इस लेख में हम लोकसभा अध्यक्ष (Lok Sabha Speaker) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझेंगे,

जैसे कि इतिहास, प्रावधान, शक्ति व कार्य आदि; तो लेख को अच्छी तरह से समझने के लिए अंत तक जरूर पढ़ें एवं संबंधित अन्य लेख भी पढ़ें। [लोकसभा के बेसिक्स को दूसरे लेख में कवर किया जा चुका है, बेहतर समझ के लिए पहले उसे जरूर पढ़ लें]

Lok Sabha Speaker
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लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका [Role of Lok Sabha Speaker]

जैसा कि हम जानते हैं संसद तीन घटकों से मिलकर बना होता है; लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति। लोकसभा और राज्यसभा संसद के दो सदन हैं जिसमें से संसद के निचले सदन को लोकसभा कहा जाता है। लोकसभा के पीठासीन अधिकारी को लोकसभा अध्यक्ष (Lok Sabha Speaker) कहा जाता है।

लोकसभा के संचालन का काम इसी के जिम्मे होता है। लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा व उसके प्रतिनिधियों का मुखिया होता है तथा वह सदन का मुख्य प्रवक्ता होता है।

कार्यपालिका लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता है और लोकसभा अध्यक्ष आमतौर पर सत्ताधारी दल से ही होता है इसीलिए लोकसभा अध्यक्ष का पद काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। सभी संसदीय मसलों में उसका निर्णय अंतिम होता है, इस पद पर अध्यक्ष के पास असीम व महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ होती है।

◾ अध्यक्ष की प्राथमिक भूमिका सदन में बहस की अध्यक्षता करना और सदस्यों के बीच अनुशासन बनाए रखना है। अध्यक्ष सदन में प्रस्तुत किए जाने वाले प्रश्नों, प्रस्तावों और विधेयकों की स्वीकार्यता भी तय करता है। इन मामलों पर अध्यक्ष के निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होते हैं।

◾ इन भूमिकाओं के अलावा, अध्यक्ष संसदीय समितियों के कामकाज में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अध्यक्ष विभिन्न समितियों के सदस्यों और अध्यक्षों की नियुक्ति करता है और उनके कामकाज की देखरेख करता है। अध्यक्ष के पास किसी भी समिति की बैठक बुलाने और यदि आवश्यक हो तो उसे भंग करने की भी शक्ति है।

◾ अध्यक्ष की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों में से एक यह सुनिश्चित करना है कि सदन के विधायी कार्य को सुचारू रूप से चलाया जाए। अध्यक्ष सदन के लिए कार्यसूची निर्धारित करता है और उस क्रम पर निर्णय लेता है जिसमें चर्चा के लिए विधेयकों को लिया जाता है। अध्यक्ष यह भी सुनिश्चित करता है कि विधेयक पारित होने से पहले सदस्यों को बहस और चर्चा के लिए पर्याप्त समय दिया जाए।

◾अध्यक्ष के पास सदन की निष्पक्षता और तटस्थता बनाए रखने की शक्ति भी होती है। अध्यक्ष वाद-विवाद में भाग नहीं लेता है और बराबरी की स्थिति को छोड़कर मतदान नहीं करता है। यह सुनिश्चित करने के लिए अध्यक्ष की निष्पक्षता महत्वपूर्ण है कि सदन निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से कार्य करे।

Lok Sabha: Role, Structure, FunctionsHindiEnglish
Rajya Sabha: Constitution, PowersHindiEnglish
Parliamentary MotionHindiEnglish
Lok Sabha Speaker

अध्यक्ष का निर्वाचन एवं पदावधि (Election and term of office of the chairman):

लोकसभा आम जनों की एक सभा है जहां प्रत्यक्ष मतदान के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि बैठते हैं। वर्तमान में 543 सीटों पर लोकसभा चुनाव होता है यानी कि 543 सदस्य चुनकर यहाँ आते हैं।

चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक के पश्चात उपस्थित सदस्यों के बीच से अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव किया जाता है। इसकी व्यवस्था अनुच्छेद 93 में की गई है। लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव की तारीख का निर्धारण राष्ट्रपति करता है।

आमतौर पर लोकसभा अध्यक्ष तब तक अध्यक्ष बने रहते हैं जब तक लोकसभा भंग नहीं हो जाता। हालांकि अनुच्छेद 94 के अनुसार उसका पद निम्नलिखित तीन मामलों में उससे पहले भी समाप्त हो सकता है।

1. चूंकि लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा का ही सदस्य होता है इसीलिए यदि वह किसी कारण से सदन का सदस्य नहीं रह पाता, तो उसका अध्यक्ष पद भी चला जाता है,
2. यदि वह उपाध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा इस्तीफ़ा दे दें,
3. यदि लोकसभा के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा उसे उसके पद से हटाया जाये। लेकिन ऐसा संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जा सकता जब तक कि कम से कम 14 दिन पूर्व सूचना न दे दी गई हो।

◾ जब लोकसभा विघटित होती है, अध्यक्ष अपना पद नहीं छोड़ता वह नई लोकसभा की बैठक तक पद धारण करता है।

लोकसभा अध्यक्ष पद से जुड़े कुछ तथ्य

अनुच्छेद 95 – अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों का पालन करने वाले व्यक्ति की शक्ति

(1) जब अध्यक्ष का पद रिक्त हो तब उपाध्यक्ष उसके कर्तव्यों का निर्वहन करता है, और यदि उपाध्यक्ष का भी पद रिक्त हो तो लोकसभा का ऐसा सदस्य, जिसको राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे; उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा।

(2) लोकसभा की किसी बैठक से अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष, अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा। यदि वह भी अनुपस्थित है तो ऐसा व्यक्ति, जो लोक सभा की प्रक्रिया के नियमों द्वारा अवधारित किया जाए, अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा।

अनुच्छेद 96 – जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना

(1) लोकसभा की किसी बैठक में, जब अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का संकल्प विचाराधीन है तब अध्यक्ष उपस्थित रहने पर भी, पीठासीन नहीं होगा। ऐसी स्थिति में अनुच्छेद 95(2) प्रभावी हो जाता है, ऐसा इसीलिए ताकि नए अध्यक्ष की व्यवस्था की जाए।

(2) जब अध्यक्ष को हटाने के लिए संकल्प विचारधीन है तो अध्यक्ष पीठासीन नहीं रह सकता लेकिन उसे लोकसभा में बोलने और उसकी कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार होता है। उसे प्रथमतः मत देने का भी अधिकार होता है परंतु मतों के बराबर होने की दशा में मत देने का अधिंकार नहीं होता है।

लोकसभा अध्यक्ष की शक्ति व कार्य (Power and functions of the Speaker of the Lok Sabha):

लोकसभा अध्यक्ष (Speaker) को मुख्यतः तीन स्रोतों से अपना कर्तव्य और शक्तियाँ मिलती है :- भारत का संविधान, लोकसभा की प्रक्रिया व कार्य संचालन नियम और संसदीय परंपरा। इस प्रकार अध्यक्ष की शक्तियाँ व कर्तव्य निम्नलिखित है-

1. सदन की कार्यवाही व संचालन के लिए वह नियम व विधि तय करता है। यह उसका प्राथमिक कर्तव्य है। उसका निर्णय अंतिम होता है।

2. सदन के भीतर वह भारत के संविधान, लोकसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियम तथा संसदीय परंपराओं का अंतिम व्याख्याकार होता है

3. अनुच्छेद 100 के तहत, अध्यक्ष का यह कर्तव्य है कि गणपूर्ति के अभाव में सदन को स्थगित कर दे। दरअसल गणपूर्ति या कोरम सदन की संख्या का दसवां भाग होता है। यानी कि अगर सदन में 55 सदस्य नहीं है तो अध्यक्ष सदन को स्थगित कर देगा।

4. अनुच्छेद 100 के तहत, लोकसभा अध्यक्ष सदन में मतदान के दौरान, सामान्य स्थिति में मत नहीं देता है परंतु बराबरी की स्थिति में वह मत दे सकता है।

दूसरे शब्दों में, किसी मुद्दे पर अगर पक्ष और विपक्ष दोनों का मत बराबर हो तो अध्यक्ष अपने मत का प्रयोग कर सकता है। ऐसे मत को निर्णायक मत कहा जाता है और इसका मकसद गतिरोध को समाप्त करना है।

5. किसी विधेयक पर अगर दोनों सदनों में बहुत ज्यादा गतिरोध हो तो उस गतिरोध को समाप्त करने के लिए राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाता है, जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करते हैं।

6. सदन के नेता के आग्रह पर वह गुप्त बैठक बुला सकता है। जब गुप्त बैठक की जाती है तो किसी अंजान व्यक्ति को चैंबर या गैलरी में जाने की इजाजत नहीं होती है।

7. अध्यक्ष के पास ये तय करने की शक्ति होती है कि कौन धन विधेयक (Money Bill) है और कौन नहीं। इस मामले में उसका निर्णय अंतिम होता है। [ज्यादा जानकारी के लिए धन विधेयक और वित्त विधेयक पढ़ें]

8. दसवीं अनुसूची के तहत दल-बदल उपबंध के आधार पर कोई व्यक्ति सदन का सदस्य बना रहेगा या नहीं, इसका निपटारा अध्यक्ष ही करता है। हालांकि इस संबंध में अध्यक्ष के निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। [ज्यादा जानकारी के लिए दल-बदल कानून पढ़ें]

9. वे भारतीय संसदीय समूह (Parliamentary group) के पदेन सभापति के रूप में कार्य करते है जो भारतीय संसद और विश्व के संसदों के बीच एक कड़ी का काम करते हैं।

10. वह लोकसभा की सभी संसदीय समितियों के अध्यक्ष को नियुक्त करता है और उनके कार्यों का पर्यवेक्षण करता है। वह स्वयं भी कार्य मंत्रणा समिति (Business Advisory Committee), नियम समिति व सामान्य प्रयोजन समिति का अध्यक्ष होता है।

अध्यक्ष पद की स्वतंत्रता व निष्पक्षता

निम्नलिखित उपबंध अध्यक्ष की स्वतंत्रता व निष्पक्षता सुनिश्चित करते हैं:-

1. अध्यक्ष को उसके पद से, लोकसभा के तत्कालीन सदस्यों के विशेष बहुमत द्वारा संकल्प पारित करने पर ही हटाया जा सकता है (साधारण बहुमत द्वारा नहीं)। इस प्रक्रिया पर विचार करने या चर्चा के लिए भी कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन जरूरी होता है।

2. उसका वेतन व भत्ता संसद द्वारा निर्धारित होता है 3. स्वतंत्र व मौलिक प्रस्ताव को छोड़कर उसके कार्यों व आचरण की लोकसभा में न तो चर्चा की जा सकती और न ही आलोचना

4. वरीयता सूची में अध्यक्ष का स्थान काफी ऊपर है। उसे भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ सातवें स्थान पर रखा गया है। यानी कि वह प्रधानमंत्री या उप-प्रधानमंत्री को छोड़कर सभी कैबिनेट मंत्रियों से ऊपर है।

लोकसभा उपाध्यक्ष (Deputy Speaker of the Lok Sabha):

अनुच्छेद 93 के तहत, अध्यक्ष के चुने जाने के बाद, उपाध्यक्ष भी लोकसभा के सदस्यों के बीच से ही चुना जाता है। उपाध्यक्ष का स्थान अगर रिक्त हो जाता है तो लोकसभा दूसरे सदस्य को इस स्थान के लिए चुनती है।

अध्यक्ष की ही तरह, उपाध्यक्ष भी जब तक लोकसभा भंग न हो जाये तब तक अपना पद धारण करता है परंतु वह निम्नलिखित तीन स्थितियों में उससे पहले भी अपना पद छोड़ सकता है:-

1. उसकी सदन की सदस्यता चले जाने पर
2. अध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित त्यागपत्र द्वारा, और;
3. लोकसभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा उसे अपने पद से हटाये जाने पर। ऐसा संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा, जब तक की कम से कम 14 दिन पूर्व इसकी सूचना न दी गई हो।

◼ अध्यक्ष का पद रिक्त होने पर या सदन की बैठक में अध्यक्ष की अनुपस्थिति पर, उपाध्यक्ष उनके कार्यों को करता है। जब ऐसा होता है तब उपाध्यक्ष को अध्यक्ष की सारी शक्तियाँ मिल जाती है। इसी तरह से संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष पीठासीन अधिकारी होता है।

◾ यहाँ पर एक बात याद रखिए कि उपाध्यक्ष, अध्यक्ष के अधीनस्थ नहीं होता है बल्कि वह प्रत्यक्ष रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी होता है।

◼ उपाध्यक्ष के पास एक विशेषाधिकार होता है कि उसे जब कभी भी किसी संसदीय समिति का सदस्य बनाया जाता है तो वह स्वाभाविक रूप से उसका सभापति बन जाता है।

◼ अध्यक्ष की तरह, उपाध्यक्ष भी जब पीठासीन होता है तो वह पहली बार मत नहीं दे सकता, लेकिन मत बराबर होने की दशा में मत करता है।

◾ जब उपाध्यक्ष को हटाने का संकल्प विचाराधीन होता है तो वह पीठासीन नहीं रह सकता, हालांकि उसे सदन में उपस्थित रहने का अधिकार है।

◼ जब अध्यक्ष सदन में पीठासीन होता है तो उपाध्यक्ष सदन के अन्य दूसरे सदस्यों की तरह होता है। उस दौरान वो सदन में बोल सकता है, कार्यवाही में भाग ले सकता है और किसी प्रश्न पर मत भी दे सकता है।

अनुच्छेद 97 के अनुसार, अध्यक्ष की तरह उपाध्यक्ष का भी वेतन और भत्ता संसद द्वारा निर्धारित होता है जो भारत की संचित निधि पर भारित होता है।

◾ 10वीं लोकसभा तक, अध्यक्ष व उपाध्यक्ष आमतौर सत्ताधारी दल के ही होते थे। 11वीं लोकसभा से इस पर सहमति हुई कि अध्यक्ष सत्ताधारी दल का हो व उपाध्यक्ष मुख्य विपक्षी दल से हो।

◼ लोकसभा के नियमों के अंतर्गत, अध्यक्ष सदस्यों में से 10 सदस्य को सभापति तालिका के लिए नामांकित करता है। इसका फायदा ये होता है कि अगर अध्यक्ष या उपाध्यक्ष दोनों सदन में अनुपस्थित होता है तो इस तालिका का सदस्य पीठासीन अधिकारी हो सकता है।

पीठासीन होने पर उसकी शक्ति अध्यक्ष के समान ही होती है। वह तब तक पद धारण करता है जब तक नई सभापति तालिका का नामांकन न हो जाये।

लेकिन अगर इस पैनल का सदस्य भी अनुपस्थिति रहता है तो सदन किसी अन्य व्यक्ति को अध्यक्ष निर्धारित कर सकता है। यहाँ पर एक बात ध्यान रखने योग्य है कि जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त हो तो सभापति तालिका का सदस्य सदन का पीठासीन अधिकारी नहीं हो सकता है। (ये केवल अनुपस्थिति के केस में ही मान्य होता है) तब रिक्त पदों के लिए जितना जल्द हो सकें, चुनाव कराया जाता है।

अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का इतिहास

अध्यक्ष व उपाध्यक्ष व्यवस्था की शुरुआत भारत सरकार अधिनियम 1919 के उपबंध के तहत 1921 में हुआ था। उस समय के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को क्रमश: प्रेसिडेंट व डिप्टी प्रेसिडेंट कहा जाता था। 1921 में फ़्रेडरिक व्हाइट व सच्चिदानंद सिन्हा को क्रमशः पहला अध्यक्ष व पहला उपाध्यक्ष नियुक्त किया।

भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत प्रेसिडेंट व डिप्टी प्रेसिंडेंट को क्रमशः अध्यक्ष व उपाध्यक्ष कहा गया, लेकिन ये व्यवहार में लागू 1947 से हुआ, ऐसा इसीलिए क्योंकि 1935 के अधिनियम के अंतर्गत, संघीय भाग को कार्यान्वित नहीं किया गया था। जी. वी. मावलंकर व अनंत सायनाम आयंगर को क्रमशः लोकसभा का पहला अध्यक्ष व पहला उपाध्यक्ष बनाया गया।

लोकसभा अध्यक्षों की सूची

क्र.नामपदग्रहणपदत्याग
1गणेश वासुदेव मावलंकर15 मई 195227 फरवरी 1956
2अनन्त सायनाम आयंगर8 मार्च 195616 अप्रैल 1962
3सरदार हुकम सिंह17 अप्रैल 196216 मार्च 1967
4नीलम संजीव रेड्डी17 मार्च 196719 जुलाई 1969
5जी. एस. ढिल्‍लों8 अगस्त 19691 दिसंबर 1975
6बलि राम भगत15 जनवरी 197625 मार्च 1977
7नीलम संजीव रेड्डी26 मार्च 197713 जुलाई 1977
8के एस हेगड़े21 जुलाई 197721 जनवरी 1980
9बलराम जाखड़22 जनवरी 198018 दिसंबर 1989
10रवि राय19 दिसंबर 19899 जुलाई 1991
11शिवराज पाटिल10 जुलाई 199122 मई 1996
12पी. ए. संगमा25 मई 199623 मार्च 1998
13जी एम सी बालयोगी24 मार्च 19983 मार्च 2002
14मनोहर जोशी10 मई 20022 जून 2004
15सोमनाथ चटर्जी4 जून 200430 मई 2009
16मीरा कुमार4 जून 20094 जून 2014
17सुमित्रा महाजन6 जून 201417 जून 2019
18ओम बिरला19 जून 2019………..
Lok Sabha Speaker

कुल मिलाकर, लोकसभा अध्यक्ष (Lok Sabha Speaker) भारतीय संसदीय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण स्थिति है। अध्यक्ष की भूमिका केवल बहस की अध्यक्षता करने और सदस्यों के बीच अनुशासन बनाए रखने से परे है। अध्यक्ष संसदीय समितियों के कामकाज में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि विधायी कार्य सुचारू रूप से चले।

सदन के अधिकारों और विशेषाधिकारों को बनाए रखना और यह सुनिश्चित करना अध्यक्ष की जिम्मेदारी है कि सदस्य स्वतंत्र रूप से अपने विचार और राय व्यक्त कर सकें।

कहने का अर्थ है कि लोकसभा अध्यक्ष एक महान जिम्मेदारी का पद है, और अध्यक्ष को अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ करना चाहिए।

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लोकसभा अध्यक्ष: शक्ति व कार्य अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions - 8
  2. Passing Marks - 75 %
  3. Time - 6 Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

1 / 8

दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. लोकसभा अध्यक्ष की अध्यक्षता भी चली जाएगी अगर वो लोकसभा का सदस्य नहीं रहता है।
  2. लोकसभा अध्यक्ष को टर्म पूरा होने से पहले पद से हटाया नहीं जा सकता है।
  3. लोकसभा अध्यक्ष अपना इस्तीफ़ा राष्ट्रपति को सौंपते हैं।
  4. पहला लोकसभा अध्यक्ष नीलम संजीव रेड्डी थे।

Which of the following statements is correct regarding the Speaker of the Lok Sabha?

  1. The Speaker can be removed from his office only by passing a resolution by a special majority of the then members of the Lok Sabha.
  2. His salary and allowances are determined by the Parliament.
  3. The Speaker is above all cabinet ministers except the Prime Minister.
  4. The Speaker acts as the ex-officio Chairman of the Indian Parliamentary Group.

2 / 8

लोकसभा अध्यक्ष के संबंध में इनमें से कौन सा कथन सही है?

