यह लेख अनुच्छेद 105 (Article 105) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

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Article 105

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📜 अनुच्छेद 105 (Article 105) – Original

संसद और उसके सदस्यों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां
105. संसद के सदनों की तथा उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार आदि — (1) इस संविधान के उपबंधों और संसद की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों और स्थायी आदेशों के अधीन रहते हुए, संसद में वाक-स्वातंत्र्य होगा।

(2) संसद्‌ में या उसकी किसी समिति में संसद्‌ के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी और किसी व्यक्ति के विरुद्ध संसद्‌ के किसी सदन के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन किसी प्रतिवेदन, पत्र, मतों या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में इस प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।

1[(3) अन्य बातों में संसद्‌ के प्रत्येक सदन की और प्रत्येक सदन के सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां ऐसी होंगी जो संसद, समय- समय पर, विधि द्वारा, परिनिश्चित करे और जब तक वे इस प्रकार परिनिश्वचित नहीं की जाती हैं तब तक 2[वही होंगी जो संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 15 के प्रवृत्त होने से ठीक पहले उस सदन की और उसके सदस्यों और समितियों की थीं।]]

(4) जिन व्यक्तियों को इस संविधान के आधार पर संसद्‌ के किसी सदन या उसकी किसी समिति में बोलने का और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार है, उनके संबंध में खंड (1), खंड (2) और खंड (3) के उपबंध उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे संसद्‌ के सदस्यों के संबंध में लागू होते हैं।
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1. संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 21 द्वारा कतिपय शब्दों को “तारीख अधिसूचित नहीं की गई)” प्रतिस्थापित नहीं किया गया । इस संशोधन का संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर दिया गया ।
2. संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 15 द्वारा (20-6-1979 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
—-अनुच्छेद 105 —-

Powers, Privileges and Immunities of Parliament and its Members
105. Powers, privileges, etc., of the Houses of Parliament and of the members and committees thereof — (1) Subject to the provisions of this Constitution and to the rules and standing orders regulating the procedure of Parliament, there shall be freedom of speech in Parliament.

(2) No member of Parliament shall be liable to any proceedings in any court in respect of anything said or any vote given by him in Parliament or any committee thereof, and no person shall be so liable in respect of the publication by or under the authority of either House of Parliament of any report, paper, votes or proceedings.

1[(3) In other respects, the powers, privileges and immunities of each House of Parliament, and of the members and the committees of each House, shall be such as may from time to time be defined by Parliament by law, and,
until so defined, 2[shall be those of that House and of its members and committees immediately before the coming into force of section 15 of the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978.]]

(4) The provisions of clauses (1), (2) and (3) shall apply in relation to persons who by virtue of this Constitution have the right to speak in, and otherwise to take part in the proceedings of, a House of Parliament or any committee thereof as they apply in relation to members of Parliament.
Article 105

🔍 Article 105 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का दूसरा अध्याय है – संसद (Parliament)

संसद के तहत अनुच्छेद 79 से लेकर 122 तक आते हैं। और इस भाग के अंतर्गत संघ के संसद की चर्चा की गई है। जिसके तहत राष्ट्रपति (President), लोकसभा (Lok Sabha), एवं राज्यसभा (Rajya Sabha) आते हैं।

तो इस अध्याय के तहत आने वाले अनुच्छेदों में हम संसद (Parliament) को विस्तार से समझने वाले हैं। यहाँ यह याद रखिए कि संविधान के भाग 5 को संघ या The Union के नाम से भी जाना जाता है।

कुल मिलाकर संविधान के भाग 5 के अध्याय II अंतर्गत अनुच्छेद 79 से लेकर अनुच्छेद 122 तक आता है। इस लेख में हम अनुच्छेद 105 (Article 105) को समझने वाले हैं;

संसदीय विशेषाधिकार (Parliamentary Privileges)
अनुच्छेद-21 – भारतीय संविधान
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| अनुच्छेद 105 – संसद के सदनों की तथा उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार आदि

