इस लेख में संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया (Law making process in parliament) पर स्टेप बाइ स्टेप सरल एवं सहज चर्चा की गई है,

तो कानून के शासन वाले देश में, कोई कानून कैसे बनता है; उसे अच्छी तरह से समझने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें, साथ ही संबंधित अन्य लेख भी पढ़ें।

सबसे पहले आपको संसद की मूल बातें जानने की जरूरत है, इसलिए इस लेख को पढ़ने और समझने से पहले संसद के बारे में कुछ बुनियादी बातों को अवश्य पढ़ें और समझें;

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संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया
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संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया

संसद में कानून बनने की प्रक्रिया में लोकसभा और राज्यसभा की भूमिका

भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था संसदीय प्रकार की व्यवस्था है। इसीलिए यहाँ नीति निर्माण करने वाली सबसे बड़ी संस्था संसद है। लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति संसद का आधार स्तम्भ है।

अगर राष्ट्रपति की बात करें तो ये किसी भी विधेयक (bill) को अंतिम रूप से स्वीकृति प्रदान करते हैं, जिससे कि वो विधेयक, अधिनियम (Act) बन जाता है। राष्ट्रपति के पास विधेयक पहुँचने से पहले उस विधेयक के साथ जो कुछ भी होता है वो संसद के दोनों सदनों यानी कि लोकसभा और राज्यसभा में होता है। यहीं कानून अपना रूप ग्रहण करता है-

लोकसभा (Lok Sabha) –

लोकसभा (LokSabha) आम जनों की एक सभा है जहां आम लोग प्रत्यक्ष मतदान के माध्यम से अपने प्रतिनिधि चुनकर यहाँ भेजते है। गौरतलब है कि प्रत्येक राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को वहाँ के जनसंख्या के आधार पर एक खास भौगोलिक क्षेत्र को निर्वाचन क्षेत्र का दर्जा दिया गया है।

जीते हुए उम्मीदवार उस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और संसद में बैठकर विधायी प्रक्रिया (Legislative Process) में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

आम चुनाव होने के बाद बहुमत प्राप्त दल वाले राजनैतिक पार्टी के नेता को राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है। प्रधानमंत्री अपनी पार्टी से कुछ सांसदों का चुनाव करके उसे विभिन्न मंत्रालयों के कार्य-भार सौंप देते है।

इन्ही सारे मंत्रियों के समूह को मंत्रिपरिषद (council of ministers) कहा जाता है और यही होते है वास्तविक कार्यपालिका (Real executive) या सरकार।

ये सारे मंत्री एक सांसद भी होते है, इसीलिए सारे सांसदों के समूह को विधायिका (legislature) कहा जाता है, जिसकी संख्या वर्तमान में 543 है।

इन्ही सांसदों में से किसी एक व्यक्ति का चुनाव करके लोकसभा अध्यक्ष (speaker) बना दिया जाता है, जो कि लोकसभा व उसके प्रतिनिधियों का मुखिया होता है और लोकसभा के कार्य संचालन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

लोकसभा में विधेयक पेश करने का काम मुख्य रूप से कार्यपालिका करता है, (इसीलिए उस विधेयक को सरकारी विधेयक भी कहते हैं) लेकिन उस विधेयक को पारित (Pass) विधायिका (legislature) करता है।

हालांकि गैर-सरकारी सदस्य भी विधेयक पेश कर सकता है जिसे कि गैर-सरकारी विधेयक कहा जाता है।

राज्यसभा (Rajya Sabha) –

राज्यसभा गुणी जनों की एक सभा है जो राज्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता है। राज्यसभा के सांसदों का चुनाव अप्रत्यक्ष विधि – एकल हस्तांतरणीय मत पद्धति द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व के माध्यम से होता है।

वर्तमान में राज्यसभा में 245 सदस्य है। जिसमें से 225 सदस्य राज्यों का और 8 सदस्य केंद्रशासित प्रदेशों का (दिल्ली, जम्मू-कश्मीर और पुडुचेरी) का प्रतिनिधित्व करते है और बाकी के 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत है।

भारत के उप-राष्ट्रपति (Vice President), राज्यसभा के सभापति होते है और ये भी लोकसभा अध्यक्ष की तरह संवैधानिक दायरों में रहकर राज्यसभा के कार्य संचालन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

कार्यपालिका के सदस्य यहाँ भी विधेयक को प्रस्तुत करते हैं और लोकसभा की तरह यहाँ से भी विधेयक को पारित करवाना जरूरी होता है।

कुछ जरूरी तथ्य

यहाँ पर एक सवाल आपके दिमाग में आ सकता है कि माना कि राज्यसभा गुणी जनों की सभा है, बुद्धिजीवियों की सभा है पर लोकसभा में तो ज़्यादातर कम पढ़े-लिखे लोग ही आते है, कई लोग तो पहली बार ही चुनकर आते है जिन्हे न तो ज्यादा संविधान की बारीकियों का ज्ञान होता है और न ही किसी संस्थान को चलाने का तजुर्बा होता है फिर भी कितने पेशेवर तरीके से संसद चलता है। ऐसा कैसे होता है ?

ऐसा होता है सचिवालय की मदद से, संसद के दोनों सदनों का अपना पृथक सचिवालय स्टाफ होता है जो बहुत ही ज्यादा पढ़े-लिखे और अपने काम में निपुण होता है।

इन दोनों सदनों के सचिवालय का मुखिया महासचिव (सेक्रेटरी जनरल) होता है। जो पर्दे के पीछे से संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया में अपना योगदान देते हैं।

▪️ सरकार चाहे तो किसी विधेयक को पहले राज्य सभा या लोक सभा में से किसी में भी पेश कर सकता है। लेकिन किसी भी एक सदन में पारित होने के बाद उसे दूसरे सदन में भी पेश करना होगा।

▪️ समान्यतः संसद 3 सत्रों में काम करता है 1. बजट सत्र (फरवरी से मई) 2. मानसून सत्र (जुलाई से सितंबर) 3. शीतकालीन सत्र (नवम्बर से दिसम्बर)।

इन्ही सत्रों के दौरान कानून बनाए जाते हैं। अगर सत्र न चल रहा हो और तब कानून की जरूरत पड़े तो फिर अध्यादेश (Ordinance) का सहारा लेना पड़ता है।

▪️ सदन तभी चलता है, जब लोकसभा में कम से कम 55 सदस्य उपस्थित हो और राज्यसभा में कम से कम 25 सदस्य उपस्थित हो, इसे कोरम कहा जाता है अगर कोरम पूरा नहीं है तो सदन को स्थगित कर दिया जाता है। 

▪️ सदन की कार्यवाही की भाषा हिन्दी और अंग्रेजी है हालाँकि पीठासीन अधिकारी अगर आज्ञा दे तो कोई सदस्य अपनी मातृभाषा में भी बोल सकता है। 

◼️ संसद में एक दिन में दो पालियों में काम होता है। सुबह की पहली बैठक 11 बजे से 1 बजे तक और दूसरी बैठक 2 बजे से 6 बजे तक चलता है। हालाँकि अगर पीठासीन अधिकारी अगर चाहे तो वे इस समय को कम या ज्यादा कर सकते है। 

संसद में कितने प्रकार के विधेयक पेश किए जाते हैं?

संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया विधेयक (Bill) से शुरू होती है। विधेयक दरअसल कानून का एक ड्राफ्ट होता है जो बताता है कि कानून किस बारे में है और ये क्यों लाया जा रहा है। विधायिका द्वारा इस ड्राफ्ट में आवश्यकतानुसार कुछ जोड़ा और घटाया जा सकता है।

विधेयक का किसी सदन से पास होने का मतलब होता है कि वो सदन उस विधेयक से पूरी तरह से संतुष्ट है। लेकिन यहाँ जो जानने की जरूरत है वो ये है कि विधेयक समान्यतः चार श्रेणियों में पेश किए जाते हैं। जिसमें सभी की अपनी कुछ-कुछ ख़ासियतें हैं-

1. संविधान संशोधन विधेयक (Constitution Amendment Bill) :- यानी कि ऐसा विधेयक जिसके माध्यम से संविधान में संशोधन किया जाता है।

भारतीय संसद में, एक संवैधानिक संशोधन विधेयक एक प्रस्तावित कानून है जो भारत के संविधान में संशोधन करने के उद्देश्य से लाया जाता है।

भारतीय संविधान भूमि का सर्वोच्च कानून है और इसे केवल एक निर्धारित प्रक्रिया के माध्यम से संशोधित किया जा सकता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के साथ-साथ राज्य विधानसभाएं भी शामिल हैं।

अतीत में पारित संवैधानिक संशोधनों के कुछ उदाहरणों में शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में सम्मिलित करना, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण की शुरुआत, और नए राज्यों का निर्माण या उनकी सीमाओं में परिवर्तन शामिल हैं।

ये कैसे होता है इसपर अलग से एक लेख है संविधान संशोधन प्रक्रिया↗️ , इसे जरूर पढ़ें।

2. धन विधेयक (Money Bill) :-  भारतीय संसद में, एक धन विधेयक एक प्रस्तावित कानून है जो कराधान, सरकार द्वारा धन उधार लेने, या भारत के समेकित कोष से व्यय से संबंधित है। धन विधेयक पारित करने की प्रक्रिया सामान्य विधेयक से भिन्न होती है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत, एक विधेयक को धन विधेयक माना जाता है यदि इसमें निम्नलिखित सभी या किसी भी मामले से संबंधित प्रावधान शामिल हैं:

  1. किसी भी कर का अधिरोपण, उन्मूलन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन (Imposition, abolition, remission, alteration, or regulation of any tax),
  2. सरकार द्वारा धन उधार लेना (Borrowing of money by the government),
  3. भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा (Custody of the Consolidated Fund or the Contingency Fund of India),
  4. भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग (Appropriation of moneys out of the Consolidated Fund of India),
  5. भारत की संचित निधि से व्यय (Expenditure from the Consolidated Fund of India)।

एक धन विधेयक केवल एक मंत्री द्वारा लोकसभा (निचले सदन) में पेश किया जा सकता है, किसी अन्य सदस्य द्वारा नहीं। राज्यसभा (उच्च सदन) केवल धन विधेयक पर सिफारिशें कर सकती है, जिसे लोकसभा स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।

यदि लोकसभा धन विधेयक पारित कर देती है, तो इसे राज्यसभा की सिफारिशों के लिए भेजा जाता है। राज्यसभा को 14 दिनों के भीतर अपनी सिफारिशों के साथ या बिना किसी विधेयक को लोकसभा में वापस करना होगा।

यदि लोकसभा राज्य सभा द्वारा की गई किसी भी सिफारिश को स्वीकार कर लेती है, तो विधेयक को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाता है। यदि लोकसभा किसी भी सिफारिश को स्वीकार नहीं करती है, तो विधेयक को दोनों सदनों द्वारा उस रूप में पारित माना जाता है जिस रूप में लोकसभा द्वारा पारित किया गया था।

एक बार विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित हो जाने के बाद, इसे भारत के राष्ट्रपति के पास सहमति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति द्वारा सहमति दिए जाने के बाद, बिल संसद का एक अधिनियम बन जाता है और पूरे देश में कानून के रूप में लागू किया जाता है।

धन विधेयक को विस्तार से समझेंArticle 110 Explained in Hindi [अनुच्छेद 110]

3. वित्त विधेयक (Finance bill) :-  भारतीय संविधान में धन विधेयक और वित्त विधेयक में भेद किया गया है। धन विधेयक को अनुच्छेद 110 के तहत परिभाषित किया गया है, वही वित्त विधेयक को अनुच्छेद 117 के तहत।

मोटे तौर पर बात करें तो उन सभी विधेयकों को वित्त विधेयक कहा जाता है जो कि सामान्यतः राजस्व या व्यय से संबंधित वित्तीय मामलों होते हैं।

इस तरह से देखें तो सभी धन विधेयक, वित्त विधेयक होना चाहिए और सभी वित्त विधेयक, धन विधेयक होना चाहिए, क्योंकि कमोबेश धन विधेयक में भी राजस्व या व्यय से संबन्धित मामले ही होते हैं। लेकिन ऐसा नहीं होता है।

सभी धन विधेयक तो वित्त विधेयक होता है लेकिन सभी वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं होता है। ऐसा क्यों?

अनुच्छेद 110(1) के अंतर्गत जितने भी विषय दिए गए है वो धन विधेयक कहलाते हैं। वहीं अनुच्छेद 117(1) के अनुसार वित्त विधेयक वो विधेयक होता है जिसमें अनुच्छेद 110 के तहत आने वाले विषय तो हो लेकिन सिर्फ वही नहीं हो।

जैसे कि अगर कोई विधेयक करारोपन (Taxation) के बारे में हो लेकिन सिर्फ करारोपन के बारे में ही न हो। यानि कि उसमें अन्य तरह के मामले भी हो सकते हैं।

वित्त विधेयक को दो भागों में बांटा जा सकता है :- वित्त विधेयक (।) और वित्त विधेयक (॥)

जैसा कि हमने ऊपर समझा कि सभी धन विधेयक, वित्त विधेयक होते हैं लेकिन सभी वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं होते हैं। केवल वही वित्त विधेयक धन विधेयक होते हैं, जिनका उल्लेख अनुच्छेद 110 में किया गया है।

और सबसे बड़ी बात ये कि कौन सा विधेयक धन विधेयक होगा और कौन नहीं ये लोकसभा अध्यक्ष तय करते हैं। कहने का अर्थ है कि इतना सब कुछ लिखा होने के बावजूद भी अगर लोकसभा अध्यक्ष किसी विधेयक को धन विधेयक घोषित करता है तो धन विधेयक होगा।

वित्त विधेयक (।)

वित्त विधेयक(।) की चर्चा अनुच्छेद 117 (1) में की गई है। वित्त विधेयक (।) में अनुच्छेद 110 (यानी कि धन विधेयक) के तहत जो मुख्य 6 प्रावधानों की चर्चा की गई है, वो सब तो आता ही है साथ ही साथ कोई अन्य विषय जो अनुच्छेद 110 में नहीं लिखा हुआ है वो भी आता है, जैसे कि विशिष्ट ऋण से संबन्धित कोई प्रावधान।

इस तरह के विधेयक में दो तत्व ऐसे होते हैं जो किसी धन विधेयक में भी होता हैं; (पहली बात) इसे भी राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सकता है, और (दूसरी बात) इसे भी राष्ट्रपति की सिफ़ारिश पर ही पेश किया जा सकता है।

कहने का अर्थ है कि वित्त विधेयक(।) में अनुच्छेद 110 (धन विधेयक) के सारे प्रावधान आते हैं इसीलिए इसे पहले राष्ट्रपति से स्वीकृति लेने की जरूरत पड़ती है। और उसके बाद इसे लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है।

◾ इस हिसाब से देखें तो इसे भी धन विधेयक होना चाहिए और धन विधेयक की तरह ही इसको भी ट्रीटमेंट मिलना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होने के पीछे का सबसे बड़ा कारण ये है कि लोक सभा अध्यक्ष यह तय करता है कि क्या धन विधेयक होगा और क्या नहीं।

अगर लोक सभा अध्यक्ष इसे एक धन विधेयक के रूप में घोषित करता है तो यह एक धन विधेयक हो जाएगा और उसी अनुसार ट्रीटमेंट पाएगा। वहीं लोक सभा अध्यक्ष ऐसा कुछ नहीं करता है तो फिर यह एक वित्त विधेयक होगा और वही ट्रीटमेंट पाएगा जो कि कोई कोई साधारण विधेयक पाता है।

◾ लेकिन अनुच्छेद 110 में वर्णित 6 मामलों के इत्तर जितने भी मामले होते हैं, उन मामलों में वित्त विधेयक (I) एक साधारण विधेयक की तरह हो जाता है।

यानी कि अब इसे राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति की जरूरत नहीं रहती और अब जब ये राज्यसभा में जाएगा तो राज्यसभा इसे रोक के रख सकती है या फिर चाहे तो पारित कर सकती है।

◾ यदि इस प्रकार के विधेयक में दोनों सदनों के बीच कोई गतिरोध होता है तो राष्ट्रपति दोनों सदनों के गतिरोध को समाप्त करने के लिए संयुक्त बैठक बुला सकता है। जबकि धन विधेयक में संयुक्त बैठक बुलाने का कोई प्रावधान नहीं है।

दोनों सदनों से पास होने के बाद जब विधेयक राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया जाता है, तो वह या तो विधेयक को अपनी स्वीकृति दे सकता है या उसे रोक सकता है या फिर पुनर्विचार के लिए सदन को वापस कर सकता है। जबकि धन विधेयक में राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता है।

वित्त विधेयक (॥)

वित्त विधेयक(॥) की चर्चा अनुच्छेद 117 (3) में की गई है। यह इस मायने में खास है कि इसमें अनुच्छेद 110 का कोई भी प्रावधान सम्मिलित नहीं होता है। तो फिर इसमें क्या सम्मिलित होता है?

◾ अनुच्छेद 117(3) के अनुसार, जिस विधेयक को अधिनियमित और प्रवर्तित किए जाने पर भारत के संचित निधि से धन व्यय करना पड़े। लेकिन फिर से याद रखिए कि ऐसा कोई मामला नहीं होता, जिसका उल्लेख अनुच्छेद 110 में होता है।

◾ इसे साधारण विधेयक की तरह प्रयोग किया जाता है तथा इसके लिए भी वही प्रक्रिया अपनायी जाती है, जो साधारण विधेयक के लिए अपनायी जाती है।

यानी कि इस विधेयक को पहले लोकसभा में पारित करने की भी बाध्यता नहीं होती है इसे जिस सदन में चाहे पेश किया जा सकता है। और राज्यसभा इसे संशोधित भी कर सकती है, रोककर भी रख सकती है या फिर पारित कर सकती है।

◾ इसकी दूसरी ख़ासियत ये है कि वित्त विधेयक(॥) को सदन में प्रस्तुत करने के लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति की जरूरत नहीं पड़ती है लेकिन संसद के किसी भी सदन द्वारा इसे तब तक पारित नहीं किया जा सकता, जब तक कि राष्ट्रपति सदन को ऐसा करने की अनुशंसा (Recommendation) न दे दे।

◾ यदि इस प्रकार के विधेयक में दोनों सदनों के बीच कोई गतिरोध होता है तो राष्ट्रपति दोनों सदनों के गतिरोध को समाप्त करने के लिए संयुक्त बैठक बुला सकता है।

◾ जब दोनों सदनों से पास होकर जब विधेयक राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया जाता है, तो वह या तो विधेयक को अपनी स्वीकृति दे सकता है या उसे रोक सकता है या फिर पुनर्विचार के लिए सदन को वापस कर सकता है।

धन विधेयक और वित्त विधेयक दोनों एक दूसरे से जुड़ा हुआ है और दोनों को एक साथ समझना जरूरी है। इसीलिए इसके कॉन्सेप्ट को समझने के लिए नीचे दिए गए लेख को अवश्य पढ़ें;

◾ धन विधेयक और वित्त विधेयक
◾ Article 110 Explanation
◾ Article 117 Explanation
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4. साधारण विधेयक (Ordinary bill) :- सामान्य कानून बनाने के लिए जो विधेयक पेश किया जाता है उसे साधारण विधेयक कहा जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो, वित्तीय विषयों के अलावे जितने भी विधेयक पेश किए जाते है, साधारण विधेयक होते है। यहाँ तक कि संविधान संशोधन विधेयक के प्रावधान भी कुछ इसी तरह है।

इस लेख में हम यहीं जानने कि कोशिश करेंगे कि एक साधारण विधेयक किस तरह एक अधिनियम या कानून का रूप लेता है।

संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया का विवरण

किसी भी विधेयक को अधिनियम या कानून बनने से पहले उसे निम्नलिखित चरणों से होकर गुजरना पड़ता है।

1. प्रथम पाठन (First reading) :-

किसी भी विधेयक को सदन में पेश करने से पहले सदन की अनुमति लेना आवश्यक होता है। प्रश्नकाल (Question Hour) के पश्चात पीठासीन अधिकार उस व्यक्ति का नाम पुकारता है जिसे विधेयक पेश करता है। और वह सदस्य सदन से विधेयक पेश करने की अनुमति मांगता है।

अनुमति मिली या नहीं इसका फैसला आमतौर पर मौखिक मतदान से ही हो जाता है। आमतौर पर अनुमति मिल ही जाती है। सदन से अनुमति मिल जाने के बाद वह सदस्य विधेयक को संसद पटल पर रखता है और इस विधेयक के शीर्षक एवं इसका उद्देश्य स्पष्ट करता है।

इस चरण में इस विधेयक पर कोई चर्चा नहीं होती बस इस विधेयक को भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है। विधेयक के इसी प्रस्तुतीकरण को प्रथम पाठन कहा जाता है। 

यदि विधेयक प्रस्तुत करने से पहले ही अध्यक्ष या सभापति की अनुमति से उस विधेयक को राजपत्र में प्रकाशित करवा दिया जाये तो विधेयक के संबंध में सदन की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।

यहाँ यह याद रखिए कि इस चरण के दौरान विधेयक पर किसी प्रकार की चर्चा नहीं होती है। लेकिन यदि सदन के सदस्यों द्वारा इसका इस आधार पर विरोध किया जाए कि प्रस्तावित विधेयक सदन की विधायी क्षमता से बाहर है तो फिर पीठासीन अधिकारी से अनुमति मिलने के पश्चात इस पर चर्चा की जा सकती है। और इस चर्चा में महान्यायवादी (Attorney General of India) भी भाग ले सकता है।

2. द्वितीय पाठन (Second reading) :-

इस चरण में विधेयक पर विस्तृत समीक्षा की जाती है तथा इसे अंतिम रूप प्रदान किया जाता है। इस चरण में साधारण बहस होती है, विशेषज्ञ समिति द्वारा जांच कराई जाती है। फिर इस पर विचार करने के लिए लाया जाता है। 

वास्तव में इस चरण के तीन उप-चरण होते हैं, जिनके नाम हैं 1. साधारण बहस की अवस्था, 2. समिति द्वारा जांच एवं 3. विचारणीय अवस्था।

1. साधारण बहस की अवस्था :- विधेयक की छपी हुई प्रतियाँ सभी सदस्यों के बीच वितरित कर दी जाती है। सामान्यतः इस चरण में विधेयक के सिद्धान्त एवं उपबंधों पर चर्चा होती है, लेकिन विस्तार से विचार-विमर्श नहीं किया जाता।

इस चरण में, आमतौर पर संसद चार में से कोई कदम उठा सकता है :-

(1) इस पर तुरंत चर्चा कर सकता है या इसके लिए कोई अन्य तिथि निर्धारित कर सकता है,

(2) इसे सदन की प्रवर समिति को सौंपा जा सकता है,

(3) इसे दोनों सदनों की संयुक्त समिति को सौंपा जा सकता है, या

(4) इसे जनता के विचार जानने के लिय सार्वजनिक किया जा सकता है।

Q. प्रवर समिति (Select Committee) और संयुक्त समिति (Joint Committee) क्या होता है?

प्रवर समिति में उस सिर्फ सदन के सदस्य होते हैं जहां विधेयक लाया गया था और संयुक्त समिति में दोनों सदनों के सदस्य होते हैं। लेकिन याद रखिए कि संयुक्त समिति में राज्यसभा के जितने सदस्य होते हैं उससे दोगुने सदस्य लोक सभा के होते हैं। दूसरी बात ये कि संयुक्त समिति का अध्यक्षता उस सदन के पीठासीन अधिकारी द्वारा चुने जाते हैं जिस सदन में वह विधेयक पेश किया गया हो। इसे तदर्थ समितियां (Ad-hoc committee) भी कहा जाता है ऐसा इसीलिए क्योंकि ये स्थायी नहीं होते हैं।
विभिन्न प्रकार के समितियों को समझें – संसदीय समितियां (अर्थ, प्रकार, समझ)

2. समिति द्वारा जांच की अवस्था :- आमतौर पर विधेयक को सदन की एक प्रवर समिति या संयुक्त समिति को सौंप दिया जाता है। यह समिति मूल विषय में परिवर्तन लाये बिना विधेयक पर वैसे ही खंडवार विचार करती है जैसे कि सदन करता है।

समीक्षा एवं परिचर्चा के उपरांत समिति विधेयक को वापस सदन को सौंप देती है। समिति अगर चाहें तो वे संशोधन की सिफ़ारिश भी कर सकता है।

याद रखें,
कई बार ऐसी स्थिति आ सकती है जब विभिन्न हितधारकों की राय लेना जरूरी हो जाए। अगर ऐसी स्थिति आती है तो उस सदन का सचिवालय सभी राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को पत्र भेजकर उनसे कहता है कि वे विधेयक से संबन्धित स्थानीय निकायों, संघों, व्यक्तियों या संस्थाओं की राय आमंत्रित करने के लिए अपने-अपने राजपत्रों में उसे प्रकाशित करें।

राय प्राप्त हो जाने पर उसे सदन के सभा पटल पर रख दिया जाता है। वहीं सामान्य प्रक्रिया चलती है। विधेयक प्रवर या संयुक्त समिति के पास जाता है और उसकी रिपोर्ट के साथ सदन में पेश किया जाता है।
———————

जब प्रवर या संयुक्त समिति की सिफ़ारिश सहित रिपोर्ट सदन में पेश किया जाता है तो मंत्री तीन निर्णय ले सकता है;

(1) या तो सिफ़ारिश सहित रिपोर्ट पर विचार करने पर सहमत हो जाए;

(2) या तो उस रिपोर्ट को फिर से उसी समिति के पास या किसी अन्य समिति के पास विचार के लिए भेज दिया जाए;

(3) या फिर उस पर हितधारकों की राय जानने के लिए फिर से परिचालित किया जाए।

आमतौर पर मंत्री पहला निर्णय ही लेता है। और इसके बाद आगे की प्रक्रिया शुरू होती है।

3. विचार-विमर्श की अवस्था :- प्रवर समिति से विधेयक प्राप्त होने के उपरांत सदन भी उसकी समीक्षा करता है। विधेयक के प्रत्येक उपबंध पर खंडवार चर्चा एवं मतदान होता है।

इस अवस्था में कोई सदस्य अगर उसमें कुछ संशोधन करवाना चाहे तो उसके लिए संशोधन भी प्रस्तुत कर सकते है, और यदि संशोधन स्वीकार हो जाते है तो वे विधेयक का हिस्सा बन जाते है।

3. तृतीय पाठन (Third reading) :-

इस चरण में विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार करने के संबंध में चर्चा होती है यानी कि विधेयक पर मतदान होता है। (इस चरण में विधेयक में कोई संशोधन का काम नहीं होता है।)

यदि सदन बहुमत से इसे पारित कर देता है तो विधेयक पारित हो जाता है। इसके बाद पीठासीन अधिकारी द्वारा विधेयक पर विचार एवं स्वीकृति के लिए उसे दूसरे सदन में भेज दिया जाता है।

दूसरे सदन में विधेयक :- दूसरे सदन में भी कोई विधेयक प्रथम पाठन, द्वितीय पाठन एवं तृतीय पाठन से होकर गुजरता है। लेकिन इस संबंध में दूसरे सदन के समक्ष चार विकल्प होते हैं :

(1) यह विधेयक को उसी रूप में पारित कर प्रथम सदन को भेज सकता है जैसा कि वो पहले था,
(2) यह विधेयक को संशोधन के साथ पारित करके प्रथन सदन को पुनः विचारार्थ भेज सकता है
(3) यह विधेयक को अस्वीकार कर सकता है, और
(4) यह विधेयक पर किसी भी प्रकार की कार्यवाही न करके उसे लंबित कर सकता है।

⬛ यदि दूसरा सदन किसी प्रकार के संशोधन के साथ विधेयक को पारित कर देता है और प्रथम सदन उन संशोधनों को स्वीकार कर लेता है तो विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता है तथा इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है।

⬛ दूसरी ओर यदि दूसरे सदन द्वारा किए गए संशोधनों को प्रथम सदन अस्वीकार कर देता है या दूसरा सदन उस विधेयक को अस्वीकार कर देता है या फिर दूसरा सदन छह माह तक उस पर कोई कार्यवाही नहीं करता तो ऐसी स्थिति में गतिरोध को समाप्त करने हेतु राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक (Joint sitting of both houses) बुला सकता है।

यदि उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों का बहुमत इस संयुक्त बैठक में विधेयक को पारित कर देता है तो उसे दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता है।

इसके बाद आती है राष्ट्रपति की बारी – संसद द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है।

राष्ट्रपति की स्वीकृति

इस संबंध में राष्ट्रपति के पास 3 विकल्प होते है –

1. या तो वह विधेयक को अपनी स्वीकृति दे दें
2. या तो वह विधेयक को अपनी स्वीकृति देने से रोक दें
3. या वह उस विधेयक को पुनर्विचार हेतु पुनः संसद को भेज दें  । 

⬛ अगर राष्ट्रपति विधेयक को स्वीकृति दे देता है तो यह अधिनियम (Act) या कानून बन जाता है। इस प्रकार देश को एक नया कानून मिलता है। 

⬛ यदि राष्ट्रपति (President) अपनी स्वीकृति नहीं देता है तो वह विधेयक वही निरस्त हो जाता है।

⬛ और यदि पुनर्विचार के लिए भेजता है और जरूरी संसोधन के बाद वह विधेयक फिर से राष्ट्रपति के पास आता है तो राष्ट्रपति इस पर स्वीकृति देने को बाध्य होता है । 

तो कुल मिलाकर यही है संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया। इन्ही प्रक्रियाओं से गुजरकर कोई साधारण विधेयक अधिनियम बन जाता है।

कौन सा विधेयक समाप्त हो जाता है और कौन सा नहीं?

1. विचाराधीन विधेयक, जो लोकसभा में है, लोकसभा के विघटन पर समाप्त हो जाता है,

2. लोकसभा में पारित किन्तु राज्यसभा में विचाराधीन विधेयक समाप्त हो जाता है।

▪️ हालांकि जिन लंबित विधेयकों और लंबित आश्वासनों, जिनकी जांच सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति द्वारा की जानी होती है, लोकसभा के विघटन पर समाप्त नहीं होते है,

▪️ ऐसा विधेयक जो दोनों सदनों में असहमति के कारण पारित न हुआ हो और राष्ट्रपति ने विघटन होने से पूर्व दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई हो, समाप्त नहीं होता

▪️ ऐसा विधेयक जो राज्यसभा में विचाराधीन हो लेकिन लोकसभा द्वारा पारित न हो, समाप्त नहीं होता।

▪️ ऐसा विधेयक जो दोनों सदनों द्वारा पारित हो लेकिन राष्ट्रपति द्वारा पुनर्विचार के लिए लौटा दिया गया हो, समाप्त नहीं होता।

Q. अधीनस्थ विधायन (Sub-Ordinate Legislation) किसे कहते हैं?

संसद के पास इतना वक्त और इतनी विशेषज्ञता नहीं होती है कि वह सभी आवश्यक विधियों पर विचार कर सकें एवं उसकी तकनीकी एवं प्रक्रियागत ब्यौरों में जा सकें। इसीलिए विधान बनाने की कुछ शक्तियाँ अधीनस्थ एजेंसी को दे दिया जाता है।

इसके तहत होता ये है कि सरकार संसद में एक मोटा-मोटी कानून बना देता है यानि कि उसकी सीमाएं तय कर देता है और फिर अधीनस्थ एजेंसियों पर इसे छोड़ दिया जाता है। अधीनस्थ एजेंसियां उसी दायरे में रहकर नियम (Rules), विनियम (Regulations) आदि बनाता है।

चूंकि विधान बनाने की अपनी कुछ शक्तियाँ संसद अधीनस्थ एजेंसी को प्रत्यायोजित करता है इसीलिए इसे प्रत्यायोजित विधान भी कहा जाता है। उदाहरण के लिए आप देख सकते हैं कि CAA कानून साल 2019 में पास हो गया लेकिन वो लागू नहीं हुआ क्योंकि नियम (Rules) ही नहीं बनाए गए हैं।

अगर अधीनस्थ एजेंसी अपने दायरे का उल्लंघन करें तो क्या होगा?
इस पर नजर रखने के लिए प्रत्येक सदन में उसकी एक अधीनस्थ विधायन समिति होती है। जो यह देखती है कि क्या संसद द्वारा दी गई अधीनस्थ शक्तियों का इस्तेमाल उसके दायरे में रहकर किया गया है की नहीं।
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संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया practice quiz UPSC


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Chapter Wise Polity Quiz

संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions - 8
  2. Passing Marks - 75 %
  3. Time - 6 Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

Choose the correct statement from the given statements;

  1. The bill does not become an act until the President gives assent.
  2. Bills can be introduced only by the members of the Council of Ministers.
  3. A bill can be introduced in either house.
  4. A law cannot be made in the Parliament unless the quorum is complete.

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दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. जब तक राष्ट्रपति स्वीकृति न दे दे विधेयक अधिनियम नहीं बनता।
  2. विधेयक सिर्फ मंत्रिपरिषद के सदस्य ही पेश कर सकते हैं।
  3. किसी विधेयक को किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है।
  4. संसद में कानून तब तक नहीं बन सकता है जब तक कि कोरम पूरा न हो।

Which of the given statements regarding the Bill is correct?

  1. The bill related to tax and public expenditure etc. is called money bill.
  2. A bill that is introduced to make an ordinary law is called an ordinary bill.
  3. A bill becomes an act.
  4. The Constitution Amendment Bill has to be introduced first in the Rajya Sabha.

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विधेयक के संबंध में दिए गए कथनों में से कौन सा कथन सत्य है?

  1. टैक्स एवं लोक व्यय आदि से संबन्धित विधेयक को धन विधेयक कहा जाता है।
  2. सामान्य कानून बनाने के लिए जो विधेयक पेश किया जाता है उसे साधारण विधेयक कहा जाता है।
  3. विधेयक ही अधिनियम बनता है।
  4. संविधान संशोधन विधेयक को सबसे पहले राज्यसभा में पेश करना होता है।

Which of the following statements is true regarding a bill passing from one house to the other?

  1. The second house can pass the bill in the same form and send it to the first house as it was before.
  2. The other house can reject the bill.
  3. The second house can suspend the bill by not taking any action on it.
  4. The second house can call a joint sitting of both the houses in case of deadlock.

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एक सदन से पास होकर दूसरे सदन में जाने वाले विधेयक के संबंध में इनमें से कौन सा कथन सत्य है?

  1. दूसरा सदन विधेयक को उसी रूप में पारित कर प्रथम सदन को भेज सकता है जैसा कि वो पहले था।
  2. दूसरा सदन विधेयक को अस्वीकार कर सकता है।
  3. दूसरा सदन विधेयक पर किसी भी प्रकार की कार्यवाही न करके उसे लंबित कर सकता है।
  4. दूसरा सदन गतिरोध की स्थिति में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है।

Which of the following statements is not true regarding the Government Bill?

  1. It is usually introduced by the members of the Council of Ministers.
  2. It is necessary to introduce the government bill first in the Lok Sabha.
  3. It is necessary to present the government bill first in the Rajya Sabha.
  4. Before introducing all government bills, it is necessary to take approval from the President.

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सरकारी विधेयक के संबंध में इनमें से कौन सा कथन सत्य है?

  1. यह आमतौर पर मंत्रिपरिषद के सदस्यों द्वारा पेश किया जाता है।
  2. सरकारी विधेयक को सबसे पहले लोकसभा में पेश करना आवश्यक होता है।
  3. सरकारी विधेयक को सबसे पहले राज्यसभा में पेश करना आवश्यक होता है।
  4. सभी सरकारी विधेयक पेश करने से पहले राष्ट्रपति से स्वीकृति लेना आवश्यक होता है।

Choose the correct statement from the following regarding Quorum;

  1. According to this, it is necessary for at least 20% of the members of the Lok Sabha to be present for the House to function.
  2. According to this, it is necessary for at least 25% of the members to be present in the Rajya Sabha for the House to function.
  3. According to this, it is necessary for at least 10% of the members to be present for the House to run.
  4. The House cannot function if there are less than 75 members in the Lok Sabha.

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कोरम के संबंध में निम्न में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. इसके अनुसार सदन चलने के लिए लोकसभा में कम से कम 20 % सदस्यों का उपस्थित रहना जरूरी होता है।
  2. इसके अनुसार सदन चलने के लिए राज्यसभा में कम से कम 25 % सदस्यों का उपस्थित रहना जरूरी होता है।
  3. इसके अनुसार सदन चलने के लिए कम से कम 10 % सदस्यों का उपस्थित रहना जरूरी होता है।
  4. लोकसभा में 75 सदस्य से कम रहने पर सदन नहीं चल सकती।

Choose the correct statement from the given statements regarding the assent of the President to the Bill;

  1. If the President does not give his assent, then that bill gets lapsed.
  2. A bill which is passed by both the Houses but returned by the President for reconsideration does not lapse.
  3. After reconsideration, the President has to give assent to the bill that comes to the President again.
  4. The President does not have the power not to assent to any bill passed by the Parliament.

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विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. यदि राष्ट्रपति अपनी स्वीकृति नहीं देता है तो वह विधेयक वही निरस्त हो जाता है।
  2. ऐसा विधेयक जो दोनों सदनों द्वारा पारित हो लेकिन राष्ट्रपति द्वारा पुनर्विचार के लिए लौटा दिया गया हो, समाप्त नहीं होता है।
  3. पुनर्विचार के बाद फिर से राष्ट्रपति के पास आए विधेयक पर राष्ट्रपति को स्वीकृति देनी ही पड़ती है।
  4. राष्ट्रपति के पास इतनी शक्ति नहीं है कि वे संसद द्वारा पारित किसी विधेयक को स्वीकृति न दें।

Choose the correct statement from the given statements regarding the second reading of the Bill;

  1. At this stage the bill can be referred to a select committee of the House.
  2. At this stage the bill can be referred to a joint committee of both the houses.
  3. At this stage the bill can be put in the public domain for public opinion.
  4. The Bill cannot be amended at this stage.

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विधेयक के द्वितीय पाठन के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. इस चरण में विधेयक को सदन की प्रवर समिति को सौंपा जा सकता है।
  2. इस चरण में विधेयक को दोनों सदनों की संयुक्त समिति को सौंपा जा सकता है।
  3. इस चरण में विधेयक को जनता के विचार जानने के लिए सार्वजनिक किया जा सकता है।
  4. इस चरण में विधेयक को संशोधित नहीं किया जा सकता है।

Choose the correct statement from the given statements regarding the making of law in the Parliament;

  1. The presentation of the bill in the house is called the first reading.
  2. The debate on the bill takes place in the second reading.
  3. Voting takes place on the bill in the third reading.
  4. A bill can be sent to the President for assent only after it is passed by both the Houses.

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संसद में कानून बनने से संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. सदन में विधेयक के प्रस्तुतीकरण को प्रथम पाठन कहा जाता है।
  2. द्वितीय पाठन में विधेयक पर बहस होता है।
  3. तृतीय पाठन में विधेयक पर मतदान होता है।
  4. दोनों सदनों से पास होने के बाद ही किसी विधेयक को राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा जा सकता है।

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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत लेख, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप एवं प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।