इस लेख में हम ‘स्वतंत्रता का अधिकार (Right to freedom)’ पर सरल और सहज चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे।

तो अच्छी तरह से समझने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें और साथ ही इस टॉपिक से संबंधित अन्य लेखों को भी पढ़ें – अन्य मौलिक अधिकार

स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे हमसे कोई नहीं छीन सकता है। क्या स्वतंत्रता वाकई इतनी जरूरी है? आइये समझते हैं।

स्वतंत्रता का अधिकार

स्वतंत्रता का अधिकार लेख मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)↗️ पर लिखे गए पिछले लेखों का कंटिन्यूएशन है। हम समता का अधिकार (Right to Equality; article 14 to 18)↗️ पहले ही समझ चुके है।

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स्वतंत्रता की अवधारणा (Concept of freedom)

स्वतंत्रता किसे अच्छी नहीं लगती! इतिहास पलट के देखों तो पता चलता है कि आधे से ज्यादा इतिहास तो लोगों के स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते ही बीती है। पर क्यों ?

क्योंकि स्वतंत्रता सीधे मानवजाति के विकास से जुड़ा है। हम एक विवेकशील प्राणी है और आज हम इतनी तरक्की इसलिए कर पाएँ है क्योंकि हमें इच्छा अनुरूप स्वतंत्रता मिला।

तो कुल मिलाकर स्वतंत्रता; किसी व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबंधों का अभाव है। दूसरे शब्दों में कहें तो अपने जीवन और नियति का नियंत्रण स्वयं करना तथा अपनी इच्छाओं और गतिविधियों को आजादी से व्यक्त करने का अवसर बने रहना, स्वतंत्रता है।

लेकिन लोगों के विविध हितों और आकांक्षाओं को देखते हुए किसी भी सामाजिक जीवन को कुछ नियमों और क़ानूनों की जरूरत होती है, इन नियमों के लिए कुछ स्वतंत्रताओं पर प्रतिबंध लगाना जरूरी हो जाता है। हालांकि इस तरह के प्रतिबंध को स्वतंत्रता को कम करने के सेंस में नहीं देखा जाता है बल्कि असुरक्षा को कम करने के सेंस में देखा जाता है।

स्वतंत्रता के दो रूप होते हैं नकारात्मक स्वतंत्रता (Negative freedom) और सकारात्मक स्वतंत्रता (Positive freedom)

नकारात्मक स्वतंत्रता (Negative freedom) – इसका सीधा सा मतलब है व्यक्ति पर किसी भी बाहरी प्रतिबंधों का अभाव। यानी कि व्यक्ति को अपने हाल पर छोड़ देना, जो मन हो उसे करने देना।

सकारात्मक स्वतंत्रता (Positive freedom) – ये कुछ करने के भाव से जुड़ा होता है। यानी कि अगर स्वतंत्रता का मतलब अपनी रचनाशीलता को एक्सप्लोर करना या क्षमता विकास करना है तो हमें कुछ करना होगा और इस करने में ढेरों बाधाएं आ सकती है।

उदाहरण के लिए, बाढ़ आया हुआ है, और आप एक ऐसे टापू पर फंस गए है जिसके चारों तरफ बेशुमार पानी है। चूंकि आप स्वतंत्र है इसीलिए कहीं भी जा सकते है, कुछ भी कर सकते हैं। अब आपको राशन लेने के लिए टापू से दूर कहीं मुख्य भूमि पर जाना है, लेकिन आप ये जानते है कि अगर पानी में गए तो डूब भी सकते है और जान भी जा सकती है। ऐसे में अगर किसी तरह से आपको नाव मिल जाये और आपको किसी खास रूट से चलने को कहा जाये तो, आप आसानी से राशन ला सकते है। कहने का अर्थ ये है कि नाव और किसी खास रूट पर चलने की बाध्यता आपके स्वतंत्रता को कम नहीं कर रहा बल्कि असुरक्षा को कम कर रहा है।

एक व्यापक संदर्भ में देखें तो नकारात्मक स्वतंत्रता और सकारात्मक स्वतंत्रता दोनों साथ ही चलते हैं। किसी भी व्यक्ति का एक ऐसा अनुलंघनीय क्षेत्र होता है, जहां वो जो मन चाहे कर सकता है, इसी तरह से एक ऐसा भी क्षेत्र होता है जहां उसके विकास के लिए उसके सामने आए कुछ अवरोधों को हटाना पड़ता है या कुछ प्रतिबंध लगाना पड़ता है।

भारतीय संविधान द्वारा प्रदत स्वतंत्रता की बात करें तो वो भी असीमित नहीं है बल्कि युक्तियुक्त प्रतिबंधों से युक्त है। कैसे? आइये समझते हैं।

स्वतंत्रता का अधिकार (Right to freedom)

भारतीय संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 19 से लेकर अनुच्छेद 22 तक स्वतंत्रता का अधिकार की चर्चा की गई है –

स्वतंत्रता का अधिकार
अनुच्छेद 19 – छह अधिकारों की सुरक्षा; (1) अभिव्यक्ति (2) सम्मेलन
(3) संघ (4) संचरण (5) निवास (6) व्यापार
अनुच्छेद 20 – अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण
अनुच्छेद 21 – प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता
अनुच्छेद 21क – प्रारम्भिक शिक्षा का अधिकार
अनुच्छेद 22 – गिरफ़्तारी एवं निरोध से संरक्षण
स्वतंत्रता का अधिकार

अनुच्छेद 19 – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण

अनुच्छेद 19 (1) के तहत सभी नागरिकों को,

(a) अभिव्यक्ति की आजादी का, 
(b) शांतिपूर्वक और बिना हथियार के सम्मेलन का,
(c) संघ या गुट बनाने का, 
(d) भारत में निर्बाध कहीं भी घूमने का,
(e) भारत में कहीं भी बस जाने का, और
(f) ***
(g) भारत में कहीं भी व्यापार करने का, अधिकार होगा।

*** मूल संविधान के तहत अनुच्छेद 19 में 7 अधिकारों की चर्चा थी, लेकिन (f) जो कि संपत्ति खरीदने या बेचने के अधिकार से संबन्धित था; उसे 1978 में 44वें संविधान संशोधन के माध्यम से हटा दिया गया। और अनुच्छेद 300क के तहत इसे रख दिया गया। जहां यह स्पष्ट लिख दिया गया है कि किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से बिना विधि के प्राधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

इसके हटाने के पीछे का मुख्य कारण उस समय के भारतीय परिस्थितियों में इसका अन्य मूल अधिकारों से असंगत होना था।

बात कुछ इस तरह से था कि पहले बड़े-बड़े जमींदार हुआ करता था और जमीन का मालिकाना हक़ उसी के पास होता था। तथा अनुच्छेद 19 उसकी संपत्ति की रक्षा भी करता था।
ऐसी स्थिति में गरीबों का और गरीब रह जाना एवं उसका हमेशा जमींदार के पास बंधुआ मजदूर की तरह काम करते रहने जैसा समस्या एक नए प्रकार की गुलामी को जन्म दे सकता था।
इसीलिए इसे मूल अधिकार से हटाकर संवैधानिक अधिकार बना दिया गया ताकि जमींदारी प्रथा खत्म हो जाये, गरीबों को भी अपनी जमीन मिल सकें और जनहित में किसी काम के लिए सरकार को जमीन की उपलब्धता बनी रहें।
इसी से संबन्धित एक और अधिकार था अनुच्छेद 31 में, उसे भी 44वां संविधान संशोधन द्वारा ही हटा दिया गया था। इस पूरे प्रकरण को केशवानन्द भारती↗️ मामले से समझा जा सकता है।

(a) अभिव्यक्ति की आजादी

अभिव्यक्ति की आजादी में सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित बातों को सम्मिलित किया है;

(1) अपने या किसी अन्य के विचारों को प्रचारित-प्रसारित करने का अधिकार।
(2) प्रेस एवं विज्ञापन की स्वतंत्रता।
(3) सरकारी गतिविधियों की जानकारी का अधिकार।
(4) शांति का अधिकार
(5) प्रदर्शन एवं विरोध का अधिकार, लेकिन हड़ताल का अधिकार नहीं। आदि।

याद रखिए कि ये सारी चीज़ें संविधान में इस तरह से लिखी नहीं गई है ये माना गया है कि ये सारे अधिकार अभिव्यक्ति की आजादी के तहत ही आएंगी।

राज्य, अगर चाहे तो भारत की एकता एवं संप्रभुता, राज्य की सुरक्षा, नैतिकता की स्थापना, विदेशी राज्यों से मित्रवत संबंध, न्यायालय की अवमानना आदि के संबंध में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अनुच्छेद 19(2) के तहत युक्तियुक्त प्रतिबंध (Reasonable restriction) भी लगा सकता है।

Read in Details – अभिव्यक्ति की आजादी : अर्थ, क्लॉज़, उद्देश्य व प्रतिबंध

(b) शांतिपूर्वक और बिना हथियार के सम्मेलन का अधिकार

इसके तहत बिना हथियार के संगठित होने, सार्वजनिक बैठकों में भाग लेने एवं प्रदर्शन करने का अधिकार सम्मिलित है।

यह व्यवस्था हिंसा, अव्यवस्था एवं सार्वजनिक शांति भंग करने के लिए नहीं है। और राज्य चाहे तो इस पर अनुच्छेद 19(3) के तहत युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सकता है।

(c) संघ या गुट बनाने का अधिकार

इसके तहत – राजनीतिक दल बनाने का अधिकार, कंपनी, साझा फर्म, समितियां, क्लब, संगठन या अन्य किसी प्रकार के संघ बनाने का अधिकार सम्मिलित है। साथ ही इसे संचालित करने का भी अधिकार इसके तहत सम्मिलित है।

राज्य इस पर भी अनुच्छेद 19(4) के तहत युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सकता है। क्योंकि इसके तहत किसी को आतंकवादी संगठन बनाने की आजादी तो नहीं ही दी जा सकती है।

(d) भारत में निर्बाध कहीं भी घूमने का अधिकार

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है ये भारत में निर्बाध घूमने के अधिकार को सुनिश्चित करता है न कि भारत के बाहर।

यहाँ तक कि भारत के अंदर भी कई ऐसे जगह हो सकते हैं जहां निर्बाध घूमने को रोका जा सकता है या फिर परमिट लेकर जाने दिया जा सकता है। ऐसा आमतौर पर जनजातिय क्षेत्रों में उसकी संस्कृति को बचाने के उद्देश्य से किया जाता है।

इसके अलावा अगर किसी को ऐसी बीमारी है जो दूसरों में फैल सकती है तो उसे भी अबाध संचरण से रोका जा सकता है।

राज्य को इस मामले में युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाने का अधिकार अनुच्छेद 19(5) के तहत मिलता है।

(e) भारत में कहीं भी बस जाने का अधिकार

यहाँ भी नाम से स्पष्ट है कि ये भारत में कहीं भी बस जाने के अधिकार से संबन्धित है न कि भारत के बाहर। भारत के अंदर भी ये अस्थायी एवं स्थायी दोनों तरह से बस जाने का अधिकार देता है।

लेकिन यहाँ भी राज्य चाहे तो अनुच्छेद 19(5) के तहत युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सकता है। ये भी आमतौर पर जनजातीय क्षेत्रों या किसी अन्य ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों से संबन्धित होता है जहां पर बसना उचित नहीं होता है।

(g) भारत में कहीं भी व्यापार करने का अधिकार

इसके तहत भारत में किसी भी व्यवसाय को करने, अपनाने का छूट दिया गया है।

हालांकि राज्य यहाँ भी अनुच्छेद 19(6) के तहत युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सकता है एवं (1) किसी पेशे या व्यवसाय के लिए किसी खास योग्यता को जरूरी ठहरा सकता है। (2) किसी व्यवसाय या उद्योग को स्वयं संचालित करने के लिए आरक्षित रख सकता है। तो ये रहा अनुच्छेद 19, पर यहाँ पर ये याद रखिए कि यह अधिकार सिर्फ भारत के नागरिकों पर लागू होता है किसी विदेशी पर नहीं।

Read in Details – अनुच्छेद 19 – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]

अनुच्छेद 20 – अपराध के लिए दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण

अगर आप जिंदा हैं तो मुमकिन है कि आप से कोई अपराध हो जाये या फिर आप जानबूझकर ही कर दें पर फिर भी आपको अनुच्छेद 20 के तहत, अपराध से ये निम्नलिखित तीन संरक्षण मिलेगा।

(1) यदि आपने कोई ऐसा काम किया है जो कानून के नजर में अपराध नहीं है तो आपने भले ही कितना ही बुरा काम क्यों न किया हो लेकिन वह अपराध (crime) नहीं कहलाएगा। और अगर आप अपराधी सिद्ध हो चुके है तो आपको उससे ज्यादा सजा नहीं मिल सकता जो उस अपराध के लिए पहले से निर्धारित सजा है। 

जैसे कि – अगर चोरी के लिए 1 वर्ष की जेल की सजा है तो आपको इससे ज्यादा सजा नहीं मिल सकता। लेकिन अगर आपने किसी का दिल चुराया हो तो आपको कोई सजा नहीं मिलेगा क्योंकि वो एक अपराध नहीं है।

(2) एक अपराध के लिए एक से अधिक बार सजा नहीं दी जा सकती। जैसे कि आपने चोरी की और एक साल की सजा भुगत कर आ गए है तो उसी चोरी के लिए आपको फिर से सजा नहीं दी जा सकती है।

(3) आपको आपके ही विरुद्ध गवाह के रूप में पेश नहीं किया जा सकता। यानी कि आपने चोरी की है पर गवाह के रूप में आपको खुद के ही विरुद्ध गवाही के लिए पेश नहीं किया जा सकता।

Read in Details – अनुच्छेद 20 – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]

अनुच्छेद 21  प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण

पूरे संविधान के सबसे महत्वपूर्ण अनुच्छेद में से एक है- प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता या जीने की आजादी।

अनुच्छेद 21 कहता है कि – किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से ‘विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया‘ के अनुसार ही वंचित किया जाएगा अन्यथा नहीं।

दरअसल इसका मतलब ये है कि कानून बनाने की सही प्रक्रिया को अपनाकर अगर कोई कानून बनाया गया है तो उसके तहत किसी व्यक्ति को प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से वंचित किया जा सकता है। यानी कि कानून सही है या नहीं उससे कोई मतलब नहीं है बस कानून बनाने की प्रक्रिया सही होनी चाहिए।

लेकिन अनुच्छेद 13 के अनुसार अगर कोई कानून मूल अधिकार का हनन करती है तो उसे उतनी मात्रा में ख़ारिज़ किया जा सकता है। यानी कि अनुच्छेद 13 विधि की सम्यक प्रक्रिया (Due process of Law) की बात करती है यानी कि कानून में अगर कुछ गड़बड़ी है तो उसे ख़ारिज़ करना और ये सभी मूल अधिकारों पर लागू होता है लेकिन सिर्फ अनुच्छेद 21 में विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया की बात कही गई है।

तो सवाल यही था कि क्या ऐसा हो सकता है कि सभी मौलिक अधिकार विधि की सम्यक प्रक्रिया पर चले जबकि सिर्फ अनुच्छेद 21 विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया पर?

ये जो टर्म है विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया (Process established by law)↗️ और विधि की सम्यक प्रक्रिया (Due process of Law) इसका अर्थ बहुत ही व्यापक है। इसीलिए इसे अलग से एक लेख में समझाया गया है। अनुच्छेद 21 के मूल तत्व को समझने के लिए उसे जरूर पढ़ें।

उपरोक्त विरोधाभास को सही से समझने के लिए ए.के.गोपालन (1950) और मेनका गांधी (1978) के मामले को समझना बहुत ही जरूरी है। इसे एक अलग से लेख में समझाया गया है, उसे जरूर पढ़ें।

मेनका गांधी मामला ही वो मामला था जिसमें इस बात को स्थापित किया गया कि जीने का अधिकार सिर्फ शारीरिक बंधनों तक सीमित नहीं है बल्कि ये मानवीय सम्मान एवं इससे जुड़े अन्य पहलुओं तक भी विस्तारित है। इसके परिणामस्वरूप हुआ ये कि धीरे-धीरे उच्चतम न्यायालय ने उन सभी पहलुओं को जीने के अधिकार में शामिल करना शुरू किया जो कि मानवीय सम्मान एवं अन्य पहलुओं से जुड़े हुए थे।

जैसे कि –
1. निजता का अधिकार (Right to privacy) जिसे कि 2017 में इसमें जोड़ा गया
2. स्वास्थ्य का अधिकार (Right to health)
3. 14 वर्ष की उम्र तक नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार 
4. नि:शुल्क कानूनी सहायता का अधिकार 
5. सूचना का अधिकार जिसे कि 2005 में इसमें जोड़ा गया 
6. सोने का अधिकार (Right to sleep)
7. खाने का अधिकार (Right to eat)
8. बिजली का अधिकार (Right to electricity)
9. प्रदूषण से मुक्ति का अधिकार (Right to freedom from pollution)
10. प्रतिष्ठा का अधिकार (Right of reputation)
11. सुनवाई का अधिकार (Right of hearing)
12. सामाजिक, आर्थिक सुरक्षा का अधिकार
13. महिलाओं के साथ आदर और सम्मानपूर्वक व्यवहार करने का अधिकार
14. विदेश यात्रा करने का अधिकार
15. आपातकालीन चिकित्सा सुविधा का अधिकार आदि।

मतलब ये समझ लीजिये की पहले जीने के लिए सिर्फ रोटी, कपड़ा और मकान हुआ करता था पर अब सिर्फ उतने से काम नहीं बनता इसीलिए समय के साथ जीने के लिए जो भी चीज़ जरूरी हो जाती है, उस सबको इस में शामिल कर लिया जाता है।

Read in Details – अनुच्छेद 21 – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]

अनुच्छेद 21क – शिक्षा का अधिकार 

अनुच्छेद 21 ‘क’

राज्य, 6 से 14 वर्ष तक के बच्चे को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करेगा। ये हमेशा से संविधान का भाग नहीं था बल्कि इसे 2002 में 86 वां संविधान संसोधन द्वारा जोड़ा गया था।

हालांकि संविधान के भाग 4 के नीति निदेशक तत्व के तहत अनुच्छेद 45 में बच्चों के लिए नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था थी लेकिन निदेशक सिद्धांत होने के कारण वो प्रवर्तनीय नहीं था। इसीलिए मूल अधिकार में जोड़कर इसे प्रवर्तनीय बनाया गया।

अनुच्छेद 21क को सही से क्रियान्वित करने के लिए 2009 में, बकायदे केंद्र सरकार ने एक अधिनियम भी पारित किया ”बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम”। जिसके तहत इसे एक उचित कानूनी रूप दिया गया।

Read in Details – अनुच्छेद 21क – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]

अनुच्छेद 22 – निरोध एवं गिरफ्तारी से संरक्षण

निरोध यानी कि स्वतंत्रता से वंचित कर देना। मुख्य रूप से निरोध (detention) दो तरह की होती है – (1) दंडात्मक निरोध (Punitive detention) – इसका आशय, अपराध के बाद किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करके स्वतंत्रता से वंचित कर देने से है। (2) निवारक निरोध (Preventive detention) – इसका आशय, भविष्य में कोई व्यक्ति अपराध न कर बैठे इसीलिए उसे पहले ही गिरफ्तार करके उसकी स्वतंत्रता छीन लेने से है।

अनुच्छेद 22 को दो भागों में बांटा जा सकता है, पहला भाग [अनुच्छेद 22 (1 से 3 तक)] उस व्यक्ति से संबन्धित है जिसे साधारण कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है या जिसके बारे में पता हो कि इसने अपराध किया है। दूसरा भाग [अनुच्छेद 22 (4 से 7 तक)] निवारक निरोध के मामलों से संबन्धित है।

पहला भाग हिरासत (Detention) में लिए गए व्यक्ति को निम्नलिखित अधिकार उपलब्ध करवाता है

(1) गिरफ्तार क्यों किया जा रहा है इसके लिए सूचना मांगने का अधिकार
(2) अपनी तरफ से बात करने के लिए पसंद का वकील चुनने का अधिकार 
(3) दंडाधिकारी (Magistrate) के सम्मुख 24 घंटे के अंदर पेश होने का अधिकार (यात्रा के समय को छोड़कर)

अगर दंडाधिकारी के समक्ष वो निर्दोष साबित होता है तो उसे छोड़ा जा सकता है।

हालांकि किसी निवारक निरोध कानून के तहत हिरासत में लिए जाने पर या व्यक्ति का शत्रु देश से होने पर ये काम नहीं करता।

