इस लेख में हम धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to religious freedom) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे।

तो अच्छी तरह से समझने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें और साथ ही इस टॉपिक से संबंधित अन्य लेखों को भी पढ़ें।

धर्म सिर्फ एक पूजा पद्धति नहीं है बल्कि ये हमारे अस्तित्व की पहचान है। और कोई भी सभ्य देश हमारे इस पहचान को बनाए रखने का अधिकार जरूर देगा।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार

ये लेख मौलिक अधिकारों पर लिखे गए पिछले लेखों का कंटिन्यूएशन है। हम समता का अधिकार (Right to Equality), स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom) एवं शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against exploitation) पर चर्चा कर चुके है, उसे भी जरूर पढ़ें।

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धर्म क्या है? (what is religion?)

धर्म – विश्वासों, सामाजिक-सांस्कृतिक प्रणालियों, साझा व्यवहार एवं विश्व विचारों का एक संगठित संग्रह है जो मानवता को अस्तित्व के एक क्रम से जोड़ता है।

आमतौर पर धर्म का एक प्रतीक, पवित्र इतिहास या ग्रंथ, पूजा पद्धति एवं विचारधारा होता है जिसका मुख्य उद्देश्य जीवन का अर्थ, उसकी उत्पत्ति या ब्रह्मांड की व्याख्या करना होता है।

इसके अलावा धर्म में देवी-देवताओं के अनुष्ठान, उपदेश, स्मरण या वंदना, बलिदान, त्योहार, दीक्षा, अन्त्येष्टि सेवाएँ, वैवाहिक सेवाएँ, ध्यान, संगीत, कला, नृत्य, मानव की सेवा आदि शामिल होते हैं।

कहने का अर्थ ये है की धर्म कोई छोटी-मोटी चीज़ नहीं है जिसे कम आंका जाये बल्कि धर्म, वायुमंडल में CO2 की तरह है जो कम हो जाये तो भी खतरनाक है और ज्यादा हो जाये तो भी खतरनाक है, लेकिन अगर संतुलित रहे तो ये फिर कमाल की चीज़ है।

नोट – यहाँ यह याद रखिए कि Religion, धर्म का उचित अनुवाद नहीं है। फिर भी चूंकि यही प्रचलन में है इसीलिए यहाँ पर धर्म और religion को एक-दूसरे के अनुवाद के रूप में दिखाया गया है।

Religion Census 2011

तो कुल मिलाकर धर्म का बने रहना बहुत जरूरी है इसीलिए धार्मिक स्वतंत्रता जरूरी है। धर्म राज्य को बहुत ज्यादा प्रभावित न करने लगे इसीलिए पंथनिरपेक्षता भी जरूरी है। हमारा संविधान इन दोनों को सुनिश्चित करता है।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार और उसके प्रकार

धार्मिक स्वतंत्रता का का उल्लेख हमारे प्रस्तावना में भी है और इससे इसके महत्व का पता चलता है। धार्मिक स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी भी जानी चाहिए। क्योंकि एक तरह से देखें तो हमारे मूल्य, हमारे संस्कार, हमारे सामाजिक प्रतिमान बहुत हद तक धर्म से संचालित होता है।

हालांकि कभी-कभी ये जितना जोड़ने का काम करती है उतनी ही ये अलगाव भी पैदा करती है। पर अगर हम धर्म को इतनी स्वतंत्रता दें जिससे कि वो अपने आप को बदलते वक़्त के साथ अपडेट कर पायें वो भी दूसरे धर्मों की उपस्थिति को स्वीकारते हुए, तो इसमें कोई बुराई नहीं है।

शायद इसीलिए हमने पंथनिरपेक्षता (Secularism) की राह को चुना ताकि, सब धर्म मिलजुल कर एक बहुधार्मिक समाज की स्थापना कर सकें जिसका साझा लक्ष्य हो, भारत को समृद्ध बनाना, भारत को विश्व में वो प्रतिष्ठा दिलाना जिसके वो हकदार है, आदि।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार‘ में कुल चार अनुच्छेद है। जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
⚫ अनुच्छेद 25 – अंतःकरण की और धर्म की अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता (Freedom of conscience and free profession, practice and propagation of religion)

⚫ अनुच्छेद 26 – धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता (Freedom to manage religious affairs)

⚫ अनुच्छेद 27 – किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय से स्वतंत्रता (Freedom as to payment of taxes for promotion of any particular religion)

⚫ अनुच्छेद 28 – कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता (Freedom as to attendance at religious instruction or religious worship in certain educational institutions)

अनुच्छेद 25अन्तःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता

अनुच्छेद 25 का पहला खंड कहता है कि लोक व्यवस्था (public order), सदाचार (morality) और स्वास्थ्य (Health) तथा इस भाग के अन्य उपबंधों (यानी कि संविधान का भाग 3) के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा।

(1) पहली बात जो यहाँ समझने वाली है वो ये है कि अनुच्छेद 25 के तहत जो अंतःकरण की स्वतंत्रता, धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता दी गई है वो निरपेक्ष (Absolute) नहीं है। बल्कि निर्बंधनों (restrictions) के अधीन है।

और वो निर्बंधन है, लोक व्यवस्था (public order), सदाचार (morality), स्वास्थ्य (Health) और संविधान का भाग 3।

कुल मिलाकर इसका मतलब ये है कि धार्मिक स्वतंत्रता, लोक हित के अंतर्गत आता है। कहने का अर्थ है कि धर्म के नाम पर अराजकता नहीं फैलाई जा सकती है, धर्म के नाम पर इकट्ठा होकर कोरोना जैसे किसी बीमारी को फैलाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती है।

(2) दूसरी बात ये है कि धार्मिक स्वतंत्रता संविधान के भाग 3 के अधीन है। यानी कि या धर्म के नाम पर किसी व्यक्ति को समानता से वंचित नहीं किया जा सकता है या धर्म के नाम पर किसी व्यक्ति को जीने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

(3) तीसरी बात ये है कि यह जो अनुच्छेद है इसमें “नागरिक” शब्द की जगह “सभी व्यक्तियों” शब्द का इस्तेमाल किया गया है। यानी कि धार्मिक स्वतंत्रता भारत के नागरिकों तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह अधिकार विदेशियों को भी मिलता है।

(4) चौथी बात ये है कि अनुच्छेद 25(1) के तहत चार मुख्य टर्म्स है – अंतःकरण की स्वतंत्रता, धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता। इसका क्या मतलब है आइये एक-एक करके समझते हैं;

अन्तःकरण की स्वतंत्रता (Freedom of conscience) –  इसके तहत प्रत्येक व्यक्ति को यह मूल अधिकार है कि वह अपने अन्तःकरण (conscience) के विचार के अनुसार धार्मिक विश्वास रखें और उन धार्मिक आस्थाओं और विश्वासों को ऐसे आचारों (behavior) के द्वारा प्रकट करें जिन्हे धर्म की स्वीकृति है।

दूसरे शब्दों में कहें तो कोई भी व्यक्ति अपने भगवान के साथ चाहे जो संबंध बना सकता है। कोई चाहे तो भगवान का भक्त भी बन सकता है और कोई चाहे तो दोस्त भी। तो इस मामले में आपकी अंतरात्मा जो कहें वहीं कीजिये।  

मानने का अधिकार (Right to believe) – यह अधिकार इस सिद्धांत पर आधारित है कि अगर आस्था को निर्बाध रूप से शब्द या कार्य द्वारा अभिव्यक्त (Express) करने की आजादी न हो तो अन्तःकरण की स्वतंत्रता अर्थहीन हो जाएगी।

इसीलिए इसके तहत अपने धार्मिक विश्वास और आस्था की सार्वजनिक और बिना भय के घोषणा करने का अधिकार दिया गया है।

आचरण का अधिकार (Right to Practice) – इसका मतलब है, धार्मिक अनुष्ठान या पूजा पद्धति, परंपरा या रीति-रिवाज या फिर कोई समारोह करने और अपनी आस्था एवं विचारों को प्रदर्शन करने का अधिकार

इसका सीधा सा मतलब यही है कि भगवान को आप जिस भी तरीके से चाहे पूज सकते है, जिस तरह से चाहे अपने व्यवहार में उतार सकते हैं।

प्रचार का अधिकार (Right of propagation) – धर्म प्रचार का अर्थ है, अपनी आस्था को या अपने धार्मिक सिद्धांत को अन्य व्यक्तियों के समक्ष प्रस्तुत करना। ऐसा इसीलिए किया गया है ताकि कोई भी व्यक्ति अपने धर्म को फैला सकें, उसके अच्छी बातों को फैला सकें; जिससे कि धर्म में एक प्रकार की अविरलता रहें।

लेकिन यहाँ पर याद रखें कि इसका मतलब धर्मांतरण (conversion) करवाना बिल्कुल भी नहीं है क्योंकि ऐसा करना उस व्यक्ति के अंतःकरण की स्वतंत्रता का अतिक्रमण करने जैसा होगा।

हाँ, अगर कोई व्यक्ति अपनी अंतरात्मा के अनुसार स्वेच्छा से कोई अन्य धर्म अपना लेता है तो उसे धर्मांतरण नहीं कहा जाता है। इसीलिए यह प्रावधान विवादित है क्योंकि ये जानने का कोई तरीका नहीं है कि किसी व्यक्ति ने स्वेच्छा से ऐसा किया है कि नहीं।

कुल मिलाकर अनुच्छेद 25व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता (Personal religious freedom) को सुनिश्चित करता है।

गहराई से समझें – अनुच्छेद 25 – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]

अनुच्छेद 26 – धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता

जहां अनुच्छेद 25 व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है वहीं अनुच्छेद 26 समूहगत धार्मिक स्वतंत्रता (Collective religious freedom) के अधिकार को सुनिश्चित करती है।

मतलब ये कि ये धार्मिक समूहों, संगठनों, ट्रस्ट आदि के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को सुनिश्चित करता है। ये निम्न अधिकारों की बात करता है।

(क) ये धार्मिक कार्यों के लिए संस्थाओं की स्थापना का और उसे चलाने का अधिकार देता है, 

(ख) अपने धर्म से संबन्धित कार्यों के प्रबंधन (Management) का अधिकार देता है, 

(ग) धार्मिक कार्यों से संपत्ति अर्जित करने का और उस पर स्वामित्व का अधिकार देता है। तथा,

(घ) ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार (According to the law) इस्तेमाल करने का अधिकार देता है।

मतलब कुल मिलाकर देखें तो इस अनुच्छेद के अनुसार आप एक धार्मिक संस्थान बना सकते हैं, उसको अपने हिसाब से चला सकते हैं, उससे पैसे कमा सकते हैं और उस पैसे का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।

अनुच्छेद 25 की तरह ही अनुच्छेद 26 भी लोक व्यवस्था (public order), सदाचार (morality) और स्वास्थ्य (Health) के अधीन है।

लेकिन 26 संविधान के भाग 3 के अन्य उपबंधों के अधीन नहीं है। जबकि 25 भाग 3 के अन्य उपबंधों के भी अधीन है।

गहराई से समझें – अनुच्छेद 26 – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]

अनुच्छेद 27 – धर्म की अविवृद्धि के लिए करों के संदाय से स्वतंत्रता

किसी भी व्यक्ति को ऐसे करों का संदाय (Payment) के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा जिनके आगम किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि या पोषण में व्यय करने के लिए विनिर्दिष्ट रूप से विनियोजित किए जाते हैं।

जैसा कि हम जानते हैं भारत धर्मनिरपेक्षता को फॉलो करता है। यानी कि लोगों का तो यहाँ अपना धर्म हो सकता है पर राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होगा।

इसी से आगे की बातें इस अनुच्छेद में लिखी है कि – राज्य जनता के पैसे को, जो कि टैक्स के रूप में आता है; उसका इस्तेमाल किसी भी धार्मिक कार्यों में नहीं करेगा तथा न ही राज्य किसी धर्म को प्रोमोट करेगा।

कहने का अर्थ है कि या तो राज्य के नजर में कोई धर्म नहीं है या फिर उसके नजर में सब धर्म समान है। वैसे भी देखें तो राज्य का काम है लोककल्याण न कि धर्म कल्याण।

गहराई से समझें – अनुच्छेद 27 – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]

अनुछेद 28धार्मिक शिक्षा में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता

ये मूलतः इस बात की चर्चा करता है कि कहाँ-कहाँ धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है और कहाँ नहीं। इसके कुछ प्रावधान निम्न है।

(1) जितने भी शिक्षण संस्थान जो कि राज्य द्वारा पूर्णतः पोषित हो उसमें किसी भी प्रकार की धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी। राज्य ऐसा क्यों नहीं कर सकता उसके बारे में अभी-अभी ऊपर पढ़ें हैं।

(2) लेकिन ऐसा संस्थान जिसका प्रशासन तो राज्य कर रहा हो लेकिन उसकी स्थापना किसी ट्रस्ट के द्वारा की गयी हो तो वहाँ पर धर्मिक शिक्षा दी जा सकती है।

(3) वही अगर किसी संस्थान को राज्य द्वारा मान्यता मिली हो या राज्य द्वारा कुछ अनुदान मिलता हो लेकिन उसका प्रशासन राज्य के हाथ में न हो तो ऐसे संस्थानों में स्वैच्छिक रूप से धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है, यानी कि अगर कोई व्यक्ति चाहे तो धार्मिक शिक्षा ले सकता है और अगर चाहे तो नहीं भी।

गहराई से समझें – अनुच्छेद 28 – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]

कुल मिलाकर यही था धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to religious freedom), उम्मीद है समझ में आया होगा। अन्य लेखों का लिंक नीचे दिया जा रहा है उसे भी अवश्य पढ़ें।

शिक्षा और संस्कृति संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 और 30) के लिए यहाँ क्लिक करें।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रैक्टिस क्विज


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Chapter Wise Polity Quiz

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (25 – 28) अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions - 5
  2. Passing Marks - 80 %
  3. Time - 4 Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

1 / 5

अनुच्छेद 25 के संबंध में इनमें से कौन सा कथन गलत है?

Which of the following is true about religion?

  1. It is an organized collection of beliefs, socio-cultural systems, shared attitudes and world views.
  2. According to the 2011 census, there are 79.8% Hindus in India.
  3. Secularism is suitable for a multi-religious democracy.
  4. Secularism is a part of the Preamble.

2 / 5

धर्म के बारे में इनमें से क्या सही है?

  1. यह विश्वासों, सामाजिक-सांस्कृतिक प्रणालियों, साझा व्यवहार एवं विश्व विचारों का एक संगठित संग्रह है।
  2. 2011 के जनगणना के अनुसार भारत में 79.8% हिन्दू है।
  3. पंथनिरपेक्षता बहुधार्मिक लोकतंत्र के लिए उपयुक्त है।
  4. पंथनिरपेक्षता प्रस्तावना का एक हिस्सा है।

Which of the following statements about Article 26 is incorrect?

  1. It gives the right to establish institutions for religious purposes.
  2. It gives the right to manage the works related to religion.
  3. It gives the right to acquire property through religious works.
  4. Religious property comes under the ownership of religious leaders.

3 / 5

अनुच्छेद 26 के बारे में इनमें से कौन सा कथन गलत है?

  1. ये धार्मिक कार्यों के लिए संस्थाओं की स्थापना का अधिकार देता है।
  2. ये धर्म से संबंधित कार्यों के प्रबंधन का अधिकार देता है।
  3. ये धार्मिक कार्यों से संपत्ति अर्जित करने का अधिकार देता है।
  4. धार्मिक संपत्ति धर्मगुरुओं के स्वामित्व के अंदर आता है।

Which of the following statement is correct?

  1. Article 25 gives the right to propagate religion.
  2. Article 25 deals with freedom of religion in personal matters.
  3. Freedom of religion is also mentioned in the Preamble.
  4. Secularism is the basic structure of the constitution.

4 / 5

निम्न में से कौन सा कथन सही है?

  1. अनुच्छेद 25 धर्म के प्रचार का अधिकार देता है।
  2. अनुच्छेद 25 व्यक्तिगत मामलों में धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित है।
  3. धर्म की स्वतंत्रता का जिक्र प्रस्तावना में भी है।
  4. पंथनिरपेक्षता संविधान का मूल ढांचा है।

Identify the correct statements from the given statements-

  1. The word secular has always been a part of the constitution.
  2. Secular means the state should stay away from religious matters.
  3. The word secular was made a part of the constitution by the 44th constitutional amendment.
  4. If any institution gets some grant from the state but its administration is not in the hands of the state, then religious education can be given voluntarily in such institutions.

5 / 5

दिए गए कथनों में से सही कथनों की पहचान करें-

  1. पंथनिरपेक्ष शब्द हमेशा से ही संविधान का हिस्सा रहा है।
  2. पंथनिरपेक्ष का मतलब राज्य का धार्मिक मामलों से अलग रहना है।
  3. पंथनिरपेक्ष शब्द को 44वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान का हिस्सा बनाया गया।
  4. अगर किसी संस्थान को राज्य द्वारा कुछ अनुदान मिलता हो लेकिन उसका प्रशासन राज्य के हाथ में न हो तो ऐसे संस्थानों में स्वैच्छिक रूप से धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है

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संस्कृति औरशिक्षा संबंधी अधिकार

संवैधानिक उपचारों का अधिकार ।Right to constitutional remedies

रिट के प्रकार और उसके कार्य क्षेत्र

मूल अधिकार के अन्य उपबंध अनुच्छेद 33, अनुच्छेद 34 और अनुच्छेद 35

मूल अधिकारों एवं निदेशक तत्वों में टकराव का विश्लेषण

विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया और विधि की सम्यक प्रक्रिया क्या है?

संविधान की मूल संरचना और केशवानन्द भारती केस

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