यह लेख Article 166 (अनुच्छेद 166) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 166 (Article 166) – Original
भाग 6 “राज्य” [अध्याय 2 — कार्यपालिका] [सरकारी कार्य का संचालन] |
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166. राज्य की सरकार के कार्य का संचालन — (1) किसी राज्य की सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्रवाई राज्यपाल के नाम से की हुई कही जाएगी। (2) राज्यपाल के नाम से किए गए और निष्पादित आदेशों और अन्य लिखतों को ऐसी रीति से अधिप्रमाणित किया जाएगा जो राज्यपाल द्वारा बनाए जाने वाले नियमों में विनिर्दिष्ट की जाए और इस प्रकार अधिप्रमाणित आदेश या लिखत की विधिमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि वह राज्यपाल द्वारा किया गया या निष्पादित आदेश या लिखत नहीं है। (3) राज्यपाल, राज्य की सरकार का कार्य अधिक सुविधापूर्वक किए जाने के लिए और जहां तक वह कार्य ऐसा कार्य नहीं है जिसके विषय में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने विवेकानुसार कार्य करे वहां तक मंत्रियों में उक्त कार्य के आबंटन के लिए नियम बनाएगा। 1(4) * * * * * ==================== 1. संविधान (ब्यालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 28 द्वारा (3-1-1977 से) खंड 4 अंतःस्थापित किया गया था और उसका संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 का धारा 23 द्वारा (20-6-1979 से) लोप किया गया। |
Part VI “State” [CHAPTER II — THE EXECUTIVE] [Conduct of Government for the State] |
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166. Conduct of Business of the Government of a State. — (1) All executive action of the Government of a State shall be expressed to be taken in the name of the Governor. (2) Orders and other instruments made and executed in the name of the Governor shall be authenticated in such manner as may be specified in rules to be made by the Governor, and the validity of an order or instrument which is so authenticated shall not be called in question on the ground that it is not an order or instrument made or executed by the Governor. (3) The Governor shall make rules for the more convenient transaction of the business of the Government of the State, and for the allocation among Ministers of the said business in so far as it is not business with respect to which the Governor is by or under this Constitution required to act in his discretion. 1(4) * * * * * ===================== 1. Ins. by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 28 (w.e.f. 3-1-1977) and omitted by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 23 (w.e.f. 20-6-1979). |
🔍 Article 166 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | साधारण (General) | Article 152 |
II | कार्यपालिका (The Executive) | Article 153 – 167 |
III | राज्य का विधान मंडल (The State Legislature) | Article 168 – 212 |
IV | राज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor) | Article 213 |
V | राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States) | Article 214 – 232 |
VI | अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) | Article 233 – 237 |
जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 2 का नाम है “कार्यपालिका (The Executive) और इसका विस्तार अनुच्छेद 153 से लेकर अनुच्छेद 167 तक है।
इस अध्याय को तीन उप-अध्यायों में बांटा गया है – राज्यपाल (The Governor), मंत्रि-परिषद (Council of Ministers), राज्य के महाधिवक्ता (Advocate General of the States) और सरकारी कार्य का संचालन (Conduct of Government Business)।
इस लेख में हम सरकारी कार्य का संचालन (Conduct of Government Business) के तहत आने वाले अनुच्छेद 164 को समझने वाले हैं।
⚫ अनुच्छेद 77 – भारतीय संविधान |
| अनुच्छेद 166 – राज्य की सरकार के कार्य का संचालन (Conduct of Business of the Government of a State)
भारत एक संघीय व्यवस्था वाला देश है यानी कि यहाँ केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी होता है और राज्य सरकार की अपनी कार्यपालिका होती है।
राज्य कार्यपालिका के मुख्यतः चार भाग होते है: राज्यपाल (Governor), मुख्यमंत्री (Chief Minister), मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) और राज्य के महाधिवक्ता (Advocate General of the state)।
जिस तरह से अनुच्छेद 77 के तहत भारत सरकार के कार्यों के संचालन की बात की गई है उसी तरह से अनुच्छेद 166 के तहत राज्य की सरकार के कार्य के संचालन के बारे में बताया गया है।
अनुच्छेद 154 के तहत हमने समझा था कि राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होती है और वह इन शक्तियों का प्रयोग या तो स्वयं करता है या मंत्रियों की मदद से।
अनुच्छेद 166 को आप अनुच्छेद 154 का ही विस्तार मान सकते हैं। इस अनुच्छेद में राज्यपाल को प्राप्त कार्यपालिका शक्तियों को और विस्तार दिया गया है और उसमें स्पष्टता लाई गई है। इस अनुच्छेद के तीन खंड है। आइये समझे;
अनुच्छेद 166(1) के तहत कहा गया है कि किसी राज्य की सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्रवाई राज्यपाल के नाम से की हुई कही जाएगी।
जैसा कि हम जानते हैं कि राज्यपाल संवैधानिक कार्यपालिका जरूर है लेकिन उसे सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद और मुख्यमंत्री उपलब्ध होता है। यानि कि मंत्रिपरिषद और मुख्यमंत्री वास्तविक कार्यपालिका होता है।
सभी महत्वपूर्ण निर्णय मंत्रिपरिषद या मुख्यमंत्री लेते हैं, क्योंकि ये जनता द्वारा चुनकर आए होते हैं और यह जनता के प्रति उत्तरदायी भी होता है। लेकिन जो भी कार्यपालिका वाला काम होता है वो सब राज्यपाल के नाम से होता है।
सभी कार्यपालिका काम राज्यपाल के नाम से इसीलिए होता है क्योंकि अनुच्छेद 154 के तहत राज्य की समस्त कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होती है।
इसे इस तरह से भी समझ सकते हैं कि राज्य सरकार द्वारा किये जाने वाले सभी कार्यकारी कार्यों पर राज्यपाल के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है।
इसी तरह से केंद्र में भी होता है बस वहाँ पर राज्यपाल की जगह पर राष्ट्रपति होता है और मुख्यमंत्री की जगह पर प्रधानमंत्री होता है।
अनुच्छेद 166(2) के तहत कहा गया है कि राज्यपाल के नाम से किए गए और निष्पादित आदेशों और अन्य लिखतों को ऐसी रीति से अधिप्रमाणित किया जाएगा जो राज्यपाल द्वारा बनाए जाने वाले नियमों में विनिर्दिष्ट की जाए और इस प्रकार अधिप्रमाणित आदेश या लिखत की विधिमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि वह राज्यपाल द्वारा किया गया या निष्पादित आदेश या लिखत नहीं है।
यहाँ पर दो बातें है;
पहली बात) चूंकि कार्यपालक कार्य राज्यपाल के नाम से किए जाते हैं इसीलिए उस कार्य को अधिप्रमाणित (authentication) करने की जरूरत होती है, ताकि उसकी विधिमान्यता स्थापित हो सके। और यह अधिप्रमाणन उसी तरीके से होता है जो तरीका राज्यपाल द्वारा बनाया जाता है।
दूसरी बात) अगर एक बार किसी आदेश या लिखत (Order or Instrument) को राज्यपाल द्वारा बनाए गए तरीके से अधिप्रमाणित कर दिया जाता है फिर उस आदेश या लिखत की विधिमान्यता (Validity) पर इस आधार पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है कि उसे राज्यपाल द्वारा निष्पादित (execute) किया गया है कि नहीं।
अनुच्छेद 166(3) के तहत कहा गया है कि राज्यपाल, राज्य की सरकार का कार्य अधिक सुविधापूर्वक किए जाने के लिए और जहां तक वह कार्य ऐसा कार्य नहीं है जिसके विषय में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने विवेकानुसार कार्य करे वहां तक मंत्रियों में उक्त कार्य के आबंटन के लिए नियम बनाएगा।
इसका सीधा सा मतलब यह है कि राज्यपाल, राज्य सरकार का कार्य अधिक सुविधापूर्वक किए जाने के लिए और मंत्रियों में उक्त कार्य के आबंटन के लिए नियम बनाएगा।
हालांकि संविधान द्वारा या उसके तहत अगर राज्यपाल से अपेक्षा की जाती है कि कुछ कार्यों को वह अपने विवेक से करें तो ऐसे मामले को राज्यपाल मंत्रियों को नहीं बांटेगा, वो निर्णय उसे स्वयं ही लेना पड़ेगा।
तो यही है अनुच्छेद 166, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
◾ राज्यों के मुख्यमंत्री (Chief Minister of States) ◾ प्रधानमंत्री (Prime minister) ◾ केन्द्रीय मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) ◾ राज्यों के राज्य मंत्रिपरिषद (State Council of Minister) |
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Q. Who is responsible for the conduct of business of the Government of a State?
- The Governor.
- The Chief Minister.
- The Council of Ministers.
- The Legislative Assembly.
Explanation: The correct answer is (c). The Council of Ministers is responsible for the conduct of business of the Government of a State.
Q. How is the Council of Ministers formed?
- The Governor appoints the Council of Ministers.
- The Chief Minister appoints the Council of Ministers.
- The Council of Ministers is elected by the Legislative Assembly.
- The Council of Ministers is formed by the Governor in consultation with the Chief Minister.
Explanation: The correct answer is (d). The Council of Ministers is formed by the Governor in consultation with the Chief Minister.
Q. Who is the head of the Council of Ministers?
- The Governor.
- The Chief Minister.
- The Prime Minister.
- The Speaker of the Legislative Assembly.
Explanation: The correct answer is (b). The Chief Minister is the head of the Council of Ministers.
Q. What is the role of the Governor in the conduct of business of the Government of a State?
- The Governor is the supreme executive authority of the State.
- The Governor has the power to dismiss the Council of Ministers.
- The Governor has the power to dissolve the Legislative Assembly.
- All of the above.
Explanation: The correct answer is (d). The Governor is the supreme executive authority of the State. However, the Governor’s powers are limited by the Constitution and by the Council of Ministers. The Governor has the power to dismiss the Council of Ministers, but only if the Council of Ministers loses the confidence of the Legislative Assembly. The Governor also has the power to dissolve the Legislative Assembly, but only if the Legislative Assembly is not functioning properly.
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⚫ अनुच्छेद 167 – भारतीय संविधान |
⚫ अनुच्छेद 165 – भारतीय संविधान |
◾ राज्यों के महाधिवक्ता (Advocate General of State)
⚫ भारतीय संविधान ⚫ संसद की बेसिक्स ⚫ मौलिक अधिकार बेसिक्स ⚫ भारत की न्यायिक व्यवस्था ⚫ भारत की कार्यपालिका |
अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |