राज्यस्तरीय प्रशासनिक अधिकारियों की जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से यूपीएससी की तरह राज्य लोक सेवा आयोग भी गठित किया जाता है।

इस लेख में हम राज्य_लोक सेवा आयोग (State Public Service Commission) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे तथा इसके सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को समझेंगे;

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राज्य लोक सेवा आयोग
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राज्य लोक सेवा आयोग: पृष्ठभूमि

जिस तरह केंद्र स्तर पर सिविल सेवकों की नियुक्ति प्रक्रिया को पूरा करने के लिए संघ लोक सेवा आयोग है उसी तरह राज्यों में राज्य लोक सेवा आयोग है।

आपने अगर संघ लोक सेवा आयोग वाला लेख पढ़ा हो तो आप एक बात यहाँ भी नोटिस करेंगे कि राज्य लोक सेवा आयोग (State Public Service Commission) के गठन का प्रावधान भी अनुच्छेद 315 में ही है।

इसे दूसरे शब्दों में कहें तो संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग, दोनों को सेम ही अनुच्छेद में व्याख्यायित किया गया है।

यानी कि ये भी एक स्वतंत्र एवं संवैधानिक संस्था है और इसके भी गठन, स्वतंत्रता व शक्तियों, सदस्यों की नियुक्तियों व बर्खास्तगी इत्यादि का प्रावधान संविधान के 14वें भाग के अंतर्गत अनुच्छेद 315 से 323 में ही किया गया है।

राज्य लोक सेवा आयोग की संरचना

राज्य लोक सेवा आयोग में एक अध्यक्ष व कुछ अन्य सदस्य होते हैं, जिसे कि राज्य का राज्यपाल नियुक्त करता है। आयोग में कुल कितने सदस्य होंगे इसकी कोई बात संविधान में नहीं कही गई है इसीलिए आयोग की संरचना का निर्धारण राज्यपाल के ऊपर छोड़ दिया गया है।

इसके अलावा, संविधान में आयोग के सदस्य के लिए भी योग्यता का उल्लेख भी नहीं किया गया है। हालांकि अभी जो व्यवस्था है उसके तहत यह आवश्यक है की आयोग के आधे सदस्यों को भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन कम से कम 10 वर्ष काम करने का अनुभव हो।

संविधान के अनुच्छेद 318 के तहत राज्यपाल को अध्यक्ष तथा सदस्यों की सेवा की शर्तें निर्धारित करने का अधिकार दिया है।

अनुच्छेद 316 में आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों के कार्यकाल के बारे में बताया गया है। इसमें व्यवस्था ये है कि आयोग के अध्यक्ष व सदस्य पद ग्रहण करने की तारीख से छह वर्ष की अवधि तक या 65 वर्ष की आयु तक, (इनमें से जो भी पहले हो) अपना पद धारण करते हैं। वैसे वे चाहे तो कभी भी राज्यपाल को संबोधित कर त्यागपत्र दे सकते हैं।

जब अध्यक्ष का पद रिक्त हो, या जब अध्यक्ष अपना काम अनुपस्थिति या अन्य दूसरे कारणों से नहीं कर पा रहा हो तो उस स्थिति में राज्यपाल आयोग के किसी सदस्य को कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त कर सकता है। ये कार्यवाहक अध्यक्ष तब तक कार्य करता है, जब तक अध्यक्ष पुनः अपना काम नहीं संभाल लेता या अध्यक्ष फिर से नियुक्त न हो जाए।

बर्खास्तगी एवं निलंबन (Dismissal and suspension)

बर्खास्तगी एवं निलंबन से संबन्धित प्रावधानों को अनुच्छेद 317 में वर्णित किया गया है। यहाँ सबसे महत्वपूर्ण पॉइंट ये है कि भले ही राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्य की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं लेकिन इन्हे केवल राष्ट्रपति ही हटा सकता है, राज्यपाल नहीं।

और राष्ट्रपति उसी आधार पर हटा सकते हैं जिन आधारों पर यूपीएससी के अध्यक्ष व सदस्यों को हटाया जाता है, यानी कि,
(1) अगर उसे दिवालिया घोषित कर दिया जाता है, या
(2) अपनी पदावधि के दौरान अपने पद के कर्तव्यों के बाहर किसी अन्य वैतनिक कार्य में लगा हो, या
(3) अगर राष्ट्रपति ऐसा समझता है की वह मानसिक या शारीरिक अक्षमता के कारण पद पर बने रहते योग्य नहीं है।