  1. अध्यक्ष को उसके पद से, लोकसभा के तत्कालीन सदस्यों के विशेष बहुमत द्वारा संकल्प पारित करने पर ही हटाया जा सकता है।
  2. उसका वेतन व भत्ता संसद द्वारा निर्धारित होता है।
  3. अध्यक्ष, प्रधानमंत्री को छोड़कर सभी कैबिनेट मंत्रियों से ऊपर होता है।
  4. अध्यक्ष भारतीय संसदीय समूह के पदेन सभापति के रूप में कार्य करते है।

Choose the correct statement from the given statements with reference to the Speaker of the Lok Sabha;

  1. The Speaker of the Lok Sabha is usually made from the opposition party.
  2. The Speaker of the Lok Sabha is responsible for the conduct of the Lok Sabha.
  3. The date of election of the Speaker of the Lok Sabha is fixed by the President.
  4. The Speaker of the Lok Sabha is elected by the President.

3 / 8

लोकसभा अध्यक्ष के संदर्भ में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. लोकसभा अध्यक्ष आमतौर पर विपक्षी दल से बनाया जाता है।
  2. लोकसभा के संचालन का जिम्मा लोकसभा अध्यक्ष पर होता है।
  3. लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव की तारीख का निर्धारण राष्ट्रपति करता है।
  4. लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव राष्ट्रपति करता है।

Which of the following statements is correct with respect to Articles 95 and 96?

  1. When the office of the President is vacant, the Vice President performs his duties.
  2. In the absence of the Speaker from any sitting of the Lok Sabha, the Deputy Speaker shall act as Speaker.
  3. The Speaker cannot continue to preside while the resolution for the removal of the Speaker is under consideration.
  4. It is the duty of the Speaker to adjourn the house in the absence of quorum.

4 / 8

अनुच्छेद 95 और 96 के संबंध में इनमें से कौन सा कथन सही है?

  1. जब अध्यक्ष का पद रिक्त हो तब उपाध्यक्ष उसके कर्तव्यों का निर्वहन करता है।
  2. लोकसभा की किसी बैठक से अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष, अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा।
  3. जब अध्यक्ष को हटाने के लिए संकल्प विचारधीन है तो अध्यक्ष पीठासीन नहीं रह सकता।
  4. अध्यक्ष का यह कर्तव्य है कि गणपूर्ति के अभाव में सदन को स्थगित कर दे।

5 / 8

इनमें से कौन सा अनुच्छेद लोकसभा अध्यक्ष से संबंधित नहीं है?

Choose the correct statement from the given statements;

  1. The Speaker of the Lok Sabha presides over the joint sitting of both the Houses.
  2. He can call a secret meeting on the request of the Leader of the House.
  3. It is the Speaker who decides which Bill is a Money Bill.
  4. It is the Speaker who decides whether a person will continue to be a member of the House on the basis of the defection clause.

6 / 8

दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. दोनों सदनों के संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष ही करता है।
  2. सदन के नेता के आग्रह पर वह गुप्त बैठक बुला सकता है।
  3. अध्यक्ष ही तय करता है कौन सा विधेयक धन विधेयक है।
  4. दल-बदल उपबंध के आधार पर कोई व्यक्ति सदन का सदस्य बना रहेगा या नहीं, इसका निपटारा अध्यक्ष ही करता है।

7 / 8

पहला लोकसभा अध्यक्ष इनमें से कौन था?

Choose the correct statement from the given statements regarding the Deputy Speaker of the Lok Sabha;

  1. The Deputy Speaker is also elected from among the members of the Lok Sabha.
  2. The Vice President works under the President.
  3. According to the rules of the constitution, the deputy speaker should be from the opposition party.
  4. On being made a member of a parliamentary committee, the deputy speaker becomes its chairman.

8 / 8

लोकसभा उपाध्यक्ष के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. उपाध्यक्ष भी लोकसभा के सदस्यों के बीच से ही चुना जाता है।
  2. उपाध्यक्ष, अध्यक्ष के अधीन काम करता है।
  3. संविधान के नियमों के अनुसार उपाध्यक्ष विपक्षी दल से होना चाहिए।
  4. संसदीय समिति का सदस्य बनाए जाने पर उपाध्यक्ष उसका सभापति बन जाता है।

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