यह लेख Article 225 (अनुच्छेद 225) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

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📜 अनुच्छेद 225 (Article 225) – Original

भाग 6 “राज्य” [अध्याय 5 — राज्य का विधान मंडल] [राज्यों के उच्च न्यायालय]
1[225. विद्यमान उच्च न्यायालयों की अधिकारिता — इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते और इस संविधान द्वारा समुचित विधान-मंडल को प्रदत्त शक्तियों के आधार पर उस विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हए, किसी विद्यमान उच्च न्यायालय की अधिकारिता और उसमें प्रशासित विधि तथा उस न्यायालय में न्याय प्रशासन के संबंध में उसके न्यायाधीशों की अपनी-अपनी शक्तियां, जिनके अंतर्गत न्यायालय के नियम बनाने की शक्ति तथा उस न्यायालय और उसके सदस्यों की बैठकों का चाहे वे अकेले बैठे या खंड न्यायालयों में बैठे विनियमन करने की शक्ति है, वही होंगी जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले थीं;

1[परंतु राजस्व संबंधी अथवा उसका संग्रहण करने में आदिष्ट या किए गए किसी कार्य संबंधी विषय की बाबत उच्च न्यायालयों में से किसी की आरंभिक अधिकारिता का प्रयोग, इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले, जिस किसी निर्बंधन के अधीन था वह निर्बंधन ऐसी अधिकारिता के प्रयोग को ऐसे प्रारंभ के पश्चात्‌ लागू नहीं होगा।]
==============
1. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 29 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्थापित। संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 37 द्वारा (1-2-1977 से) मूल परंतुक का लोप किया गया था।
अनुच्छेद 225 हिन्दी संस्करण

Part VI “State” [CHAPTER V — The State Legislature] [The High Courts in the States]
1[225. Jurisdiction of existing High Courts— Subject to the provisions of this Constitution and to the provisions of any law of the appropriate Legislature made by virtue of powers conferred on that Legislature by this Constitution, the jurisdiction of, and the law administered in, any existing High Court, and the respective powers of the Judges thereof in relation to the administration of justice in the Court, including any power to make rules of Court and to regulate the sittings of the Court and of members thereof sitting
alone or in Division Courts, shall be the same as immediately before the commencement of this Constitution:

1[Provided that any restriction to which the exercise of original jurisdiction by any of the High Courts with respect to any matter concerning the revenue or concerning any act ordered or done in the collection thereof was subject immediately before the commencement of this Constitution shall no longer apply to the exercise of such jurisdiction.]
=======================
1. Omitted by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 37 (w.e.f. 1-2-1977) and subsequently ins. by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 29 (w.e.f. 20-6-1979).
Article 225 English Version

🔍 Article 225 Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।

ChaptersTitleArticles
Iसाधारण (General)Article 152
IIकार्यपालिका (The Executive)Article 153 – 167
IIIराज्य का विधान मंडल (The State Legislature)Article 168 – 212
IVराज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor)Article 213
Vराज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)Article 214 – 232
VIअधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts)Article 233 – 237
[Part 6 of the Constitution]

जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 5 का नाम है “राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 214 से लेकर 232 तक है। इस लेख में हम अनुच्छेद 225 को समझने वाले हैं;

◾ Article 131
◾ Article 132
◾ Article 133
◾ Article 134
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| अनुच्छेद 225 – विद्यमान उच्च न्यायालयों की अधिकारिता (Jurisdiction of existing High Courts)

न्याय (Justice) लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।

भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय (High Court) आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Court)।

संविधान का भाग 6, अध्याय V, राज्यों के उच्च न्यायालय की बात करता है। अनुच्छेद 225 के तहत विद्यमान उच्च न्यायालयों की अधिकारिता (Jurisdiction of existing High Courts) का वर्णन है।

अनुच्छेद 225 के तहत कहा गया है कि इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते और इस संविधान द्वारा समुचित विधान-मंडल को प्रदत्त शक्तियों के आधार पर उस विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हए, किसी विद्यमान उच्च न्यायालय की अधिकारिता और उसमें प्रशासित विधि तथा उस न्यायालय में न्याय प्रशासन के संबंध में उसके न्यायाधीशों की अपनी-अपनी शक्तियां, जिनके अंतर्गत न्यायालय के नियम बनाने की शक्ति तथा उस न्यायालय और उसके सदस्यों की बैठकों का चाहे वे अकेले बैठे या खंड न्यायालयों में बैठे विनियमन करने की शक्ति है, वही होंगी जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले थीं;

इसमें कहा गया है कि किसी भी मौजूदा उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार, वहां प्रशासित कानून, और न्यायालय में न्याय के प्रशासन के संबंध में वहां के न्यायाधीशों की संबंधित शक्तियां, न्यायालय के नियमों को स्थापित करने और विनियमित करने के अधिकार सहित सभी न्यायिक शक्तियां न्यायालय की बैठकें और उसके सदस्यों का आचरण; इस संविधान के प्रावधानों और इस संविधान द्वारा उस विधानमंडल को प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में उपयुक्त विधानमंडल द्वारा अधिनियमित किसी भी कानून के अधीन हैं।

इस अनुच्छेद के तहत मुख्यतः 3 बातें कही गई है;

पहली बात) अनुच्छेद 225 विद्यमान उच्च न्यायालयों और उनके अधीनस्थ न्यायालयों के क्षेत्राधिकार की निरंतरता (continuity of jurisdiction) सुनिश्चित करता है। वाक्यांश “विद्यमान उच्च न्यायालय (Existing High Courts)” उन उच्च न्यायालयों को संदर्भित करता है जो 1950 में भारत के संविधान के प्रारंभ होने से पहले कार्य कर रहे थे।

दूसरी बात) यह संविधान और विधान के अधीन है। अनुच्छेद 225 में उल्लिखित क्षेत्राधिकार संविधान के प्रावधानों और उपयुक्त विधानमंडल द्वारा अधिनियमित किसी भी कानून के अधीन है। इसका मतलब यह है कि उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ न्यायालयों की क्षेत्राधिकारों को बाद के संवैधानिक संशोधनों या कानून द्वारा संशोधित या विनियमित किया जा सकता है।

तीसरी बात) यह अनुच्छेद विद्यमान उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की शक्तियों को संरक्षित करता है जैसे वे संविधान के प्रारंभ होने से ठीक पहले थीं। इसमें न केवल क्षेत्राधिकार बल्कि न्याय प्रशासन से संबंधित अन्य शक्तियाँ भी शामिल हैं, जैसे न्यायालय के नियम बनाने और बैठकों को विनियमित करने की शक्ति।

कुल मिलाकर अनुच्छेद 225 भारत के क्षेत्र में मौजूदा उच्च न्यायालयों और न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र और शक्तियों की निरंतरता सुनिश्चित करता है, जैसा कि वे संविधान के शुरू होने से पहले मौजूद थे, जबकि संवैधानिक संशोधनों और कानून के माध्यम से संशोधन की अनुमति देता है।

भारत के संविधान का अनुच्छेद 225 उच्च न्यायालय को कार्यवाही और उच्च न्यायालय से जुड़े अन्य मामलों के संबंध में नियम बनाने का अधिकार देता है। यानि कि उच्च न्यायालयों को अपनी प्रक्रियाओं के नियमन के लिए नियम बनाने की शक्ति है। लेकिन उच्च न्यायालयों का क्षेत्राधिकार कानून द्वारा सीमित हो सकता है।

अनुच्छेद 225 का एक परंतुक (Proviso) भी है जो कि यह कहता है कि राजस्व संबंधी अथवा उसका संग्रहण करने में आदिष्ट या किए गए किसी कार्य संबंधी विषय की बाबत उच्च न्यायालयों में से किसी की आरंभिक अधिकारिता का प्रयोग, इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले, जिस किसी निर्बंधन के अधीन था वह निर्बंधन ऐसी अधिकारिता के प्रयोग को ऐसे प्रारंभ के पश्चात्‌ लागू नहीं होगा।

सुप्रीम कोर्ट की तरह उच्च न्यायालयों के पास भी आरंभिक अधिकारिता (original jurisdiction) होती है। मूल क्षेत्राधिकार का अर्थ ये है कि निम्नलिखित मामलों के विवादों में उच्च न्यायालय प्रथम दृष्टया (Prima facie) सीधे सुनवाई करेगा, न कि अपील के जरिये।

(1) अधिकारिता का मामला, वसीयत, विवाह, तलाक कंपनी कानून एवं न्यायालय की अवमानना।
(2) संसद सदस्यों और राज्य विधानमंडल सदस्य के निर्वाचन संबंधी विवाद।
(3) राजस्व मामले या राजस्व संग्रहण के लिए बनाए गए किसी अधिनियम अथवा आदेश के संबंध में।
(4) नागरिकों के मूल अधिकारों का प्रवर्तन ।
(5) संविधान की व्याख्या के संबंध में अधीनस्थ न्यायालय से स्थानांतरित मामलों में।

इस परंतुक में कहा गया है कि राजस्व मामले या राजस्व संग्रहण के लिए बनाए गए किसी अधिनियम अथवा आदेश के संबंध में जो मूल क्षेत्राधिकार संविधान लागू होने से पहले किसी निर्बंधन (Restriction) के अधीन था वो निर्बंधन संविधान लागू होने के बाद लागू नहीं होगा।

