यह लेख अनुच्छेद 117 (Article 117) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

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Article 117
Article 117 of indian constitution

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📜 अनुच्छेद 117 (Article 117) – Original

वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया
117. वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध — (1) अनुच्छेद 110 के खंड (1) के उपखंड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय के लिए उपबंध करने वाला विधेयक या संशोधन राष्ट्रपति की सिफारिश से ही पुरःस्थापित या प्रस्तावित किया जाएगा, अन्यथा नहीं और ऐसा उपबंध करने वाला विधेयक राज्य सभा में पुरःस्थापित नहीं किया जाएगा:

परन्तु किसी कर के घटाने या उत्सादन के लिए उपबंध करने वाले किसी संशोधन के प्रस्ताव के लिए इस खंड के अधीन सिफारिश की अपेक्षा नहीं होगी।

(2) कोई विधेयक या संशोधन उक्त विषयों में से किसी के लिए उपबंध करने वाला केवल इस कारण नहीं समझा जाएगा कि वह जुर्मानों या अन्य धनीय शास्तियों के अधिरोपण का अथवा अनुजप्तियों के लिए फीसों की या की गई सेवाओं के लिए फीसों की मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण नहीं समझा जाएगा कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबंध करता है।

(3) जिस विधेयक को अधिनियमित और प्रवर्तित किए जाने पर भारत की संचित निधि में से व्यय करना पड़ेगा वह विधेयक संसद्‌ के किसी सदन द्वारा तब तक पारित नहीं किया जाएगा जब तक ऐसे विधेयक पर विचार करने के लिए उस सदन से राष्ट्रपति ने सिफारिश नहीं की है।
—-अनुच्छेद 117 —-

Procedure in Financial Matter
117. Special provisions as to financial Bills — (1) A Bill or amendment making provision for any of the matters specified in sub-clauses (a) to (f) of clause (1) of article 110 shall not be introduced or moved except on the recommendation of the President and a Bill making such provision shall not be introduced in the Council of States:

Provided that no recommendation shall be required under this clause for the moving of an amendment making provision for the reduction or abolition of any tax.

(2) A Bill or amendment shall not be deemed to make provision for any of the matters aforesaid by reason only that it provides for the imposition of fines or other pecuniary penalties, or for the demand or payment of fees for licences or fees for services rendered, or by reason that it provides for the imposition, abolition, remission, alteration or regulation of any tax by any local authority or body for local purposes.

(3) A Bill which, if enacted and brought into operation, would involve expenditure from the Consolidated Fund of India shall not be passed by either House of Parliament unless the President has recommended to that House the consideration of the Bill.
Article 117

🔍 Article 117 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का दूसरा अध्याय है – संसद (Parliament)

संसद के तहत अनुच्छेद 79 से लेकर 122 तक आते हैं। और इस भाग के अंतर्गत संघ के संसद की चर्चा की गई है। जिसके तहत राष्ट्रपति (President), लोकसभा (Lok Sabha), एवं राज्यसभा (Rajya Sabha) आते हैं।

तो इस अध्याय के तहत आने वाले अनुच्छेदों में हम संसद (Parliament) को विस्तार से समझने वाले हैं। यहाँ यह याद रखिए कि संविधान के भाग 5 को संघ या The Union के नाम से भी जाना जाता है।

कुल मिलाकर संविधान के भाग 5 के अध्याय II अंतर्गत अनुच्छेद 79 से लेकर अनुच्छेद 122 तक आता है। इस लेख में हम अनुच्छेद 117 (Article 117) को समझने वाले हैं;

अनुच्छेद-39 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-21 – भारतीय संविधान
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| अनुच्छेद 117 – वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध

अनुच्छेद 79 के तहत, देश के सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था के रूप में संसद की व्यवस्था की गई है। संसद तीन घटकों से मिलकर बना है; राष्ट्रपति (President), लोकसभा (Lok Sabha) और राज्यसभा (Rajya Sabha)।

संसद में दो सदन है लोक सभा और राज्यसभा। लोकसभा में कुल 543 निर्वाचित सीटें हैं। भारत में संसद का दूसरा सदन भी है, जिसे राज्य सभा या राज्यों की परिषद के रूप में जाना जाता है। अभी फिलहाल 245 सीटें राज्यसभा में प्रभाव में है जिसमें से 233 सदस्यों को चुनने के लिए चुनाव होते हैं जबकि 12 सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं।

कुल मिलाकर अभी लोक सभा और राज्य सभा में 788 सदस्य है। और यही विधायिका (Legislator) है जो कि कानून बनाता है।

संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया विधेयक (Bill) से शुरू होती है। विधेयक दरअसल कानून का एक ड्राफ्ट होता है जो बताता है कि कानून किस बारे में है और ये क्यों लाया जा रहा है।

ये जो विधेयक है इसे मोटे तौर पर चार भागों में बांटा जाता है; (1) सामान्य विधेयक (Ordinary Bill), (2) संविधान संशोधन विधेयक (Constitutional Amendment Bill), (3) धन विधेयक (Money Bill) और (4) वित्त विधेयक (Finance Bill)।

अनुच्छेद 109 के तहत धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया (Special Procedure) का उल्लेख किया गया है। और,

अनुच्छेद 110 के तहत धन विधेयक (Money Blll) की परिभाषा दी गई है, कि किन विषयों पर आधारित विधेयकों को धन विधेयक माना जाएगा; लेकिन वित्त विधेयक का क्या?

अनुच्छेद 117 (Article 117) के तहत वित्त विधेयकों (Finance Bill) के बारे में विशेष उपबंध किया गया है। इस अनुच्छेद से यह स्पष्ट होता है कि वित्त विधेयक किस प्रकार धन विधेयक से अलग होता है। इस अनुच्छेद के कुल 3 खंड है। आइये समझें;

Complete Concept:धन विधेयक और वित्त विधेयक
Related to Article 110 and Article 117

अनुच्छेद 117(1) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि अनुच्छेद 110 के खंड (1) के उपखंड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय के लिए उपबंध करने वाला विधेयक या संशोधन राष्ट्रपति की सिफारिश से ही पुरःस्थापित या प्रस्तावित किया जाएगा, अन्यथा नहीं और ऐसा उपबंध करने वाला विधेयक राज्य सभा में पुरःस्थापित नहीं किया जाएगा:

अनुच्छेद 110(1) के तहत उन विषयों की सूची दी गई है जिनमें से किसी एक या अधिक के आधार पर लाई गई किसी विधेयक को धन विधेयक समझा जाएगा। ये विषय निम्नलिखित है;

(क). यदि किसी विधेयक में, किसी कर का अधिरोपन (Imposition), उत्सादन (abolition), परिहार (remission), परिवर्तन (alteration) या विनियमन (Regulation) होता हो।

इसका सीधा सा मतलब ये है कि जब किसी में विधेयक में टैक्स लगाने, बढ़ाने, कम करने या उस टैक्स को खत्म करने से संबन्धित प्रावधान हो तो उसे धन विधेयक कहा जाएगा।

(ख). अगर किसी विधेयक में, भारत सरकार द्वारा उधार लिए गए धन के विनियमन (Regulation) या भारत सरकार द्वारा दी गई किसी गारंटी का विनियमन या अपने ऊपर ली गई किसी वित्तीय बाध्यताओं से संबन्धित किसी विधि का संशोधन हो;

दूसरे शब्दों में कहें तो भारत सरकार द्वारा ऋण लेना, गारंटी देना अथवा वित्तीय उत्तरदायित्व लेने के संबंध में कानून बनाने से संबन्धित प्रावधानों वाले विधेयक को धन विधेयक कहा जाएगा।

(ग). अगर किसी विधेयक में, भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि में से धन जमा करने या उसमें से धन निकालने से संबन्धित प्रावधान हो;

(घ). ऐसा विधेयक जो, भारत की संचित निधि से धन के विनियोग से संबन्धित हो।

[संचित निधि यानी कि भारत का राजकोष और विनियोग का मतलब होता है किसी विशेष उपयोग के लिए आधिकारिक रूप से आवंटित धन की राशि।]

(ङ). ऐसा विधेयक जो, भारत की संचित निधि पर भारित किसी व्यय की उद्घोषणा या इस प्रकार के किसी व्यय की राशि में वृद्धि से संबन्धित हो।

(च). ऐसा विधेयक जो, भारत की संचित निधि या लोक लेखा में किसी प्रकार के धन की प्राप्ति या अभिरक्षा या इनसे व्यय करना या इनका केंद्र या राज्य की निधियों का लेखा परीक्षण से संबन्धित हो।

[लोक लेखा भी संचित निधि की तरह एक निधि है, पर इसमें कुछ भिन्नताएँ है, निधियों को जानने के लिए इस लेख को जरूर पढ़ें। – विभिन्न प्रकार की निधियाँ]

(छ). उपरोक्त उपखंड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट (Specified) किसी विषय का आनुषंगिक (ancillary) कोई विषय।

अनुच्छेद 117(1) के तहत दो व्यवस्था किया गया है:

पहली बात तो ये कि अनुच्छेद 110 के खंड (1) के उपखंड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय के लिए उपबंध करने वाला विधेयक या संशोधन राष्ट्रपति की सिफारिश से ही पुरःस्थापित (Introduced) किया जाएगा, अन्यथा नहीं।

और दूसरी बात ये कि इस तरह का कोई विधेयक राज्य सभा में पेश नहीं किया जाएगा, यानि कि सिर्फ लोक सभा में ही पेश किया जाएगा।

लेकिन यहाँ पर याद रखिए कि किसी कर के घटाने या समाप्त करने के लिए उपबंध करने वाले किसी संशोधन के प्रस्ताव के लिए इस खंड के अधीन राष्ट्रपति की सिफारिश की जरूरत नहीं होगी।

अनुच्छेद 117(2) इसके तहत जो बताया गया है वही बात अनुच्छेद 110(2) के तहत भी बताया गया है। कहने का अर्थ है कि निम्न कारणों के आधार पर किसी विधेयक को धन विधेयक या वित्त विधेयक नहीं माना जाता है :-

1. जुर्मानों (fines) या अन्य धनीय शास्तियों (Monetary penalties) का अधिरोपन (Imposition);

2. अनुज्ञप्तियों (Licenses) के लिए फ़ीसों या की गई सेवाओं के लिए फ़ीसों की मांग;

3. किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपन (Imposition), उत्सादन (abolition), छूट (remission), परिवर्तन (alteration) या विनियमन (regulation) का उपबंध।

अनुच्छेद 117(3) के तहत व्यवस्था किया गया है कि जिस विधेयक को अधिनियमित और लागू किए जाने पर भारत की संचित निधि में से व्यय करना पड़ेगा वह विधेयक संसद्‌ के किसी सदन द्वारा तब तक पारित नहीं किया जाएगा जब तक ऐसा करने के लिए उस सदन से राष्ट्रपति ने सिफारिश नहीं की है।

कुल मिलाकर यही है वित्त विधेयक (Finance Bill)। लेकिन जाहिर है यहाँ से कुछ स्पष्ट नहीं हुआ इसीलिए आइये इसके कॉन्सेप्ट को समझते हैं;

वित्त विधेयक का कॉन्सेप्ट (Concept of Finance Bill):

भारतीय संविधान में धन विधेयक और वित्त विधेयक में भेद किया गया है। धन विधेयक को अनुच्छेद 110 के तहत परिभाषित किया गया है, वही वित्त विधेयक को अनुच्छेद 117 के तहत।

मोटे तौर पर बात करें तो उन सभी विधेयकों को वित्त विधेयक कहा जाता है जो कि सामान्यतः राजस्व या व्यय से संबंधित वित्तीय मामलों होते हैं।

इस तरह से देखें तो सभी धन विधेयक, वित्त विधेयक होना चाहिए और सभी वित्त विधेयक, धन विधेयक होना चाहिए, क्योंकि कमोबेश धन विधेयक में भी राजस्व या व्यय से संबन्धित मामले ही होते हैं। लेकिन ऐसा नहीं होता है।

सभी धन विधेयक तो वित्त विधेयक होता है लेकिन सभी वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं होता है। ऐसा क्यों?

अनुच्छेद 110(1) के अंतर्गत जितने भी विषय दिए गए है वो धन विधेयक कहलाते हैं। वहीं अनुच्छेद 117(1) के अनुसार वित्त विधेयक वो विधेयक होता है जिसमें अनुच्छेद 110 के तहत आने वाले विषय तो हो लेकिन सिर्फ वही नहीं हो।

जैसे कि अगर कोई विधेयक करारोपन (Taxation) के बारे में हो लेकिन सिर्फ करारोपन के बारे में ही न हो। यानि कि उसमें अन्य तरह के मामले भी हो सकते हैं।

वित्त विधेयक का वर्गीकरण (Classification of Finance bill):

समझने के लिए, वित्त विधेयकों को दो भागों में विभाजित किया जाता है; वित्त विधेयक (।) और वित्त विधेयक (॥)

अनुच्छेद 117(1) को वित्त विधेयक (।) कहा जाता है।

वित्त विधेयक(।)  में अनुच्छेद 110 (यानी कि धन विधेयक) के तहत जो मुख्य 6 प्रावधानों की चर्चा की गई है, वो सब तो आता ही है साथ ही साथ कोई अन्य विषय जो अनुच्छेद 110 में नहीं लिखा हुआ है वो भी आता है, जैसे कि विशिष्ट ऋण से संबन्धित कोई प्रावधान।

इस तरह के विधेयक में दो तत्व ऐसे होते हैं जो किसी धन विधेयक में भी होता हैं; (पहली बात) इसे भी राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सकता है, और (दूसरी बात) इसे भी राष्ट्रपति की सिफ़ारिश पर ही पेश किया जा सकता है।

◾ इस हिसाब से देखें तो इसे भी धन विधेयक होना चाहिए और धन विधेयक की तरह ही इसको भी ट्रीटमेंट मिलना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होने के पीछे का सबसे बड़ा कारण ये है कि लोक सभा अध्यक्ष यह तय करता है कि क्या धन विधेयक होगा और क्या नहीं।

◾ अगर लोक सभा अध्यक्ष इसे एक धन विधेयक के रूप में घोषित करता है तो यह एक धन विधेयक हो जाएगा और उसी अनुसार ट्रीटमेंट पाएगा। वहीं लोक सभा अध्यक्ष ऐसा कुछ नहीं करता है तो फिर यह एक वित्त विधेयक होगा और वही ट्रीटमेंट पाएगा जो कि कोई कोई साधारण विधेयक पाता है।

कहने का अर्थ ये है कि भले ही वित्त विधेयक(।) को सिर्फ लोक सभा में पेश किया जाए और वो भी राष्ट्रपति की सिफ़ारिश पर पेश किया जाए लेकिन चूंकि वो एक धन विधेयक नहीं है इसीलिए राज्यसभा को इस विधेयक को रद्द करने या इसमें संशोधन करने की शक्ति होती है। बिलकुल वैसे ही जैसे कि साधारण विधेयक के मामले में राज्य सभा में होता है।

◾ लेकिन यहाँ जो ट्विस्ट है वो ये है कि कोई भी सदन (चाहे वो लोक सभा हो या राज्यसभा) इस विधेयक में प्रस्तावित टैक्स को तब तक बढ़ा नहीं सकता है जब तक राष्ट्रपति ऐसा करने को न बोले। लेकिन किसी टैक्स के घटाने या समाप्त करने के लिए लाये गए किसी संशोधन के प्रस्ताव के लिए इस खंड के अधीन राष्ट्रपति की सिफारिश की जरूरत नहीं होगी।

◾ इस के अलावा यह एक सामान्य विधेयक की तरह ही काम करता है यानि कि इस विधेयक के मामले में भी अगर दोनों सदनों के बीच कोई गतिरोध उत्पन्न होता है तो राष्ट्रपति ऐसी स्थिति में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है। जबकि धन विधेयक के मामले में संयुक्त बैठक नहीं बुलाया जा सकता है।

इस तरह से से सदनों से पारित होकर जब वित्त विधेयक(।) राष्ट्रपति के पास पहुंचता है तो राष्ट्रपति सामान्य विधेयक की तरह ही उस विधेयक को या तो सहमति दे सकता है, या फिर रोक के रख सकता है, या पुनर्विचार के लिए सदन को वापस भेज सकता है।

जबकि जब धन विधेयक को राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया जाता है तो वह या तो इस पर अपनी स्वीकृति दे सकता है या फिर इसे रोककर रख सकता है लेकिन वह किसी भी दशा में इसे पुनर्विचार के लिए वापस नहीं भेज सकता है।

वित्त विधेयक (॥) – अनुच्छेद 117(3) के प्रावधानों को ही वित्त विधेयक (॥) कहा जाता है।

यह इस मायने में खास है कि इसमें अनुच्छेद 110 का कोई भी प्रावधान सम्मिलित नहीं होता है। तो फिर इसमें क्या सम्मिलित होता है?

अनुच्छेद 117(3) के अनुसार, जिस विधेयक को अधिनियमित और लागू किए जाने पर भारत के संचित निधि से धन व्यय करना पड़े। उसे वित्त विधेयक (॥) कहा जाता है।

लेकिन फिर से याद रखिए कि ऐसा कोई मामला नहीं होता, जिसका उल्लेख अनुच्छेद 110 में होता है। बल्कि इस तरह के विधेयक में अन्य बातों के साथ-साथ संचित निधि से व्यय का एक या अधिक प्रस्ताव होता है।

◾ इसे साधारण विधेयक की तरह प्रयोग किया जाता है तथा इसके लिए भी वही प्रक्रिया अपनायी जाती है, जो साधारण विधेयक के लिए अपनायी जाती है। यानी कि इस विधेयक को पहले लोकसभा में पारित करने की भी बाध्यता नहीं होती है इसे जिस सदन में चाहे पेश किया जा सकता है। और राज्यसभा इसे संशोधित भी कर सकती है, रोककर भी रख सकती है या फिर पारित कर सकती है।

◾ इसकी दूसरी ख़ासियत ये है कि वित्त विधेयक(॥) को सदन में प्रस्तुत करने के लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति की जरूरत नहीं पड़ती है लेकिन संसद के किसी भी सदन द्वारा इसे तब तक पारित नहीं किया जा सकता, जब तक कि राष्ट्रपति सदन को ऐसा करने की सिफ़ारिश न करें।

◾ दोनों ही सदन चाहे तो इसे स्वीकार कर सकता है या फिर अस्वीकार कर सकता है। और इस प्रकार से अगर विधेयक के संबंध में दोनों सदनों के बीच कोई गतिरोध होता है तो राष्ट्रपति दोनों सदनों के गतिरोध को समाप्त करने के लिए संयुक्त बैठक बुला सकता है।

◾ जब दोनों सदनों से पास होकर जब विधेयक राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया जाता है, तो वह या तो विधेयक को अपनी स्वीकृति दे सकता है या उसे रोक सकता है या फिर पुनर्विचार के लिए सदन को वापस कर सकता है।

धन विधेयक और वित्त विधेयक में अंतर (Difference between Money bill and finance bill):

धन विधेयक

  • प्रत्येक धन विधेयक एक वित्त विधेयक होता है।
  • अनुच्छेद 110 में वर्णित विषय ही धन विधेयक की श्रेणी में आते हैं।
  • एक धन विधेयक को राज्य सभा में पेश नहीं किया जा सकता है।
  • एक धन विधेयक को पेश करने से पहले राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक होता है।
  • धन विधेयक कभी भी एक सामान्य विधेयक की श्रेणी में नहीं आते हैं।
  • कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं ये अंतिम रूप से लोक सभा अध्यक्ष तय करता है।
  • धन विधेयक राज्यसभा में पारित न भी हो तो उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।
  • धन विधेयक के संबंध में अगर दोनों सदनों में गतिरोध भी हो तो कोई संयुक्त बैठक नहीं बुलाई जा सकती है।

वित्त विधेयक

  • प्रत्येक वित्त विधेयक एक धन विधेयक नहीं होता है।
  • केवल वही वित्त विधेयक धन विधेयक होते हैं जिसका उल्लेख अनुच्छेद 110 में किया गया है।
  • एक वित्त विधेयक को राज्य सभा में पेश किया भी जा सकता है और नहीं भी।
  • एक वित्त विधेयक का संबंध अनुच्छेद 110 में वर्णित विषय के अलावा भी हो सकता है।
  • एक वित्त विधेयक को पेश करने से पहले राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक हो भी सकती है और नहीं भी।
  • एक वित्त विधेयक एक सामान्य विधेयक की श्रेणी में आ सकता है।
  • एक वित्त विधेयक को दोनों सदनों से पास होना जरूरी होता है।
  • एक वित्त विधेयक के संबंध में अगर दोनों सदनों में गतिरोध हो तो कोई संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है।
⚫ धन विधेयक और वित्त विधेयक (Money Bill & Finance Bill Explanation)
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तो यही है अनुच्छेद 117 (Article 117), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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FAQ. अनुच्छेद 117 (Article 117) क्या है?

अनुच्छेद 117 (Article 117) के तहत वित्त विधेयकों (Finance Bill) के बारे में विशेष उपबंध किया गया है। इस अनुच्छेद से यह स्पष्ट होता है कि वित्त विधेयक किस प्रकार धन विधेयक से अलग होता है। इस अनुच्छेद के कुल 3 खंड है।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।