैं जो कि इससे संबन्धित है। जैसे कि अनुच्छेद 57 के तहत बताया गया है कि क्या कोई व्यक्ति दोबारा राष्ट्रपति बन सकता है की नहीं।

अनुच्छेद 58 के तहत बताया गया है कि राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए अर्हताएँ (Qualifications) क्या-क्या है। और अनुच्छेद 62 के तहत यह बताया गया है कि अगर राष्ट्रपति का पद खाली है या होने वाला है तो कब तक चुनाव कराना आवश्यक है।

◾ यहाँ यह याद रखिए कि उपरोक्त सारे अनुच्छेद राष्ट्रपति चुनाव से जुड़ी सारी बातें नहीं बताता है, राष्ट्रपति चुनाव से जुड़े कई नियम और अधिनियम भी है।

इसी में से एक महत्वपूर्ण अधिनियम है- राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम 1952 (Presidential and Vice Presidential Election Act 1952)। राष्ट्रपति चुनाव से जुड़ी मुख्य जानकारियाँ इसी में लिखा हुआ है।

नोट सारे अनुच्छेदों पर अलग से व्याख्या सहित लेख उपलब्ध है, कॉन्सेप्ट को गहराई से समझने के लिए उसे भी अवश्य समझें। संविधान के सभी अनुच्छेदों को आप यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं; 📚 Constitution Article Wise

राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया (Presidential election process)

अनुच्छेद 54 में निर्वाचक मंडल (Electoral College) की बात कही गयी है। निर्वाचक मंडल मतलब वो जो राष्ट्रपति को चुनेंगी। चूंकि राष्ट्रपति का चुनाव प्रत्यक्ष विधि से होता नहीं है इसीलिए निर्वाचक मंडल (Electoral College) की व्यवस्था की गयी है।

अब सवाल ये आता है कि इस निर्वाचक मंडल में कौन लोग होते हैं? ये अनुच्छेद 54 में साफ-साफ वर्णित है। निर्वाचक मंडल में निम्नलिखित लोग होते हैं –

1. संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य, 2. राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्य तथा, 3. दिल्ली व पुडुचेरी विधानसभाओं के निर्वाचित ससस्य।

◾ यहाँ पर याद रखने वाली बात ये है कि मनोनीत (Nominated) सदस्य को इस प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जाता है। यानी कि वे सदस्य जो किसी भी तरीके से चुना नहीं गया है। बल्कि सीधे भर्ती कर दिया गया है।

तो याद रखिए कि संसद के दोनों सदनों के मनोनीत सदस्य, राज्य विधानसभाओं के मनोनीत सदस्य तथा दिल्ली तथा पुडुचेरी विधानसभा के मनोनीत सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग नहीं लेते हैं।

◾ एक और बात ये है कि जम्मू और कश्मीर को भी केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया है, और वहाँ भी विधानसभा होगी। इसीलिए अब उसको भी दिल्ली और पुडुचेरी के साथ ही रखा जाएगा।

आनुपातिक प्रतिनिधित्व (Proportional Representation)

अनुच्छेद 55 में बताया गया है कि राष्ट्रपति चुनाव कैसे होगा। इसी अनुच्छेद में लिखा है कि राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (PR System) के तहत एकल हस्तांतरणीय वोट (Single Transferable Vote) विधि से होता है।

◾ आनुपातिक प्रतिनिधित्व एक मतदान प्रणाली है जिसका उपयोग कई देशों में विधायी निकायों के सदस्यों को चुनने के लिए किया जाता है। आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में, एक विधायी निकाय में एक राजनीतिक दल को प्राप्त होने वाली सीटों की संख्या चुनाव में प्राप्त होने वाले मतों की संख्या के समानुपाती होती है।

इसका मतलब यह है कि यदि किसी राजनीतिक दल को चुनाव में 30% मत प्राप्त होते हैं, तो उसे विधायी निकाय में लगभग 30% सीटें प्राप्त होंगी।

आनुपातिक प्रतिनिधित्व के कई अलग-अलग रूप होते हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं:

पार्टी-सूची आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Party-list PR System): 

पार्टी-सूची आनुपातिक प्रतिनिधित्व एक प्रकार की चुनावी प्रणाली है जिसका उपयोग विधायी निकायों के सदस्यों को चुनने के लिए किया जाता है। इसमें मतदाताओं द्वारा राजनीतिक दल के लिए मतदान किया जाता है और राजनीतिक दल को प्राप्त मतों की संख्या के अनुपात में सीटों से सम्मानित किया जाता है।

दूसरे शब्दों में, एक पार्टी-सूची प्रणाली में, मतदाता व्यक्तिगत उम्मीदवारों के बजाय एक राजनीतिक दल के लिए मतदान करता है। राजनीतिक दलों को तब विधायी निकाय में चुनाव में प्राप्त मतों की संख्या के अनुपात में सीटें प्राप्त होती हैं।

उदाहरण के लिए, यदि किसी राजनीतिक दल को चुनाव में 30% मत प्राप्त होते हैं, तो उसे विधायी निकाय में लगभग 30% सीटें प्राप्त होंगी।

◾ इस प्रणाली का उपयोग नीदरलैंड, स्वीडन और इज़राइल समेत कई देशों में किया जाता है।

मिश्रित सदस्य आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Mixed-Member PR System): 

ये एक ऐसा चुनावी प्रक्रिया है जिसमें आनुपातिक प्रतिनिधित्व और फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट सिस्टम का मिश्रण होता है। इस सिस्टम में, मतदाता दो वोट डालते हैं: एक राजनीतिक दल के लिए और एक उम्मीदवार के लिए।

राजनीतिक दलों को वोटों के अनुपात के आधार पर विधायी निकाय में सीटें दी जाती हैं। उम्मीदवारों को विशिष्ट निर्वाचन क्षेत्रों के प्रतिनिधियों के रूप में चुना जाता है, जैसा कि फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट सिस्टम में होता है।

उदाहरण से समझें तो अगर 100 सीटों के लिए चुनाव लड़ा गया है और 3 पार्टियां है जो चुनाव लड़ रही है। ऐसे में यदि किसी पार्टी को 40 प्रतिशत वोट मिला है तो उसे विधानमंडल में 40 सीटें मिल जाएंगी।

लेकिन किसी निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए जो उम्मीदवार चुना जाएगा वो फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट सिस्टम के आधार पर चुना जाएगा। यानि कि जो सबसे ज्यादा वोट लाएगा वही जीतेगा (जैसा कि भारत में आम चुनाव में होता है)।

◾ इस प्रणाली का उपयोग जर्मनी, न्यूजीलैंड और स्कॉटलैंड सहित कई देशों में किया जाता है।

एकल हस्तांतरणीय वोट (Single Transferable Vote): 

एकल हस्तांतरणीय वोट (STV) एक मतदान प्रणाली है जिसका उपयोग उम्मीदवारों के चुनाव के लिए या विकल्पों के एक सेट से एक विकल्प चुनने के लिए किया जाता है।

यह मतदाताओं को उनके पसंदीदा विकल्पों को रैंक करने की अनुमति देता है और उन विकल्पों को वोट आवंटित करता है जिससे यह सुनिश्चित होता है कि बर्बाद वोटों की संख्या कम से कम हो।

यह प्रणाली मतदाताओं की पसंद के आधार पर हारने वाले उम्मीदवारों से दूसरे उम्मीदवारों को वोट तब तक स्थानांतरित करता है जब तक कि एक उम्मीदवार को वोटों का बहुमत नहीं मिल जाता।

इस पद्धति का उपयोग बहु-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों के चुनावों में किया जाता है और इसे विभिन्न मतों वाले मतदाताओं के लिए उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

कुल मिलाकर कहने का अर्थ ये है कि मतदाता वरीयता के क्रम में उम्मीदवारों को रैंक करते हैं, और मतदाताओं द्वारा व्यक्त की गई प्राथमिकताओं के आधार पर सीटों का आवंटन किया जाता है।

अब आप यहाँ पर समझ रहे होंगे कि अनुच्छेद 55 में जो आनुपातिक प्रतिनिधित्व और एकल हस्तांतरणीय वोट का जिक्र है वो क्या है।

अनुच्छेद 55(2) में आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार वोट वैल्यू के कैलक्युलेशन विधि को बताया गया है; आइये इसे समझें;

आनुपातिक प्रतिनिधित्व के तहत राष्ट्रपति चुनाव में यह सुनिश्चित किया जाता है कि निर्वाचन में राज्यों का प्रतिनिधित्व समान रूप से हो।

यानी कि राज्य के जितने भी विधायक है, उनके वोट का वैल्यू एक समान हो। और साथ ही साथ राज्य और केंद्र के सांसदों का भी वोट मूल्य एक समान हो। वोट का मूल्य एक समान होने का क्या मतलब है ये आगे समझते हैं।

वोट का वैल्यू समान हो इसके लिए जो तकनीक अपनाई जाती है। उसमें उस राज्य की जनसंख्या को उस राज्य के विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों से भाग दे दिया जाता है और जितना भी भागफल आता है उसे फिर से 1000 से भाग दे दिया जाता है।

◾ 1000 से भाग इसीलिए दे दिया जाता है ताकि संख्या कम आए और कैलकुलेशन में आसानी रहें। इसे आप इस प्रकार लिख सकते हैं।

राष्ट्रपति चुनाव

◾ अब यहाँ पर ये बात ध्यान रखिए कि किसी भी राज्य की जनसंसख्या 1971 वाला इस्तेमाल किया जाता है। करेंट वाला नहीं। ऐसा क्यों किया जाता है?

इसके पीछे की कहानी ये है कि दक्षिण भारतीय राज्यों ने आजादी के बाद जनसंख्या पर नियंत्रण रखने में काफी कामयाबी हासिल की। लेकिन उत्तर भारतीय राज्यों ने जनसंख्या कम करने के बजाए दुगुनी-तिगुनी गति से उसे बढ़ने दिया।

दक्षिण भारतीय राज्यों की चिंता ये थी कि अगर आज के जनसंख्या के हिसाब से वोट वैल्यू निकाले तो उत्तर भारतीय राज्यों की वोट वैल्यू इतनी हो जाएगी कि वो खुद अपने दम पर ही राष्ट्रपति को चुन लेंगी। जो कि सही भी है।

◾ इसे केरल और बिहार के उदाहरण से समझिए। 1971 के जनसंख्या के हिसाब से केरल के एक विधायक का वोट वैल्यू 152 है। वहीं बिहार के एक विधायक का वोट वैल्यू 173 है। यानी कि ज्यादा अंतर नहीं है।

अब 2011 के जनसंख्या के हिसाब से देखें तो केरल के एक विधायक का वोट वैल्यू 238 आता है। वहीं बिहार का 427 आता है। लगभग दोगुने का फर्क है। अब आप समझ रहे होंगे कि क्यों 1971 वाला जनसंख्या इस्तेमाल किया जाता है।

राष्ट्रपति चुनाव और मत मूल्य (Presidential Election and Vote Value)

अभी जो फॉर्मूला हमने ऊपर लिखा है, आइये उसके हिसाब से बिहार के एक विधायक का वोट वैल्यू निकालते है। बिहार का 1971 का जनसंख्या 42,126,800 है और बिहार में विधानसभा का कुल सीट 243 है।

अब उस जनसंख्या में अगर 243 से भाग दे दिया जाये तो 1,73,361 आता है। अगर इसे 1000 से भाग दे दिया जाये तो 173 आता है।

◾ इसका मतलब ये हुआ कि राष्ट्रपति चुनाव में भाग लेने वाले बिहार के हर एक वोटर का वोट मूल्य 173 है। इसी प्रकार से सभी राज्यों का निकाल लिया जाता है। सभी राज्य में उसके विधायकों के 1 वोट का मूल्य एक समान ही होता है। तो ये तो हो गया राज्य के स्तर पर वोट का अनुपात

अगर आप सभी राज्यों के 1 विधायकों का वोट मूल्य देखना चाहते है तो आप यहाँ क्लिक करके विकिपीडिया पर देख सकते है।

◾ इसी प्रकार से राज्य और केंद्र के मध्य वोट का अनुपात भी एक समान होना चाहिए। चूंकि संसद के दोनों सदन के निर्वाचित सदस्य इस चुनाव में भाग लेते हैं, इसीलिए उन सबके वोट का मूल्य भी सभी राज्य के विधायक से बराबर रहना चाहिए।

आइये इसे भी निकाल के देखते हैं कि कितना आता है। इसे इस तरह से निकाला जाता है।

कैलक्यूलेट करने पर सभी राज्यों के विधायकों के मतों का कुल मूल्य 549,495 आता है।

◾ यहाँ पर याद रखिए कि इसमें जम्मू और कश्मीर की 87 सीट का कैलक्युलेशन है। अगर भविष्य में वहाँ का सीट बढ़ जाएगा तो वोट वैल्यू अलग हो जाएगी।

अभी संसद में कुल निर्वाचित सदस्य 776 है। 543 लोकसभा में और 233 राज्य सभा में। तो 549,495 में अगर 776 से भाग देंगे तो ये आता है- 708 यानी कि एक सांसद के वोट का मूल्य 708 है। तो कुल सांसद के वोट का मूल्य 549,408 हुआ।

◾ अब आप यहाँ पर देखें तो देश के कुल विधायक का वोट वैल्यू 549,495 है, जबकि कुल सांसदों का वोट वैल्यू 549,408 है। यानी कि दोनों का अनुपात लगभग बराबर है।

अब अगर कुल सांसदों और कुल विधायकों का वोट वैल्यू जोड़ दिया जाए तो 1,098,903 आता है।

◾ याद रखिए कि निर्वाचक मंडल में जो सदस्य है उसकी संख्या 4896 ही हैं। वो कैसे? वो ऐसे कि देश में अभी कुल निर्वाचित विधायकों की संख्या 4120 है। और कुल निर्वाचित सांसदों की संख्या 776 है।

दोनों को जोड़ दीजिए तो 4896 आ जाएगा और यही तो निर्वाचक मंडल (Electoral College) है जो राष्ट्रपति को चुनेंगे।

◾ अब आप समझ रहे होंगे कि निर्वाचक मंडल के सभी सदस्यों की संख्या 4896 है और सभी का वोट वैल्यू 1,098,903 है। अब अगर 1,098,903 में 4896 से भाग दे दें तो लगभग 224 आता है।

यानी कि निर्वाचक मंडल के जितने भी सदस्य है, उन सब के एक वोट का मूल्य 224 है। तो हो गया न सभी के वोट का मूल्य एक समान।

राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू

चूंकि राष्ट्रपति चुनाव विधानसभा और लोकसभा जैसे चुनाव तो है नहीं जिसमें जिसका सबके ज्यादा वोट होता है। वही जीत जाता है, भले ही वोट कितना ही कम क्यों न आया हो। (इसीलिए इस व्यवस्था को फ़र्स्ट पास्ट दी पोस्ट सिस्टम यानी कि ज्यादा लाओ सीट पाओ सिस्टम कहा जाता है।)

लेकिन राष्ट्रपति चुनाव चूंकि आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली द्वारा होता है। इसीलिए यहाँ पर जीतने के लिए कुल मतों का एक निश्चित भाग प्राप्त करना आवश्यक होता है।

कितना मत लाना जरूरी है। इसे निकालने के लिए भी एक फॉर्मूला है।

यहाँ कुल वैध मत 1,098,903 है और पद की संख्या तो हम जानते ही है कि 1 ही है। बस इस फॉर्मूले पर इसे बैठा दीजिये। 5,49,452 आ जाएगा।

इसका मतलब ये हुआ कि जब तक कोई उम्मीदवार 5,49,452 मत प्राप्त नहीं करता। जीतेगा नहीं।

◾ लेकिन जरूरी तो नहीं है कि किसी को इतना या इससे ज्यादा वोट मिल ही जाए। यही पर एक कॉन्सेप्ट आता है – एकल हस्तांतरणीय मत सिस्टम (Single transferable vote system) का।

◾ इसका सीधा सा मतलब ये है कि वोट तो 1 ही होता है लेकिन हस्तांतरणीय होता है। मतलब ये कि जब तक किसी उम्मीदवार को 5,49,452 वोट मिल नहीं जाता। तब तक वोट देने वाले सदस्यों का वोट ट्रान्सफर होता रहेगा।

◾ याद रखिए कि अगर किसी को एक ही बार में उतना वोट मिल गया तो फिर तो बात ही खत्म है। लेकिन अगर किसी को उतना वोट नहीं मिलता है तब वोट ट्रान्सफर सिस्टम शुरू हो जाता है।

◾ ये सिस्टम काम करें इसीलिए Preferential System अपनाया जाता है। इसका मतलब ये होता है कि सभी सदस्य जो इस चुनाव में भाग लेते हैं वो किसी एक को नहीं चुनते हैं बल्कि वे अपना Preference यानी कि पसंद चुनते हैं।

मतलब ये कि जो सबसे ज्यादा पसंद है उसे 1 नंबर पर, उससे कम पसंदीदा 2 नंबर पर, आदि इसी तरह से चलता है। ये निर्भर करता है कि राष्ट्रपति पद के लिए खड़ा कितना उम्मीदवार है। ये कैसे काम करता है। आइए देखते हैं।

◾ समझने के लिए मान लेते हैं कि निर्वाचक मंडल में कुल 100 सदस्य है और सभी के वोट का मूल्य 1 है। यानी कि कुल वोट का मूल्य 100 है।

इस प्रकार ऊपर बताए गए फॉर्मूला के हिसाब से देखें तो जीतने के लिए कुल वोट मूल्य का कम से कम 51 लाना ही पड़ेगा। अब चलिए मान लेते हैं कि चार उम्मीदवार राष्ट्रपति पद के लिए खड़ा हैं।

वोटिंग की प्रक्रिया खत्म हो गयी है और काउंटिंग शुरू हो गयी है। जब राउंड 1 की काउंटिंग शुरू हुई तो चारों को क्रमशः इस अनुपात में वोट मिला।

उम्मीदवार A 40
उम्मीदवार B30
उम्मीदवार C20
उम्मीदवार D10

ये जो वोट है ये First Preference है। यानी कि 100 लोगों में से 40 लोगों का First Preference या पहली पसंद उम्मीदवार A है।

30 लोगों की पहली पसंद उम्मीदवार B है। 20 लोगों की पहली पसंद उम्मीदवार C है, और 10 लोगों की पहली पसंद उम्मीदवार D है। इसी प्रकार से सब का Second Preference भी होगा। ठीक है।

अब यहाँ पर आप देख पा रहें होंगे कि किसी भी उम्मीदवार को 51 वोट नहीं मिला है। यानी कि कोई भी नहीं जीता है। ऐसे में सेकंड राउंड की काउंटिंग शुरू होगी।

सेकंड राउंड की काउंटिंग

अब होगा ये कि सबसे पहले उम्मीदवार D का जो वोट है वो ट्रान्सफर हो जाएगा। क्योंकि सब से कम वोट उसी को मिला है। ये कैसे होगा?

तो आप देख रहे होंगे कि 10 लोग ऐसे हैं जो ऊमीदवार D को First Preference पर देखना चाहते थे। अब जाहिर है कि इन 10 लोगों का Second Preference भी तो होगा ही, जिसको ये लोग सेकंड नंबर पर देखना चाहते होंगे।

मान लेते हैं कि इस 10 में से 5 लोग उम्मीदवार A को Second Preference पर देखना चाहते थे, उसी प्रकार 3 लोग उम्मीदवार B को और 2 लोग उम्मीदवार C को Second Preference पर देखना चाहते थे।

तो अब होगा ये कि इन दसों का Second Preference का वोट क्रमशः उम्मीदवार A, B और C को ट्रान्सफर हो जाएगा, यानी कि सब में जुड़ जाएगा।

A का 40 वोट था तो उसमें 5 और जुड़ जाएगा, B का 30 वोट था तो उसमें 3 और जुड़ जाएगा, C का 20 वोट था तो उसमें 2 और जुड़ जाएगा। अब स्थिति ऐसी हो जाएगी।

उम्मीदवार A ➡ 40 + 5 = 45 वोट हो गया।
” B ➡ 30 + 3 = 33 वोट हो गया।
” C ➡ 20 + 2 = 22 वोट हो गया।

अब आप देख रहें होंगे कि अभी भी इनमें से किसी को भी 51 वोट नहीं मिला है। अगर मिल जाता तो यही पर चुनाव खत्म हो जाता और विजेता घोषित कर दिये जाता।

आम तौर पर ऐसा ही होता है। पर इस केस में चूंकि अभी भी किसी को 51 वोट नहीं मिला है इसिलिए अब थर्ड राउंड की काउंटिंग शुरू हो जाएगी।

थर्ड राउंड की काउंटिंग

उम्मीदवार D का वोट तो पहले ही ट्रान्सफर हो चुका है। अब उम्मीदवार C सी की बारी है। क्योंकि सब से कम वोट अब इसी का है।

कुल 20 लोगों ने C को First Preference पर रखा है और 2 लोगों ने Second Preference पर। उम्मीद है समझ पा रहे होंगे।

अब होगा ये कि जिन 20 लोगों ने भी C को First Preference पर रखा है, उसका Second Preference देखा जाएगा। और जिन 2 दो लोगों ने C को Second Preference पर रखा है, उसका Third Preference देखा जाएगा।

अब मान लीजिये कि उन 20 लोगों में से 2 लोगों ने A को Second Preference पर रखा है, और 18 लोगों ने B को Second Preference पर रखा है।

बाँकी जो दो लोग है जिन्होने C को Second Preference पर रखा था। मान लीजिये कि उसमें से 1 ने A को Third Preference पर रखा है और 1 ने B को Third Preference पर रखा है।

C का वोट इस तरह से अब A और B को ट्रान्सफर हो जाएगा। ट्रान्सफर होने के बाद देखिये अब क्या होता है।

A ➡ 45 + 2 + 1 = 48 वोट
B ➡ 33 + 18 + 1 = 52
वोट
अब आप देख रहे होंगे कि B को 51 से अधिक वोट मिल चुका है, और अब B को विजेता घोषित कर दिया जाएगा।

इसी को कहते हैं – एकल हस्तांतरणीय मत पद्धति (Single transferable vote method)। और ये था इसका पूरा प्रक्रिया।

✅ उम्मीद है आप समझ गए होंगे कि राष्ट्रपति चुनाव कैसे होता है। जाते-जाते एक फ़ैक्ट जान लीजिये कि अभी तक थर्ड राउंड की काउंटिंग की नौबत नहीं आयी है।

ज़्यादातर फ़र्स्ट राउंड में ही नहीं तो सेकंड राउंड में हो ही जाता है। थर्ड राउंड की काउंटिंग मैंने इसीलिए बताया ताकि कॉन्सेप्ट पूरी तरह से क्लियर रहें।

2022 का राष्ट्रपति चुनाव

2022 के राष्ट्रपति चुनाव में दो उम्मीदवार थे – NDA की तरफ से द्रौपदी मुर्मू और यूनाइटेड विपक्ष (UO) की तरफ से यशवंत सिन्हा।

2022 की स्थिति को देखें तो 2022 में चुनाव के समय, निर्वाचक मंडल में 776 सांसद और 4,033 विधायक शामिल थे (वर्तमान में भंग और हाल ही में सीमांकित जम्मू और कश्मीर विधान सभा के 90 विधायकों को छोड़कर)।

यानि की कुल मिलाकर निर्वाचक मण्डल में 4809 सदस्य होते है। कुछ सीटें खाली रह जाने के कारण 4796 सदस्य ही इस चुनाव में भाग ले पाए थे। जैसे कि नीचे चार्ट में देख सकते हैं।

2022 का निर्वाचक मण्डल

HouseNDAUPAOthersTotal
Lok Sabha348 / 54391 / 543103 / 543543
Rajya Sabha120 / 23349 / 23374 / 233228
(excluding 5 vacant seats)
State Legislative Assemblies2,136 / 4,0361,224 / 4,0361,253 / 4,0364,025
(excluding 7 vacant seats)
Total2,234 / 4,7961,200 / 4,7961,430 / 4,7964,796
चार्ट क्रेडिट विकिपीडिया

हमने ऊपर समझा की निर्वाचक मण्डल की क्षमता 4896 है। लेकिन 2022 के चुनाव में ये 4796 लोगों ने ही हिस्सा लिया। ऐसा इसीलिए हुआ क्योंकि जम्मू और कश्मीर की सभी 4 राज्यसभा सीटें और 90 राज्य विधानसभा सीटें खाली रह गई क्योंकि जम्मू और कश्मीर विधान सभा भंग हो गई है। त्रिपुरा की एक मात्र राज्यसभा सीट खाली रह गई। विभिन्न राज्यों में राज्य विधानसभाओं की 7 सीटें (गुजरात की 4, महाराष्ट्र, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल की 1-1) भी खाली रह गई।

2022 के चुनाव में कुल 4809 पंजीकृत मतदाता थे। और इन मतदाताओं का वोट वैल्यू 1,086,431 था जिसमें से 543,216 वोट लाने वाले को विजेता घोषित किया जाता।

CandidateCoalitionIndividual
votes
Electoral
College votes
Draupadi MurmuNational Democratic Alliance2,824676,803
Yashwant SinhaUnited Opposition1,877380,177
Valid votes4,7011,056,98098.89
Blank and invalid votes5315,3971.11
Total4,7541,072,377100
Registered voters / Turnout4,8091,086,43198.86
चार्ट क्रेडिट विकिपीडिया

यहाँ आप देख सकते हैं कि द्रौपदी मुर्मू को जरूरी वोट से कहीं ज्यादा वोट मिल गया इसीलिए पहले ही राउंड में यह फ़ाइनल हो गया कि कौन विजेता बनेगा।

राष्ट्रपति चुनाव FAQs

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