यह लेख Article 211 (अनुच्छेद 211) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 211 (Article 211) – Original
भाग 6 “राज्य” [अध्याय 3 — राज्य का विधान मंडल] [साधारण प्रक्रिया] |
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211. विधान-मंडल में चर्चा पर निर्बंधन — उच्चतम न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश के अपने कर्तव्यों के निर्ववन में किए गए, आचरण के विषय में राज्य के विधान-मंडल में कोई चर्चा नहीं होगी। |
Part VI “State” [CHAPTER III — The State Legislature] [Procedure Generally] |
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211. Restriction on discussion in the Legislature—No discussion shall take place in the Legislature of a State with respect to the conduct of any Judge of the Supreme Court or of a High Court in the discharge of his duties. |
🔍 Article 211 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | साधारण (General) | Article 152 |
II | कार्यपालिका (The Executive) | Article 153 – 167 |
III | राज्य का विधान मंडल (The State Legislature) | Article 168 – 212 |
IV | राज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor) | Article 213 |
V | राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States) | Article 214 – 232 |
VI | अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) | Article 233 – 237 |
जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 3 का नाम है “राज्य का विधान मंडल (The State Legislature)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 158 से लेकर अनुच्छेद 212 तक है।
इस अध्याय को आठ उप-अध्यायों (sub-chapters) में बांटा गया है, जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;
Chapter 3 [Sub-Chapters] | Articles |
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साधारण (General) | Article 168 – 177 |
राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी (Officers of the State Legislature) | Article 178 – 187 |
कार्य संचालन (Conduct of Business) | Article 188 – 189 |
सदस्यों की निरर्हताएं (Disqualifications of Members) | Article 190 – 193 |
राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (Powers, privileges and immunities of State Legislatures and their members) | Article 194 – 195 |
विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure) | Article 196 – 201 |
वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया (Procedure in respect of financial matters) | Article 202 – 207 |
साधारण प्रक्रिया (Procedure Generally) | Article 208 – 212 |
इस लेख में हम साधारण प्रक्रिया (Procedure Generally) के तहत आने वाले अनुच्छेद 211 को समझने वाले हैं।
⚫ अनुच्छेद 121 – भारतीय संविधान |
| अनुच्छेद 211 – विधान-मंडल में चर्चा पर निर्बंधन (Restriction on discussion in the Legislature)
भारत एक संघीय व्यवस्था वाला देश है यानी कि यहाँ केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी होता है और जिस तरह से केंद्र में विधायिका (Legislature) होता है उसी तरह से राज्य का भी अपना एक विधायिका होता है।
◾ केन्द्रीय विधायिका (Central Legislature) को भारत की संसद (Parliament of India) कहा जाता है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है, जिसका अर्थ है कि इसमें दो सदन हैं: लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद)। इसी तरह से राज्यों के लिए भी व्यवस्था की गई है।
अनुच्छेद 168(1) के तहत प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल (Legislature) की व्यवस्था की गई है और यह विधानमंडल एकसदनीय (unicameral) या द्विसदनीय (bicameral) हो सकती है।
जिस तरह से अनुच्छेद 121 के तहत केंद्र के लिए संसद में चर्चा पर निर्बंधन की व्यवस्था की गई है उसी तरह से अनुच्छेद 211 के तहत राज्यों के लिए विधान-मंडल में चर्चा पर निर्बंधन (Restriction on discussion in the Legislature) की व्यवस्था की गई है।
अनुच्छेद 211 सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के आचरण के संबंध में विधानमंडल में चर्चा पर प्रतिबंध से संबंधित है।
अनुच्छेद 211 के तहत कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश के अपने कर्तव्यों के निर्ववन में किए गए, आचरण के विषय में राज्य के विधान-मंडल में कोई चर्चा नहीं होगी।
अनुच्छेद में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश के अपने कर्तव्यों के निर्वहन में आचरण के संबंध में विधानमंडल में कोई चर्चा नहीं होगी।
याद रखिए कि इसी तरह का प्रावधान अनुच्छेद 121 के तहत केंद्र के लिए भी है। जिसके तहत सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के आचरण के बारे में संसद में किसी भी चर्चा या बहस की अनुमति तब तक नहीं दी जाती है जब तक कि न्यायाधीश को पद से हटाने के लिए प्रस्ताव पेश नहीं किया जाता है।
कहने का अर्थ ये है कि महाभियोग (Impeachment) के अतिरिक्त संविधान में न्यायाधीशों के आचरण पर संसद में या राज्य विधानमण्डल में बहस पर प्रतिबंध लगाया गया है। खासकर के राज्य विधानमंडल पर तो पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है। क्योंकि संविधान में प्रावधान है कि किसी न्यायाधीश को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर केवल राष्ट्रपति के आदेश से ही हटाया जा सकता है।
कहने का अर्थ है कि न्यायालय में न्यायाधीश किस तरह व्यवहार करता है, किस तरह मामलों को डील करता है, ये सब उसके मसले है इस पर संसद में बहस नहीं की जा सकती है।
यह प्रावधान न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने और संसद या विधानमंडल में चर्चा या बहस के माध्यम से न्यायपालिका के अधिकार को कम करने के किसी भी प्रयास को रोकने के उद्देश्य से है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि संविधान न्यायाधीशों को हटाने के लिए एक विशिष्ट प्रक्रिया प्रदान करता है, और किसी न्यायाधीश के आचरण के लिए किसी भी कार्रवाई के लिए इस प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया में संसद के किसी भी सदन द्वारा राष्ट्रपति को एक अभिभाषण की प्रस्तुति शामिल है, जो जांच के बाद न्यायाधीश को हटाने का आदेश दे सकता है।
तो यही है अनुच्छेद 211 , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
◾ राज्य विधानमंडल (State Legislature): गठन, कार्य, आदि ◾ भारतीय संसद (Indian Parliament): Overview |
सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |