यह लेख Article 198 (अनुच्छेद 198) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 198 (Article 198) – Original
भाग 6 “राज्य” [अध्याय 3 — राज्य का विधान मंडल] [विधायी प्रक्रिया] |
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198. धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया —(1) धन विधेयक विधान परिषद् में पुरःस्थापित नहीं किया जाएगा। (2) धन विधेयक विधान परिषद् वाले राज्य की विधान सभा द्वारा पारित किए जाने के पश्चात् विधान परिषद् को उसकी सिफारिशों के लिए पारेषित किया जाएगा और विधान परिषद् विधेयक की प्राप्ति की तारीख से चौदह दिन की अवधि के भीतर विधेयक को अपनी सिफारिशों सहित विधान सभा को लौटा देगी और ऐसा होने पर विधान सभा, विधान परिषद् की सभी या किन्ही सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकेगी। (3) यदि विधान सभा, विधान परिषद् की किसी सिफारिश को स्वीकार कर लेती है तो धन विधेयक विधान परिषद् द्वारा सिफारिश किए गए और विधान सभा द्वारा स्वीकार किए गए संशोधनों सहित दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया समझा जाएगा। (4) यदि विधान सभा, विधान परिषद् की किसी भी सिफारिश को स्वीकार नहीं करती है तो धन विधेयक विधान परिषद् द्वारा सिफारिश किए गए किसी संशोधन के बिना, दोनों सदनों द्वारा उस रूप में पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह विधान सभा द्वारा पारित किया गया था। (5) यदि विधान सभा द्वारा पारित और विधान परिषद् को उसकी सिफारिशों के लिए पारेषित धन विधेयक उक्त चौदह दिन की अवधि के भीतर विधान सभा को नहीं लौटाया जाता है तो उक्त अवधि की समाप्ति पर वह दोनों सदनों द्वारा उस रूप में पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह विधान सभा द्वारा पारित किया गया था। |
Part VI “State” [CHAPTER III — The State Legislature] [Legislative Procedure] |
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198. Special procedure in respect of Money Bills— (1) A Money Bill shall not be introduced in a Legislative Council. (2) After a Money Bill has been passed by the Legislative Assembly of a State having a Legislative Council, it shall be transmitted to the Legislative Council for its recommendations, and the Legislative Council shall within a period of fourteen days from the date of its receipt of the Bill return the Bill to the Legislative Assembly with its recommendations, and the Legislative Assembly may thereupon either accept or reject all or any of the recommendations of the Legislative Council. (3) If the Legislative Assembly accepts any of the recommendations of the Legislative Council, the Money Bill shall be deemed to have been passed by both Houses with the amendments recommended by the Legislative Council and accepted by the Legislative Assembly. (4) If the Legislative Assembly does not accept any of the recommendations of the Legislative Council, the Money Bill shall be deemed to have been passed by both Houses in the form in which it was passed by the Legislative Assembly without any of the amendments recommended by the Legislative Council. (5) If a Money Bill passed by the Legislative Assembly and transmitted to the Legislative Council for its recommendations is not returned to the Legislative Assembly within the said period of fourteen days, it shall be deemed to have been passed by both Houses at the expiration of the said period in the form in which it was passed by the Legislative Assembly. |
🔍 Article 198 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | साधारण (General) | Article 152 |
II | कार्यपालिका (The Executive) | Article 153 – 167 |
III | राज्य का विधान मंडल (The State Legislature) | Article 168 – 212 |
IV | राज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor) | Article 213 |
V | राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States) | Article 214 – 232 |
VI | अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) | Article 233 – 237 |
जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 3 का नाम है “राज्य का विधान मंडल (The State Legislature)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 158 से लेकर अनुच्छेद 212 तक है।
इस अध्याय को आठ उप-अध्यायों (sub-chapters) में बांटा गया है, जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;
Chapter 3 [Sub-Chapters] | Articles |
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साधारण (General) | Article 168 – 177 |
राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी (Officers of the State Legislature) | Article 178 – 187 |
कार्य संचालन (Conduct of Business) | Article 188 – 189 |
सदस्यों की निरर्हताएं (Disqualifications of Members) | Article 190 – 193 |
राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (Powers, privileges and immunities of State Legislatures and their members) | Article 194 – 195 |
विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure) | Article 196 – 201 |
वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया (Procedure in respect of financial matters) | Article 202 – 207 |
साधारण प्रक्रिया (Procedure Generally) | Article 208 – 212 |
इस लेख में हम विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure) के तहत आने वाले अनुच्छेद 198 को समझने वाले हैं।
⚫ अनुच्छेद 109 – भारतीय संविधान |
| अनुच्छेद 198 – धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया (Special procedure in respect of Money Bills)
भारत एक संघीय व्यवस्था वाला देश है यानी कि यहाँ केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी होता है और जिस तरह से केंद्र में विधायिका (Legislature) होता है उसी तरह से राज्य का भी अपना एक विधायिका होता है।
◾ केन्द्रीय विधायिका (Central Legislature) को भारत की संसद (Parliament of India) कहा जाता है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है, जिसका अर्थ है कि इसमें दो सदन हैं: लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद)। इसी तरह से राज्यों के लिए भी व्यवस्था की गई है।
अनुच्छेद 168(1) के तहत प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल (Legislature) की व्यवस्था की गई है और यह विधानमंडल एकसदनीय (unicameral) या द्विसदनीय (bicameral) हो सकती है।
जिस तरह से अनुच्छेद 109 में केंद्र के लिए धन विधेयकों की विशेष व्यवस्था की गई है उसी तरह से अनुच्छेद 198 में राज्यों के लिए धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया का वर्णन है;
अनुच्छेद 198 के तहत कुल 5 खंड आते हैं और इसे अनुच्छेद 196 और अनुच्छेद 197 के साथ पढ़ा जाता है।
अनुच्छेद 197 के खंड (1) में कहा गया है कि धन विधेयक विधान परिषद् में पुरःस्थापित नहीं किया जाएगा।
जिस तरह से केंद्र में धन विधेयक को राज्यसभा में पुरःस्थापित (introduce) नहीं किया जा सकता है उसी तरह से विधान परिषद वाले राज्यों में धन विधेयक को विधान परिषद में पुरःस्थापित नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 197 के खंड (2) में कहा गया है कि धन विधेयक विधान परिषद् वाले राज्य की विधान सभा द्वारा पारित किए जाने के पश्चात् विधान परिषद् को उसकी सिफारिशों के लिए पारेषित किया जाएगा और विधान परिषद् विधेयक की प्राप्ति की तारीख से चौदह दिन की अवधि के भीतर विधेयक को अपनी सिफारिशों सहित विधान सभा को लौटा देगी और ऐसा होने पर विधान सभा, विधान परिषद् की सभी या किन्ही सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकेगी।
जब विधान सभा द्वारा धन विधेयक को पारित कर दिया जाता है तब इसे विधान परिषद भेजा जाता है और विधान परिषद न तो उसे अस्वीकार कर सकती है, न ही इसमें संशोधन कर सकती है वह केवल सिफ़ारिश कर सकती है। विधान परिषद को 14 दिनों के भीतर अपनी सिफारिशों के साथ या बिना किसी सिफ़ारिश के विधेयक को विधान सभा में वापस करना होता है। और फिर विधान सभा चाहे तो किसी सिफ़ारिश को मान सकती है या फिर नहीं भी मान सकती है।
अनुच्छेद 197 के खंड (3) में कहा गया है कि यदि विधान सभा, विधान परिषद् की किसी सिफारिश को स्वीकार कर लेती है तो धन विधेयक विधान परिषद् द्वारा सिफारिश किए गए और विधान सभा द्वारा स्वीकार किए गए संशोधनों सहित दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया समझा जाएगा।
कहने का अर्थ है कि यदि विधानसभा किसी सिफ़ारिश को मान लेती है तो विधेयक पारित मान लिया जाता है। यदि वह कोई सिफ़ारिश नहीं मानती है तब भी इसे मूल रूप में दोनों सदनों द्वार पारित मान लिया जाता है। (यही बात अगले खंड में लिखा हुआ है।)
अनुच्छेद 197 के खंड (4) में कहा गया है कि यदि विधान सभा, विधान परिषद् की किसी भी सिफारिश को स्वीकार नहीं करती है तो धन विधेयक विधान परिषद् द्वारा सिफारिश किए गए किसी संशोधन के बिना, दोनों सदनों द्वारा उस रूप में पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह विधान सभा द्वारा पारित किया गया था। (इसे अभी हमने ऊपर समझा)
अनुच्छेद 197 के खंड (5) के तहत कहा गया है कि यदि विधान सभा द्वारा पारित और विधान परिषद् को उसकी सिफारिशों के लिए पारेषित धन विधेयक उक्त चौदह दिन की अवधि के भीतर विधान सभा को नहीं लौटाया जाता है तो उक्त अवधि की समाप्ति पर वह दोनों सदनों द्वारा उस रूप में पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह विधान सभा द्वारा पारित किया गया था।
यदि विधान परिषद 14 दिनों के भीतर विधानसभा को विधेयक न लौटाए तो इसे दोनों सदनों द्वारा पारित मान लिया जाता है। इस तरह एक धन विधेयक के मामले में विधान परिषद के मुक़ाबले विधानसभा को ज्यादा अधिकार प्राप्त है। विधान परिषद इस विधेयक को अधिकतम 14 दिन तक रोक सकती है।
अंततः जब एक धन विधेयक राज्यपाल के समक्ष पेश किया जाता है तब वह इस पर अपनी स्वीकृति दे सकता है, इसे रोक सकता है या राष्ट्रपति को स्वीकृति के लिए सुरक्षित रख सकता है लेकिन राज्य विधानमंडल के पास पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता। समान्यतः राज्यपाल उस विधेयक को स्वीकृति दे ही देता है, जो उसकी पूर्व अनुमति के बाद लाया जाता है।
जब कि धन विधेयक राष्ट्रपति के विचारार्थ के लिए सुरक्षित रखा जाता है तो राष्ट्रपति या तो इसे स्वीकृति दे देता है या इसे रोक सकता है लेकिन इसे राज्य विधानमंडल के पास पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता है। [धन विधेयक और वित्त विधेयक को समझें] इसे अनुच्छेद 200 में विस्तार से समझने वाले हैं;
तो यही है Article 198, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
◾ राज्य विधानमंडल (State Legislature): गठन, कार्य, आदि ◾ भारतीय संसद (Indian Parliament): Overview |
सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |