यह लेख अनुच्छेद 11 (Article 11) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें। इसकी व्याख्या इंग्लिश में भी उपलब्ध है, इसके लिए आप नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग करें;

अपील - Bell आइकॉन पर क्लिक करके हमारे नोटिफ़िकेशन सर्विस को Allow कर दें ताकि आपको हरेक नए लेख की सूचना आसानी से प्राप्त हो जाए। साथ ही हमारे सोशल मीडिया हैंडल से जुड़ जाएँ और नवीनतम विचार-विमर्श का हिस्सा बनें;
अनुच्छेद 11

📌 Join YouTube📌 Join FB Group
📌 Join Telegram📌 Like FB Page
अगर टेलीग्राम लिंक काम न करे तो सीधे टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial

📜 अनुच्छेद 11 (Article 11)

11. संसद्‌ द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना – इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों की कोई बात नागरिकता के अर्जन और समाप्ति के तथा नागरिकता से संबंधित अन्य सभी विषयों के संबंध में उपबंध करने की संसद्‌ की शक्ति का अल्पीकरण नहीं करेगी ।
—–अनुच्छेद 11—–
11. Parliament to regulate the right of citizenship by law. — Nothing in the foregoing provisions of this Part shall derogate from the power of Parliament to make any provision with respect to the acquisition and termination of citizenship and all other matters relating to citizenship.
—–Article 11

🔍 Article 11 Explanation in Hindi

भारत के संविधान के भाग 2 में नागरिकता का वर्णन है, जिसके तहत अनुच्छेद 5 से 11 तक कुल 7 अनुच्छेद आते है। संविधान में भारतीय नागरिकता सुनिश्चित करने वाली कोई स्थायी विधि नहीं है।

बल्कि अनुच्छेद 11 के तहत यह संसद पर छोड़ दिया गया कि वह इस संबंध में उचित स्थायी कानून बनाए। और संसद ने इसी को क्रियान्वित करने के उद्देश्य से साल 1955 में नागरिकता अधिनियम अधिनियमित किया।

[इस विषय पर एक लेख मौजूद है आप उसे अवश्य पढ़ें – नागरिकता : अर्थ, अर्जन, समाप्ति इत्यादि]

लेकिन जब तक यह कानून नहीं बना था तब तक किसे भारत का नागरिक माना जाएगा और किसे नहीं, इसी का उल्लेख अनुच्छेद 5 से लेकर 11 तक किया गया है। और इसी के तहत इस लेख में हम अनुच्छेद 11 को समझने वाले हैं।

| अनुच्छेद 11 – संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना

इस अनुच्छेद के तहत, संसद के पास यह अधिकार है कि नागरिकता अर्जन और समाप्ति या इसी से संबन्धित कोई भी नियम या विधि बना सकती है। 

कहने का अर्थ ये है कि संविधान में भारत की नागरिकता से संबंधित स्थायी और विस्तृत कानून अधिकथित करने का कोई आशय नहीं है इसीलिए यह अनुच्छेद संसद को नागरिकता के संबंध में कानून बनाने की शक्ति देता है।

और संसद ने इसी के अनुपालन में साल 1955 में नागरिकता अधिनियम अधिनियमित की। और अभी नागरिकता के अर्जन और समाप्ति के लिए यही अनुच्छेद काम कर रहा है। इसमें समय के साथ ढेरों संशोधन हो चुके हैं। [इसे विस्तार से समझने के लिए यह लेख अवश्य पढ़ें – नागरिकता : अर्थ, अर्जन, समाप्ति इत्यादि]

तो आइये संक्षिप्त में समझते हैं कि नागरिकता अधिनियम 1955 में क्या है?

नागरिकता अधिनियम 1955 (Citizenship Act 1955)

नागरिकता अधिनियम 1955 में 18 धाराएँ हैं जिसमें से धारा 3 से लेकर 7 तक भारत की नागरिकता प्राप्त करने के क्रमशः 5 तरीके बताए गए हैं। 

कहने का अर्थ है, इस कानून के तहत,

1. जन्म के आधार पर (By birth)
2. वंश के आधार पर (By descent)
3. पंजीकरण के द्वारा (By registration)
4. प्राकृतिक तौर पर (Naturalisation)
5. क्षेत्र समाविष्ट के आधार पर (On the basis of area comprised)। 

1. जन्म के आधार पर नागरिकता (Citizenship by birth)

यहाँ याद रखने योग्य तीन बातें हैं;

  1. ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जन्म के आधार पर भारत का नागरिक होगा जिसका जन्म भारत में 26 जनवरी 1950 को या उसके बाद लेकिन 1 जुलाई 1987 से पहले हुआ है।
  2. 1 जुलाई 1987 के बाद जन्म के आधार पर किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता तभी मिलेगी, जब उस व्यक्ति के जन्म के समय उसके माता या पिता में से कोई एक भारत का नागरिक हो।
  3. 2003 के नागरिकता अधिनियम संशोधन लागू होने के बाद से कोई व्यक्ति जन्म के आधार पर भारत का नागरिक तभी बन सकता है जब उसके जन्म के समय उसके माता-पिता दोनों भारत का नागरिक हो। लेकिन अगर उनमें से सिर्फ एक ही व्यक्ति भारत का नागरिक है तो जो दूसरा व्यक्ति है उसे अवैध प्रवासी (Illegal Migrant) नहीं होना चाहिए। 

2. वंश के आधार पर नागरिकता (Citizenship by Descent)

वंश के आधार पर नागरिकता भारत के बाहर पैदा हुए बच्चों को मिलती है। इसके तहत तीन बातें हैं जो आपको याद होनी चाहिए; 

  1. 26 जनवरी 1950 से 10 दिसम्बर 1992 के बीच  भारत के बाहर पैदा हुआ कोई व्यक्ति वंश के आधार पर भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकता है, लेकिन तभी जब उसके जन्म के समय उसके पिता भारत का नागरिक हो। 
  2. 10 दिसम्बर 1992 के बाद अगर कोई बच्चा भारत के बाहर पैदा हुआ हो तो वह भी भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकता है, लेकिन तभी जब उसके माता या पिता दोनों में से कोई एक उसके जन्म के समय भारत का नागरिक हो।

कहने का अर्थ है कि 1992 से पहले सिर्फ पिता का भारतीय नागरिक होना जरूरी था, 1992 के बाद माता या पिता में से किसी एक का भारतीय नागरिक होना काफी था। 

  1. 2003 के नागरिकता संशोधन के प्रभावी होने के बाद यानि कि 3 दिसम्बर 2004 के बाद भारत के बाहर पैदा हुए किसी भी बच्चे को वंश के आधार पर अगर नागरिकता चाहिए तो उसके माता या पिता में से किसी एक का उसके जन्म के समय भारतीय नागरिक तो होना ही चाहिए, लेकिन साथ में उस बच्चे के जन्म से एक वर्ष के भीतर उस देश में स्थिति भारतीय दूतावास में रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। 

3. पंजीकरण द्वारा नागरिकता (Citizenship by registration)

अगर कोई वैध प्रवासी केंद्र सरकार को पंजीकरण द्वारा नागरिकता के लिए आवेदन देता है तो केंद्र सरकार  उसे नागरिक के रूप में पंजीकृत कर सकता है; 

इसके तहत Category बनाई गई है और उसके तहत आने वाले व्यक्ति ही इस व्यवस्था का लाभ ले सकते हैं। उदाहरण के लिए,

भारतीय मूल का अगर कोई व्यक्ति रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन करने के 7 वर्ष पहले से भारत में मामूली तौर पर निवासी है, तो वह इसका फायदा ले सकता है। 

लेकिन शर्त ये है कि – वह रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन करने के पहले के ठीक 1 वर्ष की सम्पूर्ण अवधि में भारत में रहा हो, और इस 1 साल के पहले के 8 सालों में से कम से कम 6 साल की अवधि भारत में निवास किया हो।

यही प्रावधान तब भी लागू होता है, जब कोई व्यक्ति भारत के किसी नागरिक से विवाहित है।

इसके अलावा, भारतीय मूल का वह व्यक्ति जो अविभाजित भारत के बाहर किसी अन्य देश में रह रहा हो, वो इसका लाभ ले सकता है, भारतीय नागरिक के नाबालिग बच्चे इसका लाभ ले सकता है। 

इसके आलवा कोई व्यक्ति, जो पूरी आयु तथा क्षमता का हो तथा भारत सरकार द्वारा जारी किए गए OCI कार्ड को पिछले 5 वर्ष से धारण कर रहा हो और रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन करने के ठीक 1 वर्ष पहले से भारत में मामूली तौर पर निवास कर रहा हो, तो वो भी इसका लाभ ले सकता है। 

कुल मिलाकर आप इसे इस तरह से समझ सकते हैं कि अगर कोई बच्चा भारत के बाहर पैदा हुआ हो और उसने वंश के आधार पर जन्म से एक साल के भीतर भारत की नागरिकता नहीं ली और जवान होने के बाद उसे भारत की नागरिकता लेने का मन कर रहा है तो वह इस तरीके को अपना सकता है।

▪️ हालांकि इन सभी श्रेणियों के लोगों को भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत हो जाने के बाद निष्ठा की शपथ लेनी पड़ती है।

4. प्राकृतिक रूप से नागरिकता (Citizenship by naturalisation)

