यह लेख Article 200 (अनुच्छेद 200) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

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📜 अनुच्छेद 200 (Article 200) – Original

भाग 6 “राज्य” [अध्याय 3 — राज्य का विधान मंडल] [विधायी प्रक्रिया]
200. विधेयकों पर अनुमति — जब कोई विधेयक राज्य की विधान सभा द्वारा या विधान परिषद्‌ वाले राज्य में विधान-मंडल के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया है तब वह राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा और राज्यपाल घोषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या अनुमति रोक लेता है अथवा वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखता है।

परंतु राज्यपाल अनुमति के लिए अपने समक्ष विधेयक प्रस्तुत किए जाने के पश्चात्‌ यथाशीघ्र उस विधेयक को, यदि वह धन विधेयक नहीं है तो, सदन या सदनों को इस संदेश के साथ लौटा सकेगा कि सदन या दोनों सदन विधेयक पर या उसके किन्हीं विनिर्दिष्ट उपबंधों पर पुनर्विचार करें और विशिष्ठतया किन्ही ऐसे संशोधनों के पुरःस्थापन की वांछनीयता पर विचार करें जिनकी उसने अपने संदेश में सिफारिश की है और जब विधेयक इस प्रकार लौटा दिया जाता है तब सदन या दोनों सदन विधेयक पर तदनुसार पुनर्विचार करेंगे और यदि विधेयक सदन या सदनों द्वारा संशोधन सहित या उसके बिना फिर से पारित कर दिया जाता है और राज्यपाल के समक्ष अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है तो राज्यपाल उस पर अनुमति नहीं रोकेगा।

परंतु यह और कि जिस विधेयक से, उसके विधि बन जाने पर, राज्यपाल की राय में उच्च न्यायालय की शक्तियों का ऐसा अल्पीकरण होगा कि वह स्थान, जिसकी पूर्ति के लिए वह न्यायालय इस संविधान द्वारा परिकल्पित है, संकटापन्न हो जाएगा, उस विधेयक पर राज्यपाल अनुमति नहीं देगा, किंतु उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखेगा।
अनुच्छेद 200 हिन्दी संस्करण

Part VI “State” [CHAPTER III — The State Legislature] [Legislative Procedure]
200. Assent to Bills— When a Bill has been passed by the Legislative Assembly of a State or, in the case of a State having a Legislative Council, has been passed by both Houses of the Legislature of the State, it shall be presented to the Governor and the Governor shall declare either that he assents to the Bill or that he withholds assent therefrom or that he reserves the Bill for the consideration of the President:

Provided that the Governor may, as soon as possible after the presentation to him of the Bill for assent, return the Bill if it is not a Money Bill together with a message requesting that the House or Houses will reconsider the Bill or any specified provisions thereof and, in particular, will consider the desirability of introducing any such amendments as he may recommend in his message and, when a Bill is so returned, the House or Houses shall reconsider the Bill accordingly, and if the Bill is passed again by the House or Houses with or without amendment and presented to the Governor for assent, the Governor shall not withhold assent therefrom:

Provided further that the Governor shall not assent to, but shall reserve for the consideration of the President, any Bill which in the opinion of the Governor would, if it became law, so derogate from the powers of the High Court as to endanger the position which that Court is by this Constitution designed to fill.
Article 200 English Version

🔍 Article 200 Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।

ChaptersTitleArticles
Iसाधारण (General)Article 152
IIकार्यपालिका (The Executive)Article 153 – 167
IIIराज्य का विधान मंडल (The State Legislature)Article 168 – 212
IVराज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor)Article 213
Vराज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)Article 214 – 232
VIअधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts)Article 233 – 237
[Part 6 of the Constitution]

जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 3 का नाम है “राज्य का विधान मंडल (The State Legislature)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 158 से लेकर अनुच्छेद 212 तक है।

इस अध्याय को आठ उप-अध्यायों (sub-chapters) में बांटा गया है, जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;

Chapter 3 [Sub-Chapters]Articles
साधारण (General)Article 168 – 177
राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी (Officers of the State Legislature)Article 178 – 187
कार्य संचालन (Conduct of Business)Article 188 – 189
सदस्यों की निरर्हताएं (Disqualifications of Members)Article 190 – 193
राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (Powers, privileges and immunities of State Legislatures and their members)Article 194 – 195
विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure)Article 196 – 201
वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया (Procedure in respect of financial matters)Article 202 – 207
साधारण प्रक्रिया (Procedure Generally)Article 208 – 212
[Part 6 of the Constitution]

इस लेख में हम विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure) के तहत आने वाले अनुच्छेद 200 को समझने वाले हैं।

अनुच्छेद 111 – भारतीय संविधान
Closely Related to Article 200

| अनुच्छेद 200 – विधेयकों पर अनुमति (Assent to Bills)

भारत एक संघीय व्यवस्था वाला देश है यानी कि यहाँ केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी होता है और जिस तरह से केंद्र में विधायिका (Legislature) होता है उसी तरह से राज्य का भी अपना एक विधायिका होता है।

केन्द्रीय विधायिका (Central Legislature) को भारत की संसद (Parliament of India) कहा जाता है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है, जिसका अर्थ है कि इसमें दो सदन हैं: लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद)। इसी तरह से राज्यों के लिए भी व्यवस्था की गई है।

अनुच्छेद 168(1) के तहत प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल (Legislature) की व्यवस्था की गई है और यह विधानमंडल एकसदनीय (unicameral) या द्विसदनीय (bicameral) हो सकती है।

जिस तरह से अनुच्छेद 111 में केंद्र के लिए विधेयकों पर अनुमति (Assent to Bills) की व्यवस्था की गई है उसी तरह से अनुच्छेद 200 में राज्यों के लिए विधेयकों पर अनुमति (Assent to Bills) की व्यवस्था की गई है;

अनुच्छेद 200 बताता है कि जब कोई विधेयक सदन से पारित होने के बाद राज्यपाल के पास पहुंचता है तो क्या-क्या होता है या हो सकता है;

राज्यपाल की स्वीकृति : विधानसभा या द्विसदनीय व्यवस्था में दोनों सदनों द्वारा पारित होने के बाद प्रत्येक विधेयक राज्यपाल के समक्ष स्वीकृत के लिए भेजा जाता है। राज्यपाल के पास चार विकल्प होते हैं:

1. वह विधेयक को स्वीकृत प्रदान कर दे

2. वह विधेयक को अपनी स्वीकृत देने से रोके रखें,

3. वह सदन या सदनों के पास विधेयक को पुनर्विचार के लिए भेज दे, और

4. वह राष्ट्रपति के विचारार्थ विधेयक को सुरक्षित रख ले।

यदि राज्यपाल विधेयक को स्वीकृति प्रदान कर दे तो विधेयक फिर अधिनियम बन जाएगा और यह संविधि की पुस्तक मे दर्ज हो जाता है।

यदि राज्यपाल विधेयक को रोक लेता है तो विधेयक समाप्त हो जाता है और अधिनियम नहीं बनता। यदि राज्यपाल विधेयक को पुनर्विचार के लिए भेजता है और दोबारा सदन या सदनों द्वारा इसे पारित कर दिया जाता है एवं पुनः राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है तो राज्यपाल को उसे मंजूरी देना अनिवार्य हो जाता है। इस तरह राज्यपाल के पास वैकल्पिक वीटो (alternative veto) होता है। यदि स्थिति केन्द्रीय स्तर पर भी होता है।

राष्ट्रपति की स्वीकृत :  जिस विधेयक से, उसके विधि बन जाने पर, राज्यपाल की राय में उच्च न्यायालय की शक्तियों का ऐसा अल्पीकरण होगा कि उसकी संवैधानिकता खतरे में आ जाए तो उस विधेयक पर राज्यपाल अनुमति नहीं देगा, किंतु उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखेगा।

यदि कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित रखा जाता है तो राष्ट्रपति या तो अपनी स्वीकृति दे देते हैं, उसे रोक सकते है या विधानमंडल के सदन या सदनों को पुनर्विचार हेतु भेज सकते हैं। 6 माह के भीतर इस विधेयक पर पुनर्विचार आवश्यक है। यदि विधेयक को उसके मूल रूप में या संशोधित कर दोबारा राष्ट्रपति के पास भेजा तो संविधान में इस बात का उल्लेख नहीं है राष्ट्रपति इस विधेयक को मंजूरी दे या नहीं।

इसके बारे में विस्तार से अगले अनुच्छेद 201 में समझेंगे, क्योंकि इससे आगे की चीज़ को अनुच्छेद 201 में बताया गया है;

◾ संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया
◾ धन विधेयक और वित्त विधेयक
◾ संविधान संशोधन विधेयक
इन लेखों को भी अवश्य पढ़ें;

राज्य विधानमंडल और संसद के बीच विधायी प्रक्रिया में अंतर (सामान्य विधेयक के मामले में)

संसद की प्रक्रियाराज्य विधानमंडल की प्रक्रिया
यदि दूसरा सदन पहले सदन द्वारा पारित विधेयक को अस्वीकार कर दे या फिर कोई ऐसा संशोधन प्रस्तावित करे जो कि पहले सदन को मंजूर न हो या फिर दूसरा सदन उस विधेयक को 6 माह तक बिना कोई कार्रवाई किए अपने पास रखे तो ऐसी स्थिति को दोनों सदनों के बीच गतिरोध माना जाता है। इस स्थिति से निपटने के लिए राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है।यदि दूसरा सदन पहले सदन द्वारा पारित विधेयक को अस्वीकार कर दे या फिर कोई ऐसा संशोधन प्रस्तावित करे जो कि पहले सदन को मंजूर न हो या फिर दूसरा सदन उस विधेयक को 3 माह तक बिना कोई कार्रवाई किए अपने पास रखे तो ऐसी स्थिति को गतिरोध माना जाता है। लेकिन खास बात ये है कि इस स्थिति से निपटने के लिए यहाँ दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाने की कोई व्यवस्था नहीं है।
Article 200

अनुच्छेद 196 से लेकर अनुच्छेद 201 तक का संबंध इस अनुच्छेद से है। यानि कि अनुच्छेद 107अनुच्छेद 108अनुच्छेद 198अनुच्छेद 199 और अनुच्छेद 201 एक ही कड़ी का हिस्सा है। तो इन सारे अनुच्छेदों को एक साथ पढ़ें;

तो यही है अनुच्छेद 200, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

राज्य विधानमंडल (State Legislature): गठन, कार्य, आदि
भारतीय संसद (Indian Parliament): Overview
Must Read

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Chapter Wise Polity Quiz

विधानमंडल में विधायी प्रक्रिया अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions – 5 
  2. Passing Marks – 80 %
  3. Time – 4 Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

1 / 5

जब कोई विधेयक विधानसभा से पारित होने के बाद विधान परिषद में भेजा जाता है तो परिषद इनमें से क्या नहीं कर सकता है?

  1. कुछ संशोधनों के बाद पारित कर परिषद विचारार्थ इसे विधानसभा को भेज सकता है।
  2. परिषद इस पर बिना किसी कारवाई के लंबित रख सकता है।
  3. परिषद तीन बार तक विधेयक को अस्वीकृत कर सकता है।
  4. परिषद विधेयक को ज्यादा से ज्यादा 6 महीने तक रोक के रख सकता है।

2 / 5

विधानसभा में साधारण कानून बनाने की प्रक्रिया के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. विधेयक प्रारम्भिक सदन में संसद के विपरीत सिर्फ दो स्तरों से गुजरता है;. प्रथम पाठन एवं द्वितीय पाठन।
  2. दोनों स्तरों से गुजरने के बाद उस विधेयक को दूसरे सदन में भेज दिया जाता है।
  3. दूसरे सदन में उस विधेयक को तीन स्तरों से गुजरना होता है।
  4. एक सदनीय व्यवस्था वाले विधानमंडल में विधेयक पारित कर सीधे राज्यपाल के पास भेज दिया जाता है।

3 / 5

दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. विधानमंडल के मामले में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की व्यवस्था नहीं है।
  2. यदि कोई विधेयक विधानपरिषद में निर्मित हो और उसे विधानसभा उसे अस्वीकृत कर दे तो विधेयक समाप्त हो जाता है।
  3. ज्यादा से ज्यादा परिषद एक विधेयक को चार माह के लिए रोक सकती है।
  4. विधानपरिषद को केंद्र में राज्यसभा को तुलना में कम अधिकार या महत्व दिया गया है।

4 / 5

विधनमंडलीय प्रक्रिया के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. दो सत्रों के बीच 8 माह से अधिक का समय नहीं होना चाहिए।
  2. विधानसभा अध्यक्ष बैठक को किसी समय विशेष के लिए स्थगित कर सकता है।
  3. संसद की तरह राज्य विधानमंडल को भी वर्ष में कम से कम दो बार मिलना होता है।
  4. सत्र के बीच में सत्रावसान की घोषणा नहीं की जा सकती है।

5 / 5

दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. धन विधेयक विधानपरिषद में पेश नहीं किया जा सकता।
  2. राज्यपाल धन विधेयक को सिर्फ एक बार पुनर्विचार के लिए सदन को वापस भेज सकता है।
  3. ऐसा विधेयक जो विधान परिषद में लंबित हो लेकिन विधानसभा द्वारा पारित हो, को खारिज नहीं किया जा सकता।
  4. ऐसा विधेयक जो विधानसभा द्वारा पारित हो लेकिन राष्ट्रपति द्वारा सदन के पास पुनर्विचार हेतु लौटाया गया हो को समाप्त नहीं किया जा सकता।

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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।