केन्द्रीय सूचना आयोग; सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी को उपलब्ध कराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

इस लेख में हम केन्द्रीय सूचना आयोग (Central Information commission) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न पहलुओं को समझेंगे; इसीलिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें, उम्मीद है आपको सभी महत्वपूर्ण जानकारियाँ यहाँ मिल जाएंगी।

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केन्द्रीय सूचना आयोग
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सूचना का अधिकार (right to Information)

किसी लोकतंत्र की सफलता कई कारकों पर निर्भर करती है जिसमें से एक है शासन में पारदर्शिता और सही सूचनाओं तक लोगों की पहुँच। खासकर के भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश के लिए तो और भी जरूरी हो जाता है।

वैसे भारतीय संविधान ढ़ेरो मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करती है। पर सूचना का अधिकार (RTI) एक ऐसा अधिकार है जो एक एड ऑन (Add on) की तरह काम करता है और अन्य अधिकारों को भी सशक्त (Strong) बनाता है। दूसरी बात कि ये प्रशासन या प्राधिकरण में सतर्कता बनाए रखता है और सरकार को जवाबदेह बनाता है।

इसकी शुरुआत वैसे तो 1948 से ही मानी जाती है जब संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स (Universal Declaration of Human Rights) को अपनाया गया। जिसके माध्यम से सभी को मीडिया या किसी अन्य माध्यम से सूचना मांगने एवं प्राप्त करने का अधिकार दिया गया।

भारत में इसे 2005 में एक अधिनियम के द्वारा अपनाया गया और केंद्र एवं राज्यों में सूचना आयोग के गठन का प्रावधान किया गया।

“सूचना का अधिकार” से यहाँ मतलब पहुँच सकने योग्य सूचना से है जो किसी लोक प्राधिकारी द्वारा या उसके नियंत्रणाधीन है, इसमें निम्नलिखित का अधिकार शामिल है—

(i) कृति, दस्तावेजों, अभिलेखों का निरिक्षण;
(ii) दस्तावेजों या अभिलेखों के टिप्पणी, उद्धरण या प्रमाणित प्रतिलिपि लेना;
(iii) सामग्रियों के प्रमाणित नमूने लेना;
(iv) डिस्क, फ्लापी, टेप, वीडियो कैसेट के रूप में या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक रीति में या प्रिंट आउट के माध्यम से सूचना को, जहां ऐसी सूचना किसी कंप्यूटर या किसी अन्य युक्ति में भंडारित है, अभिप्राप्त करना है।

“सूचना लोकतंत्र की मुद्रा होती है एवं किसी भी जीवंत सभ्य समाज के उद्भव और विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।”

थॉमस जैफरसन – (अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति)

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005

सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information Act-RTI), 2005 भारत सरकार का एक अधिनियम है, जिसे शासन में पारदर्शिता और नागरिकों को सूचना का अधिकार उपलब्ध कराने के लिये लागू किया गया है।

केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission)

केंद्रीय सूचना आयोग की स्थापना 12 अक्तूबर 2005 में केंद्र सरकार द्वारा की गयी थी। इसकी स्थापना इसी सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 (RTI Act 2005) के अंतर्गत शासकीय राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से की गयी थी। इस प्रकार यह एक सांविधिक निकाय है।

केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission) एक स्वतंत्र निकाय है, जो इसमें दर्ज शिकायतों की जांच करता है एवं उनका निराकरण करता है। यह केंद्र सरकार एवं केंद्र शासित प्रदेशों के अधीन कार्यरत कार्यालयों, वित्तीय संस्थानों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों आदि के बारे में शिकायतों एवं अपीलों की सुनवाई करता है।

केंद्रीय सूचना आयोग की संरचना

इस आयोग में एक मुख्य आयुक्त (Chief Commissioner) एवं 10 सूचना आयुक्त (Information commissioner) होते हैं। इन सभी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिश पर की जाती है, उस समिति का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है, इसके अलावा लोकसभा में विपक्ष का नेता एवं प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत एक कैबिनट मंत्री होता है।

इस आयोग का अध्यक्ष एवं सदस्य बनने वाले सदस्यों में सार्वजनिक जीवन का पर्याप्त अनुभव होना चाहिये तथा उन्हें विधि, विज्ञान एवं तकनीकी, सामाजिक सेवा, प्रबंधन, पत्रकारिता, जनसंचार या प्रशासन आदि का विशिष्ट अनुभव होना चाहिये।

उन्हें संसद या किसी राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं होना चाहिये। वे किसी राजनीतिक दल से संबंधित कोई लाभ का पद धारण न करते हों तथा वे कोई लाभ का व्यापार या उद्यम भी न करते हों।

कार्यकाल एवं सेवा शर्ते (Tenure and service conditions)

मुख्य सूचना आयुक्त एवं अन्य आयुक्त 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, दोनों में से जो भी पहले हो, तक पद पर बने रह सकते हैं। पर वे पुनर्नियुक्त नहीं हो सकते।

राष्ट्रपति मुख्य सूचना आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों को निम्न प्रकारों से उनके पद से हटा सकता है:

1. यदि वे दीवालिया (Bankruptcy) हो गये हों; या
2.राष्ट्रपति की नजर में यदि उन्हें नैतिक चरित्रहीनता के किसी अपराध के संबंध में दोषी करार दिया गया हो; या

3. यदि वे अपने कार्यकाल के दौरान किसी अन्य लाभ के पद पर कार्य कर रहे हों; या यदि वे राष्ट्रपति की नजर में शारीरिक या मानसिक रूप से अपने दायित्वों का निवर्हन करने में अक्षम हों; या

4. वे किसी ऐसे लाभ को प्राप्त करते हुये पाये जाते हैं. जिससे उनका कार्य या निष्पक्षता प्रभावित होती हो।

दूसरे आयोगों की तरह यहाँ भी राष्ट्रपति आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर पद से हटा सकते हैं।

लेकिन ऐसे मामलों को पहले जांच के लिए उच्चतम न्यायालय भेजना होता है यदि उच्चतम न्यायालय जांच के उपरांत मामले को सही पाता है तो वह राष्ट्रपति को इस बारे में सलाह देता है, इसके बाद राष्ट्रपति, अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को पद से हटा सकते हैं।

मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते एवं अन्य सेवा शर्ते मुख्य निर्वाचन आयुक्त के समान होते हैं। इसी प्रकार, अन्य सूचना आयुक्‍तों के वेतन, भत्ते एवं अन्य सेवा शर्तें निर्वाचन आयुक्‍त के समान होते हैं। उनके सेवाकाल में उनके वेतन-भत्तों एवं अन्य सेवा शर्तों में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।

केन्द्रीय सूचना आयोग की शक्तियां एवं कार्य

शिकायतें – धारा 18

(1) सूचना आयोग का यह कर्तव्य है कि RTI Act के अधीन रहते हुए वे किसी व्यक्ति से प्राप्त निम्न जानकारी एवं शिकायतों का निराकरण करे;

(a) जब कोई व्यक्ति लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी को अनुरोध प्रस्तुत करने में असमर्थ रहा हो, या तो इस कारण से कि इस अधिनियम के तहत कोई भी अधिकारी नियुक्त नहीं किया गया है, या फिर केंद्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी या राज्य सहायक लोक सूचना अधिकारी, केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी या फिर इस अधिनियम के तहत निर्दिष्ट कोई अन्य अधिकारी इस अधिनियम के तहत सूचना या अपील के लिए अपने आवेदन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है। (जैसा भी मामला हो)

(b) उसे आरटीआई अधिनियम के तहत चाही गयी जानकारी देने से मना कर दिया गया हो

(c) या फिर उसे चाही गयी जानकारी निर्धारित समय में प्राप्त न हो पायी हो;

(d) यदि उसे लगता है कि सूचना के बदले जो फीस मांगी गई है वो उचित नहीं है, या,

(e) यदि उसे लगता है कि उसे इस अधिनियम के तहत अधूरी, भ्रामक या गलत जानकारी दी गई है, या

(f) इस अधिनियम के तहत अभिलेखों का अनुरोध करने या प्राप्त करने से संबंधित किसी अन्य मामले के संबंध में।

(2) जहां केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, संतुष्ट है कि इस मामले में पूछताछ करने के लिए उचित आधार हैं, यह उसके संबंध में एक जांच शुरू कर सकता है।

(3) केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, को किसी भी मामले में पूछताछ करते समय, वहीं अधिकार होंगे जो निम्नलिखित मामलों के संबंध में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अधीन किसी वाद का विचारण करते समय सिविल न्यायलय में निहित होती हैं, अर्थात्: –

  • (ए) व्यक्तियों की उपस्थिति को बुलाना और लागू करना और उन्हें शपथ पर मौखिक या लिखित साक्ष्य देने और दस्तावेजों या चीजों का उत्पादन करने के लिए मजबूर करना;
  • (बी) दस्तावेजों की खोज और निरीक्षण की आवश्यकता;
  • (ग) शपथ पत्र पर साक्ष्य प्राप्त करना;
  • (डी) किसी भी सार्वजनिक रिकॉर्ड या किसी न्यायालय या कार्यालय से उसकी प्रतियां मांगना;
  • (ई) गवाहों या दस्तावेजों की जांच के लिए सम्मन जारी करना; तथा
  • (च) कोई अन्य मामला, जिसे निर्धारित किया जा सकता है।

(4) संसद या राज्य विधानमंडल के किसी अन्य अधिनियम में निहित किसी बात के बावजूद, केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, इस अधिनियम के तहत किसी भी शिकायत की जांच के दौरान लोक प्राधिकारी के नियंत्रणाधीन किसी दस्तावेज़ या रिकॉर्ड की जांच कर सकता है। तथा इस रिकॉर्ड को किसी भी आधार पर प्रस्तुत करने से इंकार नहीं किया जा सकता है।

अपील – धारा 19

(1) कोई भी व्यक्ति, जो निर्दिष्ट समय के भीतर कोई निर्णय प्राप्त नहीं करता है , या केन्द्रीय लोक सूचना के निर्णय से दुखी होता है, (जैसा भी मामला हो) ऐसी अवधि समाप्त होने के तीस दिनों के भीतर ऐसे अधिकारी को अपील कर सकता है केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य के पद पर वरिष्ठ हो ।

शास्ति (Penalty) – धारा 20

(1) किसी शिकायत या अपील का विनिश्चय (Decision) करते समय, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग की यह राय है कि, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी ने, किसी युक्तियुक्त कारण के बिना सूचना के लिए, कोई आवेदन प्राप्त करने से इंकार किया है या अधिनियम के अधीन विनिर्दिष्ट समय के भीतर सूचना नहीं दी है या असद्भावपूर्वक सूचना के लिए अनुरोध से इंकार किया है या जानबूझकर गलत, अपूर्ण या भ्रामक सूचना दी है या उस सूचना को नष्ट कर दिया है, जो अनुरोध का विषय था या किसी रीति से सूचना देने में बाधा डाली है, तो वह ऐसे प्रत्येक दिन के लिए, जब तक आवेदन प्राप्त किया जाता है या सूचना दी जाती है, दो सौ पचास रुपए की शास्ति (Penalty) अधिरोपित करेगा, हालांकि, ऐसी शास्ति (Penalty) की कुल रकम पच्चीस हजार रुपए से अधिक नहीं होगी:

परन्तु, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी को, उस पर कोई शास्ति (Penalty) अधिरोपित किए जाने के पूर्व, सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिया जाएगा:

परन्तु यह साबित करने का भार कि उसने युक्तियुक्त रूप से और तत्परतापूर्वक कार्य किया है, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी पर होगा।

सूचना प्राप्त करने के आवेदन कैसे दाखिल किया जाता है?

आर.टी.आई. अधिनियम की धारा 3 के अनुसार कोई भारतीय नागरिक इस अधिनियम के अंतर्गत सूचना प्राप्त कर सकता है।

आर.टी.आई. अधिनियम की धारा 6(1) के अनुसार, एक आवेदन संबंधित लोक प्राधिकरण, जिससे सूचना अपेक्षित है, के केन्द्रीय जन सूचना अधिकारी (Central Public Information Officer- CPIO) के समक्ष लिखित रूप में दाखिल की जा सकती है।

इसे ऑनलाइन भी दाखिल किया जा सकता है। आयोग के केन्द्रीय जन सूचना अधिकारी के समक्ष ऑनलाइन आवेदन दाखिल करने के लिए इसे https://rtionline.gov.in लिंक पर दाखिल किया जा सकता है।

आर.टी.आई. अधिनियम के अंतर्गत किस प्रकार की सूचना प्राप्त की जा सकती है?

वे सभी सूचनाएँ जो प्राप्त की जा सकती है, इस अधिनियम की धारा 2(च) में परिभाषित है, जैसे कि अभिलेख, मेमो, ई-मेल, राय, सलाह, प्रेस विज्ञप्ति, परिपत्र, आदेश, संविदा रिपोर्ट, कागज, मॉडल, आंकड़ो संबंधी सामग्री और किसी प्राइवेट निकाय से संबंधित ऐसी सूचना, जिस तक तत्समय प्रवृत (In force) किसी अन्य विधि के अधीन किसी लोक प्राधिकारी की पहुंच हो सकती है, किसी रूप में कोई सामग्री अभिप्रेत (Intended) है।

आवेदन किस भाषा में दाखिल किया जा सकता है?

आर.टी.आई. अधिनियम की धारा 6(1) के अनुसार, एक आवेदन अंग्रेजी या हिंदी या उस क्षेत्र की, जिसमे आवेदन किया जा रहा है, राजभाषा में किया जा सकता है।

केन्द्रीय सूचना आयोग का कार्यालय कहां स्थित है?

इस आयोग के कार्यालय सी आई सी भवन, बाबा गंगनाथ मार्ग, मुनिरका, नई दिल्ली -110067 में स्थित है। हेल्पलाइन नंबर – 011-26183053.

यहाँ पर याद रखने वाली बात है कि इस आयोग का क्षेत्राधिकार राज्य सूचना आयोग पर नहीं है, और न ही राज्य सूचना आयोग के एक आदेश के विरुद्ध एक अपील या शिकायत आयोग में की जा सकती है।

छूट प्राप्त लोक प्राधिकारी

अधिनियम की दूसरी अनुसूची में शामिल आसूचना और सुरक्षा संगठनों को अधिनियम के अंतर्गत सूचना प्रदान करने से छूट प्राप्त है। हालाँकि, यदि अनुरोध की गई सूचना भ्रष्टाचार के अभियोग और मानवाधिकार के उलंघन से संबंधित होते हैं, यह छूट लागू नहीं होती है।

तो ये रहा केन्द्रीय सूचना आयोग (central information commission) से संबन्धित महत्वपूर्ण बातें, राज्य सूचना आयोग भी कमोबेश इसी तरह काम करती है।

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केन्द्रीय सूचना आयोग – CIC अभ्यास प्रश्न

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  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

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केंद्रीय सूचना आयोग के संबंध में इनमें से कौन सा कथन सही है?

  1. केंद्रीय सूचना आयोग एक सांविधिक संस्था है।
  2. इस आयोग में एक मुख्य आयुक्त एवं 10 सूचना आयुक्त होते हैं।
  3. सूचना आयुक्त की नियुक्ति एक समिति द्वारा की जाती है जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं।
  4. सूचना आयुक्त बनने लिए राज्यसभा सदस्य या उसकी योग्यता होना जरूरी है।

2 / 5

केन्द्रीय सूचना आयुक्त की नियुक्ति एक समिति की सिफ़ारिश पर होता है, इस समिति के सदस्य इनमें से कौन नहीं है?

3 / 5

''सूचना लोकतंत्र की मुद्रा है'' यह किसने कहा था?

4 / 5

दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. मुख्य सूचना आयुक्त का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है।
  2. अगर किसी व्यक्ति को गलत सूचना दी जाती है तो हर्जाने के रूप में 25 हज़ार तक उसे मिल सकता है।
  3. वे सभी सूचनाएँ जो प्राप्त की जा सकती है, इस अधिनियम की धारा 2(च) में परिभाषित है
  4. सूचना मांगने के लिए आवेदन की भाषा सिर्फ अँग्रेजी स्वीकार की जाती है।

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