इस लेख में हम संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to constitutional remedies) पर सरल एवं सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझेंगे,

तो अच्छी तरह से समझने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें और साथ ही इस टॉपिक से संबंधित अन्य लेखों को भी पढ़ें।

हम अधिकारों को लेकर क्या करेंगे अगर हमें ये ही न पता हो कि अगर कोई मेरे अधिकारों का हनन करता है तो मुझे उस स्थिति में करना क्या है, जाना कहाँ है!

संवैधानिक उपचारों का अधिकार

ये लेख मौलिक अधिकारों पर पहले लिखे गए लेखों का कंटिन्यूएशन है। अब तक हम समता का अधिकार (Right to Equality), स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom), शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against Exploitation), धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Religious Freedom) एवं संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (Rights related to culture and education) समझ चुके हैं। अगर आपने नहीं समझा है तो उसे जरूर समझें।

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संवैधानिक उपचारों का अधिकार

हमारे संविधान में एक लोक कल्याणकारी राज्य बनाने के लिए मौलिक अधिकारों पर काफी ज़ोर दिया गया है। पर जैसा कि हम जानते हैं कि शक्तियाँ राज्य के हाथ में होती है और हमारा संविधान संशोधनीय है यानी कि राज्य चाहे तो उसमें संसोधन कर सकती है।

ऐसे में इस बात की क्या गारंटी है वो मौलिक अधिकारों को भी संशोधन करके हटा न दें। ऐसा बिलकुल संभव था और ये बात संविधान सभा भी अच्छे से जानती थी। इसीलिए अनुच्छेद 13 के माध्यम से यह व्यवस्था किया गया कि मूल अधिकारों को कम करने वाली कोई भी विधि उतनी मात्रा में खारिज हो जाएंगी।

अब आपके मन में एक बात आ सकता है कि अनुच्छेद 13 में जब ये प्रावधान है कि किसी भी विधि से मूल अधिकारों को कम या खत्म नहीं किया जा सकता है तो फिर अनुच्छेद 32 की जरूरत क्यों पड़ी?

इसके लिए आइये कुछ स्वाभाविक प्रश्न पर विचार करते हैं। मान लीजिये कि संसद को किसी मूल अधिकार को हटाना है पर अनुच्छेद 13 के कारण वो इसे हटा नहीं पा रहा है तो उसके पास एक रास्ता ये है कि, अनुच्छेद 368 जो कि संसद को संविधान में संशोधन की शक्ति देता है।

उसकी मदद से वो पहले अनुच्छेद 13 को ही हटा दें या उसमें संशोधन कर दें। जैसे ही ये होगा उसके बाद आसानी से वो मौलिक अधिकारों में जो चाहे वो परिवर्तन कर सकता है।

दूसरी बात ये है न्यायालय सिर्फ इसीलिए तो बैठा नहीं है कि सरकार कौन सा कानून बना रहा है उससे किसका कितना मूल अधिकार हनन हो रहा है; ये तो नागरिक, किसी व्यक्ति या उसके समूहों को मिले अधिकार है और ये उसका काम है कि ऐसे अधिकारों के हनन पर आवाज उठाए, पर सवाल यही है कि संविधान ने मौलिक अधिकार को इतनी प्राथमिकता तो दी है पर अगर राज्य द्वारा इसका किसी भी प्रकार से हनन किया जाता है तो जनता जाये तो जाये कहाँ? बोले तो बोले किसे?

