जब भी हम अपने जीवन में भटकाव महसूस करते हैं तब प्रेरणा हमें अपने लक्ष्य की दिशा में कर्म करने को उत्प्रेरित करता है। इस प्रेरणा के कई स्रोत हो सकते हैं, ये माता-पिता, परिवार और समाज भी हो सकते हैं और प्रेरक लघु कहानियां भी।

इस पेज पर कुछ बेहतरीन प्रेरक लघु कहानियां संकलित की गई है, तो इसे अंत तक अवश्य पढ़ें; उम्मीद है आपको पसंद आएगा। हमारे सोशल मीडिया हैंडल से अवश्य जुड़ जाएँ;

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| 10 प्रेरक लघु कहानियां

प्रेरक लघु कहानियां

| आत्म-संतुष्टि

इंग्लैंड में रॉबर्ट जेम्स नाम का एक व्यक्ति रहता था जो कि घोड़ों को प्रशिक्षण देने का काम करता था। चूंकि उसका काम ही कुछ ऐसा था तो इस सिलसिले में उसे अक्सर घर से बाहर रहना पड़ता था।

जब रॉबर्ट घर पे नहीं होता था तब उसका बेटा मोंटी रोबर्ट्स घर संभालता था और इस चक्कर में उसे कई बार स्कूल भी छोड़ना पड़ता था। जिससे उसकी पढ़ाई में निरंतर व्यवधान पड़ता था।

एक बार की बात है उसके स्कूल टीचर ने कक्षा में सभी बच्चों को कहा कि तुम बड़े होकर जो भी बनना चाहते हो या फिर जो भी तुम्हारे सपने है, उसपर एक लेख लिखो।

और टीचर ने ये याद दिलाते हुए कहा कि तुम्हारे लेख वास्तविक होनी चाहिए न कि काल्पनिक, क्योंकि सबको इसी आधार पर A से लेकर F तक ग्रेड दिया जाएगा और जिसको F ग्रेड आया उसकी कहानी को काल्पनिक माना जाएगा और उसे फ़ेल घोषित किया जाएगा।

सभी बच्चों ने अपने-अपने लेख लिखे और वो जो बनना चाहता था उसको उस लेख में दर्शाने की कोशिश की। मोंटी ने भी अपना लेख लिखा पर उसने अपने लेख में लिखा कि मैं बड़ा होकर घोड़े के तबेले का मालिक बनना चाहता हूँ ताकि मेरे पिता को काम के लिए यहाँ-वहाँ भटकना न पड़े।

यहाँ तक कि मोंटी ने तबेले का स्केच भी बनया और अपनी सारी योजनाएँ भी लिखा और टीचर के पास दिखाने गया। टीचर ने उसके लेख को देखा और उसे F ग्रेड दिया और डांटते हुए कहा कि तुम पागल हो गए हो क्या ? ऐसे सपने कौन देखता है!

और वैसे भी न तुम्हारे पास पैसे है और न ही साधन। ये लेख तो वास्तविकता से कोसों दूर है। टीचर ने हिदायत देते हुए कहा कि अगर तुम्हें अपना ग्रेड सुधारना है तो कल दूसरा लेख लिख कर आना और इस बार जो वास्तविक हो वहीं सपने देखना।

मोंटी घर पहुँचकर, काफी दु:खी मन से सारी बातें अपने पिता को बताया और पूछा कि मुझे क्या करना चाहिए। पिता ने कहा कि तुम्हें जिस चीज़ में संतुष्टि मिलती है वही काम करो, ये तुम्हारा जीवन है तुम जो चाहो बन सकते हो।

फिर क्या था मोंटी ने फिर से वही लेख लिखा और टीचर को दिखाया और कहा; आप मुझे जो भी ग्रेडिंग दीजिये लेकिन मैं बड़ा होकर बनूँगा तो घोड़ों के तबेलों का मालिक ही, क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो मुझे संतुष्टि नहीं मिलेगी।

उसने दृढ़ निश्चय किया और अपने सपने पूरे किए। आज मोंटी रोबर्ट्स के पास 200 एकड़ में फैला घोड़ों का तबेला है और इंग्लैंड के सबसे अच्छे तबेलों में से एक है। आज यहाँ देश भर से घोड़े प्रशिक्षण के लिए आते है। कहा जाता है कि मोंटी ने आज भी वो लेख आज भी अपने पास रखा है।

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| तजुर्बा

तजुर्बा किस प्रकार हमारी गलतियों को कम कर देता है और हमे विशिष्ट लोगों की श्रेणियों में लाकर खड़ा कर देता है, इसे इस लघु-कथा के माध्यम से समझा जा सकता है ।

एक बार की बात है एक बहुत बड़ा समुद्री जहाज पर्यटकों को लेकर एक सफ़र पर निकला था। कुछ समुद्री मील यात्रा करने के बाद अचानक जहाज का इंजन खराब हो गया।

कैप्टन और वहाँ मौजूद इंजीनियरों ने इंजन को ठीक करने की काफी कोशिश की पर इंजन ठीक ही नहीं हो रहा था। परिणामस्वरूप लोगों के मन में भय समाने लगा कि पता नहीं अब क्या होगा!

अंत में थक-हारकर कैप्टन ने बंदरगाह कार्यालय से संपर्क किया। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए बंदरगाह से कुछ इंजीनियरों को हेलिकॉप्टर से भेजा गया।

वे लोग आते ही इंजन के मरम्मत में जुट गये। काफी समय हो गया, उन लोगों ने भी काफी मशक्कत की पर फिर भी इंजन ठीक नहीं हुआ।जहाज के यात्रियों का सब्र का बांध टूटा जा रहा था वे परेशान होकर बार-बार कैप्टन से आकर पूछ रहे थे कि ठीक हुआ कि नहीं ?

अब कैप्टन सोच में पड़ गया कि अब क्या करें ? ये अब कैसे ठीक होगा? तभी यात्रियों में से किसी ने कहा की, ”एक अमुक इंजीनियर है अगर उसे बुलाया जाय तो शायद वो ठीक कर सकता है।” और कोई चारा न देखकर कैप्टन ने उस इंजीनियर को बुलाने को सोचा। और उसे लाने के लिए उस हेलिकॉप्टर को भेज दिया।

कुछ देर बाद वो इंजीनियर आया, वो अपने हाथ में एक छोटा सा टूल-बॉक्स लिए इंजन रूम की तरफ बढ़ा। बाकी के इंजीनियर, नये इंजीनियर के पीछे-पीछे गये।

वो सब देखना चाहते थे की नया इंजीनियर ऐसा क्या करेंगे जो हमलोगों ने नहीं किया। नया इंजीनियर थोड़ी देर इधर-उधर घूमकर चीजों को परखा फिर चलते-चलते इंजन के पास एक जगह रुका।

उसने अपने टूल-बॉक्स से एक स्क्रू-ड्राईवर निकाला और एक जगह ठक-ठक किया फिर उसने एक स्क्रू टाइट किया और कैप्टन को कहा की इंजन को स्टार्ट करें।

कैप्टन ने इंजन स्टार्ट किया और वो स्टार्ट हो गया। कैप्टन के खुशी का ठिकाना नहीं रहा और साथ ही वह ये जानने के लिए उत्सुक भी हो रहा था कि नया इंजीनियर ने आखिर कौन सा स्क्रू टाइट किया !

कैप्टन उस इंजीनियर से बड़ा प्रभावित हुआ और पूछा, आपका बिल क्या है? इंजीनियर ने कहा, 10,000 रूपये।

कैप्टन आश्चर्यचकित होकर बोला- एक स्क्रू टाइट करने के 10,000 रूपये ? इंजीनियर मुस्कुराते हुए कहा, नहीं भाई, स्क्रू टाइट करने का बिल केवल 100 रूपये है। बाकी 9,900 रूपये यह जानने का है कि स्क्रू कहा टाइट करना है।

कैप्टन जवाब सुनकर सन्न रह गया और उसे उसके रूपये दे दिये। इसे कहते हैं- तजुर्बा।

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| ईमानदारी

एक राजा था। उसका बहुत बड़ा साम्राज्य था। राजा के दस बेटे थे। अपनी पूरी ज़िंदगी उसने अच्छे से शासन चलाया पर अब वो बूढ़ा हो चला था और उसे उसी की तरह एक उत्तराधिकारी की तलाश थी।

यही सोचकर एक दिन उसने अपने सभी बेटों को बुलाया और कहा – देखो बच्चों, अब मैं बूढ़ा हो चला हूँ और चाहता हूँ कि तुममे से किसी एक को अपना उतराधिकारी बना दूँ।

यह सुनकर सभी बेटे खुश हो गए और खुद को एक दूसरे से बेहतर साबित करने की कोशिश करने लगे। राजा ने कहा कि मैं तुम सबको एक काम देता हूँ और जो भी इस काम को सबसे बढ़िया तरीके से करेगा वही इस राज्य का नया राजा बनाया जाएगा।  

राजा ने सभी बेटों को एक-एक बीज दिया और कहा, तुम सबको इस बीज को लेकर एक साल के लिए जंगल में जाना है। वहाँ इसे एक गमले में रोपना है और देखभाल करनी है। एक साल के बाद मैं इसे देखने आऊँगा, जिसका पेड़ सबसे बड़ा होगा, वही इस राज्य का नया राजा बनेगा।  

उस राजा के सबसे छोटे बेटे का नाम नकुल था। नकुल भी इन सारी बातों को बहुत ध्यान से सुन रहा था। राजा के सभी बेटों ने बीज लिया और अलग-अलग दिशाओं में जंगल की ओर निकल गए। नकुल ने भी जंगल पहुँच कर एक गमला लिया और उस बीज को रोप दिया।

बहुत अच्छी तरह उस बीज को रोपने, उसमें पानी देने या खाद देने पर भी कुछ समय बाद नकुल का वह पौधा मर गया। दूसरी ओर, राजा के दूसरे बेटों ने जब बीज को रोप कर उसमें खाद दिया तो बीज से पौधा और पौधे से पेड़ बनने लगा।

साल भर बाद सभी बेटे फैसले के दिन जमा हुए एक से बढ़कर एक सुंदर और मजबूत पेड़ अलग-अलग गमलों में नजर आ रहे थे, लेकिन नकुल का गमला खाली था।

सभी दरबारी नकुल के गमले की तरफ देख कर हंस रहे थे और अन्य सभी गमलों की तारीफ़ों के पूल बांध रहे थे। इसी बीच राजा आया, उसने सभी गमलों को देखा और मुस्कुराने लगा ।

नकुल ने राजा को अपनी ओर आते देखा तो वह अपना गमला शर्म के मारे पीछे छुपाने लगा। राजा ने उसके गमले को देखा और सभी दरबारियों की ओर मुड़ कर बोला – सुनो साथियों, आपका नया राजा और मेरा उतराधिकारी चुन लिया गया है।

सभी बेटों की धड़कने तेज हो गयी। राजा ने कहा – आज से आपके नए राजा नकुल होंगे। राजा के दूसरे सभी बेटे और दरबारी यह सुनकर स्तब्ध रह गए।

राजा ने कहा – मैंने अपने सभी बेटों को वही बीज दिया था जो बंजर था और उसमें कभी कोई पौधा या पेड़ नहीं उग सकता था। मेरे अन्य बेटों ने मुझे धोखा देने के लिए उस बीज को बदल दिया लेकिन नकुल अपने काम के प्रति ईमानदार था और वह उसी वास्तविकता और ईमानदारी के साथ मेरे सामने आया, जो उसने हासिल किया।

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| बासी मन

श्रावस्ती का एक सेठ जिसका नाम मृगारि था; करोड़ों मुद्राओं का स्वामी था। धन से उसका उसका मोह इतना अधिक था कि वह हर समय धन के बारे में ही सोचता, यहाँ तक कि खाते-पीते भी वह मन में मुद्राएँ ही गिनता रहता था।

मुद्राएँ ही उसका जीवन थीं। उनमें ही उसके प्राण बसते थे। सोते-जागते मुद्राओं का सम्मोहन ही उसे भुलाए रहता था। संसार में और भी कोई सुख है यह उसने कभी अनुभव ही नहीं किया।

एक दिन वह भोजन के लिए बैठा। पुत्रवधू ने प्रश्न किया – “’तात! भोजन तो ठीक है न ? कोई त्रुटि तो नहीं रही ?” मृगारि कहने लगा– ” आयुष्मती ! आज यह कैसा प्रश्न पूछ रही हो? तुम जैसी सुयोग्य पुत्रवधू भी कहीं त्रुटि कर सकती है क्या, तुमने तो मुझे हमेशा ताजे और स्वादिष्ट व्यंजनों से मन को तृप्त किया है।”

