यह लेख अनुच्छेद 100 (Article 100) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

पाठकों से अपील 🙏
Bell आइकॉन पर क्लिक करके हमारे नोटिफ़िकेशन सर्विस को Allow कर दें ताकि आपको हरेक नए लेख की सूचना आसानी से प्राप्त हो जाए। साथ ही नीचे दिए गए हमारे सोशल मीडिया हैंडल से जुड़ जाएँ और नवीनतम विचार-विमर्श का हिस्सा बनें;
⬇️⬇️⬇️
Article 100

सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial


📜 अनुच्छेद 100 (Article 100) – Original

कार्य संचालन
100. सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति — (1) इस संविधान में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, प्रत्येक सदन की बैठक में या सदनों की संयुक्त बैठक में सभी प्रश्नों का अवधारण, अध्यक्ष को अथवा सभापति या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति को छोड़कर, उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा। सभापति या अध्यक्ष, अथवा उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति प्रथमतः मत नहीं देगा, किन्तु मत बराबर होने की दशा में उसका निर्णायक मत होगा और वह उसका प्रयोग करेगा।

(2) संसद्‌ के किसी सदन की सदस्यता में कोई रिक्ति होने पर भी, उस सदन को कार्य करने की शक्ति होगी और यदि बाद में यह पता चलता है कि कोई व्यक्ति, जो ऐसा करने का हकदार नहीं था, कार्यवाहियों में उपस्थित रहा है या उसने मत दिया है या अन्यथा भाग लिया है तो भी संसद्‌ की कोई कार्यवाही विधिमान्य होगी।

1[(3) जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक संसद्‌ के प्रत्येक सदन का अधिवेशन गठित करने के लिए गणपूर्ति सदन के सदस्यों की कुल संख्या का दसवां भाग होगी ।

(4) यदि सदन के अधिवेशन में किसी समय गणपूर्ति नहीं है तो सभापति या अध्यक्ष अथवा उस रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह सदन को स्थगित कर दे या अधिवेशन को तब तक के लिए निलंबित कर दे जब तक गणपूर्ति नहीं हो जाती है।]
______________________________
1. संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम 1976 की धारा 18 द्वारा (तारीख अधिसूचित नहीं हुई थी) खंड (3) और खंड (4) को लोप किया गया किन्तु संविधान (44वां संशोधन) अधिनियम 1978 की धारा 45 द्वारा (20-6-1978 से) उक्त संशोधन को निरसित कर दिया गया है।
—-अनुच्छेद 100 —-

Conduct of Business
100. Voting in Houses, power of Houses to act notwithstanding vacancies and quorum. — (1) Save as otherwise provided in this Constitution, all questions at any sitting of either House or joint sitting of the Houses shall be determined by a majority of votes of the members present and voting, other than the Speaker or person acting as Chairman or Speaker. The Chairman or Speaker, or person acting as such, shall not vote in the first instance, but shall have and exercise a casting vote in the case of an equality of votes.

(2) Either House of Parliament shall have power to act notwithstanding any vacancy in the membership thereof, and any proceedings in Parliament shall be valid notwithstanding that it is discovered subsequently that some person who was not entitled so to do sat or voted or otherwise took part in the proceedings.

1[(3) Until Parliament by law otherwise provides, the quorum to constitute a meeting of either House of Parliament shall be one-tenth of the total number of members of the House.

(4) If at any time during a meeting of a House there is no quorum, it shall be the duty of the Chairman or Speaker, or person acting as such, either to adjourn the House or to suspend the meeting until there is a quorum.]
_ _ _ _ _ _ __ _____
1. Cls. (3) and (4) omitted by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1973, s. 18 (date not notified). This amendment was omitted by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 45 (w.e.f. 20-6-1979).
Article 100

🔍 Article 100 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का दूसरा अध्याय है – संसद (Parliament)

संसद के तहत अनुच्छेद 79 से लेकर 122 तक आते हैं। और इस भाग के अंतर्गत संघ के संसद की चर्चा की गई है। जिसके तहत राष्ट्रपति (President), लोकसभा (Lok Sabha), एवं राज्यसभा (Rajya Sabha) आते हैं।

तो इस अध्याय के तहत आने वाले अनुच्छेदों में हम संसद (Parliament) को विस्तार से समझने वाले हैं। यहाँ यह याद रखिए कि संविधान के भाग 5 को संघ या The Union के नाम से भी जाना जाता है।

कुल मिलाकर संविधान के भाग 5 के अध्याय II अंतर्गत अनुच्छेद 79 से लेकर अनुच्छेद 122 तक आता है। इस लेख में हम अनुच्छेद 100 (Article 100) को समझने वाले हैं;

अनुच्छेद-39 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-21 – भारतीय संविधान
—————————

| अनुच्छेद 100 – सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति

अनुच्छेद 79 के तहत, देश के सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था के रूप में संसद की व्यवस्था की गई है। संसद तीन घटकों से मिलकर बना है; राष्ट्रपति (President), लोकसभा (Lok Sabha) और राज्यसभा (Rajya Sabha)।

भारत में, एक संसद सदस्य (सांसद) संसद के निचले सदन में लोगों का एक निर्वाचित प्रतिनिधि होता है, जिसे लोकसभा कहा जाता है। लोकसभा भारत में प्राथमिक विधायी निकाय है, जो कानून बनाने और संशोधन करने, राष्ट्रीय बजट को मंजूरी देने और अपने कार्यों के लिए सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिए जिम्मेदार है।

लोकसभा में कुल 543 निर्वाचित सीटें हैं, प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक सांसद चुना जाता है। सांसद सीधे चुनाव प्रक्रिया के माध्यम से अपने संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों के लोगों द्वारा चुने जाते हैं।

लोकसभा के अलावा, भारत में संसद का दूसरा सदन भी है, जिसे राज्य सभा या राज्यों की परिषद के रूप में जाना जाता है। राज्यसभा के सदस्य सीधे निर्वाचित नहीं होते हैं बल्कि सरकार और राज्य विधानसभाओं की सिफारिश पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।

अभी फिलहाल 245 सीटें राज्यसभा में प्रभाव में है जिसमें से 233 सदस्यों को चुनने के लिए चुनाव होते हैं जबकि 12 सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं।

कुल मिलाकर अभी लोक सभा और राज्य सभा में 788 सदस्य है। निर्वाचित होने के बाद, सांसदों की यह जिम्मेदारी होती है कि वे लोकसभा में अपने निर्वाचन क्षेत्रों के हितों का प्रतिनिधित्व करें, या राज्यसभा में अपने राज्य का प्रतिनिधित्व करें;

वे संसदीय बहसों में भाग लेते हैं, मंत्रियों से सवाल पूछते हैं, विधेयकों और प्रस्तावों को पेश करते हैं और कानून पर मतदान करते हैं।

कुल मिलाकर, भारत में संसद सदस्य लोकतांत्रिक व्यवस्था के कामकाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, अपने घटकों की आवाज का प्रतिनिधित्व करते हैं, और विधायी प्रक्रिया में योगदान करते हैं। लेकिन ये सब करने से पहले प्रत्येक सांसद को शपथ लेनी होती है। और इसी के बारे में अनुच्छेद 99 में बताया गया है।

अनुच्छेद 100 के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि सदनों में मतदान कैसे होगा, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति (Quorum) किस तरह से काम करेगी। इस अनुच्छेद में चार खंड है। आइये इसे समझते हैं;

अनुच्छेद-52 – भारतीय संविधान
Article 100

अनुच्छेद 100(1) के तहत कहा गया है कि इस संविधान में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, प्रत्येक सदन की बैठक में या सदनों की संयुक्त बैठक में सभी प्रश्नों का अवधारण, अध्यक्ष को अथवा सभापति या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति को छोड़कर, उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा। सभापति या अध्यक्ष, अथवा उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति प्रथमतः मत नहीं देगा, किन्तु मत बराबर होने की दशा में उसका निर्णायक मत होगा और वह उसका प्रयोग करेगा।

यहाँ दो बातें हैं;

पहली बात तो ये कि संविधान में मतदान के बारे में और कहीं जो भी लिखा हुआ है उसके अलावा प्रत्येक सदन की बैठक में या दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में सभी प्रश्नों का अवधारण उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा।

लेकिन यहाँ याद रखिए कि इस तरह के मतदान में लोक सभा अध्यक्ष अथवा राज्य सभा सभापति के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति को शामिल नहीं किया जाएगा।

दूसरी बात ये कि राज्य सभा सभापति या लोक सभा अध्यक्ष, के रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति शुरू-शुरू में मत नहीं देगा (जैसा कि हमने ऊपर समझा), लेकिन मत बराबर होने की दशा में उसका मत निर्णायक होगा और तब वह अपने मत का प्रयोग कर सकेगा।

अनुच्छेद 100(2) के तहत बताया गया है कि संसद्‌ के किसी सदन की सदस्यता में कोई रिक्ति होने पर भी, उस सदन को कार्य करने की शक्ति होगी और यदि बाद में यह पता चलता है कि कोई व्यक्ति, जो ऐसा करने का हकदार नहीं था, कार्यवाहियों में उपस्थित रहा है या उसने मत दिया है या अन्यथा भाग लिया है तो भी संसद्‌ की कोई कार्यवाही विधिमान्य होगी।

यहाँ दो बाते हैं;

पहली बात तो ये कि संसद के किसी सदन में अगर कुछ सदस्य का स्थान रिक्त (vacant) भी है तब भी सदन अपना कार्य कर सकेगा।

कहने का अर्थ ये है कि कई बार किसी सदस्य को अयोग्य (disqualified) ठहरा दिया जाता है, और इस तरह से उसका पद रिक्त हो जाता है। इसी तरह से किसी सदस्य की मृत्यु हो सकती है तब भी सदन में रिक्ति आ जाती है।

ऐसी स्थिति में जरूरी नहीं है कि पहले उस सीट को भरा जाए उसके बाद संसद के सदन को संचालित किया जाए। यानि कि उस रिक्ति के साथ भी संसद अपना काम अच्छे से कर सकता है।

दूसरी बात ये है कि यदि बाद में यह पता चलता है कि कोई व्यक्ति, जो संसद के कार्यवाहियों में उपस्थित होने का हकदार नहीं था या मत देने का हकदार नहीं था लेकिन फिर भी उसने सदन की कार्यवाहियों में भाग लिया हो या फिर मत दिया हो तो भी संसद्‌ की कार्यवाही विधिमान्य होगी।

अनुच्छेद 100(3) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि ब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक संसद्‌ के प्रत्येक सदन का अधिवेशन गठित करने के लिए गणपूर्ति सदन के सदस्यों की कुल संख्या का दसवां भाग होगी।

भारतीय संसद में, एक कोरम कार्य संचालन और निर्णय लेने के लिए आवश्यक सदस्यों की न्यूनतम संख्या को संदर्भित करता है। कोरम को लोकसभा (निचले सदन) या राज्यसभा (उच्च सदन) में सदस्यों की कुल संख्या के दसवें हिस्से के रूप में परिभाषित किया गया है।

लोकसभा में, कोरम 55 सदस्यों का है, जबकि राज्यसभा में यह 25 सदस्यों का है। यदि किसी भी सदन की बैठक के दौरान किसी भी समय यह पाया जाता है कि उपस्थित सदस्यों की संख्या गणपूर्ति से कम है, तो पीठासीन अधिकारी को सदन को तब तक स्थगित करने की आवश्यकता होती है जब तक कि गणपूर्ति के लिए पर्याप्त संख्या में सदस्य उपस्थित न हों।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कोरम की आवश्यकता केवल बैठक की शुरुआत में और मतदान के दौरान होती है। एक बार कोरम पूरा हो जाने के बाद, यह आवश्यक नहीं है कि इसे पूरी बैठक के दौरान बनाए रखा जाए।

अनुच्छेद 100(4) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि यदि सदन के अधिवेशन में किसी समय गणपूर्ति नहीं है तो सभापति या अध्यक्ष अथवा उस रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह सदन को स्थगित कर दे या अधिवेशन को तब तक के लिए निलंबित कर दे जब तक गणपूर्ति नहीं हो जाती है।

इसे हमने ऊपर समझ लिया है कि लोकसभा में, कोरम 55 सदस्यों का है, जबकि राज्यसभा में यह 25 सदस्यों का है। यदि किसी भी सदन की बैठक के दौरान किसी भी समय यह पाया जाता है कि उपस्थित सदस्यों की संख्या गणपूर्ति से कम है, तो पीठासीन अधिकारी को सदन को तब तक स्थगित करने की आवश्यकता होती है जब तक कि गणपूर्ति के लिए पर्याप्त संख्या में सदस्य उपस्थित न हों।

तो यही है अनुच्छेद 100 (Article 100), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

| Related Article

अनुच्छेद 101
अनुच्छेद 99
—————————
भारतीय संविधान
संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
—————————–
FAQ. अनुच्छेद 100 (Article 100) क्या है?

अनुच्छेद 100 के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि सदनों में मतदान कैसे होगा, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति (Quorum) किस तरह से काम करेगी।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।