यह लेख Article 221 (अनुच्छेद 221) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 221 (Article 221) – Original
भाग 6 “राज्य” [अध्याय 5 — राज्य का विधान मंडल] [राज्यों के उच्च न्यायालय] |
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221. न्यायाधीशों के वेतन, आदि — 1[(1) प्रत्येक उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को ऐसे वेतनों का संदाय किया जाएगा जो संसद, विधि द्वारा, अवधारित करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसे वेतनों का संदाय किया जाएगा जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।] (2) प्रत्येक न्यायाधीश ऐसे भत्तों का तथा अनुपस्थिति छुट्टी और पेंशन के संबंध में ऐसे अधिकारों का, जो संसद् द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन समय-समय पर अवधारित किए जाएं, और जब तक इस प्रकार अवधारित नहीं किए जाते हैं तब तक ऐसे भत्तों और अधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, हकदार होगा। परंतु किसी न्यायाधीश के भत्तों में और अनुपस्थिति छुट्टी या पेंशन के संबंध में उसके अधिकारों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा। ======== 1. संविधान (चौंवनवां संशोधन) अधिनियम, 1986 की धारा 3 द्वारा (1-4-1986 से) खंड (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित। |
Part VI “State” [CHAPTER V — The State Legislature] [The High Courts in the States] |
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221. Salaries, etc., of Judges— 1[(1) There shall be paid to the Judges of each High Court such salaries as may be determined by Parliament by law and, until provision in that behalf is so made, such salaries as are specified in the Second Schedule.] (2) Every Judge shall be entitled to such allowances and to such rights in respect of leave of absence and pension as may from time to time be determined by or under law made by Parliament and, until so determined, to such allowances and rights as are specified in the Second Schedule: Provided that neither the allowances of a Judge nor his rights in respect to leave of absence or pension shall be varied to his disadvantage after his appointment. ========= 1. Subs. by the Constitution (Fifty-fourth Amendment) Act, 1986, s. 3, for clause (1) (w.e.f. 1-4-1986). |
🔍 Article 221 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | साधारण (General) | Article 152 |
II | कार्यपालिका (The Executive) | Article 153 – 167 |
III | राज्य का विधान मंडल (The State Legislature) | Article 168 – 212 |
IV | राज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor) | Article 213 |
V | राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States) | Article 214 – 232 |
VI | अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) | Article 233 – 237 |
जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 5 का नाम है “राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 214 से लेकर 232 तक है। इस लेख में हम अनुच्छेद 221 को समझने वाले हैं;
⚫ अनुच्छेद 125 – भारतीय संविधान |
| अनुच्छेद 221 – न्यायाधीशों के वेतन, आदि (Salaries, etc., of Judges)
न्याय (Justice) लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।
भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय (High Court) आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Court)।
संविधान का भाग 6, अध्याय V, राज्यों के उच्च न्यायालय की बात करता है। जिस तरह से अनुच्छेद 125 के तहत उच्चतम न्यायाधीशों के वेतन, आदि (Salaries, etc., of Supreme Court Judges) का वर्णन है उसी तरह से अनुच्छेद 221 के तहत उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन, आदि का वर्णन है।
अनुच्छेद 221 के तहत कुल दो खंड है;
अनुच्छेद 221 के खंड (1) के तहत कहा गया है कि प्रत्येक उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को ऐसे वेतनों का संदाय किया जाएगा जो संसद, विधि द्वारा, अवधारित करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसे वेतनों का संदाय किया जाएगा जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।