अनुच्छेद 79 के तहत, देश के सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था के रूप में संसद की व्यवस्था की गई है। संसद तीन घटकों से मिलकर बना है; राष्ट्रपति (President), लोकसभा (Lok Sabha) और राज्यसभा (Rajya Sabha)।

संसद में दो सदन है लोक सभा और राज्यसभा। लोकसभा में कुल 543 निर्वाचित सीटें हैं। भारत में संसद का दूसरा सदन भी है, जिसे राज्य सभा या राज्यों की परिषद के रूप में जाना जाता है। अभी फिलहाल 245 सीटें राज्यसभा में प्रभाव में है जिसमें से 233 सदस्यों को चुनने के लिए चुनाव होते हैं जबकि 12 सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं।

कुल मिलाकर अभी लोक सभा और राज्य सभा में 788 सदस्य है। यानि की संसद में दो सदन है और अभी 788 सदस्य है। इसके अलावा और बात करें तो में कई समितियां होती है जिसकी मदद से उचित कार्य विभाजन हो जाता है और संसदीय कार्यों की गुणवत्ता बढ़ जाती है।

अनुच्छेद 105 में, इन्ही तीनों घटकों (संसद के सदन, उनके सदस्य और समितियां) की शक्तियों एवं विशेषाधिकारों आदि के बारे में बताया गया है। इस अनुच्छेद के तहत कुल 4 खंड है। आइये इसे समझें;

अनुच्छेद-52 – भारतीय संविधान
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Article 105(1) की व्याख्या :-

अनुच्छेद 105(1) के तहत कहा गया है कि इस संविधान के उपबंधों और संसद की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों और स्थायी आदेशों के अधीन रहते हुए, संसद में वाक-स्वातंत्र्य (Freedom of Speech) होगा।

बोलने की स्वतंत्रता लोकतांत्रिक शासन का एक अनिवार्य पहलू है। भारत का संविधान अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत भारत के नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार के रूप में गारंटी देता है।

संसद के सदस्यों (सांसदों) को भी इसी तरह से सदन के नियमों और विनियमों के अधीन संसद में स्वतंत्र रूप से बोलने का अधिकार है। बोलने की यह स्वतंत्रता सांसदों के लिए अपने घटकों के हितों का प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व करने और सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिए महत्वपूर्ण है।

कुल मिलाकर कहने का अर्थ है कि भारतीय संसद में, सांसद बिना किसी डर या प्रतिशोध के अपने विचार, राय और आलोचना अभिव्यक्त कर सकते हैं।

◾ हालाँकि, बोलने की यह स्वतंत्रता पूर्ण (Absolute) नहीं है बल्कि इस संविधान के उपबंधों और संसद की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों और स्थायी आदेशों के अधीन है।

लेकिन यहाँ यह याद रखिए कि संसद या विधानमंडल में बोलने की आजादी अनुच्छेद 19(1) के अंतर्गत मिली बोलने की आजादी से थोड़ा अलग है।

कहने का अर्थ ये ही कि जिन बातों को बोलने पर एक आम व्यक्ति के विरुद्ध अनुच्छेद 19(2) के तहत कार्यवाही की जा सकती है वही बात अगर संसद सदस्य किसी सदन या संसदीय समिति में बोले तो उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती है।

कुल मिलाकर कहने का अर्थ ये है कि सदन में या संसद की समितियों में सदस्यों को पूरी आजादी होती है कि वे जो चाहे कहें या बोलें, शर्त केवल इतनी होती है उन्हे सदन के आंतरिक अनुशासन में रहना होता है।

सांसदों के आचरण को विनियमित करने और सदन के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए संसद के अपने नियम और प्रक्रियाएं हैं।

ये नियम सांसदों को संसद में बोलते समय पालन करने के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं, जैसे कि मर्यादा बनाए रखना, असंसदीय भाषा के उपयोग से बचना और निराधार आरोप लगाने से बचना।

अब सवाल ये आता है कि संसद में बोलने की कितनी स्वतंत्रता है, इसका जवाब हमने इसी अनुच्छेद के अगले खंड में मिल जाता है।

Article 105(2) की व्याख्या :-

अनुच्छेद 105(2) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि संसद्‌ में या उसकी किसी समिति में संसद्‌ के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी और किसी व्यक्ति के विरुद्ध संसद्‌ के किसी सदन के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन किसी प्रतिवेदन (Report), पत्र, मतों या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में इस प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।

यहाँ दो बातें हैं;

पहली बात तो ये कि किसी सदस्य द्वारा संसद या उसकी किसी समिति में दिये गए भाषण या किसी मत के लिए, न्यायालय में उस पर कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती। इसे व्यक्तिगत विशेषाधिकार के अंतर्गत रखा जाता है।

व्यक्तिगत विशेषाधिकारों (Personal privilege) से संबन्धित कुछ विशेषाधिकार इस प्रकार है:-

1. कोई सदस्य दिए गए तीन स्थितियों में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है;

  1. जब सदन में बैठक चल रहा हो जिसका वो सदस्य है;
  2. संसदीय समिति का बैठक चल रहा हो जिसका वो सदस्य है;
  3. दोनों सदनों का संयुक्त बैठक चल रहा हो;

इसके अलावा, संसद सदस्यों को संसद की कार्यवाही के दौरान, कार्यवाही शुरू होने से 40 दिन पूर्व तथा कार्यवाही बंद होने के 40 दिन बाद तक बंदी नहीं बनाया जा सकता है।

यहाँ याद रखने वाली बात है कि यह अधिकार केवल नागरिक (civil) मुकदमों में लागू होता है, आपराधिक (Criminal) तथा प्रतिबंधात्मक निषेध (restrictive prohibition) मामलों में नहीं।

हालांकि अगर किसी सदस्य की गिरफ्तारी, नजरबंदी या कारावास की स्थिति हो तो सक्षम प्राधिकारी द्वारा सदन के अध्यक्ष को इस बारे में सूचित करना आवश्यक होता है, नहीं तो इसे विशेषाधिकार हनन माना जा सकता है।

2. उन्हें संसद में भाषण देने की स्वतंत्रता है। किसी सदस्य द्वारा संसद में दिये गए भाषण या किसी मत के लिए, न्यायालय में उस पर कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती।

3. वे न्यायनिर्णयन सेवा से मुक्त है। वे संसद सत्र के दौरान न्यायालय में लंबित मुक़दमे में प्रमाण प्रस्तुत करने या उपस्थित होने के लिए मना कर सकते हैं।

4. यदि कोई सदस्य संसद या संसदीय समिति का कोई कार्य करने के लिए दिल्ली आ रहा हो तो उसे दिल्ली पहुंचने से रोकना या परेशान करना भी विशेषाधिकार का उल्लंघन माना जा सकता है।

5. अध्यक्ष या सभापति की अनुमति के बिना संसद भवन परिसर के अंदर किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।

धारा 144 भी संसद के परिसरों में लागू नहीं की जा सकती। यदि सक्षम प्राधिकारी (Competent Authority) ऐसा करने की सोचें तो वह विशेषाधिकार हनन का मुद्दा बन सकता है।

दूसरी बात ये कि इसे अपनी रिपोर्ट, वाद-विवाद और कार्यवाही को प्रकाशित करने तथा अन्यों को इसे प्रकाशित न करने देने का अधिकार है।

लेकिन, 1978 के 44वें संशोधन अधिनियम के अनुसार, सदन की पूर्व अनुमति बिना प्रेस (मीडिया) संसद की कार्यवाही की सही रिपोर्ट का प्रकाशन कर सकता है (हालांकि यह सदन की गुप्त बैठक के मामले में लागू नहीं होता है)।

संसदीय विशेषाधिकार और प्रेस की स्वतंत्रता (Parliamentary Privilege and Freedom of the Press):

प्रेस को संसद का विस्तार माना जाता है क्योंकि प्रेस ही संसदीय विधान या चर्चाओं को जनता तक पहुंचाता है। अनुच्छेद 19(1)(क) के तहत प्रेस की स्वतंत्रता सुनिश्चित है।

◾ अनुच्छेद 105(2) के तहत संसद के प्रत्येक सदन की कार्यवाहियों के प्रकाशन से संबंधित सभी व्यक्तियों को किसी न्यायालय में कार्यवाही से पूर्ण उन्मुक्ति (immunity) प्रदान की गई है यदि ऐसा प्रकाशन सदन द्वारा सदन के प्राधिकार से किया जाय।

लेकिन यही उन्मुक्ति ससदीय कार्यवाहियों की रिपोर्ट समाचारपत्रों में प्रकाशित करने के मामले में प्रदान नहीं की गई है, जब तक कि किसी सदन द्वारा ऐसे प्रकाशन के लिए स्पष्टतः प्राधिकृत न किया गया हो।

कुल मिलाकर कहने का अर्थ ये है कि संसद को अपनी रिपोर्ट, वाद-विवाद और कार्यवाही को प्रकाशित करने तथा अन्यों को इसे प्रकाशित न करने देने का अधिकार है।

ऐसी व्यवस्था इसीलिए की गई ताकि सदन अपने वाद-विवाद एवं कार्यवाहियों के प्रकाशन पर नियंत्रण रख सके और यदि आवश्यक हो तो उल्लंघन करने वाले को दंड भी दे सके।

◾ हालांकि आमतौर पर सदन की कार्यवाहियों की रिपोर्ट प्रकाशित करने पर को प्रतिबंध नहीं लगाया जाता है। इसकी एक वजह 44वां संविधान संशोधन अधिनियम 1978 है। जिसके तहत संविधान में एक नया अनुच्छेद 361क को डाला गया।

इसी के तहत यह व्यवस्था की गई कि सदन की पूर्व अनुमति बिना प्रेस (मीडिया) संसद की कार्यवाही की सही रिपोर्ट का प्रकाशन कर सकता है। लेकिन शर्त ये है कि यह रिपोर्ट दुर्भावना से या जानबूझकर गलत साक्ष्य पेश कर प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए।

◾ यदि कोई रिपोर्ट दुर्भावना से की गई हो या फिर किन्ही भाषणों को जान-बूझकर गलत रूप दिया गया हो या साक्ष्य छिपाया गया हो तो इसे विशेषाधिकार भंग या सदन की अवमानना माना जा सकता है। और इसके लिए दोषी व्यक्ति को दंड भी दिया जा सकता है।

◾ यदि प्रेस द्वारा किसी समिति के रिपोर्ट को सदन में पेश होने से पहले ही मीडिया में प्रकाशित कर दिया जाता है तो इसे भी विशेषाधिकार का हनन माना जा सकता है।

◾ इसके अलावा प्रेस सदन के किसी गुप्त बैठक को भी प्रकाशित नहीं कर सकता है तब तक, जब तक सदन द्वारा उसे अगोपनीय (non confidential) करार नहीं दिया जाता है।

नोट – साल 1956 में संसदीय कार्यवाही (प्रकाशन का संरक्षण) अधिनियम बनाया गया था जिसके तहत तहत यह व्यवस्था किया गया था कि किसी भी सत्य या निर्दोष प्रकाशन के लिए किसी भी व्यक्ति को सजा नहीं दी जा सकती, तब तक जब तक कि यह साबित न हो जाए कि प्रकाशन द्वेषपूर्ण इरादे से किया गया था। लेकिन बाद में 1975 में आपातकाल के समय इस अधिनियम को समाप्त कर दिया गया था। इसीलिए आपातकाल समाप्त होने के बाद अनुच्छेद 361क के तहत वही व्यवस्था कर दी गई।

Article 105(3) की व्याख्या :-

अनुच्छेद 105(3) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि अन्य बातों में संसद्‌ के प्रत्येक सदन की और प्रत्येक सदन के सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां ऐसी होंगी जो संसद, समय- समय पर, विधि द्वारा, परिनिश्चित करे और जब तक वे इस प्रकार परिनिश्वचित नहीं की जाती हैं तब तक वही होंगी जो संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 15 के प्रवृत्त होने से ठीक पहले उस सदन की और उसके सदस्यों और समितियों की थीं।

यहाँ दो बातें हैं;

पहली बात तो ये कि अनुच्छेद 105(1) और 105(2) में कही गई बातों के अतिरिक्त अन्य बातों में संसद्‌ के प्रत्येक सदन की और प्रत्येक सदन के सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार (privilege) और उन्मुक्तियां (immunity) ऐसी होंगी जो संसद, समय-समय पर, विधि द्वारा सुनिश्चित करे;

और दूसरी बात ये है कि जब तक विधि द्वारा इस प्रकार उपरोक्त चीज़ें सुनिश्चित नहीं की जाती हैं तब तक विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ वही होंगी जो संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 15 के प्रवृत्त होने से ठीक पहले उस सदन की और उसके सदस्यों और समितियों की थीं।

कुल मिलाकर अनुच्छेद 105(3) विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने से संबंधित है। इसका क्या मतलब है आइये विस्तार से समझते हैं;

विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने का निर्देश (Instruction to Codification of Privileges):

संविधान के अनुच्छेद 105(3) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि संविधान में उल्लिखित विशेषाधिकारों के अलावा, संसद विधि द्वारा अपने विशेषाधिकारों को, समय-समय पर परिभाषित कर सकता है।

लेकिन इस खंड के अनुसरण में सदन एवं समितियों की शक्तियों, विशेषाधिकारों एवं उन्मुक्तियों (Immunities) को परिभाषित करने के लिए संसद ने अब तक कोई विधि नहीं बनाई है।

इसे परिभाषित न किए जाने के पीछे का तर्क यह दिया जाता है कि विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध न करना भी एक संसदीय विशेषाधिकार है। और दूसरी बात यह है कि इसे इसलिए भी जरूरी नहीं समझा गया क्योंकि इसके बिना भी अच्छे से काम चल रहा है।

लेकिन इसके अलावा भी एक दिलचस्प बात है, जिसे जाननी जरूरी है; क्या है वो आइये समझते हैं;

आरंभ में अधिनियमित किये गये संविधान के इस उपबंध (अनुच्छेद 105(3)) में यह व्यवस्था थी कि संसद के सदस्यों के विशेषाधिकार तब तक वही रहेंगे जो संविधान के प्रारंभ में ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स (वहाँ का लोक सभा) के सदस्यों एवं समितियों के थे। और यह तब तक रहेंगे जब तक कि संसद विधि द्वारा विशेषाधिकारों को परिभाषित नहीं कर देती।

कहने का अर्थ ये है कि यदि संसद द्वारा विशेषाधिकारों को परिभाषित कर दिया जाता एवं उसे संहिताबद्ध कर दिया जाता तो ब्रिटिश संसद के वे उपबंध हमारी संसद पर लागू नहीं होते।

लेकिन ऐसा हुआ नहीं (क्यों नहीं हुआ अभी हमने ऊपर समझा)। इसीलिए आज भी अधिकांशतः विशेषाधिकार वहीं है जो ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के उस समय थे।

लेकिन आपातकाल खंत्म होने के बाद जब संविधान में 44वां संविधान संशोधन हुआ तब अनुच्छेद 105(3) में संशोधन करके ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स को हटाकर यह लिख दिया गया कि ” संविधान में उल्लिखित विशेषाधिकारों के अलावा अन्य विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां ऐसी होंगी जो संसद, समय-समय पर, विधि द्वारा, परिनिश्चित करे और जब तक वे इस प्रकार परिनिश्वचित नहीं की जाती हैं तब तक वही होंगी जो संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 15 के प्रवृत्त होने से ठीक पहले उस सदन की और उसके सदस्यों और समितियों की थीं।।

तो कुल मिलाकर समझने वाली बात ये है कि संविधान में उल्लिखित शक्तियों और विशेषाधिकारों के अलावा अन्य विशेषाधिकार और शक्तियाँ वहीं है जो 26 जनवरी 1950 को ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स को प्राप्त थे।

लेकिन सवाल ये आता है कि फिर संविधान से “ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स” टर्म को हटाया क्यों गया? इसके पीछे की वजह स्वाभिमान है कि आजाद होने के बाद भी संविधान में ब्रिटिश का नाम क्यों रहें। भले ही उसकी नीति रहे लेकिन उसका नाम संविधान में नहीं होना चाहिए।

Article 105(3) की व्याख्या :-

अनुच्छेद 105(4) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि जिन व्यक्तियों को इस संविधान के आधार पर संसद्‌ के किसी सदन या उसकी किसी समिति में बोलने का और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार है, उनके संबंध में खंड (1), खंड (2) और खंड (3) के उपबंध उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे संसद्‌ के सदस्यों के संबंध में लागू होते हैं।

संविधान ने कुछ प्रकार के लोगों को संसद की कार्यवाहियों में भाग लेने और बोलने का अधिकार दिया है। अनुच्छेद 88 के तहत मंत्रियों और महान्यायवादी को यह अधिकार मिला है कि वह संसद के किसी भी सदन में बोल सकता है। तो इनके ऊपर भी अनुच्छेद 105(1), (2) और (3) खंड लागू होते हैं। यानि कि इनको भी अनुच्छेद 105 के तहत मिलने वाले विशेषाधिकार का लाभ मिलेगा।

अनुच्छेद 105 और संसदीय विशेषाधिकार (Article 105 and Parliamentary Privilege):

संसद की गरिमा, स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता अक्षुण्ण रहे और ये अपना काम बिना किसी अवरोध के कर सके इसके लिए संसद के सदस्यों और इसके विभिन्न निकायों को संविधान द्वारा कुछ विशेषाधिकार दिये गए हैं, इसे संसदीय विशेषाधिकार कहा जाता है।

संसदीय विशेषाधिकार, वे विशेषाधिकार, उन्मुक्तियाँ और छूटें हैं जो संसद के दोनों सदनों, इसके समितियों और इसके सदस्यों को प्राप्त होते हैं।

ये विशेषाधिकारें इनके कार्यों की स्वतंत्रता और प्रभाविता के लिए आवश्यक हैं। इन अधिकारों के कारण ही सदन अपनी स्वायतता एवं सम्मान को संभाल पाता है।

उपर्युक्त वर्णित लोगों और समूहों के अलावा संविधान ने भारत के महान्यायवादी को भी संसदीय अधिकार दिये हैं। जिसके तहत वे संसद के किसी सदन या इसकी किसी समिति में बोलते और हिस्सा लेते हैं। [यहाँ पर ध्यान रखने वाली बात है ये है कि राष्ट्रपति को; संसद का भाग होते हुए भी संसदीय अधिकार नहीं मिलता है।]

जैसा कि हमने ऊपर समझा संसद ने अब तक विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने के संबंध में कोई विशेष विधि नहीं बनाया है (जो कि संसद को अनुच्छेद 105(3) के तहत बनाना चाहिए था)।

आमतौर पर ये विशेषाधिकारें 5 स्रोतों पर आधारित है:- 1. संवैधानिक उपबंध, 2. संसद द्वारा निर्मित अनेक विधियाँ, 3. दोनों सदनों के नियम, 4. संसदीय परंपरा, और; 5. न्यायिक व्याख्या।

आइये देखते हैं कि वे कौन-कौन सी विशेषाधिकारें हैं जो संसद के सदस्यों एवं समितियों के सदस्यों को मिलता है;

मुख्य विशेषाधिकारों की सूची (List of Main Privileges):