राष्ट्रपति राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या अन्य सदस्यों को उनके कदाचार के कारण हटा सकता है लेकिन राष्ट्रपति अगर आयोग के अध्यक्ष या दूसरे सदस्यों को उनके कदाचार (malpractice) के कारण हटाने की सोच रहा हो तो पहले उसे यह मामला जांच के लिए उच्चतम न्यायालय में भेजना होगा।

अगर उच्चतम न्यायालय जांच के बाद बर्खास्त करने के परामर्श का समर्थन करता है तो राष्ट्रपति, अध्यक्ष या दूसरे सदस्यों को पद से हटा सकते हैं। सविधान के इस उपबंध के अनुसार, उच्चतम न्यायालय द्वारा इस मामले में दी गई सलाह राष्ट्रपति के लिए बाध्य है।

राज्य लोक सेवा आयोग की स्वतंत्रता

आयोग अपना काम बिना किसी राजनीतिक दवाब के कर सकें इसके लिए संविधान में कुछ प्रावधान दिये गए हैं। जैसे

(1) आयोग के अध्यक्ष या सदस्यों को पदावधि की सुरक्षा प्राप्त होती है यानी कि एक बार नियुक्त होने के बाद वे अपने पद पर कार्यकाल खत्म होने तक बने रह सकते हैं। अगर उसे हटाने की नौबत भी आई तो राष्ट्रपति, संविधान में वर्णित आधारों पर ही हटा सकते हैं जिसकी चर्चा अभी हमने ऊपर की है।

(2) राज्यपाल अध्यक्ष या सदस्य की सेवा की शर्तें तय तो करते है लेकिन नियुक्ति के बाद इनमें अलाभकारी परिवर्तन नहीं कर सकते। यानी कि उसकी सुविधाओं को कम नहीं किया जा सकता है।

(3) आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को वेतन, भत्ते व पेंशन सहित सभी खर्चे राज्य की संचित निधि से प्राप्त होते हैं जिस पर कि विधानमंडल में मतदान नहीं होता।

(4) आयोग का अध्यक्ष (कार्यकाल के बाद) संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य तथा किस अन्य राज्य लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष बनने का पात्र होता है, लेकिन भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी और नौकरी का पात्र नहीं होता है।

(5) आयोग का अध्यक्ष या सदस्य कार्यकाल के बाद के उसी पद पर पुनः नियुक्त नहीं किया जा सकता। यानी कि उसी पद पर दूसरा कार्यकाल नहीं मिलता है।

राज्य लोक_सेवा आयोग के कार्य

राज्य लोक_सेवा आयोग राज्य सेवाओं के लिए वही काम करता है जो संघ लोक सेवा आयोग केन्द्रीय सेवाओं के लिए करता है: जैसे कि –

1. यह राज्य की सेवाओं में नियुक्ति के लिए परीक्षाओं का आयोजन करता है।

2. आयोग, राज्य को किसी ऐसी सेवाओं के लिए जिसके लिए विशेष अर्हता वाले अभ्यर्थी की जरूरत है, उनके लिए संयुक्त भर्ती की योजना व प्रवर्तन करने में सहायता करता है।

3. कार्मिक प्रबंधन से संबन्धित निम्नलिखित विषयों पर परामर्श देता है: जैसे कि –

(1) सिविल सेवाओं और सिविल पदों के लिए भर्ती को पद्धतियों से संबन्धित सभी विषयों पर,

(2) सिविल सेवाओं और पदों पर नियुक्ति करने में तथा सेवा प्रोन्नति व एक सेवा से दूसरे सेवा में तबादले के लिए अनुसरण किए जाने वाले सिद्धान्त के संबंध में,

(3) सिविल सेवाओं और पदों पर स्थानांतरण करने में, प्रोन्नति या एक सेवा से दूसरी सेवा में तबादला या प्रतिनियुक्ति के लिए अभ्यर्थियों की उपयुक्तता पर। संबन्धित विभाग प्रोन्नति की अनुशंसा करता है और राज्य लोक सेवा से अनुमोदित करने का आग्रह करता है।

4. राज्य सरकार में सिविल हैसियत में कार्य करते हुए सभी अन्य अनुशासनिक विषय; जैसे कि निंदा प्रस्ताव रोकना, वेतन वृद्धि रोकना, पदोन्नति रोकना, धन हानि की पुनः प्राप्ति, निम्न सेवाओं या पद में कर देना, सेवा से हटा देना, सेवा से बर्खास्त कर देना, इत्यादि।

5. सिविल सेवक द्वारा अपने कर्तव्य के निष्पादन के अंतर्गत उसके विरुद्ध विधिक कार्यवाहियों की प्रतिरक्षा में उसके द्वारा खर्च की अदायगी का दावा करना।