पुत्रवधू ने नि:श्वास छोड़ी, दृष्टि नीचे करके कहा–” आर्य ! यही तो आपका भ्रम है। मैं आज तक सदैव आपको बासी भोजन खिलाती रही हूँ। मेरी बड़ी इच्छा होती है कि आपको ताजा भोजन कराऊँ पर मुद्राओं के सम्मोहन ने आप पर पूर्णाधिकार कर लिया है।

आप ताजा और बासी भोजन में फर्क नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में अगर आपको ताजा भोजन खिलाऊँ भी तो आपको उसका सुख न मिलेगा। आपका मन बासी हो गया है फिर आप ही बताएं मैं क्या करूँ।’”

मृगारि को सारे जीवन की भूल पर बड़ा पश्चात्ताप हुआ। अब वो समझ चुका था कि धन के प्रति अत्यधिक आसक्ति ने उसके जीवन में ठहराव ला दिया था। उसके मन की चंचलता खत्म हो गई थी और उसमें बासीपन आ गया था।

अपनी इस भूल का एहसास होने पर उसने भक्ति भावना को स्वीकार किया और धन का सम्मोहन त्यागकर धर्म-कर्म में रुचि लेने लगा।भौतिकता के जिस आकर्षण ने उसकी सदिच्छाओं और भावनाओं को समाप्त कर दिया था और उसमें संकीर्णता भर दिया था; अंततः वो उस सब से ऊपर उठ गया।

प्रेरक लघु कहानियां
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| सह-अस्तित्वता का बोध

एक बार की बात है संत एकनाथ एक गाँव से गुजर रहे थे। चलते हुए उन्होने देखा कि कुछ ग्रामीण एक साँप को मार रहे थे। संत एकनाथ वहाँ पहुंचे और बोले–” भाइयो इसे क्यों पीट रहे हो, कर्मवश सर्प होने से क्या हुआ ? ये भी तो एक जीव है, ये भी तो एक आत्मा है।

”एक युवक ने कहा–” आत्मा है तो फिर काटता क्यों है ?” एकनाथ ने कहा- “ तुम लोग सर्प को न मारो तो वह तुम्हें क्यों काटेगा। तुम अपना जीवन जियो, वो अपना जीवन जिएगा”” लोगों ने एकनाथ के कहने से सर्प को छोड़ दिया।

दरअसल संत एकनाथ ने ऐसा इसीलिए कहा क्योंकि कुछ दिन पहले ही जब वे ब्रह्ममुहूर्त के सांध्य प्रकाश में मंदिर की तालाब में स्नान करने जा रहे थे।

तभी रास्ते में उन्हें सामने फन फैलाए खड़ा सर्प दिखाई दिया, उन्होंने उसे बहुत हटाना चाहा पर वह टस से मस न हुआ। अंततः एकनाथ को मुड़कर दूसरे घाट पर स्नान करने जाना पड़ा। पर जब वे उजाला होने पर पुराने वाले रास्ते से लौटे तो देखा कि बरसात के कारण वहाँ एक गहरा खड्ड हो गया है।

संत एकनाथ को जैसे आभास हुआ कि अन्य जीव भी सह-अस्तित्व के भाव को समझता है। जिस सर्प से वे उस समय चिढ़ रहे थे अगर उसने न बचाया होता तो ‘एकनाथ उसमें कब के उस गड्ढे में समा चुके होते।


| नशा एक बला

एक मुकदमे के लिए कचहरी में हाजिर होने के लिए दो शराबी घर से निकले। कल उसे किसी भी हालत में कचहरी पहुँचना था। नशे की धुन में दोनों ने शराब की कुछ बोतलें झोले में रख ली और मुकदमे का कागज-पत्र घर में ही भूल गया।

दोनों घोड़े पर बैठकर चल पड़े। रास्ते में वे भोजन करने के लिए एक भोजनालय में रुका। भोजन के समय दोनों ने और शराब पी। खाना-वाना खाकर वो फिर विदा हुआ।

नशे में धुत, दोनों रास्ते में एक-दूसरे से पूछ तो रहे थे कि कोई चीज भूल तो नहीं रहे, पर यह दोनों में से किसी को भी याद न रहा कि घोड़े पर चढ़कर आए थे, अब वे पैदल यात्रा कर रहे थे। रात हुई, रुकने के लिए उसने एक जगह की तलाश की और वहाँ फिर शराब पी। उसे जरा भी एहसास नहीं था कि वो रोड किनारे पड़े थे।

चाँदनी रात था। थोड़ी देर में चंद्रमा निकला तो एक बोला–“ओरे यार! सूरज निकल आया चलो जल्दी करो नहीं तो कचहरी लग जाएगी।” नशे की धुत में बजाय शहर की ओर चलने के वे गाँव की ओर चल पड़े।

चाँदनी रात में उसे एक कचहरी जैसा बंगला दिखाई दिया, जिसका गेट लगा हुआ था। और फिर दोनों ने एक-दूसरे से कहा अरे यार! कचहरी तो आज बंद है, बेकार में इतना मेहनत किया।

सवेरा होते-होते जहाँ से वो चला था फिर वहीं जा पहुंचा और खुशी से फिर शराब लाया और बोला, आज बहुत थक गए है, थोड़ा सा शराब पीकर सो जाते हैं।

प्रेरक लघु कहानियां
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| परोपकारी को कहीं भी भय नहीं

एक गीदड़ एक दिन एक गड्ढे में गिर गया। बहुत उछल-कूद की किंतु बाहर न निकल सका। अंत में हताश होकर सोचने लगा कि अब इसी गड्ढे में मेरा अंत हो जाना है।

तभी एक बकरी को मिमियाते सुना। तत्काल ही गीदड़ की कुटिलता जाग उठी। वह बकरी से बोला–“’बहिन बकरी! यहाँ अंदर खूब हरी-हरी घास और मीठा- मीठा पानी है। आओ, जी भरकर खाओ और पानी पियो।”” बकरी उसकी लुभावनी बातों में आकर गड्ढे में कूद गई।

चालाक गीदड़ बकरी की पीठ पर चढ़कर गड्ढे से बाहर कूद गया और हँसकर बोला -““तुम बड़ी बेबकूफ हो, मेरी जगह खुद मरने गड्ढे में आ गई हो।” बकरी बड़े सरल भाव से बोली–” गीदड़ भाई, मैं परोपकार में प्राण दे देना पुण्य समझती हूँ।

मेरी उपयोगितावश कोई न कोई मुझे निकाल ही लेगा किंतु तुम निरुपयोगी को कोई न निकालता। परोपकारी को कहीं भी भय नहीं होता है।’”


| कुछ कर, ऐसे ही मत मर

रायगढ़ के राजा धीरज के अनेक शत्रु हो गए। वे किसी तरह से राजा को मार देना चाहते थे। एक रात शत्रुओं ने पहरेदारों को धन का लालच देकर अपने में मिला लिया और महल में जाकर राजा को दवा सुँघाकर बेहोश कर दिया।

उसके बाद उन्होंने राजा के हाथ-पाँव बाँधकर एक पहाड़ की गुफा में ले जाकर बंद कर दिया। और वे लोग निश्चिंत होकर चला गया कि अब यहाँ से राजा निकल नहीं पाएगा।

राजा को जब होश आया तो अपनी दशा देखकर घबरा उठा। उसे कुछ भी याद नहीं था कि वो यहाँ कैसे आया है। उसके हाथ-पैर बंधे पड़े थे और गुफा में अंधेरा था क्योंकि गुफा का द्वारा एक बड़े पत्थर से बंद था।

अपनी इस स्थिति को देखकर धीरे-धीरे उसका हौसला टूटता गया और थोड़ी देर के बाद ये सोचकर कि अब उसका बचना मुश्किल है, हताशे में अपने परिवार को और उसके साथ बिताए अच्छे वक्त को याद करने लगा।

उसकी आँखों से अश्रुधार बहती जा रही थी और वो अपने अतीत में खोया जा रहा था, तभी उसे अपनी माता का बताया हुआ मंत्र याद आया – राजा की माता उसे हमेशा बताया करता था कि ”यूं ही निरर्थक बैठे ना मर, कुछ कर, कुछ कर, कुछ कर।”

ये बात सोचते ही राजा के अंदर जैसे आशा का संचार हुआ। उसे अपनी जवानी में ली गई सैन्य प्रशिक्षण याद आया और फिर किसी तरह उसने अपने हाथ-पैर खोल लिए। और एक बार फिर जैसे उसे राजा होने का एहसास हुआ।

लेकिन तभी अँधेरे में उसका पैर साँप पर पड़ गया जिसने उसे काट लिया। राजा फिर घबराया, और सोच में पड़ गया कि शायद अब मेरा बचना मुश्किल है।

किंतु फिर तत्काल ही उसे वही मंत्र “कुछ कर, कुछ कर, कुछ कर’” याद आ गया। उसने अपने शरीर को टटोला और उसे अपने कमर पर बंधा हुआ कटार मिला।

तत्काल कमर से कटार निकाल कर साँप के काटे स्थान को उसने चीर दिया। खून की धार बह उठने से वह फिर घबरा उठा। लेकिन फिर उसी “कुछ कर, कुछ कर, कुछ कर” के मंत्र से प्रेरणा पाकर अपना वस्त्र फाड़कर घाव पर पट्टी बाँध दी जिससे रक्त बहना बंद हो गया।

इतनी बाधाएँ पार हो जाने के बाद उसे उस अँधेरी गुफा से निकलने की चिंता होने लगी, साथ ही भूख-प्यास भी व्याकुल कर ही रही थी। खून बहुत निकल जाने के कारण वो कमजोर सा महसूस कर रहा था।

फिर भी उसने गुफा के द्वार पर लगे पत्थर को हटाने का प्रयास किया लेकिन वो उसे हटा नहीं सका। उसने अँधेरे से निकलने का कोई उपाय न देखा तो पुन: निराश होकर सोचने लगा कि अब तो यहीं पर बंद रहकर भूख-प्यास से तड़प- तड़प कर मरना होगा।

वह उदास होकर बैठा ही था कि पुनः उसे माँ का बताया हुआ मंत्र “कुछ कर, कुछ कर, कुछ कर” याद आ गया और फिर वो गुफा में इधर-उधर-चलने लग गया और कुछ सोचने लगा।

उसके दिमाग में एक विचार आया और फिर वो अपने कटार से द्वार के उस भाग पर गड्ढा बनाने लगा जो कि सबसे पतला नजर आ रहा था। समय काफी लगा पर उसने वहाँ एक होल बना दिया। और फिर वो बचाने के लिए आवाज देने लगा।

संयोग से राजा को ढूँढने के लिए कई लोगों को इधर-उधर भेजा गया था उसमें से वहाँ से गुजरने वाले कुछ लोगों ने राजा की आवाज सुनी और इस तरह से उसे बचा लिया गया।

प्रेरक लघु कहानियां
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| आत्मविजय

एक था कुत्ता, सड़ गए थे कान जिसके,
कई दरवाजों में घूमा,
पर जहाँ भी वह गया, दुतकारा गया।
वह दिन भर घूमा रोटी के लिए,
कहीं मिले दो कौर, पर मार और फटकार का कोई ठिकाना नहीं था।

इंद्रियों की लिप्सा में दर-दर भटकता हुआ अज्ञानी व्यक्ति भी इसी प्रकार सर्वत्र तिरस्कार पाता है।


| परमात्मा का क्‍या दोष

बेटे ने कहा -“पिताजी ! हम भगवान का भजन नहीं करेंगे। भगवान पक्षपाती है, उसने किसी को बहुत धन दिया, किसी को बहुत थोड़ा। ऐसे भेदभाव करने वाले की याद हम क्‍यों करें ?” पिता को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि आज ये अचानक ऐसी बातें क्यों कर रहा है। खैर फिर भी, उस समय पिता ने कोई उत्तर नहीं दिया।

दूसरे दिन पिता ने कहा -”बेटे, आज घर के सामने बाग लगाएँगे। ”पिता-पुत्र दोनों उसमें जुट गए, पर बेटा असमंजस में था कि पिता जी ने उत्तर क्यों नहीं दिया। लेकिन उस समय एक फल नीम का बोया गया दूसरा आम का।

दो फुट के फासले पर दोनों पेड़ बढ़ने लगे। सालों बीत गए, पेड़ बड़े हुए, उसमें फल आए, एक का कड़वा दूसरे का मीठा।

उस दिन पिता ने कहा -“’ बेटा, एक ही धरती पर दो पेड़ हमने लगाए, दोनों की एक-समान देखभाल की फिर दोनों में यह विषमता कहाँ से आ गई।” बेटा समझ चुका था कि जो जैसा चाहता है, जैसा सोचता है, अपनी सृष्टि वैसा ही बना लेता है, परमात्मा उसके लिए दोषी नहीं।

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