इस खंड के तहत दो बातें कही गई है;
पहली बात – उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को ऐसा वेतन दिया जाएगा जो संसद, विधि द्वारा, निर्धारित करेगा।
दूसरी बात – अगर संसद ने ऐसा कोई कानून नहीं बनाया है तो फिर ऐसा वेतन दिया जाएगा जो कि दूसरी अनुसूची[p. 293] में बताया गया है।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन (Salary), ग्रेच्युटी (Gratuity), पेंशन (Pension), भत्ते (Allowances) आदि के बारे में पहली बात लागू होती है क्योंकि साल 1954 में संसद ने इस संबंध में एक कानून बनाया था जिसका नाम है – High Court Judges (Salaries and Conditions of Service) Act, 1954↗।
◾ 7वें वेतन आयोग के सिफ़ारिशों को लागू करने के उद्देश्य से साल 2017 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया गया और संशोधन के पश्चात अब जो वेतन और भत्ते मिलते हैं, वो कुछ इस प्रकार है;
Designation | Salary | Pension | Gratuity* |
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Chief Justices of High Court | Rs.2,50,000/-p.m. | Rs.15,00,000/- per annum +Dearness Relief | Rs.20,00,000/- |
Judges of High Court | Rs.2,25,000/-p.m. | Rs.13,50,000/- per annum +Dearness Relief | Rs.20,00,000/- |
* Gratuity – किसी कर्मचारी को नौकरी छोड़ने या सेवानिवृत्त होने पर मिलने वाली बड़ी धनराशि; उपदान
◾ वहीं भत्तों (Allowances) की बात करें तो 2017 के संशोधन के पश्चात अब स्थिति कुछ इस प्रकार है;
Designation | Furnishing Allowance | HRA* | Sumptuary Allowance* |
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Chief Justices of High Court | Rs.8,00,000/- | 24% of Basic Salary | Rs.34,000/- per month |
Judges of High Court | Rs.6,00,000/- | 24% of Basic Salary | Rs.27,000/- per month |
* HRA का मतलब House Rent Allowance है। HRA कर्मचारी द्वारा किराए के भुगतान के लिए नियोक्ताओं या सरकार द्वारा भुगतान किए जाने वाले वेतन का एक घटक है।
*सत्कार भत्ता (Sumptuary Allowance) क्या है? सत्कार भत्ता सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली धनराशि है जिसका उपयोग विलासिता की वस्तुओं को खरीदने के लिए किया जा सकता है। आगंतुकों (Visitors) के मनोरंजन पर किए गए खर्च की भरपाई के लिए केंद्र सरकार के विभिन्न ग्रेड के कर्मियों को सत्कार भत्ते दिए जाते हैं। Chief Justices of High Court को 34,000/- रुपए प्रति महिना इसके लिए मिलता है। |
Note – सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन, पेंशन और भत्ते भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं, जबकि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते राज्यों की संचित निधि पर और पेंशन भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं। .
अनुच्छेद 221(2) के तहत कहा गया है कि प्रत्येक न्यायाधीश ऐसे भत्तों का तथा अनुपस्थिति छुट्टी और पेंशन के संबंध में ऐसे अधिकारों का, जो संसद् द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन समय-समय पर अवधारित किए जाएं, और जब तक इस प्रकार अवधारित नहीं किए जाते हैं तब तक ऐसे भत्तों और अधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, हकदार होगा।
यहाँ पर दो बातें हैं;
पहली बात – प्रत्येक न्यायाधीश को विशेषाधिकारों और भत्तों तथा अनुपस्थिति, छुट्टी और पेंशन के संबंध में ऐसे अधिकार मिलेंगे, जो संसद द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
दूसरी बात – जब तक इस प्रकार निर्धारित नहीं किए जाते हैं तब तक ऐसे विशेषाधिकारों, भत्तों और अधिकारों का लाभ मिलेगा जो कि दूसरी अनुसूची में दिया हुआ है।
पेंशन, छुट्टी एवं अनुपस्थिति आदि को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश (वेतन और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1958 [Supreme Court Judges (Salaries and Conditions of Service) Act, 1958] के तहत ही कवर किया गया है।
यहाँ पर यह याद रखिए कि किसी न्यायाधीश के विशेषाधिकारों और भत्तों में तथा अनुपस्थिति छुट्टी या पेंशन के संबंध में उसके अधिकारों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
तो यही है अनुच्छेद 221, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |