वि त्ती य आपा तका ल : उद्घो षणा , समया वधि , प्रभा व एवं आलो चना
इस लेख में हम वि त्ती य आपा तका ल (Financial Emergency) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे एवं कि न-कि न आधा रों पर इसकी आलो चना एँ की गई हैं उन पर भी नजर डा लेंगे।
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रा ष्ट्री य आपा तका ल (National emergency) और रा ष्ट्रपति शा सन (President’s Rule) बहुत ही महत्वपूर्ण है, और कुख्या त भी । ऐसा इसी लि ए क्यों कि इसका इस्तेमा ल देश हि त से ज्या दा रा जनैति क हि त में हुआ है। वि स्ता र से समझने के लि ए दि ये गए लिं क को क्लि क कर सकते हैं।
भा रत के आपा तका ली न प्रा वधा न (Emergency provisions of India)
आपा तका ल (Emergency) का ता त्पर्य ऐसी घटना या घटना ओं से है जि समें तुरंतुरंत का र्रवा ई की जरूरत हो । ऐसी स्थि ति कभी भी और कहीं भी आ सकती है और ये व्यक्ति गत भी हो सकता है, सा मा जि क भी हो सकता है और रा ष्ट्री य भी ।
रा ष्ट्री य स्थि ति से नि पटने के लि ए भा रत के संवि धा न में आपा तका ली न प्रा वधा नों (Emergency provisions) की व्यवस्था की गई है। ये प्रा वधा न संवि धा न के भा ग 18 में अनुच्नुछेद 352 से 360 तक उल्लि खि त हैं।
आपा तका ल के प्रका र और लगा ने की परि स्थि ति याँ
संवि धा न के भा ग 18 में ती न प्रका र के आपा तका ल और ऐसी ती न परि स्थि ति यों का जि क्र कि या गया है। जि सके रहने पर आपा तका ल लगा या जा सकता है। ये ती नों अलग-अलग अनुच्नुछेदों में वर्णि त है। जो कि नि म्नलि खि त है-
1. अनुच्नुछेद 352 – इसके तहत युद्धयु, बा ह्य आक्रमण और सशस्त्रत् वि द्रोद् रोह के दौरा न आपा तका ल लगा या जा सकता है। इस प्रका र के आपा तका ल को रा ष्ट्री य आपा तका ल (National emergency) कहा जा ता है।
2. अनुच्नुछेद 356 – जब रा ज्यों में संवैधा नि क तंत्रत् वि फल हो जा ये, तब भी आपा तका ल लगा या जा सकता है। इस प्रका र के आपा तका ल को रा ष्ट्रपति शा सन कहा जा ता है। इसे रा ज्य आपा तका ल और संवैधा नि क आपा तका ल भी कह दि या जा ता है। हा लां कि संवि धा न में सि र्फ ‘रा ष्ट्रपति शा सन’ शब्द का जि क्र कि या गया है।
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3. अनुच्नुछेद 360 – जब भा रत की वि त्ती य स्था यि त्व अथवा सा ख खतरे में हो तो उस समय जो आपा तका ल लगा या जा ता है। उसे वि त्ती य आपा तका ल (Financial emergency) कहा जा ता है।
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रा ष्ट्री य आपा तका ल (National emergency) और रा ष्ट्रपति शा सन (President’s Rule) बहुत ही महत्वपूर्ण है, और कुख्या त भी । ऐसा इसी लि ए क्यों कि इसका इस्तेमा ल देश हि त से ज्या दा रा जनैति क हि त में हुआ है। वि स्ता र से समझने के लि ए दि ये गए लिं क को क्लि क कर सकते हैं।
वि त्ती य आपा तका ल (Financial emergency) आजतक देश में लगा ही नहीं इसी लि ए उसके व्या वहा रि क पहलुओंलु ओं पर बहुत ही कम जा नका री उपलब्ध हो ती है।
वि त्ती य आपा तका ल क्या है?
संवि धा न के भा ग 18 के तहत अनुच्नुछेद 352 से लेकर 360 तक ती न प्रका र के आपा तका ल की चर्चा मि लती है। उसी में से एक है वि त्ती य आपा तका ल (Financial emergency)।
जैसा कि ऊपर भी बता या गया है जब भा रत की वि त्ती य स्था यि त्व अथवा सा ख खतरे में हो तो रा ष्ट्रपति देश में वि त्ती य आपा तका ल की घो षणा कर सकता है।
वि त्ती य आपा तका ल के उद्घो षणा का आधा र
अनुच्नुछेद 360 (1) रा ष्ट्रपति को वि त्ती य आपा त कि उद्घो षणा करने की शक्ति प्रदान करता है, यदि वह संतुष्तुट हो कि ऐसी स्थि ति उत्पन्न हो गयी है, जि समें भा रत अथवा उसके रा ज्यक्षेत्रत् के कि सी भा ग का वि त्ती य स्था यि त्व अथवा सा ख खतरे में है।
38वें संवि धा न संशो धन अधि नि यम 1975 के मा ध्यम से इन्दि रा गां धी की सरका र ने ती नों प्रका र के आपा तका ल को न्या यि क समी क्षा से बा हर कर दि या था । या नी कि वि त्ती य आपा तका ल भी न्या यि क समी क्षा के दायरे से बा हर था ।
उस अधि नि यम में सा फ-सा फ लि ख दि या गया था कि रा ष्ट्रपति की वि त्ती य आपा तका ल की घो षणा करने की संतुष्टितुष्टि अंति म और नि र्णा यक है तथा कि सी भी न्या या लय में कि सी भी आधा र पर प्रश्नयो ग्य नहीं है।
परंतु 44 तु वें संवि धा न संशो धन अधि नि यम 1978 के मा ध्यम से मो रा रजी देसा ई की सरका र ने इस प्रा वधा न को समा प्त कर यह कहा कि रा ष्ट्रपति की संतुष्टितुष्टि न्या यि क समी क्षा से परे नहीं है।
संसदीय अनुमोनुमोदन एवं समया वधि
अनुच्नुछेद 360(2) के अनुसानु सार, वि त्ती य आपा तका ल की घो षणा को दो मा ह के भी तर संसद की स्वी कृति मि लना अनि वा र्य है।
यदि वि त्ती य आपा तका ल की घो षणा करने के दौरा न लो कसभा वि घटि त हो जा ये अथवा दो मा ह के भी तर इसे मंजूमं रजू करने से पूर्व लो कसभा वि घटि त हो जा ये तो यह घो षणा लो कसभा के पुनपुर्गठन के प्रथम बैठक के बा द ती स दि नों तक प्रभा वी रहेगी , परंतु इस अवधि में इसे रा ज्यसभा की मंजूमं रीजूरी मि लना आवश्यक है। क्यों कि रा ज्यसभा वि घटि त नहीं हो ता है। या नी कि अगर 30 दि नों के भी तर लो कसभा उसे मंजूमं रजू नहीं करता है तो वो समा प्त हो जा एगा ।
इस तरह एक बा र यदि संसद के दोनों सदनों से इसे मंजूमं रीजूरी प्रा प्त हो जा ये तो वि त्ती य आपा त अनि श्चि तका ल के लि ए तब तक प्रभा वी रहेगा जब तक इसे वा पस न लि या जा ये। ऐसा इसलि ए है क्यों कि
1. इसकी अधि कतम समय सी मा नि र्धा रि त नहीं की गई है। और
2. इसे जा री रखने के लि ए संसद की पुनःपुनः मंजूमं रीजूरी आवश्यक नहीं है।
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वि त्ती य आपा तका ल की घो षणा को मंजूमं रीजूरी देने वा ला प्रस्ता व, संसद के कि सी भी सदन द्वा रा सा मा न्य बहुमत द्वा रा पा रि त कि या जा सकता है। या नी कि रा ष्ट्री य आपा तका ल की तरह यहाँ वि शेष बहुमत की जरूरत नहीं पड़ती है।
वि त्ती य आपा तका ल खत्म कैसे हो ता है?
वि त्ती य आपा तका ल को खत्म करना का फी आसा न है। रा ष्ट्रपति द्वा रा कि सी भी समय एक पश्चा तवर्ती घो षणा द्वा रा वि त्ती य आपा त की घो षणा वा पस ली जा सकती है या परि वर्ति त की जा सकती है। ऐसी घो षणा को कि सी संसदीय मंजूमं रीजूरी की आवश्यकता नहीं है।
वि त्ती य आपा तका ल के प्रभा व
वि त्ती य आपा तका ल के प्रभा व की चर्चा अनुच्नुछेद 360(3) एवं 360(4) में की गई है। जो कि कुछ इस प्रका र है;
1. केंद्रद् की आधि का रि क का र्यपा लि का शक्ति का वि स्ता र कि या जा सकता है, जहां केंद्रद् कि सी रा ज्य को वि त्ती य औचि त्य संबंधी सि द्धां तों के पा लन का नि र्देश देसकता है। या फि र अन्य को ई नि देश देसकता है जो रा ष्ट्रपति उचि त समझे।
2. इस तरह के कि सी भी नि र्देश में इन प्रा वधा नों का उल्लेख हो सकता है, जैसे कि – रा ज्य की सेवा में कि सी भी अथवा सभी वर्गों के सेवकों की वेतन एवं भत्तों में कटौ ती और रा ज्य वि धा यि का द्वा रा पा रि त एवं रा ष्ट्रपति के वि चा र हेतु ला ये गए सभी धन वि धेयकों अथवा अन्य वि त्त वि धेयकों को आरक्षि त रखना , इत्या दि ।
3. रा ष्ट्रपति , आपा तका ल की अवधि के दौरा न वेतन एवं भत्तों में कटौ ती हेतु नि र्देश जा री कर सकता है – (1) केंद्रद् की सेवा में लगे सभी अथवा कि सी भी श्रेश् रेणी के व्यक्ति यों को और (2) उच्चतम न्या या लय एवं उच्च न्या या लय के सभी न्या या धी शों की ।
अत: वि त्ती य आपा तका ल की अवधि में रा ज्य के सभी वि त्ती य मा मलों में केंद्रद् का नि यंत्रत् ण हो जा ता है। आपा तका ली न प्रा वधा नों की आलो चना
संवि धा न सभा के कुछ सदस्यों ने संवि धा न में आपा तका ली न प्रा वधा नों की नि म्न आधा र पर आलो चना कि : जैसे कि –
1. संवि धा न का संघी य प्रभा व नष्ट हो गा तथा केंद्रद् सर्वशक्ति मा न बन जा एगा ।
2. रा ज्यों की शक्ति याँ (एकल एवं संघी य दोनों ) पूरी तरह से केन्द्रीद् रीय प्रबंधन के हा थ में आ जा एंगीएं गी। 3. रा ष्ट्रपति ही ता नशा ह बन जा एगा ।
4. रा ज्यों की वि त्ती य स्वा यतत्ता नि रर्थक हो जा एंगीएं गी।
5. मूलमू अधि का र अर्थही न हो जा एँगेएँगेऔर परि णा मस्वरूप संवि धा न की प्रजा तंत्रीत् रीय आधा रशि ला नष्ट हो जा एगी ।
एच वी का मथ
मुझेमु झेडर है कि इस एकल अध्या य द्वा रा हम एक ऐसे सम्पूर्ण रा ज्य की नीं वनीं डा ल रहे है जो एक पुलिपुलिस रा ज्य, एक ऐसा रा ज्य जो उन सभी सि द्धां तों और आदर्शों का पूर्ण वि रो ध करता है जि सके लि ए हम पि छले दशकों में लड़ते रहें। एक रा ज्य जहां सैकड़ों मा सूम महि ला ओं एवम पुरुपुषों के स्वतंत्रत् ता के अधि का र सदैव संशय में रहेंगे। एक रा ज्य जहां कहीं शां ति हो गी जो वह कब्रब् में हो गी और शून्शूय अथवा रगि स्ता न में हो गी । यह शर्म और दुखदु का दि न हो गा जब रा ष्ट्रपति इन शक्ति यों का प्रयो ग करेगा , इनका वि श्व के कि सी भी लो कतां त्रि क देश के संवि धा न में को ई नहीं सा म्य हो गा ।
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के टी शा ह
प्रति क्रि या और पतन का एक अध्या य; मुझेमु झेऐसा लगता है कि स्वतंत्रत् ता और लो कतन्त्रत् का ना म केवल संवि धा न में ही रह जा एगा ।
टी टी कृष्णा मा चा री
इन प्रा वधा नों के द्वा रा रा ष्ट्रपति एवं का र्यका री , संवैधा नि क ता ना शा ही का प्रयो ग करेंगे।
एच एन कुंजुरुजु
वि त्ती य आपा तका ल के प्रा वधा न रा ज्य की वि त्ती य स्वा यतत्ता के लि ए के गंभीगं भीर खतरा उत्पन्न करते है।
हा लां कि संवि धा न में इन प्रा वधा नों के समर्थक भी थे। सर अल्ला दी कृष्णस्वा मी अय्यर ने इसे संवि धा न का जी वन सा थी बता या । महा वी र त्या गी ने कहा कि यह सुरसुक्षा वा ल्व की तरह का र्य करेंगे और संवि धा न की रक्षा करने में सहा यता प्रदान करेंगे।