कहने का अर्थ ये है कि मूल अधिकार तब तक किसी काम का नहीं है जब तक उसे संरक्षण न मिले और जब तक उसे लागू कराने के लिए कोई प्रभावी मशीनरी न हो।

इसी को ध्यान में रखकर मूल अधिकारों के संरक्षण के लिए अनुच्छेद 32 का प्रावधान संविधान में शामिल किया गया। इसकी खास बात ये है कि ये खुद भी एक मूल अधिकार ही है और ये संवैधानिक उपचार का अधिकार प्रदान करता है। किस प्रकार का उपचार प्रदान करता है आइये इसे जानते हैं-

नोट – इस अनुच्छेद 32 को कभी भी संशोधित नहीं किया जा सकता क्योंकि ये संविधान के मूल ढांचे↗️ का एक हिस्सा है।

Ordinance

“एक अनुच्छेद जिसके बिना संविधान अर्थविहीन है, यह संविधान की आत्मा और हृदय है।”

डॉ. भीमराव अंबेडकर

संवैधानिक उपचारों का अधिकार और इसके प्रावधान

अनुच्छेद 32 के तहत कुछ प्रावधान है, जो निम्न है।

1. जब भी मूल अधिकारों का उल्लंघन होगा कोई भी व्यक्ति सीधे उच्चतम न्यायालय जा सकता है। इसीलिए तो उच्चतम न्यायालय को मूल अधिकारों का संरक्षक कहा जाता है।

चूंकि हमारी न्याय प्रणाली एकीकृत है इसीलिए सामान्य मामलों में हम निचली न्यायालयों से शुरू करते हैं और अगर हम उससे संतुष्ट नहीं होते हैं तो फिर ऊपरी न्यायालयों की तरफ रुख करते हैं। हमारा आखिरी लक्ष्य उच्चतम न्यायालय होता है। पर मूल अधिकारों के संबंध में हम चाहे तो सीधे उच्चतम न्यायालय जा सकते हैं।

2. संविधान के इस भाग द्वारा प्रदत अधिकारों में से किसी को प्रवर्तित कराने के लिए उच्चतम न्यायालय को ऐसे निदेश या आदेश, रिट या प्रादेश जारी करने की शक्ति होगी, जिसके तहत वे बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas corpus), परमादेश (mandamus), प्रतिषेध (prohibition), उत्प्रेषण (certiorari) एवं अधिकार पृच्छा (quo warranto) रिट जारी कर सकती है।

◾ यहाँ पर यह जानना जरूरी है कि उच्च न्यायालय के पास भी रिट जारी करने का अधिकार है जो कि अनुच्छेद 226 में वर्णित है पर वो एक मौलिक अधिकार नहीं है।

इसका मतलब आप इस तरह से भी समझ सकते हैं कि अगर कोई व्यक्ति उच्चतम न्यायालय में अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करता है तो उच्चतम न्यायालय सुनवाई से इंकार नहीं कर सकता है,

वहीं अनुच्छेद 226 के तहत अगर कोई व्यक्ति उच्च न्यायालय में याचिका दायर करता है तो उच्च न्यायालय इसके लिए बाध्य नहीं है कि वो सुनवाई करें ही, हालांकि प्रैक्टिकली ऐसा देखने को कम ही मिलता है।

◾ यहाँ पर एक बात और ध्यान रखने योग्य है कि उच्चतम न्यायालय केवल मूल अधिकारों के क्रियान्वयन को लेकर रिट जारी कर सकता है, जबकि उच्च न्यायालय इनके अलावा किसी और उद्देश्य को लेकर भी इस जारी कर सकता है। यानी कि इस मामले में उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र उच्चतम न्यायालय से ज्यादा है।

3. संसद को यह शक्ति है कि वह किसी अन्य न्यायालय को भी रिट जारी करने की शक्ति प्रदान कर सकती है, पर फिलहाल ये अभी उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के पास ही है।

4. इस संविधान द्वारा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, इस अनुच्छेद द्वारा प्रत्याभूत अधिकार निलंबित नहीं किया जाएगा। यानी कि अगर राष्ट्रपति चाहे तो राष्ट्रीय आपातकाल (National emergency) के दौरान अनुच्छेद 359 के तहत इसे स्थगित कर सकता है।

कुल मिलाकर यही है संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to constitutional remedies), उम्मीद है समझ में आया होगा। इसका अगला भाग रिट (Writ) का है उसे जरूर समझे – रिट के प्रकार और उसके कार्य क्षेत्र

Read in Details –अनुच्छेद 32 – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]

संवैधानिक उपचारों का अधिकार Practice Quiz


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Chapter Wise Polity Quiz

संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Art 32) अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions - 10
  2. Passing Marks - 80 %
  3. Time - 8 Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

Which of the following is correct regarding Habeas Corpus?

  1. It means to be presented.
  2. It pertains to forcible detention.
  3. It can be issued only against public authority.
  4. If the detention is not lawful, the person can be released.

1 / 10

बंदी प्रत्यक्षीकरण के संबंध में इनमें से क्या सही है?

  1. इसका मतलब होता है प्रस्तुत किया जाए।
  2. ये जबरन हिरासत में रखें जाने से संबंधित है।
  3. इसे केवल सार्वजनिक प्राधिकरण के विरुद्ध जारी किया जा सकता है।
  4. अगर हिरासत विधि सम्मत न हो तो व्यक्ति को छोड़ा जा सकता है।

Which of the following statements is correct with respect to entitlement?

  1. Under this, the court can investigate whether any person holding any public post is entitled to hold that post or not.
  2. It is issued for the office of a minister or for a private office.
  3. Any interested person can ask to issue it.
  4. The court can issue it only with the consent of the Parliament.

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अधिकार पृच्छा के संबंध में निम्न में से कौन सा कथन सही है?

  1. इसके तहत न्यायालय ये जांच कर सकता है कि कोई व्यक्ति जिस किसी भी सार्वजनिक पद पर है वो उस पद पर रहने के अधिकारी है या नहीं।
  2. इसे किसी मंत्री के कार्यालय या निजी कार्यालय के लिए जारी किया जाता है।
  3. इसे कोई भी इच्छुक व्यक्ति जारी करने के लिए कह सकता है।
  4. न्यायालय इसे सिर्फ संसद की सहमति से ही जारी कर सकता है।

Consider the following statements regarding Writ and choose the correct statements.

  1. The President can suspend Article 32 under Article 359 during national emergency.
  2. The High Court has the power to issue writs under Article 226.
  3. If the State Legislature wants, it can also extend the right to issue writs.
  4. At present there are 5 writs in existence.

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रिट के संबंध में निम्न कथनों पर विचार करें और सही कथनों का चुनाव करें।

  1. राष्ट्रपति, राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 359 के तहत अनुच्छेद 32 को स्थगित कर सकता है।
  2. उच्च न्यायालय को अनुच्छेद 226 के तहत रिट जारी करने का अधिकार प्राप्त है।
  3. राज्य विधानमंडल चाहे तो रिट जारी करने के अधिकार का विस्तार भी कर सकती है।
  4. अभी फ़िलहाल 5 रिट अस्तित्व में है।

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रिट के इंग्लिश मीनिंग के संबंध में इनमें से कौन सा कथन सही नहीं है?

  1. अधिकार पृच्छा को इंग्लिश में Certiorari कहा जाता है।
  2. उत्प्रेषण को इंग्लिश में Quo warranto कहा जाता है।
  3. परमादेश को इंग्लिश में Mandamus कहा जाता है।
  4. बंदी प्रत्यक्षीकरण को इंग्लिश में Prohibition कहा जाता है।

Which of the following is correct regarding Mandamus?

  1. It means we give orders.
  2. It can be issued only to the government.
  3. If any institution is not doing its work properly then it can be issued.
  4. It cannot be issued against a private company.

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परमादेश के संबंध में इनमें से क्या सही है?

  1. इसका मतलब है हम आदेश देते हैं।
  2. इसे केवल सरकार को जारी किया जा सकता है।
  3. कोई संस्था ठीक से अपना कार्य नहीं कर रहा है तो इसे जारी किया जा सकता है।
  4. इसे निजी कंपनी के विरुद्ध जारी नहीं किया जा सकता।

Which of the following statements is not correct regarding Article 32?

  1. In case of violation of fundamental rights, a person can directly go to the Supreme Court.
  2. The Supreme Court has the power to issue writs.
  3. The High Court can issue only certain writs.
  4. The power to issue writs granted to the High Court is not a fundamental right.

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अनुच्छेद 32 के संबंध में इनमें से कौन सा कथन सही नहीं है?

  1. मूल अधिकारों का हनन होने पर व्यक्ति सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकता है।
  2. उच्चतम न्यायालय को रिट जारी करने का अधिकार है।
  3. उच्च न्यायालय सिर्फ कुछ ही रिट जारी कर सकता है।
  4. उच्च न्यायालय को मिली रिट जारी करने की शक्ति मौलिक अधिकार नहीं है।

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इनमें से कौन सा एक रिट नहीं है?

Which of the following is correct regarding prohibition?

  1. It means maintaining the status quo.
  2. It is issued by a High Court to prevent subordinate courts from performing judicial functions outside their jurisdiction.
  3. It can be issued only against judicial and non-judicial authorities.
  4. The Supreme Court is required to issue a reasonable amount of prohibition every year.

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प्रतिषेध के संबंध में निम्न में से क्या सही है?

  1. इसका अर्थ होता है यथास्थिति बनाए रखना।
  2. इसे किसी उच्च न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों को अपने न्यायक्षेत्र से बाहर के न्यायिक कार्यों को करने से रोकने के लिए जारी किया जाता है।
  3. इसे सिर्फ न्यायिक और गैर-न्यायिक प्राधिकरणों के विरुद्ध ही जारी किए जा सकते है।
  4. उच्चतम न्यायालय द्वारा हर साल उचित मात्रा में प्रतिषेध जारी करना जरूरी होता है।

Which of the following statements is correct regarding motivation?

  1. It literally means to certify or to inform.
  2. It is issued by the High Court for transfer of pending cases to subordinate courts or tribunals.
  3. It is issued against judicial authorities and administrative authorities affecting the rights of individuals.
  4. This writ needs approval from the Parliament every 10 years.

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उत्प्रेषन के संबंध में निम्न में से कौन सा कथन सही है?

  1. इसका शाब्दिक अर्थ है प्रमाणित होना या सूचना देना।
  2. इसे उच्च न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों को या अधिकरणों को लंबित मामलों के स्थानांतरण के लिए जारी किया जाता है।
  3. इसे न्यायिक प्राधिकरणों एवं व्यक्तियों के अधिकार को प्रभावित करने वाले प्रशासनिक प्राधिकरणों के खिलाफ जारी किया जाता है।
  4. इस रिट को हर 10 साल में संसद से अप्रूवल की जरूरत पड़ती है।

Can the Supreme Court issue writs only for the enforcement of fundamental rights?

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क्या उच्चतम न्यायालय केवल मूल अधिकारों के क्रियान्वयन को लेकर ही रिट जारी कर सकता है?

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रिट के प्रकार और उसके कार्य क्षेत्र
मूल अधिकार के अन्य उपबंध
मूल अधिकारों एवं निदेशक तत्वों में टकराव
विधि की सम्यक प्रक्रिया क्या है?
संविधान की मूल संरचना
संविधान संशोधन की पूरी प्रक्रिया
राज्य के नीति निदेशक तत्व (DPSP)
संसदीय व्यवस्था
भारत की संघीय व्यवस्था
सहकारी संघवाद

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Important links,
मूल संविधान भाग 3↗️
एनसीईआरटी क्लास 11B↗️ आदि।

अनुच्छेद 31

अगर आप ये सोच रहे हैं कि अनुच्छेद 31 में बारे में हमने चर्चा क्यों नहीं की तो बता दूँ कि वो संपत्ति के अधिकार से संबन्धित है और उसे संविधान के मौलिक अधिकारों से हटा दिया गया है। ऐसा क्यों किया गया है, ये एक दिलचस्प स्टोरी है इसे समझने के लिए यहाँ क्लिक करें