6. यह राज्य सरकार के अधीन काम करने के दौरान किसी व्यक्ति को हुई क्षति को लेकर पेंशन का दावा करता है और पेंशन की राशि का निर्धारण करता है।

राज्य विधानमंडल, राज्य लोक सेवा आयोग के अधिकार क्षेत्र में किसी प्राधिकरण, कॉर्पोरेट निकाय या सार्वजनिक संस्थान के निजी प्रबंधन का कार्य भी दे सकती है। अत: राज्य विधानमंडल के अधिनियम के द्वारा राज्य लोक सेवा आयोग के कार्यक्षेत्र का विस्तार किया जा सकता है।

अनुच्छेद 323 के तहत, आयोग हर वर्ष अपने कामों की रिपोर्ट राज्यपाल को देता है। राज्यपाल इस रिपोर्ट को विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करता है। जिसमें आयोग द्वारा अस्वीकृत मामले और उनके कार्यों का वर्णन किया जाता है।

जिला न्यायाधीश के अलावा न्यायिक सेवा मे भर्ती से संबन्धित नियम बनाने के मसले पर राज्यपाल, राज्य लोक सेवा आयोग से संपर्क करता है। इस मामले मे संबन्धित उच्च न्यायालय से भी संपर्क किया जाता है।

सीमाएं (Limitations)

कुछ विषय राज्य लोक सेवा आयोग के कार्यों के अधिकार क्षेत्र के बाहर है जिस पर आयोग से कोई परामर्श नहीं किया जाता है, जैसे कि –

1. पिछड़ी जाति की नियुक्तियों पर आरक्षण देने के मामले पर,
2. सेवाओं व पदों पर नियुक्तियों के लिए अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजातियों के दावों को ध्यान में रखने के मसले पर,

इसके अलावा राज्यपाल राज्य लोक सेवा आयोग के दायरे से किसी पद, सेवा व विषय को हटा सकता है जिसके लिए उसे आयोग से परामर्श की आवश्यकता नहीं है परंतु इस तरह के नियमन को राज्यपाल को कम से कम 14 दिन तक के लिए विधानमंडल के सदन में रखना होगा। संसद इसे संशोधित या खारिज कर सकती है।

संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग

दो या इससे अधिक राज्यों के लिए संविधान में संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग की व्यवस्था भी की गई है। अंतर इतना ही है कि संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग का गठन जहां सीधे संविधान द्वारा किया गया है।

वहीं संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग का गठन राज्य विधानमंडल की आग्रह से संसद द्वारा किया जाता है। इस तरह संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग एक सांविधिक संस्था है न कि संवैधानिक संस्था।

उदाहरण के लिए 1966 में पंजाब से पृथक हुए हरियाणा और पंजाब के लिए अल्पकालीन संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग गठित किया था। अब दोनों के अपने-अपने राज्य लोक सेवा आयोग है।

संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। उनका कार्यकाल छह वर्ष या 62 वर्ष जो भी पहले हो; तक होता है। उन्हे राष्ट्रपति द्वारा बर्खास्त किया जा सकता है। और वे किसी भी समय चाहे तो राष्ट्रपति को त्यागपत्र देकर पदमुक्त हो सकते है।

संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों की संख्या और सेवा शर्तों को राष्ट्रपति निर्धारित करता है। आयोग वार्षिक प्रगति रिपोर्ट संबन्धित राज्यपालों को सौंपता है। प्रत्येक राज्यपाल इसे राज्य विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करता है।

संघ लोक सेवा आयोग, राज्यपाल के अनुरोध व राष्ट्रपति की संस्तुति के बाद राज्य के आवश्यकतानुसार भी कार्य कर सकता है।

State wise commission link

Tamil Nadu Public Service Commission↗️
Kerala Public Service Commission↗️
Bihar Public Service Commission↗️
Rajasthan Public Service Commission↗️
Gujarat Public Service Commission↗️
Tripura Public Service Commission↗️
Goa Public Service Commission↗️
Jammu & Kashmir Public Service Commission↗️
Arunachal Pradesh Public Service Commission↗️
Karnataka Public Service Commission↗️
Andhra Pradesh Public Service Commission↗️
Telangana State Public Service Commission↗️
Maharashtra Public Service Commission↗️
Madhya Pradesh Public Service Commission↗️
Chhattisgarh Public Service Commission↗️
Odisha Public Service Commission↗️
JHARKHAND PUBLIC SERVICE COMMISSION↗️
West Bengal Public Service Commission↗️
Uttar Pradesh Public Service Commission↗️
Haryana Public Service Commission↗️
Punjab Public Service Commission↗️
Uttarakhand Public Service Commission↗️
Himachal Pradesh Public Service Commission↗️
Sikkim Public Service Commission↗️
Assam Public Service Commission↗️
Nagaland Public Service Commission↗️
Manipur Public Service Commission↗️
Mizoram Public Service Commission↗️
Meghalaya Public Service Commission↗️

समापन टिप्पणी (Closing Remarks)

कुल मिलाकर राज्य लोकसेवा आयोग, राज्य सेवाओं में भर्ती, प्रोन्नति व सरकार को सलाह देने से संबन्धित है। सेवाओं में वर्गीकरण, वेतन या सेवाओं की स्थिति, कैडर प्रबंधन, प्रशिक्षण आदि से इसका कोई संबंध नहीं है। ये काम कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग या सामान्य प्रशासन विभाग के अंतर्गत आता है।

चूंकि इसके द्वारा दिये गए सुझाव सलाहकारी प्रवृति के होते हैं यानी कि राज्य सरकार उन सुझावों पर अमल भी कर सकती है और खारिज भी इसीलिए आयोग की भूमिका थोड़ी सीमित हो जाती है।

इसके अलावा सरकार ऐसे नियम बना सकती है, जिससे राज्य लोक सेवा आयोग के सलाहकारी कार्य को नियंत्रित किया जा सकता है।

इसके अलावा 1964 में केन्द्रीय सतर्कता आयोग के गठन ने भी अनुशासनात्मक विषयों पर आयोग के कार्यों को प्रभावित किया। ऐसा इसीलिए क्योंकि सरकार द्वारा किसी नौकरशाह पर अनुशासनात्मक कार्यवाही करने से पहले दोनों से संपर्क किया जाने लगा। आमतौर पर इसमें कोई समस्या नहीं है लेकिन दिक्कत तब होती है, जब दोनों की सलाहों मे मतभेद हो।

लेकिन चूंकि राज्य_लोक_सेवा_आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है इसीलिए वो ज्यादा प्रभावी है। जबकि केन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन भारत सरकार के कार्यकारी प्रस्ताव द्वारा किया गया है (जिसे कि अक्तूबर 2003 में इसे सांविधक (Statutory) दर्जा मिला) इसीलिए ये उसके सामने थोड़ा कम प्रभावी है।

तो ये था राज्य_लोक_सेवा_आयोग (State Public Service Commission), इसमें ज़्यादातर प्रावधान संघ लोक सेवा आयोग↗️ (UPSC) जैसे ही हैं उम्मीद है समझ में आया होगा। नीचे कुछ अन्य महत्वपूर्ण आयोगों का लिंक दिया जा रहा है उसे भी जरूर समझें।

SPSC प्रैक्टिस क्विज


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Chapter Wise Polity Quiz

राज्य लोक सेवा आयोग (SPSC) अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions - 4 
  2. Passing Marks - 75  %
  3. Time - 3  Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

1 / 4

दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. अनुच्छेद 316 में आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों के कार्यकाल के बारे में बताया गया है.
  2. आयोग के सदस्यों के वेतन एवं भत्ते भारत के संचित निधि पर भारित होते हैं।
  3. आयोग का अध्यक्ष या सदस्य कार्यकाल के बाद के उसी पद पर पुनः नियुक्त नहीं किया जा सकता.
  4. राज्यपाल चाहे तो आयोग के सदस्यों के सुविधाओं को कम कर सकता है।

2 / 4

अनुच्छेद 315 (4) के अनुसार,  संघ के लिए लोक सेवा आयोग; यदि किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा ऐसा करने का अनुरोध किया जाता है, तो राष्ट्रपति के अनुमोदन से, राज्य की सभी या किसी भी आवश्यकता को पूरा करने के लिए सहमत हो सकता है।

3 / 4

राज्य लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान संविधान के किस अनुच्छेद में मिलता है?

4 / 4

राज्य लोक सेवा आयोग के संदर्भ में दिए गए कथनों में से सही कथन की पहचान करें;

  1. यूपीएससी और एसपीएससी दोनों के ही गठन का प्रावधान अनुच्छेद 315 में है।
  2. राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  3. राज्य लोक सेवा आयोग के संरचना का निर्धारण राज्यपाल के ऊपर होता है।
  4. आयोग का सदस्य वो बन सकता है जो कम से कम 10 वर्षों तक भारत सरकार के लिए काम किया हो।

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