चर्चा में एंग्लो इंडियन
अक्सर एंग्लो इंडियन तब चर्चा में आता है जब राष्ट्रपति के द्वारा उन्हे लोकसभा में मनोनीत किया जाता है या फिर राज्यपाल के द्वारा राज्य विधानसभा में,
पर सवाल यही आता है कि आखिर ये कौन लोग होते हैं जिन्हे बिना चुनाव प्रक्रिया में भाग लिए ही चुन लिया जाता है, वो भी एक चुने हुए लोगों के सभा में।
इस मामले में लोगों की अलग-अलग धारणाएँ बनी हुई है कुछ लोग तो ये भी कहते है कि ये ब्रिटिश मूल के भारतीय लोग होते है पर ये पूरी तरह से सच नहीं है। तो आइये जानते है ये कौन है और हमारा संविधान इसके बारे में क्या कहता है?
कौन है ये लोग, कहाँ से आते हैं?
1911 की जनगणना में इसे पहली बार परिभाषित किया गया था, इसके अनुसार
1. ये मिश्रित रक्त का होना चाहिए अर्थात भारतीय रक्त और यूरोपीय रक्त का मिश्रण
2. पिता पक्ष हमेशा यूरोपीय होना चाहिए और माता पक्ष भारतीय
3. इन लोगों के जो बच्चे होंगे वे सब एंग्लो इंडियन होंगे।
15 अगस्त 1947 को भारत से अंग्रेज़ विदा हो गए, पर लगभग 30000 लोग ऐसे थे जो नहीं गए, जो या तो यूरोपीय समुदाय से थे या यूरोपीय और भारतीय मूल के माता-पिताओं के संतान थे ।
ये कहना मुश्किल है कि भारत में अभी इस समुदाय के कितने लोग है, क्योंकि 1941 की जनगणना के बाद से भारत में जातीय और सामुदायिक आधार पर जनगणना को बंद कर दिया गया है।
पर अनुमान है की इनकी संख्या लगभग सवा लाख है, जिनमे से ज़्यादातर कोलकाता और चेन्नई में रहते है।
एंग्लो इंडियन और संविधान
भारत के आजाद होने के बाद इनके पुराने मान्यताओं में कुछ संसोधन करके इसे संवैधानिक रूप दे दिया गया। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 366(2) के तहत एंग्लो इंडियन की परिभाषा इस प्रकार की गयी है-
1. पिता, दादा या परदादा यूरोपीय मूल के होने चाहिए।
2. माता और पिता अस्थायी रूप से भारत में नहीं रहना चाहिए। मतलब ये कि अगर पिता यूरोपीय मूल के है और माता भारतीय मूल के है लेकिन वो भारत में स्थायी रूप से नहीं रह रहे है तो उसे एंग्लो इंडियन नहीं माना जाएगा।
3. वंश परंपरा पुरुष आधारित होना चाहिए। अर्थात पुरुष पक्ष हमेशा यूरोपीय होना चाहिए।
संविधान के अनुच्छेद 331 के तहत एंग्लो इंडियन समुदाय को लोकसभा में विशेष प्रतिनिधित्व दिया जाता है।
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