यह लेख Article 229 (अनुच्छेद 229) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
Bell आइकॉन पर क्लिक करके हमारे नोटिफ़िकेशन सर्विस को Allow कर दें ताकि आपको हरेक नए लेख की सूचना आसानी से प्राप्त हो जाए। साथ ही नीचे दिए गए हमारे सोशल मीडिया हैंडल से जुड़ जाएँ और नवीनतम विचार-विमर्श का हिस्सा बनें। खासकर के टेलीग्राम और यूट्यूब से जरूर जुड़ जाएं; |
📜 अनुच्छेद 229 (Article 229) – Original
भाग 6 “राज्य” [अध्याय 5 — राज्य का विधान मंडल] [राज्यों के उच्च न्यायालय] |
---|
229. उच्च न्यायालयों के अधिकारी और सेवक तथा व्यय— (1) किसी उच्च न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों की नियुक्तियां उस न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति करेगा या उस न्यायालय का ऐसा अन्य न्यायाधीश या अधिकारी करेगा जिसे वह निर्दिष्ट करे; परंतु उस राज्य का राज्यपाल 1* नियम द्वारा यह अपेक्षा कर सकेगा कि ऐसी किन्हीं दशाओं में जो नियम में विनिर्दिष्ट की जाएं, किसी ऐसे व्यक्ति को, जो पहले से ही न्यायालय से संलग्न नहीं हैँ न्यायालय से संबंधित किसी पद पर राज्य लोक सेवा आयोग से परामर्श करके ही नियुक्त किया जाएगा, अन्यथा नहीं । (2) राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए उच्च न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों की सेवा की शर्तें ऐसी होंगी जो न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति या उस न्यायालय के ऐसे अन्य न्यायाधीश या अधिकारी द्वारा, जिसे मुख्य न्यायमूर्ति ने इस प्रयोजन के लिए नियम बनाने के लिए प्राधिकृत किया है, बनाए गए नियमों द्वारा विहित की जाएं; परंतु इस खंड के अधीन बनाए गए नियमों के लिए, जहां तक वे वेतनों, भत्तों, छुट्टी या पेंशनों से संबंधित हैं, उस राज्य के राज्यपाल के *1 अनुमोदन की अपेक्षा होगी] (3) उच्च न्यायालय के प्रशासनिक व्यय, जिनके अंतर्गत उस न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों को या उनके संबंध में संदेय सभी वेतन, भत्ते और पेशन हैं, राज्य की संचित निधि पर भारित होंगे और उस न्यायालय द्वारा ली गई फीसें और अन्य धनराशियां उस निधि का भाग होंगी। ============== 1. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “जिसमें उच्च न्यायालय का मुख्य स्थान है,” शब्दों का (1-11-1956 से) लोप किया गया। |
Part VI “State” [CHAPTER V — The State Legislature] [The High Courts in the States] |
---|
229. Officers and servants and the expenses of High Courts— (1) Appointments of officers and servants of a High Court shall be made by the Chief Justice of the Court or such other Judge or officer of the Court as he may direct: Provided that the Governor of the State 1* may by rule require that in such cases as may be specified in the rule no person not already attached to the Court shall be appointed to any office connected with the Court save after consultation with the State Public Service Commission. (2) Subject to the provisions of any law made by the Legislature of the State, the conditions of service of officers and servants of a High Court shall be such as may be prescribed by rules made by the Chief Justice of the Court or by some other Judge or officer of the Court authorised by the Chief Justice to make rules for the purpose: Provided that the rules made under this clause shall, so far as they relate to salaries, allowances, leave or pensions, require the approval of the Governor of the State 1*. (3) The administrative expenses of a High Court, including all salaries, allowances and pensions payable to or in respect of the officers and servants of the Court, shall be charged upon the Consolidated Fund of the State, and any fees or other moneys taken by the Court shall form part of that Fund. ======================= 1. The words “in which the High Court has its principal seat” omitted by the Constitution (Seventh Amendment) Act, 1956, s. 29 and Sch. (w.e.f. 1-11-1956). |
🔍 Article 229 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
---|---|---|
I | साधारण (General) | Article 152 |
II | कार्यपालिका (The Executive) | Article 153 – 167 |
III | राज्य का विधान मंडल (The State Legislature) | Article 168 – 212 |
IV | राज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor) | Article 213 |
V | राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States) | Article 214 – 232 |
VI | अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) | Article 233 – 237 |
जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 5 का नाम है “राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 214 से लेकर 232 तक है। इस लेख में हम अनुच्छेद 229 को समझने वाले हैं;
⚫ अनुच्छेद 146 – भारतीय संविधान |
| अनुच्छेद 229 – उच्च न्यायालयों के अधिकारी और सेवक तथा व्यय (Officers and servants and the expenses of High Courts)
न्याय (Justice) लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।
भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय (High Court) आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Court)।
संविधान का भाग 6, अध्याय V, राज्यों के उच्च न्यायालय की बात करता है। जिस तरह से अनुच्छेद 146 के तहत उच्चतम न्यायालय के अधिकारी और सेवक तथा व्यय का प्रावधान है, उसी तरह से अनुच्छेद 229 के तहत उच्च न्यायालयों के अधिकारी और सेवक तथा व्यय का प्रावधान है।
अनुच्छेद 229 के तहत कुल तीन खंड आते हैं;
Article 229 Clause 1 Explanation
अनुच्छेद 229 के खंड (1) के तहत कहा गया है कि किसी उच्च न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों की नियुक्तियां उस न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति करेगा या उस न्यायालय का ऐसा अन्य न्यायाधीश या अधिकारी करेगा जिसे वह निर्दिष्ट करे;
यहाँ दो बातें हैं;
(पहली बात), उच्च न्यायालय के अधिकारियों (officers) और सेवकों (servants ) की नियुक्तियां उस उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति करेगा।
(दूसरी बात), उच्च न्यायालय के अधिकारियों (officers) और सेवकों (servants ) की नियुक्तियां अन्य न्यायाधीश या अधिकारी भी कर सकता है, अगर उसे मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा इस काम के लिए निर्दिष्ट (Specify) किया गया है।
कुल मिलाकर कहने का अर्थ यह है कि अगर किसी अधिकारी या नौकर के संबंध में नियुक्ति करनी हो तो उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश करेंगे। और अगर उच्च न्यायालय मुख्य न्यायाधीश किसी भी कारण से कर्मचारियों की नियुक्ति के अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करने में सक्षम नहीं हैं, तो वह इसे किसी अन्य न्यायाधीश को सौंप सकते हैं और ऐसे न्यायाधीश नियुक्ति के लिए जिम्मेदार होंगे।
हालांकि यहाँ यह याद रखिए कि अगर कोई व्यक्ति पहले से ही न्यायालय से संलग्न नहीं है लेकिन फिर भी अगर उसे न्यायालय से संबन्धित किसी पद पर नियुक्त करना है तो फिर ऐसी स्थिति में राज्य लोक सेवा आयोग से परामर्श करना जरूरी होता है। राज्यपाल इस पर नजर रखता है;
Article 229 Clause 2 Explanation
अनुच्छेद 229 के खंड (2) के तहत कहा गया है कि राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए उच्च न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों की सेवा की शर्तें ऐसी होंगी जो न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति या उस न्यायालय के ऐसे अन्य न्यायाधीश या अधिकारी द्वारा, जिसे मुख्य न्यायमूर्ति ने इस प्रयोजन के लिए नियम बनाने के लिए प्राधिकृत किया है, बनाए गए नियमों द्वारा विहित की जाएं;
यहाँ दो बातें हैं;
(पहली बात), उच्च न्यायालय के अधिकारियों (officers) और सेवकों (servants ) की सेवा शर्तें उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा तय होगा। हालांकि ये विधानमंडल द्वारा बनाई गई विधि के उपबंधों के अधीन होगा।
(दूसरी बात), उच्च न्यायालय के अधिकारियों (officers) और सेवकों (servants ) की सेवा शर्तें अन्य न्यायाधीश या अधिकारी द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा भी तय किया जा सकता है, अगर उसे मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा इस काम के लिए निर्दिष्ट किया गया है। हालांकि ये भी विधान मण्डल द्वारा बनाई गई विधि के उपबंधों के अधीन होगा।
यहाँ यह याद रखिए कि इस खंड के अधीन बनाए गए नियमों के लिए, जहां तक वे वेतनों, भत्तों, छुट्टी या पेशनों से संबंधित हैं, राज्यपाल के अनुमोदन (Approval) की अपेक्षा होगी।
Article 229 Clause 3 Explanation
अनुच्छेद 229 के खंड (3) के तहत कहा गया है कि उच्च न्यायालय के प्रशासनिक व्यय, जिनके अंतर्गत उस न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों को या उनके संबंध में संदेय सभी वेतन, भत्ते और पेशन हैं, राज्य की संचित निधि पर भारित होंगे और उस न्यायालय द्वारा ली गई फीसें और अन्य धनराशियां उस निधि का भाग होंगी।
यहाँ पर दो बातें हैं;
(पहली बात), उच्च न्यायालय के प्रशासनिक व्यय (Administrative Expenses) राज्य के संचित निधि पर भारित होते हैं। इसके अंतर्गत अधिकारियों और सेवकों के संबंध में संदेय सभी वेतन, भत्ते और पेंशन आते हैं।
(दूसरी बात), उच्च न्यायालय द्वारा जो फ़ीसें या अन्य धनराशियाँ ली जाती है वो भी राज्य के संचित निधि का भाग होती है।
कुल मिलाकर, अधिकारियों और कर्मचारियों को भुगतान करने के लिए वेतन, भत्ते और पेंशन सहित उच्च न्यायालय के सभी खर्च राज्य के संचित निधि (Consolidated Fund) से लिए जाएंगे। साथ ही, न्यायालय द्वारा लिया गया कोई शुल्क या अन्य मौद्रिक शुल्क राज्य के संचित निधि का हिस्सा होगा।
तो यही है अनुच्छेद 229 , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial
Related MCQs with Explanation
| Related Article
⚫ अनुच्छेद 230 – भारतीय संविधान |
⚫ अनुच्छेद 228 – भारतीय संविधान |
⚫ भारतीय संविधान ⚫ संसद की बेसिक्स ⚫ मौलिक अधिकार बेसिक्स ⚫ भारत की न्यायिक व्यवस्था ⚫ भारत की कार्यपालिका |
अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |