इस लेख में हम चिंतक और दार्शनिक (Thinker and philosopher) के मध्य कुछ मूल अंतरों को जानेंगे, तो लेख को अंत तक जरूर पढ़ें; और साथ ही रोज़ नए-नए Content के लिए हमारे Facebook Page को लाइक जरूर करें। 

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चिंतक और दार्शनिक
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| चिंतक और दार्शनिक

चिंतक और दार्शनिक में से चिंतक होना तो आसान है लेकिन दार्शनिक होना थोड़ा मुश्किल। ऐसा इसीलिए क्योंकि चिंतन करना आसान है, लेकिन एक नया दर्शन स्थापित करना, थोड़ा मुश्किल।

चिंतक और दार्शनिक में अंतर क्या है? - [Key Difference] WonderHindi.Com

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चिंतक (Thinker)

चिंतक के लिए इंग्लिश में Thinker शब्द का इस्तेमाल किया जाता है तो इस तरह से देखें तो थिंक मतलब होता है सोचना और थिंकर मतलब सोचने वाला, फिर दिमाग में आता है सोचता तो सभी है तो उस हिसाब से तो फिर सभी थिंकर हुए। हाँ, इस हिसाब से देखें तो सभी थिंकर है क्योंकि कमोबेश सोचता तो सभी है। 

♦ इंग्लिश में तो कम से कम ये कह ही सकते है पर जब बात हिन्दी की करते हैं तो यहाँ हम थिंकर के लिए ‘चिंतक या विचारक’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं न की ‘सोचने वाला’ तो हिन्दी में इसके भाव स्पष्ट हो जाते हैं कि सोचता तो सभी है पर चिंतक वे होते है जो किसी खास ढंग से चीजों के बारे में सोचते हैं और बहुत ही ज्यादा सोचते हैं। 

♦ जाहिर है आज इस भौतिक दुनिया में जो भी है उसके बारे में पहले किसी न किसी ने सोचा ही होगा और बहुत ही ज्यादा सोचा होगा, अपने स्तर पर उसके हर पहलू को सोचने की कोशिश की होगी। 

♦ इस हिसाब से देखें तो चिंतक आप भी हैं और अगर नहीं है तो बन सकते है जैसे ही आप किसी चीज़ के बारे में सोचते है कुछ प्रश्न तो स्वाभाविक तौर पर मन में आता ही है,

जैसे कि – उसकी उत्पत्ति (Origin) कैसे हुई है?,
उसकी प्रकृति (Nature) क्या है?,
उसकी संरचना (स्ट्रक्चर) क्या है?,
वो कार्य (Function) कैसे करता है?, तथा
एक व्यक्ति के रूप में उससे हमारा संबंध क्या है? या क्या हो सकता है?

अगर इतना भी आप किसी चीज़ के बारे में चिंतन कर लेते है तो आप एक चिंतक हैं। 

♦ महत्वपूर्ण बात ये है कि चिंतक सोचता और बस सोचता है उसमें सामान्यत: जन कल्याण की कोई भावना नहीं होती, या यूं कहें कि ये व्यक्ति केन्द्रित होता है। हो सकता है हम खुद किसी नतीजे पर पहुँचने के लिए चिंतन कर रहें हों। 

♦ इंसान अक्सर महत्वपूर्ण विषयों पर विचार करता है या नए विचार उत्पन्न करता रहता है। 

  • अगर कोई राज्य के लिए चिंतन करता है तो वह राजनैतिक चिंतक (political thinker) कहलाता है, 
  • अगर धर्म पर चिंतन करता है तो वह धार्मिक चिंतक (religious thinker) कहलाता है, 
  • अगर कोई विज्ञान पर चिंतन करता है तो वह वैज्ञानिक चिंतक (scientific thinker) कहलाता है। 

सिद्धान्त (Principle)इसी विचार को जब हम प्रयोग के माध्यम के सिद्ध करते हैं और तार्किकता की कसौटी पर कसते हैं तो ये एक सिद्धान्त बन जाता है। जैसे कि मार्क्सवादी सिद्धान्त। 

