यह लेख अनुच्छेद 143 (Article 143) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

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Article 143


📜 अनुच्छेद 143 (Article 143) – Original

केंद्रीय न्यायपालिका
143. उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति —(1) यदि किसी समय राष्ट्रपति को प्रतीत होता है कि विधि या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ है या उत्पन्न होने की संभावना है, जो ऐसी प्रकृति का और ऐसे व्यापक महत्व का है कि उस पर उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करना समीचीन है, तो वह उस प्रश्न को विचार करने के लिए उस न्यायालय को निर्देशित कर सकेगा और वह न्यायालय, ऐसी स॒नवाई के पधात्‌ जो वह ठीक समझता है, राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय प्रतिवेदित कर सकेगा।

(2) राष्ट्रपति अनुच्छेद 131 1*** के परन्तुक में किसी बात के होते हुए भी, इस प्रकार के विवाद को, जो 2[उक्त परन्तुक] में वर्णित है, राय देने के लिए उच्चतम न्यायालय को निर्देशित कर सकेगा और उच्चतम न्यायालय, ऐसी सुनवाई के पश्चात्‌ जो वह ठीक समझता है, राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय प्रतिवेदित करेगा।
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1. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “के खंड (i)” शब्दों, कोष्ठकों और अंक का (1-11-1956 से) लोप किया गया।
2. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “उक्त खंड” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
अनुच्छेद 143

THE UNION JUDICIARY
143. Power of President to consult Supreme Court.—(1) If at any time it appears to the President that a question of law or fact has arisen, or is likely to arise, which is of such a nature and of such public importance that it is expedient to obtain the opinion of the Supreme Court upon it, he may refer the question to that Court for consideration and the Court may, after such hearing as it thinks fit, report to the President its opinion thereon.

(2) The President may, notwithstanding anything in 1*** the proviso to article 131, refer a dispute of the kind mentioned in the 2[said proviso] to the Supreme Court for opinion and the Supreme Court shall, after such hearing as it thinks fit, report to the President its opinion thereon.
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1. The words, brackets and figure “clause (i) of” omitted by the Constitution (Seventh Amendment) Act, 1956, s. 29 and Sch. (w.e.f. 1-11-1956).
2. Subs. by s. 29 and Sch., ibid., for “said clause” (w.e.f. 1-11-1956).
Article 143

🔍 Article 143 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का चौथा अध्याय है – संघ की न्यायपालिका (The Union Judiciary)

संसद के इस अध्याय के तहत अनुच्छेद 124 से लेकर अनुच्छेद 147 तक आते हैं। इस लेख में हम अनुच्छेद 143 (Article 143) को समझने वाले हैं;

न्याय (Justice) एक जटिल और बहुआयामी अवधारणा है जो व्यक्तियों के साथ निष्पक्ष व्यवहार और न्यायपूर्ण समाज के रखरखाव को संदर्भित करता है।

न्याय लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।

भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय

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| अनुच्छेद 143 – उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति

संविधान का भाग 5, अध्याय IV संघीय न्यायालय यानि कि उच्चतम न्यायालय की बात करता है। अनुच्छेद 143 उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति (Power of President to consult Supreme Court) के बारे में है।

यह अनुच्छेद अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण है इसे उच्चतम न्यायालय का सलाहकार क्षेत्राधिकार (Advisory jurisdiction of Supreme Court) भी कहा जाता है। इस अनुच्छेद के तहत दो खंड है। आइये समझें;

अनुच्छेद 143(1) के तहत कहा गया है कि यदि किसी समय राष्ट्रपति को प्रतीत होता है कि विधि या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ है या उत्पन्न होने की संभावना है, जो ऐसी प्रकृति का और ऐसे व्यापक महत्व का है कि उस पर उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करना समीचीन है, तो वह उस प्रश्न को विचार करने के लिए उस न्यायालय को निर्देशित कर सकेगा और वह न्यायालय, ऐसी स॒नवाई के पधात्‌ जो वह ठीक समझता है, राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय प्रतिवेदित कर सकेगा।

इसे ऐसे समझिए –

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 143 भारत के राष्ट्रपति को कानून या तथ्य के किसी भी प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय की राय लेने का अधिकार देता है। ये ऐसे कानून या तथ्य के प्रश्न होते हैं जो कि उत्पन्न हो चुका होता है या फिर उत्पन्न होने की संभावना होती है, और साथ ही ये सार्वजनिक महत्व का भी होता है।

ऐसी स्थिति में सरकार या राष्ट्रपति को अदालत के सलाहकार क्षेत्राधिकार (Advisory Jurisdiction) की आवश्यकता होती है। न्यायालय उस विषय पर सुनवाई करता है और जो वह ठीक समझता है, राष्ट्रपति को अपने रिपोर्ट में बता देता है।

अनुच्छेद 143(2) के तहत कहा गया है कि राष्ट्रपति अनुच्छेद 131 के परन्तुक में किसी बात के होते हुए भी, इस प्रकार के विवाद को, जो उक्त परन्तुक में वर्णित है, राय देने के लिए उच्चतम न्यायालय को निर्देशित कर सकेगा और उच्चतम न्यायालय, ऐसी सुनवाई के पश्चात्‌ जो वह ठीक समझता है, राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय प्रतिवेदित करेगा।

अनुच्छेद 131 के तहत उच्चतम न्यायालय के मूल क्षेत्राधिकार का वर्णन किया गया है। किसी भी संघीय व्यवस्था वाले देश में केंद्र और राज्य या फिर राज्य और राज्य के बीच विवाद होना स्वाभाविक है इसी प्रकार के विवाद को निपटाने की जो शक्ति उच्चतम न्यायालय के पास है उसी को मूल क्षेत्राधिकार (Original jurisdiction) कहा जाता है।

इस अनुच्छेद के परंतुक में लिखा हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट के मूल अधिकारिता का विस्तार उस विवाद पर नहीं होगा जो किसी ऐसी संधि, करार, वचनबंध, सनद या वैसी ही अन्य लिखत से उत्पन्न हआ है जो इस संविधान के प्रारंभ से पहले की गई थी और ऐसे प्रारंभ के पश्चात्‌ प्रवर्तन में है, या जो यह उपबंध करती है कि उक्त अधिकारिता का विस्तार ऐसे विवाद पर नहीं होगा।

यानी कि कोई भी कानूनी विवाद जो ऐसे संधि, समझौते, अनुबंध, आदि से संबंधित है जो संविधान से पहले लागू किए गए थे और अभी भी चल रहा है। इसके होते हुए भी राष्ट्रपति इस प्रकार के विवाद को, राय देने के लिए उच्चतम न्यायालय को निर्देशित कर सकेगा और उच्चतम न्यायालय, ऐसी सुनवाई के पश्चात्‌ जो वह ठीक समझता है, राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय प्रतिवेदित करेगा।

अभी भी अगर समझ में नहीं आया तो इसे इस तरह से समझिए;

संविधान का अनुच्छेद 143 राष्ट्रपति को दो श्रेणियों के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय की राय लेने के लिए अधिकृत करता है:

(पहला), कानून या सार्वजनिक महत्व के तथ्य के किसी भी प्रश्न पर जो उत्पन्न हो गया है या जिसके उत्पन्न होने की संभावना है। [इसे ही अनुच्छेद 143(1) में कहा गया है।]

(दूसरा), किसी भी संविधान लागू होने के पहले के संधि, समझौते, अनुबंध, सनद (यानि कि प्रामाणिक कथन या बात) या अन्य समान उपकरणों से उत्पन्न होने वाले किसी भी विवाद पर। [इसे ही अनुच्छेद 143(2) में कहा गया है।]

यहाँ अब याद रखिए कि पहले मामले में, सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रपति को अपनी राय दे सकता है या मना कर सकता है। लेकिन, दूसरे मामले में, सर्वोच्च न्यायालय को राष्ट्रपति को अपनी राय देना ही पड़ता है।

हालांकि दोनों ही मामलों में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्यक्त की गई राय केवल सलाह है न कि न्यायिक घोषणा (judicial pronouncement)। इसीलिए, यह राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं है। वह चाहे तो राय का पालन कर सकता है या फिर नहीं कर सकता है।

इसलिए, Article 143 को सर्वोच्च न्यायालय के सलाहकार अधिकार क्षेत्र (Advisory Jurisdiction) या consultative jurisdiction कहा जाता है। और इस पूरी व्यवस्था को राष्ट्रपतीय संदर्भ या Presidential Reference कहा जाता है।

Q. परामर्श राष्ट्रपति मांगता है या फिर मंत्रिमंडल?

जैसा कि हम जानते हैं, अनुच्छेद 74 (1) के तहत राष्ट्रपति अपने मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के अनुसार कार्य करता है। इसलिए, संदर्भ भले ही राष्ट्रपति के नाम से जाता है, लेकिन वास्तव में, संदर्भ मंत्रिपरिषद द्वारा किया जाता है। अगर राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना अनुच्छेद 143 के तहत सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श करता है, तो वह संविधान का उल्लंघन करेगा जिसके लिए उस पर महाभियोग लगाया जा सकता है।

Q. क्या सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए बाध्य है?

सर्वोच्च न्यायालय के पास एकमात्र विवेकाधिकार या तो संदर्भ का जवाब देना है या सम्मानपूर्वक राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजने से इनकार करना है

केरल शिक्षा विधेयक 1957 वाले मामले में, न्यायालय ने कहा कि यह सर्वोच्च न्यायालय के लिए एक राष्ट्रपतीय संदर्भ या Presidential Reference पर विचार करना और राष्ट्रपति को अपनी राय देना अनिवार्य है यदि संदर्भ अनुच्छेद 143(2) के तहत है। लेकिन यदि संदर्भ अनुच्छेद 142(1) के तहत है तो न्यायालय के पास विवेक है कि कोई राय व्यक्त करने से इनकार कर सकता है।

लेकिन विशेष न्यायालय विधेयक 1978 के मामले में, न्यायालय ने कहा कि इस न्यायालय का एक संदर्भ (PR) का उत्तर देने से इनकार करने का अधिकार अनुच्छेद 143(1) और अनुच्छेद 143(2) में इस अर्थ में है कि खंड (1) में “कर सकता है (May)” शब्द का इस्तेमाल किया गया है, जबकि खंड (2) में “करेगा (Shall)” शब्द का इस्तेमाल किया गया है (आप ऊपर आरिजिनल अनुच्छेद में इसे देख सकते हैं।)

उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार (Jurisdiction of SC)

समापन टिप्पणी (Closing Remarks):

जैसा कि हमने समझा, भारत में प्रेसिडेंशियल रेफरेंस एक महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रक्रिया है जो राष्ट्रपति को कानून या सार्वजनिक महत्व के तथ्य के सवालों पर सर्वोच्च न्यायालय की सलाहकार राय लेने की अनुमति देती है। यह देश के सर्वोच्च न्यायिक प्राधिकरण से विशेषज्ञ मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए एक तंत्र के रूप में कार्य करता है।

अतीत में हमें अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपतीय संदर्भ (Presidential References) के कई मामले देखते को मिलते हैं, उनमें से कुछ महत्वपूर्ण निम्नलिखित है;

राष्ट्र के लिए व्यापक प्रभाव वाले जटिल कानूनी और संवैधानिक मुद्दों को संबोधित करने में राष्ट्रपति के संदर्भ महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अदालत की राय लेने से, राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय की विशेषज्ञता और ज्ञान से लाभान्वित हो सकते हैं, जो सार्वजनिक महत्व के मामलों में सूचित निर्णय लेने में मदद करता है।

राष्ट्रपतीय संदर्भ (Presidential References), भारत में शक्ति के संवैधानिक संतुलन और नियंत्रण और संतुलन के सिद्धांत को दर्शाते हैं। वे कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सहयोग, देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने को मजबूत करने और कानून के शासन के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए एक अवसर प्रदान करते हैं।

कुल मिलाकर, भारतीय संविधान के उचित कामकाज और व्याख्या में योगदान देने वाले सार्वजनिक महत्व के मामलों पर सर्वोच्च न्यायालय की विशेषज्ञ राय लेने के लिए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस एक मूल्यवान तंत्र के रूप में कार्य करता है।

तो यही है अनुच्छेद 143 (Article 143), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial

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FAQ. अनुच्छेद 143 (Article 143) क्या है?

अनुच्छेद 143 उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति (Power of President to consult Supreme Court) के बारे में है। इसे उच्चतम न्यायालय का सलाहकार क्षेत्राधिकार (Advisory jurisdiction of Supreme Court) भी कहा जाता है।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।