हरित क्रांति की सफलता को देखते हुए ही श्वेत क्रांति और नीली क्रांति को शुरू किया गया था। इस लेख में हम हरित क्रांति, श्वेत क्रांति और नीली क्रांति के मध्य अंतर को समझेंगे, तो लेख को अंत तक जरूर पढ़ें;

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हरित क्रांति

| हरित क्रांति (Green revolution)

द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका द्वारा जापान पर परमाणु हमला करने के बाद सबसे बड़ी चिंता की विषय यही थी की जापान का पुनर्निर्माण कैसे हो ।

इसी के संबंध में दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद जब विजयी अमेरिकी सेना जापान पहुंची, तो उसके साथ कृषि अनुसंधान सेवा के सैसील सैल्मन भी थे।

सैल्मन का ध्यान खेती पर था । उन्हें नोरिन-10 नामक गेहूं की एक किस्म मिली, जिसका पौधा कम ऊंचाई का होता था और दाना काफी बड़ा होता था।

सैल्मन ने इसे व्यापक शोध के लिए अमेरिका भेजा। 13 साल के प्रयोगों के बाद 1959 में गेन्स नाम की किस्म तैयार हुई।

अमेरिकी कृषि विज्ञानी नौरमन बोरलॉग ने गेहूं की इस किस्म का मैक्सिको की सबसे अच्छी किस्म के साथ संकरण किया और एक नयी किस्म निकाली । 

अब हुआ ये 1960 के दशक में भारत की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब थी और युद्धों के कारण स्थिति और भी बिगड़ती चली गयी।

लोग दाने-दाने को मोहताज होने लगे । उस समय भारत को उपज बढ़ाने की सख्त जरूरत थी ताकि इस दयनीय स्थिति में थोड़ी सुधार लाया जा सकें ।

उसी समय भारत को गेहूं की बोरलॉग और नोरिन किस्म का पता चला।  उस समय भारत के कृषि मंत्री थे सी सुब्र्मण्यम; उन्होने गेहूं की नयी किस्म के 18 हज़ार टन बीज़ आयात किए। कृषि क्षेत्र में जरूरी सुधार लागू किए गए और कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से किसानों को जानकारी उपलब्ध करायी गयी।

देखते ही देखते भारत अपनी जरूरत से ज्यादा अनाज पैदा करने लगा। इसे ही हरित क्रांति कहा गया । 

दुग्ध क्रांति और ऑपरेशन फ्लड

इसे दुग्ध क्रांति और ऑपरेशन फ्लड भी कहते हैं। जिस प्रकार भारत में अनाज की कमी को दूर करने के लिए हरित क्रांति लाया गया था

उसी प्रकार भारत में दूध की कमी को दूर करने के लिए दुग्ध क्रांति का सूत्रपात हुआ था इसे 13 जनवरी 1970 को लागू किया गया था । डॉ. वर्गीज़ कुरियन को भारत में दुग्ध क्रांति का जनक माना जाता है ।

श्वेत क्रांति ने डेयरी उद्योग से जुड़े किसानों को उनके विकास को स्वयं दिशा देने में सहायता दी, उनके संसाधनों का कंट्रोल उनके हाथों में दिया और देखते ही देखते हरित क्रांति की ही तरह भारत धीरे – धीरे दुनिया का सबसे अधिक दुग्ध उत्पादन करने वाला देश बन गया ।

यहाँ एक बात बता दूँ कि डॉ. कुरियन ने ही अमूल (AMUL) की स्थापना की थी । जो आज भी चल रही है। 

नीली क्रांति

नीली क्रांति का संबंध मछली उत्पादन से है । मछली उत्पादक किसानों की आय में बढ़ोतरी के लिए और भारत में मछली उत्पादन के क्षेत्र में अपार संभावनाओं को देखते हुए 7वीं पंचवर्षीय योजना (1985-1990) में भारत सरकार ने फिश फार्मर्स डेवलपमेंट एजेंसी (FFDA) को प्रायोजित किया।

आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992 से 1997) के दौरान सघन मरीन फिशरीज़ प्रोग्राम शुरू किया गया। तथा इसके संवर्धन के लिए उचित तकनीकी मदद की व्यवस्था की गयी ।

इससे धीरे-धीरे मछली उत्पादन में तेजी आने लगी । उत्पादन बढ़ने के साथ ही साथ प्रजातियों में सुधार के लिये बड़ी संख्या में अनुसंधान केंद्र भी स्थापित किये गए।

मछली उत्पादन में आज भारत का विश्वभर में दूसरा स्थान है। बाद में मछली की उपलब्धता आसानी से करवाने के साथ साथ इसे व्यापार से भी जोड़ दिया गया और इसे एक क्रांति का नाम दिया गया । जो कि नीली क्रांति के नाम से जाना गया ।

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