इस लेख में हम राज्य मानवाधिकार आयोग (State human right commission) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, और इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे।

बेहतर समझ के लिए पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission) को पढ़ लें, क्योंकि दोनों की उत्पत्ति एक ही अधिनियम से हुई है और दोनों का उद्देश्य एक ही है।

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राज्य मानवाधिकार आयोग
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मानव अधिकार (Human Rights)

मानव अधिकार का मतलब उन मौलिक अधिकार एवं स्वतंत्रता से है जिसके की सभी मानव प्राणी हकदार है। 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (Universal Declaration of Human Rights) (यूडीएचआर) को अपनाया था और इसीलिए इस दिन को मानवाधिकार दिवस (Human rights day) के रूप में मनाया जाता है।

यूडीएचआर एक मील का पत्थर दस्तावेज है जो उन मौलिक अधिकारों की घोषणा करता है, जो हर किसी को एक इंसान होने के कारण मिलता हैं वो भी नस्ल, रंग, धर्म, लिंग, भाषा, राजनीतिक राय, राष्ट्रीय या सामाजिक मूल, संपत्ति, जन्म या अन्य स्थिति की परवाह किए बिना।

मानव के इसी अधिकार को सुनिश्चित करने एवं इन अधिकारों के संरक्षण और संवर्धन के लिए भारत में ”मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 (Protection of Human Rights Act 1993)” लाया गया जिसके तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission) और राज्य मानवाधिकार आयोग की स्थापना की गई।

राज्य मानवाधिकार आयोग की पृष्ठभूमि

जैसा कि अभी हमने ऊपर जाना, मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 न केवल केंद्र में बल्कि राज्यों में भी मानव अधिकार आयोगों की स्थापना का प्रावधान करता है। अब तक देश के 25 राज्यों ने आधिकारिक राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से मानव अधिकार आयोगों की स्थापना की है।

राज्य मानव अधिकार आयोग (State Human Rights Commission) केवल उन्हीं मामलों में मानव अधिकारों के उल्लंघन की जांच कर सकता है, जो संविधान की राज्य सूची एवं समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं।

लेकिन यदि इस प्रकार के किसी मामले की जांच पहले से ही राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग या किसी अन्य विधिक निकाय द्वारा की जा रही है तब राज्य मानव अधिकार आयोग ऐसे मामलों की जांच नहीं कर सकता है।

किसी राज्य के मानवाधिकार आयोग से संबन्धित जानकारी जैसे कि संपर्क नंबर, ईमेल एड्रेस, वेबसाइट, प्राधिकारियों आदि के लिए इस लिंक↗️ की मदद ले सकते हैं।

राज्य मानवाधिकार आयोग की संरचना

राज्य मानव अधिकार आयोग केन्द्रीय आयोग की तरह ही एक बहुसदस्यी निकाय है, लेकिन जहां केन्द्रीय आयोग में अध्यक्ष के अलावा 12 अन्य सदस्य होते हैं वहीं राज्य के मामले में एक अध्यक्ष तथा दो अन्य सदस्य होते हैं।

◾इस आयोग का अध्यक्ष उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होता है तथा सदस्य उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त या कार्यरत न्यायाधीश होता है।

◾राज्य के जिला न्यायालय का कोई न्यायाधीश, जिसे सात वर्ष का अनुभव हो या कोई ऐसा व्यक्ति जिसे मानव अधिकारों के बारे में विशेष अनुभव हो, भी इस आयोग के सदस्य बन सकता है।

◾इस आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल एक समिति की अनुशंसा पर करते हैं। इस समिति में प्रमुख के रूप में राज्य का मुख्यमंत्री होता है, इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष, राज्य का गृहमंत्री तथा राज्य विधानसभा में विपक्ष का नेता अन्य सदस्य के रूप में होते हैं। यदि राज्य में विधान परिषद भी हो तो विधान परिषद्‌ का अध्यक्ष एवं विधान परिषद में विपक्ष के नेता भी इस समिति के सदस्य होते हैं।

उच्च न्यायालय के एक कार्यरत न्यायाधीश या जिला न्यायालय के एक कार्यरत न्यायाधीश को सदस्य के रूप में राज्य उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद राज्य ही राज्य मानव अधिकार आयोग में नियुक्त किया जाता है।

◾आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों का कार्यकाल पांच वर्ष या 70 वर्ष की आयु दोनों में से जो भी पहले हो, तक होता है। आयोग से कार्यकाल पूरा होने के बाद अध्यक्ष एवं अन्य सदस्य न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकार के अधीन कोई सरकारी पद ग्रहण कर सकते हैं।

◾चुने जाने के बाद राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं, लेकिन राज्यपाल उन्हे उनके पद से हटा नहीं सकता है।

केवल राष्ट्रपति ही मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों हटा सकते हैं। हटाने का प्रोसीजर बिल्कुल वही होता है जो राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को हटाने के लिए होता है। यानी कि –

यदि वह दिवालिया हो गया हो;
यदि आयोग में अपने कार्यकाल के दौरान उसने कोई लाभ का सरकारी पद धारण कर लिया हो;
यदि वह दिमागी या शारीरिक तौर पर अपने दायित्वों के निवर्हन के अयोग्य हो गया हो;
यदि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ हो तथा सत्र न्यायालय द्वारा उसे अयोग्य घोषित कर दिया गया हो; तथा,
यदि किसी अपराध के संबंध में उसे दोषी सिद्ध किया गया हो तथा उसे कारावास की सजा दी गयी हो।

इसके अलावा, राष्ट्रपति आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर भी पद से हटा सकते हैं। लेकिन इन मामलों में, राष्ट्रपति को मामले को जांच के लिये उच्चतम न्यायालय के पास भेजना पड़ता है तथा यदि उच्चतम न्यायालय जांच के उपरांत मामले को सही पाता है तो वह राष्ट्रपति को इस बारे में सलाह देता है, उसके उपरांत राष्ट्रपति अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को पद से हटा देते हैं।

◾राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों के वेतन-भत्तों एवं अन्य सेवा-शर्तो का निर्धारण राज्य सरकार करती है। लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान इसमें किसी प्रकार का अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता।

राज्य मानवाधिकार आयोग के कार्य

1. मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच करना अथवा किसी लोक सेवक के समक्ष प्रस्तुत मानवाधिकार उल्लंघन की याचिका, जिसका वो संज्ञान लेने को तैयार न हो, की जांच स्व:प्ररेणा या न्यायालय के आदेश से करना।

2. अदालत में लंबित किसी मानव अधिकार से संबंधित कार्यवाही में हस्तक्षेप करना।

3. जेलों व बंदीगृहों में जाकर वहां की स्थिति का अध्ययन करना व इस बारे में सिफारिशें करना।

4. मानवाधिकार की रक्षा के लिए बनाए गए संवैधानिक व विधिक प्रावधानों की समीक्षा करना तथा इनके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु उपायों की सिफारिशें करना।

5. आतंकवाद सहित उन सभी कारणों की समीक्षा करना, जिनसे मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है तथा इनसे बचाव के उपायों की सिफारिश करना।

6. मानवाधिकारों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संधियों व दस्तावेजों का अध्ययन करना व उनको प्रभावशाली तरीके से लागू करने हेतु सिफारिशें करना।

7. मानवाधिकारों के क्षेत्र में शोध करना और इसे प्रोत्साहित करना। साथ ही मानवाधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत गैर-सरकारी संगठनों के प्रयासों को प्रोत्साहन देना।

8. लोगों के बीच मानव अधिकारों की जानकारी फैलाना व इनकी सुरक्षा के लिए उपलब्ध उपायों के प्रति जागरूक करना। साथ ही ऐसे आवश्यक कार्यों को करना, जो कि मानव अधिकारों के प्रचार के लिए आवश्यक हों।

9. समाज के विभिन्न वर्गों के बीच मानव अधिकार शिक्षा का प्रसार करना तथा प्रकाशनों, मीडिया, सेमिनार तथा अन्य उपलब्ध साधनों से इन अधिकारों के संरक्षण हेतु उपलब्ध सुरक्षोपायों की जागरूकता को बढ़ाना

10. मानव अधिकारों के संवर्धन हेतु आवश्यक समझे जाने वाले इसी प्रकार के अन्य कार्य करना।

आयोग की कार्यप्रणाली

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की कार्यप्रणाली के जैसा ही इसका भी कार्यप्रणाली है। आयोग को अपने कार्यों को संपन्न करने के लिये व्यापक शक्तियां प्रदान की गयी हैं।

शिकायतों पर जांच करते समय राज्य मानवाधिकार आयोग को कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर 1908 के अंतर्गत वे सभी शक्तियां प्राप्त हैं जो सिविल कोर्ट किसी वाद के विचारण के समय अपनाता है। जैसे कि :-

(a) गवाहों की उपस्थिति हेतु समन करना तथा हाजिर करना तथा शपथ पर उनकी जांच करना
(b) किसी दस्तावेज को ढूंढना एवं प्रस्तुत करना
(c) हलफनामे (Affidavit) पर साक्ष्य प्राप्त करना
(d) किसी पब्लिक रिकॉर्ड को मांगना अथवा किसी न्यायालय अथवा कार्यालय से उनकी प्रति मांगना आदि

यह किसी मामले की सुनवाई के लिये राज्य सरकार या किसी अन्य अधीनस्थ प्राधिकारी को निर्देश दे सकता है। लेकिन यहाँ याद रखना जरूरी है कि, राज्य मानव अधिकार आयोग किसी ऐसे मामले की सुनवाई नहीं कर सकता है, जो मानव अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित हो तथा जिस मामले को एक वर्ष से अधिक का समय हो गया हो।

दूसरे शब्दों में, आयोग केवल एक वर्ष की अवधि के भीतर के मामलों की ही सुनवाई कर सकता है।

आयोग किसी मामले की जांच के दौरान या जांच उपरांत निम्न कदम उठा सकता है;

◾यह पीड़ित व्यक्ति को क्षतिपूर्ति या नुकसान के भुगतान के लिए संबंधित सरकार या प्राधिकरण को सिफारिश कर सकता है।

◾साथ ही यह संबंधित सरकार या प्राधिकरण को पीड़ित को तत्काल अंतरिम सहायता प्रदान करने की सिफारिश भी कर सकता है।

◾यह दोषी लोक सेवक के विरुद्ध बंदीकरण हेतु कार्यवाही प्रारंभ करने के लिए संबंधित सरकार या प्राधिकरण को सिफारिश कर सकता है।

◾आयोग इस संबंध में आवश्यक निर्देश, आदेश अथवा रिट के लिए उच्चतम अथवा उच्च न्यायालय में जा सकता है।

आयोग अपना वार्षिक रिपोर्ट राज्य सरकार को प्रेषित (forwarded) करता है। इस रिपोर्ट को राज्य विधायिका के पटल पर रखा जाता है तथा यह बताया जाता है कि आयोग द्वारा दी गयी अनुशंसाओं के संबंध में राज्य सरकार ने क्या कदम उठाये हैं। यदि आयोग के किसी सलाह को राज्य सरकार द्वारा नहीं माना गया है तो इसके लिये भी सरकार को तर्कपूर्ण उत्तर देना आवश्यक होता है।

मानव अधिकार न्यायालय (Human Rights Court)

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 में यह प्रावधान है कि मानव अधिकारों के उल्लंघन के मामलों की तेजी से जांच करने के लिये देश के प्रत्येक जिले में एक मानव अधिकार न्यायालय (Human Rights Court) की स्थापना की जायेगी। इस प्रकार के किसी न्यायालय की स्थापना राज्य सरकार द्वारा केवल राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर ही की जा सकती है।

प्रत्येक मानव अधिकार न्यायालय में राज्य सरकार एक विशेष लोक अभियोजक (Prosecutor) नियुक्त करती है या किसी ऐसे वकील को विशेष लोक अभियोजक बना सकती है, जिसे कम से कम सात वर्ष की वकालत का अनुभव हो।

समापन टिप्पणी (Closing Remarks)

आयोग की सिफ़ारिशें संबंधित सरकार अथवा अधिकारी पर बाध्य नहीं हैं लेकिन उसकी सलाह पर की गई कार्यवाही पर उसे, आयोग को एक महीने के भीतर सूचित करना होता है ।

तो कुल मिलाकर देखा जाये तो आयोग की भूमिका सिफ़ारिश देने वाले या सलाहकार की ही है फिर भी सरकार आयोग द्वारा दिए गए मामलों पर विचार करती है क्योंकि आयोग अपने अधिकारों का पूर्ण रूप से प्रयोग करता है और सही सिफ़ारिशें करता है ताकि कोई भी सरकार इसकी सिफारिशों को नकार न सके, इस प्रकार यह कहना बिल्कुल भी उचित नहीं होगा कि आयोग शक्तिविहीन है।

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