विचारधारा (Ideology) – और इसी सिद्धान्त को केंद्र बिन्दु मानकर जब हम अपने-अपने विचारों को इसमें जोड़ते है और उसे कार्यरूप में परिणत करते हैं या फिर उसपर अपनी एक दृढ़ राय बनाते है तो इसे विचारधारा कहा जाता है।

जैसे कि उसी मार्क्सवादी सिद्धान्त में जब लेनिन ने अपने कुछ इनपुट जोड़े और उसे अपने हिसाब से लोगों से सामने प्रस्तुत किया तो वो एक लेनिनवादी विचारधारा बन गया। 

अगर इतना कॉन्सेप्ट क्लियर हो गया तो आइये अब दार्शनिक के बारे में जानते हैं। 

यहाँ से पढ़ें – लैंगिक भेदभाव : समस्या एवं समाधान

दार्शनिक (Philosopher)

♦ दार्शनिक को जानने से पहले आइये दर्शन को समझते है, दर्शन दरअसल उच्चतम आदर्श होता है जो बताता है कि चीज़ें कैसी होनी चाहिए ताकि एक आदर्श समाज की स्थापना की जा सकें। 

♦ दार्शनिक दरअसल एक खोजी होते हैं जो हमेशा सत्य की खोज में लगे रहते हैं। वे वर्तमान व्यवस्था में विसंगतियों को तलासते हैं और बताते हैं की चीज़ें कैसी होनी चाहिए। 

♦ वे अस्थितव से जुड़े प्रश्नों को हल करने में लगे रहते है। जैसे कि ये जीवन क्या है? हम क्यों जिंदा है? भगवान क्या है? स्वर्ग और नर्क क्या होते है? आदि-आदि। 

♦ वे जीवन के अर्थ को समझने में लगे रहते हैं। कि हम पैदा क्यूँ हुए हैं? आखिर हमारा उद्देश्य क्या है? 

♦ वे हमेशा आदर्शतम स्थिति को खोजने में लगे रहते हैं। और उसका एक ही मकसद होता है सत्य को लागू करना ताकि संपूर्ण मानव का कल्याण हो सकें। कहने का अर्थ ये है कि दार्शनिक एक जीवन नहीं चाहता बल्कि एक बेहतर जीवन चाहता है।

Philosopher शब्द प्राचीन ग्रीक से आया है: जिसका अर्थ है ‘ज्ञान का प्रेमी (lover of wisdom)’। इस शब्द के गढ़ने का श्रेय ग्रीक विचारक पाइथागोरस (छठी शताब्दी ईसा पूर्व) को दिया गया है।

हालांकि ये याद रखिए कि दर्शन का पहला खाता (Account) प्राचीन हिंदू वेदों में पाया जाता है, जो कि 1500 ईसा पूर्व (ऋग्वेद) और लगभग 1200-900 ईसा पूर्व (यजुर्वेद, साम वेद, अथर्ववेद) के बीच लिखे गए थे। वेदों की रचना से पहले, उन्हें पीढ़ी से पीढ़ी तक मौखिक रूप से सुनाए जाने की प्रथा थी।

शास्त्रीय अर्थ में, एक दार्शनिक वह था जो जीवन के एक निश्चित तरीके के अनुसार रहता था, मानव स्थिति के बारे में अस्तित्व संबंधी प्रश्नों को हल करने पर ध्यान केंद्रित करता था; जिन लोगों ने इस जीवन शैली के लिए खुद को सबसे कठिन तरीके से प्रतिबद्ध किया, उन्हें दार्शनिक माना गया।

♦ ये एक चिंतक की तरह नहीं होते हैं जो सिर्फ चिंतन किया और काम खत्म बल्कि ये चिंतन करते हैं और एक आदर्श समाज कैसे स्थापित किया जाये इसकी पूरी प्रक्रिया बताते हैं। कहने का अर्थ ये है कि दार्शनिक दुनिया के सारी विसंगतियों को सुधारने का ठेका खुद ले लेते हैं।

♦ ये जीवन के उन अबूझ और रहस्यमयी पहेलियों को सुलझाने की कोशिश करते हैं जो आम लोगों के सोच से परे होता है। 

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