Alternate Explanation of Article 225

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 225 में कहा गया है कि किसी राज्य के उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार पूरे राज्य और किसी अन्य क्षेत्र तक विस्तारित होगा, जिस पर समुचित विधानमंडल के कानून द्वारा उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार बढ़ाया जा सकता है।

जहां तक उच्च न्यायालयों का क्षेत्राधिकार का प्रश्न है तो उच्च न्यायालय के पास निम्नलिखित क्षेत्राधिकार है;

  1. मूल क्षेत्राधिकार (Original Jurisdiction)
  2. रिट क्षेत्राधिकार (Writ Jurisdiction)
  3. अपीलीय क्षेत्राधिकार (Appellate Jurisdiction)
  4. पर्यवेक्षण क्षेत्राधिकार (Supervisory Jurisdiction)
  5. अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण (Control over subordinate courts)
  6. अभिलेख न्यायालय (A court of record)
  7. न्यायिक समीक्षा (Power of Judicial Review)

विस्तार से समझें; उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार↗ 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 225 के आधार पर, 1949 से पहले प्रिवी काउंसिल के निर्णय हमारे उच्च न्यायालयों पर बाध्यकारी होंगे, जब तक कि उन्हें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खारिज नहीं किया गया हो या भारत के संविधान के विपरीत न हो।

तो यही है Article 225 , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

◾ उच्च न्यायालय (High Court): गठन, भूमिका, स्वतंत्रता
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Chapter Wise Polity Quiz

उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions – 8 
  2. Passing Marks – 75  %
  3. Time –  6  Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

1 / 8

उच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. उच्च न्यायालय भी मूलतः एक अपीलीय न्यायालय (Appellate Court) ही है।
  2. जिला न्यायालयों के आदेशों और निर्णयों को प्रथम अपील के लिए सीधे उच्च न्यायालय में लाया जा सकता है,
  3. प्रशासनिक एवं अन्य अधिकरणों के निर्णयों के विरुद्ध अपील उच्च न्यायालय की खंड पीठ के सामने की जा सकती है।
  4. 3 साल से ऊपर सजा मिलने पर उच्च न्यायालय में उसके खिलाफ अपील की जा सकती है।

2 / 8

निम्नलिखित कथनों में से सही कथन की पहचान करें;

  1. उच्च न्यायालय, अधीनस्थ न्यायालय में लंबित किसी ऐसे मामले को वापस ले सकता है, जिसमें महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न या फिर संविधान की व्याख्या की आवश्यकता हो।
  2. न्यायालय की अवमानना किसे कहा जाएगा इसे संविधान में परिभाषित किया गया है।
  3. सिविल अवमानना का अर्थ है न्यायालय के किसी भी निर्णय, आदेश आदि का जान बूझकर पालन न करना।
  4. जिला न्यायाधीशों कि नियुक्ति और पदोन्नति के लिए राज्यपाल उच्च न्यायालय से परामर्श लेता है।

3 / 8

निम्नलिखित किन मामलों के विवादों में उच्च न्यायालय प्रथम दृष्टया (Prima facie) सीधे सुनवाई कर सकता है?

4 / 8

निम्न में से किस मामले में उच्च न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार को संविधान का मूल ढांचा माना गया?

5 / 8

उच्च न्यायालय के पर्यवेक्षक क्षेत्राधिकार को ध्यान में रखकर दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. उच्च न्यायालय, निचले अदालतों से मामले वहाँ से स्वयं के पास मँगवा सकता है।
  2. उच्च न्यायालय क्लर्क, अधिकारी एवं वकीलों के शुल्क आदि निश्चित करता है।
  3. उच्च न्यायालय राज्य सिविल सेवा के अधिकारी के कार्य नियम बना सकता है।
  4. उच्च न्यायालय विधानसभा के कार्यों पर नज़र रखता है।

6 / 8

उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. केरल उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार केवल केरल तक ही सीमित है।
  2. उच्च न्यायालय का रिट क्षेत्राधिकार उच्चतम न्यायालय से व्यापक है।
  3. उच्च न्यायालय का रिट क्षेत्राधिकार संविधान का मूल ढांचा है।
  4. उच्च न्यायालय के पास भी न्यायिक पुनर्निरीक्षण की शक्ति होती है।

7 / 8

उच्च न्यायालय के पास भी अभिलेख न्यायालय (court of record) का स्टेटस है, ये किस अनुच्छेद से संबंधित है?

8 / 8

उच्च न्यायालय, अधीनस्थ न्यायालय पर नियंत्रण रखती है न सिर्फ अपीलीय क्षेत्राधिकार या पर्यवेक्षक क्षेत्राधिकार के तहत बल्कि प्रशासनिक नियंत्रण भी रखती है।

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मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
Important Pages of Compilation
अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।