इस लेख में हम बेरोजगारी (Unemployment) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, एवं इससे विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे;

तो अच्छी तरह से समझने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें, और साथ ही बेरोजगारी से संबन्धित अन्य सभी लेखों का लिंक आपको नीचे मिल जाएगा, उसे भी जरूर विजिट करें।

“Unemployment is capitalism’s way of making you feel guilty for being poor.”

– Barbara Ehrenreich
📌 Join YouTube📌 Join FB Group
📌 Join Telegram📌 Like FB Page
बेरोजगारी

| बेरोजगारी की पृष्ठभूमि

बेरोजगारी (Unemployment) आधुनिक युग की सर्वाधिक गंभीर सामाजिक समस्याओं में से एक है। यह सामाजिक विघटन की सहगामी है, इसीलिए वर्तमान युग की कठिन समस्या बेरोजगारी है।

सन 1919 से 1937 तक बेरोजगारी विकराल रूप धारण कर रखा था। जिससे चारों और त्राहि-त्राहि मच गयी। उस समय व्यवसाय और व्यापार का अवसाद, मृत्यु, भूख, अपराध आदि चारों तरफ अपने विकराल रूप में छाये हुए थे।

द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद तो इसका रूप और विकराल हो गया। खासकर के नए आजाद हुए देशों में ये एक प्रमुख समस्या बनकर उभरी। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा।

आजादी के 70 साल बाद आज भी भारत बेरोजगारी के सामने संघर्ष करते हुए दिखायी पड़ता है। बेरोजगारी इसीलिए भी एक चिंता का विषय है क्योंकि यह न केवल वैयक्तिक विघटन ही बढ़ता है, अपितु सामाजिक एवं पारिवारिक विभाजन को भी बल प्रदान करता है।

यह नैतिक पतन एवं अपराध-वृति को तो प्रोत्साहन देती है, साथ ही समाज में बर्बादी को भी जन्म देती है। अतः यह न केवल देश विशेष के लिए खतरनाक है, बल्कि संपूर्ण मानव समाज के लिए भी भयंकर है। तो आइये समझते हैं, बेरोजगारी क्या है?

भारत में बेरोजगारी : अर्थ, कारण, प्रकार व समाधान आदि [Complete Concept]

| बेरोजगारी क्या है?

किसी भी देश में जनसंख्या के दो घटक होते हैं – (1) श्रम शक्ति (labor force) और (2) गैर-श्रम शक्ति (non labor force)

(1) श्रम शक्ति (labor force) – वे सभी व्यक्ति, जो किसी ऐसे कार्य में संलग्न है जिससे धन का उपार्जन होता हो।

यहाँ पर याद रखने वाली बात ये है कि कभी-कभी व्यक्ति धन उपार्जन तो करना चाहता है और वो काम की तलाश भी करता है लेकिन उसे काम नहीं मिलता है, ऐसे ही व्यक्तियों को बेरोजगार की श्रेणी में रखा जाता है (इसका क्या मतलब है इसे आगे और स्पष्ट करेंगे)।

(2) गैर-श्रम शक्ति (non labor force) – वे सभी लोग जो किसी धन उपार्जन करने वाले काम में संलग्न न हो और न ही वो ऐसे किसी काम की तलाश कर रहा हो, तो ऐसे व्यक्तियों को बेरोजगार नहीं कहा जाता है; जैसे कि बच्चे, बूढ़े, किशोर एवं किशोरियाँ।

कुल मिलाकर एक बेरोजगार व्यक्ति वह है, जो धन उपार्जन करना चाहता है और वह रोजगार की तलाश में भी है लेकिन रोजगार पाने में असमर्थ है, इसीलिए इसे अनैच्छिक बेरोजगारी कहा जाता है।

वहीं दूसरी तरफ, ऐसे व्यक्ति जो खुद ही काम नहीं करना चाहता या अगर करना भी चाहता है तो सैलरी कम मिलने के कारण नहीं करता है, तो ऐसी स्थिति को ऐच्छिक बेरोजगारी कहा जाता है क्योंकि काम तो उपलब्ध है लेकिन किसी कारण से व्यक्ति खुद ही नहीं करना चाहता है।

इसीलिए यहाँ याद रखने वाली बात है कि अनैच्छिक बेरोजगारी को ही बेरोजगारी माना जाता है और इसी अनैच्छिक बेरोजगारी को आगे चक्रीय, मौसमी, संरचनात्मक, संघर्षात्मक एवं प्रच्छन्न बेरोजगारी में विभाजित किया जाता है, (जिसे कि हम बेरोजगारी के प्रकार वाले लेख में विस्तार से पढ़ने वाले हैं)।

| बेरोजगारी की विशेषताएँ

बेरोजगारी की कुछ प्रमुख विशेषताओं के आधार पर इसकी अवधारणा को और अधिक स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है ये विशेषताएं निम्न है;

कार्य करने की योग्यता व समर्थता – किसी व्यक्ति को उसी रूप में बेरोजगार कहा जा सकता है, जब उसमें कार्य करने की योग्यता व समर्थता हो, कार्य करने की शारीरिक व मानसिक क्षमता हो।

यदि कोई अस्वस्थ एवं विक्षिप्त व्यक्ति अपनी शारीरिक एवं मानसिक दोष के कारण कोई कार्य नहीं करता, तो उसे बेरोजगारी की श्रेणी में नहीं रखा जायेगा।  

काम करने की इच्छा – यदि कोई व्यक्ति कोई लाभकारी काम करना ही नहीं चाहता है और फिर वह अकर्मण्य या आलसी जीवन व्यतीत करता है तो उसे बेरोजगार नहीं कहाँ जा सकता।

किसी व्यक्ति को उसी स्थति में बेरोजगार कहा जाएगा, जब वह कार्य की इच्छा अवश्य रखता हो किन्तु उसे फिर भी कोई कार्य नहीं मिल पाता। इस दृष्टि से साधुओं, सन्यासियों, तपस्वियों आदि को बेरोजगार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि वे शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ होते हुए भी कार्य करने की इच्छा नहीं रखते।

कार्य खोजने के सन्दर्भ में सतत प्रयत्नशील – इच्छा और योग्यता रहते हुए भी यदि कोई व्यक्ति किसी लाभकारी कार्य को करने के लिए सतत प्रयत्नशील नहीं है तो बेरोजगारी की दशा उत्त्पन्न नहीं कर सकता।

उदाहरणस्वरुप, एक प्रथम श्रेणी में सफलता प्राप्त करने वाला नौकरी की इच्छा एवं योग्यता रखते हुए भी यदि कहीं प्रार्थना –पत्र आदि नहीं भेजता हो वह बेरोजगार नहीं कहला सकता।

अर्थार्जन करने का उद्देश्य – यदि कोई व्यक्ति अर्थार्जन करने के उद्देश्य से कोई लाभकारी कार्य प्राप्त नहीं करता तो वह बेरोजगार नहीं कहलायेगा।

उदाहरणस्वरुप, यदि कोई अध्यापक विद्यार्थियों से बिना कुछ लिए नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करता है तो उसे हम रोजगार में लगा हुआ व्यक्ति नहीं कह सकते। वह रोजगार में लगा हुआ व्यक्ति तभी कहलायेगा जब वह अपनी पढ़ाई के कार्य की फीस वसूल करें।

इसी प्रकार एक गृह-स्वामिनी के गृह-प्रबंध के कार्य को रोजगारपरक कार्य नहीं माना जा सकता क्योंकि उसका यह कार्य मूल्यवान होते हुए भी आर्थिक उत्पादक नहीं है, धनार्जनकारी नहीं है। परन्तु यदि वह अपने गृह-व्यवस्था के कार्य के साथ-साथ प्रचलित मजदूरी की दर पर कोई और कार्य करती है तो उसका यह कार्य रोजगारपरक कहलाएगा ।  

योग्यता अनुसार पूर्ण रोजगार का अभाव – एक व्यक्ति को पूर्ण रोजगार की स्थिति में तभी कहा जा सकता है जब वो उसकी योग्यता एवं उसकी क्षमता के अनुरूप वैतनिक कार्य में संलग्न हो परन्तु यदि उसे उसकी योग्यता एवं क्षमता के अनुरूप वैतनिक काम नहीं मिल पाता बल्कि उससे कम वेतन पर काम करना पड़ता है तो ऐसी स्थिति को आंशिक बेरोजगार (part time job) कहा जाता है ।  

इस प्रकार इन समस्त विशेषताओं के आलोक में बेरोजगारी को स्पष्ट करते हुए हम कह सकते है कि यह वह दशा है जिसमें शारीरिक एवं मानसिक रूप से योग्य इच्छुक एवं प्रयत्नशील व्यक्ति अर्थार्जन करने के उद्देश्य से अपनी योग्यता एवं क्षमता के अनुसार प्रचलित मजदूरी की दर पर कोई लाभकारी कार्य प्राप्त नहीं कर पाता है।

| बेरोजगारी का माप

बेरोजगारी की दर श्रम शक्ति का वह प्रतिशत है जो काम करना चाहता है लेकिन उसे काम नहीं मिल पा रहा है। इसकी गणना के लिए नीचे दिये गए सूत्र का इस्तेमाल किया जाता है-

बेरोजगारी की माप

बेरोजगारी का माप एक कठिन कार्य होता है, वो भी भारत जैसे देश में जहां इतनी जनसंख्या है; ये और भी मुश्किल हो जाती है, फिर भी कई ऐसी एजेंसियां है जो ये काम करती है;

(1) राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office)

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) ऑफिस भारत सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत काम करता है ये नमूना सर्वेक्षणों के माध्यम से रोजगार, बेरोजगारी और बेरोजगारी दर का अध्ययन करने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर भारत में प्रमुख सरकारी एजेंसी रही है। आम तौर पर ये हर 5 साल में अपनी रिपोर्ट जारी करती है।

हालांकि 2012 के बाद से इस दिशा में कोई नया सर्वेक्षण नहीं हुआ है। 2017-2018 में एक नया सर्वेक्षण शुरू किया गया था पर आधिकारिक तौर पर इस सर्वेक्षण को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।

(2) CMIE reports

Centre for Monitoring Indian Economy नामक निजी संस्था ने बेरोजगारी से संबंधित जानकारी के लिए एक ऑनलाइन डैशबोर्ड बनाया है जहां पर हर दिन बेरोजगारी दर को अपडेट किया जाता है। भारत में अभी की बेरोजगारी की स्थिति को जानने के लिए Unemployment Rate in India को विजिट करें।

समापन टिप्पणी (Closing Remarks)

बेरोजगारी (Unemployment) की सबसे गंभीर पहलू वैयक्तिक पहलू होता है।  जिस व्यक्ति के पास कोई धंधा नहीं है उसको अनेक व्यक्तिगत विपत्तियाँ झेलनी पड़ती है और उसकी आय बंद हो जाती है।

उसकी सहायता करने के लिए चाहे कुछ भी किया जाए वित्तीय असुरक्षा के कारण जीवन के प्रति उसका समस्त दृष्टिकोण बदल जाता है।

इससे नित्य प्रति के सभी कामों पर इसका असर पड़ता है। आगे चलकर यह विश्वास होने पर की समाज को उसकी जरूरत नहीं है तथा यह निकम्मा है, उसमें आत्म-सम्मान भी लुप्त हो सकता है। अंत में वह एकदम निराश हो सकता है, तथा अन्य बातों में भी लापरवाह हो सकता है और धंधे की तलाश करना छोड़ सकता है ।

मानसिक एवं भावात्मक अस्थिरता के कुछ मामलों में बेरोजगारी पूर्णतः एक व्यक्तिगत समस्या होती है जिसका व्यक्तिगत इलाज करना पड़ता है लेकिन सामान्य रूप में यह एक आर्थिक और सामाजिक समस्या है।

तो कुल मिलाकर यही है बेरोजगारी (Unemployment), उम्मीद है समझ में आया होगा। इसी टॉपिक से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण लेखों को भी पढ़ें, लिंक नीचे दिया हुआ है;

| संबंधित महत्वपूर्ण लेख

बेरोजगारी के प्रकार

बेरोजगारी के कारण

शिक्षित बेरोजगारी

बेरोजगारी के दुष्परिणाम

बेरोज़गारी निवारण के उपाय

जनसंख्या समस्या, उसका प्रभाव एवं समाधान

???