विशेषाधिकार
(Privileges)
संबंध
(Relation with)
संसद में बोलने की आजादीसंविधान का अनुच्छेद 105(1)
संसद में या उसकी किसी समिति में किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गये किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध किसी न्यायालय में कार्यवाही किये जाने से छूटसंविधान का अनुच्छेद 105(2)
किसी व्यक्ति द्वारा, संसद के किसी सदन के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन किसी रिपोर्ट, पत्र, मतों या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में उसके विरुद्ध किसी न्यायालय में कार्यवाही किए जाने से छूटसंविधान का अनुच्छेद 105(2)
संसद की कार्यवाहियों की जांच करने के संबंध में न्यायालयों पर रोकसंविधान का अनुच्छेद 122
सदन की बैठक के दौरान, बैठक प्रारंभ होने से 40 दिन पूर्व और उसके समाप्त होने के बाद 40 दिन तक सिविल मामलों में सदस्यों का बंदी न बनाया जानासिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 135क
किसी सदस्य की गिरफ्तारी, नजरबंदी एवं कारावास या रिहाई के बारे में तुरंत सूचना पाने का सदन का अधिकारलोक सभा प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियम 229 और 230
अध्यक्ष की अनुमति के बिना संसद के परिसर के भीतर किसी भी व्यक्ति के गिरफ्तारी पर रोकलोक सभा प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियम 232 और 233
सदन के गोपनीय बैठकों के निर्णयों को प्रकाशित न किए जाने का अधिकारलोक सभा प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियम 252
किसी संसदीय समिति के समक्ष दिया गया साक्ष्य और उसका रिपोर्ट तब तक प्रेस प्रकाशित नहीं कर सकती है जब तक कि उसे सदन के पटल पर पेश नहीं कर दिया जाता।लोक सभा प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियम 275
संसद के सदनों को अपनी प्रक्रिया और अपने कार्य के संचालन को स्वयं विनियमित करने की शक्ति प्राप्त है।अनुच्छेद 118
सदन को अपने वाद-विवाद और कार्यवाही के प्रकाशन पर रोक लगाने की शक्तिलोक सभा प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियम 249
Article 105 and Parliamentary Privilege

Article 105 और समापन टिप्पणी

एक संस्था के रूप में संसद की स्वतंत्रता और अखंडता को बनाए रखने के लिए संसदीय विशेषाधिकार की अवधारणा आवश्यक है। यह संसद के सदस्यों को बिना किसी कानूनी कार्रवाई या दायित्व के किसी भी मुद्दे के बारे में स्वतंत्र रूप से और खुले तौर पर बोलने की अनुमति देता है।

संसदीय विशेषाधिकार के अन्य कई ऐसे पहलू है जिसे समझना जरूरी हैं। अनुच्छेद 105 के तहत हमने यहाँ ज्यादा-से-ज्यादा पहलुओं को कवर करने की कोशिश की है, लेकिन जाहिर है सभी पहलुओं को यहाँ समेटना यहाँ संभव नहीं था इसीलिए हमने अलग से एक लेख लिखा है जिसके तहत विस्तार से सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को चर्चा की गई है; इस लेख के तहत आप निम्नलिखित चीजों को समझ सकते हैं;

  • सामूहिक विशेषाधिकार (Collective privilege)
  • व्यक्तिगत विशेषाधिकार (Personal privilege)
  • विशेषाधिकारों का हनन एवं सदन की अवमानना (Breach of privilege & Contempt of the House of Parliament):
  • सदन विशेषाधिकार संबंधी प्रश्नों को कैसे तय करता है?
  • विशेषाधिकार समिति (Privileges Committee) क्या है?
  • विशेषाधिकार भंग करने या अवमानना के लिए दंड की व्यवस्था
  • उत्तर प्रदेश के विधान सभा द्वारा विशेषाधिकार हनन पर दंड देने का मामला

| इसे विस्तार से समझने के लिए पढ़ें;  संसदीय विशेषाधिकार: अर्थ, वर्गीकरण, विभिन्न पहलू एवं उदाहरण

तो यही है अनुच्छेद 105 (Article 105), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
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FAQ. अनुच्छेद 105 (Article 105) क्या है?

कुल मिलाकर अभी लोक सभा और राज्य सभा में 788 सदस्य है। यानि की संसद में दो सदन है और अभी 788 सदस्य है। इसके अलावा और बात करें तो में कई समितियां होती है जिसकी मदद से उचित कार्य विभाजन हो जाता है और संसदीय कार्यों की गुणवत्ता बढ़ जाती है।
अनुच्छेद 105 में, इन्ही तीनों घटकों (संसद के सदन, उनके सदस्य और समितियां) की शक्तियों एवं विशेषाधिकारों आदि के बारे में बताया गया है।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), एनसाइक्लोपीडिया, सरकारी वेबसाइट, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।