दूसरा भाग निवारक निरोध (Preventive detention) के मामलों से संबन्धित है। जिसके तहत निम्नलिखित तीन सुरक्षा शामिल है –

(1) व्यक्ति की हिरासत या निरोध तीन माह से ज्यादा नहीं बढ़ाई जा सकती, जब तक कि सलाहकार बोर्ड (Advisory board) इसे बढ़ाने को न कहे।

सलाहकार बोर्ड में वे व्यक्ति शामिल होते हैं जो या तो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश है या न्यायाधीश रहे हैं या न्यायाधीश नियुक्त किए जाने के योग्य है।

(2) निरोध किन आधारों पर किया गया है इसका जवाब संबन्धित व्यक्ति को दिया जाना चाहिए। हालांकि सार्वजनिक हितों के विरुद्ध इसे बताया जाना आवश्यक नहीं होता है।

(3) निरोध वाले व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह निरोध के आदेश के विरुद्ध अपना प्रतिवेदन या अभ्यावेदन (representation) करे।

अनुच्छेद 22 (7), संसद को निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि, जांच में सलाहकार बोर्ड द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया आदि को बताने के लिए अधिकृत करता है।

इससे संबन्धित ढेरों निवारक निरोध कानून बनाए जाते रहे हैं जैसे कि –
Preventive detention Act 1950 (जो कि 1969 में खत्म हो गया),
आंतरिक सुरक्षा अधिनियम यानी कि MISA 1971 (जिसे कि 1978 में खत्म कर दिया गया), COFEPOSA 1974,
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980,
UAPA 1967 (जिसे 2008 के मुंबई हमलों के बाद और कठोर किया गया) आदि।

इसी से संबंधित एक फ़ेमस मामला है बंदी प्रत्यक्षीकरण मामला 1976 (Habeas corpus case 1976); जो कि निवारक निरोध के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मामला है।

Read in Details – अनुच्छेद 22 – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]

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स्वतंत्रता का अधिकार Practice Quiz


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Chapter Wise Polity Quiz

स्वतंत्रता का अधिकार (Art. 19 – 22) अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions - 8
  2. Passing Marks - 75 %
  3. Time - 6 Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

1 / 8

अनुच्छेद 19 इनमें से कौन सी स्वतंत्रता नहीं देती है?

Which of the following is correct regarding Article 20?

  1. If an act is not a crime in the eyes of the law, then it will not be considered a crime.
  2. Punishment cannot be given more than once for the same offence.
  3. He cannot be produced as a witness against himself.
  4. Right to be informed as to why the arrest is being made

2 / 8

अनुच्छेद 20 के संबंध में इनमें से क्या सही है?

  1. अगर कानून की नज़र में कोई कृत्य अपराध नहीं है तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा।
  2. एक अपराध के लिए एक से अधिक बार सजा नहीं दी जा सकती।
  3. अपने ही विरुद्ध गवाह के रूप में पेश नहीं किया जा सकता है।
  4. गिरफ्तार क्यों किया जा रहा है इसके लिए सूचना मांगने का अधिकार

Which of the following statements is correct with respect to Article 22?

  1. Under this, the detained person has the right to choose a lawyer of his choice.
  2. Under this, he has the right to appear before the Magistrate within 24 hours.
  3. Under this, there is a right to ask for information as to why he is being arrested.
  4. Article 22 ensures protection from detention and arrest.

3 / 8

अनुच्छेद 22 के संबंध में निम्न में से कौन सा कथन सही है?

  1. इसके तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को पसंद का वकील चुनने का अधिकार है।
  2. इसके तहत दंडाधिकारी (Magistrate) के सम्मुख 24 घंटे के अंदर पेश होने का अधिकार है।
  3. इसके तहत गिरफ्तार क्यों किया जा रहा है इसके लिए सूचना मांगने का अधिकार है।
  4. अनुच्छेद 22 निरोध एवं गिरफ़्तारी से संरक्षण सुनिश्चित करता है।

4 / 8

दिए गए क़ानूनों में से कौन सा कानून निवारक निरोध (preventive detention) से संबंधित नहीं है?

Which of the following is correct regarding Article 21?

  1. The State can take life only through the procedure established by law.
  2. Under this, the right to free government assistance has been ensured.
  3. By the 86th Constitutional Amendment, the right of free and compulsory education to the child from 6 to 14 years was ensured.
  4. Article 21 'A' ensures the right to social and economic security.

5 / 8

अनुच्छेद 21 के संबंध में इनमें से क्या सही है?

  1. राज्य विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के द्वारा ही किसी का प्राण ले सकता है।
  2. इसके तहत निःशुल्क सरकारी सहायता का अधिकार सुनिश्चित किया गया है।
  3. 86वां संविधान संशोधन द्वारा 6 से 14 वर्ष तक के बच्चे को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित किया गया।
  4. अनुच्छेद 21'क' सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करती है।

Which of the following is correct regarding preventive detention?

  1. The detention of a person cannot be extended beyond three months unless the Advisory Board asks for an extension.
  2. UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) is the preventive detention law.
  3. The person under detention has the right to make a representation against the order of detention.
  4. The government jailed prominent leaders during the Emergency citing preventive detention.

6 / 8

निवारक निरोध के संबंध में इनमें से क्या सही है?

  1. व्यक्ति की हिरासत तीन माह से ज़्यादा नहीं बढ़ाई जा सकती जब तक कि सलाहकार बोर्ड इसे बढ़ाने को न कहे।
  2. UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) निवारक निरोध कानून है।
  3. निरोध वाले व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह निरोध के आदेश के विरुद्ध अपना प्रतिवेदन करें।
  4. आपातकाल के दौरान निवारक निरोध का हवाला देते हुए ही सरकार ने प्रमुख नेताओं को जेल में बंद कर दिया था।

Which of the following statement is not correct?

  1. Reasonable restriction can be imposed on freedom of expression under Article 19(2).
  2. Reasonable restrictions can be imposed under Article 19(6) on doing business anywhere in the world.
  3. Article 20 provides protection from detention and arrest.
  4. The right to travel abroad is kept under Article 21.

7 / 8

निम्न में से कौन  सा कथन सही नहीं है?

  1. अभिव्यक्ति की आजादी पर अनुच्छेद 19(2) के तहत युक्तियुक्त प्रतिबंध (Reasonable restriction) लगायी जा सकती है।
  2. विश्व में कहीं भी व्यापार करने पर अनुच्छेद 19(6) के तहत युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
  3. अनुच्छेद 20 निरोध एवं गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान करता है।
  4. विदेश यात्रा करने के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत रखा जाता है।

Which of the following is correct regarding liberty?

  1. Freedom is the absence of external restrictions on the individual.
  2. Freedom is both negative and positive.
  3. Freedom without reasonable restrictions can bring disaster.
  4. Positive liberty has the sense of doing something.

8 / 8

स्वतंत्रता के संबंध में निम्न में क्या सही है?

  1. व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबंधों का अभाव स्वतंत्रता है।
  2. स्वतंत्रता नकारात्मक और सकारात्मक दोनों होते है।
  3. बिना युक्तियुक्त प्रतिबंध के स्वतंत्रता तबाही ला सकता है।
  4. सकारात्मक स्वतंत्रता में कुछ करने का भाव होता है।

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शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार । Right to religious freedom

संस्कृति औरशिक्षा संबंधी अधिकार

संवैधानिक उपचारों का अधिकार ।Right to constitutional remedies

रिट के प्रकार और उसके कार्य क्षेत्र

मूल अधिकार के अन्य उपबंध अनुच्छेद 33, अनुच्छेद 34 और अनुच्छेद 35

मूल अधिकारों एवं निदेशक तत्वों में टकराव का विश्लेषण

विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया और विधि की सम्यक प्रक्रिया क्या है?

संविधान की मूल संरचना और केशवानन्द भारती केस

संविधान संशोधन की पूरी प्रक्रिया

राज्य के नीति निदेशक तत्व (DPSP)

References,
मूल संविधान भाग 3
NCERT कक्षा 11A राजनीति विज्ञान
Habeus Corpus Case & Article 21
Fundamental rights in India
डी डी बसु [भारत की संवैधानिक विधि]
एनसाइक्लोपीडिया आदि।