अगर कोई वैध प्रवासी प्राकृतिक नागरिकता के लिए भारत सरकार को आवेदन देता है तो भारत सरकार उस व्यक्ति को प्राकृतिक तौर पर नागरिकता प्रदान कर सकती है, लेकिन उस व्यक्ति को कुछ शर्तों को पूरा करना होगा; 

(1) वह व्यक्ति ऐसे किसी देश से संबन्धित न हो, जहां भारतीय नागरिक प्राकृतिक रूप से नागरिक नहीं बन सकते।

(2) यदि वह किसी अन्य देश का नागरिक हो तो भारतीय नागरिकता प्राप्त होने पर उसे उस देश की नागरिकता का त्याग करना होगा।

(3) यदि कोई व्यक्ति भारत में रह रहा हो और नागरिकता संबंधी आवेदन देने के कम से कम 1 वर्ष पूर्व से भारत में लगातार निवास कर रहा हो और इस 1 वर्ष के पहले के 14 वर्षों में से कम से कम 11 वर्ष भारत में रहा हो।

(4) उसका चरित्र भारत सरकार की नजर में अच्छा होना चाहिए और संविधान के आठवीं अनुसूची में उल्लिखित 22 भाषाओं में से किसी एक भाषा का अच्छा ज्ञाता होना चाहिए।

हालांकि भारत सरकार चाहें तो इन सभी शर्तों Bypass कर सकती है यदि व्यक्ति किसी विशेष सेवा जैसे, विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य, विश्व शांति या मानव उन्नति आदि से संबंध रखता हो।

▪️ इस तरह से नागरिक बने व्यक्तियों को भी भारत के संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेनी होती है।

5. क्षेत्र समाविष्ट के आधार पर नागरिकता (Citizenship by incorporation of territory)

दरअसल, किसी भी विदेशी क्षेत्र का जब भारत के द्वारा अधिग्रहण किया जाता है तो उस क्षेत्र विशेष के अंदर रह रहें लोगों को भारत की नागरिकता दी जाती है। 

जैसे कि जब पॉण्डिचेरी और गोवा को भारत में शामिल किया गया तो उसके लोगों को भारत की नागरिकता दी गयी। 

▪️ ये तो था नागरिकता अर्जन करने का तरीका जिसे कि नागरिकता अधिनियम 1955 के धारा 3 से लेकर 7 तक वर्णित किया गया है। इसी तरह से धारा 8, 9 और 10 नागरिकता समाप्ति से संबन्धित है, आइये संक्षेप में उसे भी समझ लेते हैं; 

नागरिकता समाप्ति के प्रावधान (Provisions for termination of citizenship)

जैसा कि हमने समझा तीन तरीके से नागरिकता समाप्त हो सकती है; 

1. स्वैच्छिक त्याग (Voluntary renunciation)

नागरिकता अधिनियम की धारा 8 के अनुसार, पूर्ण आयु और क्षमता प्राप्त कोई भारतीय नागरिक अपनी नागरिकता छोड़ना चाहे तो छोड़ सकता है। 

2. बर्खास्तगी के द्वारा (By Termination) 

धारा 9 के अनुसार, यदि कोई भारतीय नागरिक स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता ग्रहण कर ले तो उसकी भारतीय नागरिकता अपने आप ही बर्खास्त हो जाएगी। 

3. वंचित करने द्वारा (By depriving) 

केंद्र सरकार किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता से वंचित कर सकता है, यदि;

(1) नागरिकता फर्जी तरीके से प्राप्त की गयी हो,
(2) यदि नागरिक ने संविधान के प्रति अनादर जताया हो,
(3) यदि नागरिक ने युद्ध के दौरान शत्रु के साथ गैर- कानूनी रूप से संबंध स्थापित किया हो या उसे कोई राष्ट्रविरोधी सूचना दी हो,
(4)  पंजीकरण या प्राकृतिक नागरिकता के पाँच वर्ष के दौरान नागरिक को किसी देश में दो वर्ष की कैद हुई हो,
(5) नागरिक सामान्य रूप से भारत के बाहर सात वर्षों से रह रहा हो।

तो कुल मिलाकर यही है अनुच्छेद 11 (Article 11), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

अनुच्छेद 11 (Article 11) क्या है?

संसद्‌ द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना – इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों की कोई बात नागरिकता के अर्जन और समाप्ति के तथा नागरिकता से संबंधित अन्य सभी विषयों के संबंध में उपबंध करने की संसद्‌ की शक्ति का अल्पीकरण नहीं करेगी ।

| Related to article 11

अनुच्छेद 6
अनुच्छेद 5
अनुच्छेद 7
अनुच्छेद 8
अनुच्छेद 9
अनुच्छेद 10
article 11
भारतीय संविधान
संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
article 11
अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।