यह लेख अनुच्छेद 23 (Article 23) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें। इसकी व्याख्या इंग्लिश में भी उपलब्ध है, इसके लिए आप नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग करें;

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📜 अनुच्छेद 23 (Article 23)

23. मानव के दुर्व्यापार और बलातश्रम का प्रतिषेध – (1) मानव का दुर्व्यापार और बेगार तथा इसी प्रकार का अन्य बलातश्रम प्रतिषिद्ध किया जाता है और इस उपबंध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।

(2) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए अनिवार्य सेवा अधिरोपित करने से निवारित नहीं करेगी। ऐसी सेवा अधिरोपित करने में राज्य केवल धर्म, मूलवंश, जाति या वर्ग या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
अनुच्छेद 23
23. Prohibition of traffic in human beings and forced labour. — (1) Traffic in human beings and begar and other similar forms of forced labour are prohibited and any contravention of this provision shall be an offence punishable in accordance with law.

(2) Nothing in this article shall prevent the State from imposing compulsory service for public purposes, and in imposing such service the State shall not make any discrimination on grounds only of religion, race, case or class or any of them.
Article 23

🔍 Article 23 Explanation in Hindi

अपनी इच्छा के विरुद्ध काम करना या बिना मजदूरी के काम करना या बेचे जाना इत्यादि किसे पसंद होगा। पर यह एक सच्चाई है या यूं कहें कि सच्चाई रही है।

आजाद भारत में किसी व्यक्ति को इन परिस्थितियों से न गुजरना पड़े इसीलिए संविधान के मौलिक अधिकारों वाले भाग (भाग 3) में इसे प्रतिषेध (Prohibit) किया गया है।

इस भाग का नाम है शोषण के विरुद्ध अधिकार और इसके तहत कुल दो अनुच्छेद आते हैं – अनुच्छेद 23 और अनुच्छेद 24। (जैसा कि आप चार्ट में देख सकते हैं) हम यहाँ अनुच्छेद 23 को समझने वाले हैं;

शोषण के विरुद्ध अधिकार↗️
अनुच्छेद 23 – मानव के दुर्व्यापार और बलातश्रम का प्रतिषेध
⚫ अनुच्छेद 24 – कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध
Article 23

शोषण का अर्थ (Meaning of Exploitation) : Article 23

शक्ति प्रयोग के द्वारा या फिर हालात का फायदा उठाते हुए जब किसी से इच्छा के विरुद्ध और उसके क्षमता के अधिक काम लिया जाता है और उसके अनुरूप पारिश्रमिक नहीं दिया जाता है तो उसे शोषण (exploitation) कहते हैं।

चूंकि शोषण, स्वार्थ से किसी का या किसी समूह का लाभ उठाने के लिए किया जाता है इसीलिए इसमें व्यक्ति के साथ अमानवीय व्यवहार हो सकता है, उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाला कृत्य हो सकता है, आदि।

कार्ल मार्क्स ने कहा था कि समाज में दो तरह के वर्ग होते है; एक होते है शोषित वर्ग (Exploited class) और दूसरा शोषक वर्ग (Exploiting class)

शोषक वर्ग के पास उत्पादन और वितरण के सभी साधनों पर स्वामित्व होता है जबकि शोषित संपत्तिविहीन एवं लाचार होते हैं। ऐसे में शोषक वर्ग कभी नहीं चाहता कि शोषित वर्ग उसके समकक्ष आ जाये।

हमारा देश मार्क्स के सम्पूर्ण सिद्धान्त पर तो नहीं चलता है पर किसी का शोषण न हो इसका ध्यान बकायदे रखता है। शोषण एक स्वस्थ समाज के बिल्कुल भी अच्छा नहीं है, इसीलिए हमारे संविधान निर्माता ने इसके उन्मूलन को प्राथमिकता देते हुए इसे मौलिक अधिकार का हिस्सा बनाया।

इसका सही से पालन हो इसके लिए समय के साथ कई कानून भी इसके सपोर्ट में बनाए गए ताकि शोषित वर्ग का उन्मूलन हो सकें। तो आइये देखते हैं मौलिक अधिकारों के इस श्रेणी में क्या खास है;

| अनुच्छेद 23 – मानव के दुर्व्यापार और बलातश्रम का प्रतिषेध

अनुच्छेद 23 का पहला खंड कहता है कि मानव का दुर्व्यापार (trafficking) और बेगार (forced labor) तथा इसी प्रकार का अन्य बलात श्रम प्रतिसिद्ध (Prohibited) किया जाता है और इस उपबंध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा और विधि के अनुसार दंडनीय होगा।

इसमें दो मुख्य टर्म है, पहला है मानव दुर्व्यापार (human trafficking) दूसरा टर्म है – बलात श्रम (forced labor) । आइये दोनों को समझते हैं;

Q. मानव दुर्व्यापार (human trafficking) क्या है?

जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है, इसका आशय इन्सानों का वस्तु की तरह खरीद -बिक्री, महिलाओ से जबरन वेश्यावृति करने को मजबूर करना, दास प्रथा और इसी तरह के अन्य काम जिससे इन्सानों का शोषण होता हो, से है।

read in details – मानव तस्करी (HT) : अर्थ, कानून व नैतिकता [यूपीएससी]

इस तरह के चीजों को रोकने के लिए 1956 में अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम (The Immoral Traffic (Prevention) Act (ITPA)) बनाया गया था। आइये इसके बारे में थोड़ा समझ लेते हैं;

| अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम (ITPA) 1956

तस्करी के दमन (suppression of trafficking) पर न्यूयॉर्क में 1950 में संयुक्त राष्ट्र की घोषणा पर भारत ने हस्ताक्षर किया था।

इसी घोषणा को ध्यान में रखकर साल 1956 में भारत सरकार ने अखिल भारतीय अनैतिक दुर्व्यापार दमन अधिनियम (All India Suppression of Immoral Traffic Act) पास किया।

यह अधिनियम SITA Act के नाम से फ़ेमस हुआ। क्योंकि इसे भारत में महिलाओं और लड़कियों के अनैतिक व्यापार का दमन करने के उद्देश्य से लाया गया था।

साल 1986 में इसी SITA में संशोधन किया गया और अब इसका नाम रखा गया – अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम (The Immoral Traffic (Prevention) Act)

इस कानून को लाने का मकसद, सेक्स वर्क के विभिन्न पहलुओं को धीरे-धीरे अपराधीकरण कर भारत में वेश्यावृत्ति को सीमित करना और अंततः समाप्त करना था।

  • यह अधिनियम वेश्यावृत्ति की अवैधता और ऐसे किसी भी संबंधित प्रतिष्ठान के मालिक होने की सजा को बताता है
  • वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से भर्ती करने, परिवहन करने, स्थानांतरित करने, शरण देने या लोगों को प्राप्त करने जैसी श्रृंखला गतिविधियों के किसी भी चरण में शामिल कोई भी व्यक्ति भी दंडित किया जा सकता है।
  • यदि कोई व्यक्ति ऐसी किसी गतिविधि में किसी बच्चे को शामिल करने का दोषी पाया जाता है, तो वह कानून द्वारा दंडनीय है और सात या अधिक वर्षों के लिए कारावास हो सकता है।

अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम के अलावा, सरकार और अन्य संबंधित अधिकारियों द्वारा कई अन्य पहल की गई हैं।

  • महिलाओं और बच्चों की तस्करी और व्यावसायिक यौन शोषण से निपटने के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना 1998 तैयार की गई थी
  • गृह मंत्रालय ने तस्करी की रोकथाम के लिए एक समर्पित सेल की स्थापना की है।
  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MWCD) ने विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर सीमा पार तस्करी से निपटने के लिए विशेष कार्यबल बनाने का प्रयास किया है।

| मानव दुर्व्यापार (human trafficking) को विस्तार से समझें – मानव तस्करी (HT) : अर्थ, कानून व नैतिकता [यूपीएससी]

दूसरा टर्म है – बलात श्रम का निषेध,

Q. बलात श्रम (Forced Labour) क्या है?

बलात श्रम का अभिप्राय है किसी व्यक्ति से उसके इच्छा के विरुद्ध काम करवाना।

कहने का अर्थ है कि भले ही किसी व्यक्ति को पारिश्रमिक या अन्य प्रतिफल दिया जाए लेकिन अगर वह विवशता में काम कर रहा है तो उसे बलात श्रम (Forced Labour) के तहत रखा जाता है।

यहाँ यह याद रखिए कि यह अनुच्छेद बलात श्रम के अन्य प्रकारों जैसे कि बंधुआ मजदूरी पर भी रोक लगाता है।

बंधुआ मजदूरी (Bonded Labour) क्या है?
पूर्वजों या स्वयं द्वारा किए गए किसी समझौते जैसे उधार लेने, जाति विशेष में जन्म लेने अथवा अन्य कारणों से बिना पारिश्रमिक या सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी दर से कम पर कार्य करने के लिए विवश होना या विवश करना, बंधुआ मजदूरी (Bonded Labour) की परिधि में आता है।
Article 23

इसे मौलिक अधिकारों की श्रेणी में रखने के बाद भी मानव दुर्व्यापार और बलात श्रम कभी खत्म नहीं हुआ, आज भी मानव व्यापार, वेश्यावृति और बंधुआ मजदूरी जैसे कुरीति देखने को मिलते ही रहते हैं।

  • एक अनुमान के मुताबिक भारत में, साल 2018 में लगभग 32 लाख बंधुआ मज़दूर थे और इनमें से अधिकांश ऋणग्रस्तता (Indebtedness) के शिकार थे।
  • वर्ष 2016 में जारी ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स (Global Slavery Index) के अनुसार, भारत में तकरीबन 8 मिलियन लोग (यानी कि 80 लाख लोग) आधुनिक गुलामी में जी रहे हैं।
  • बंधुआ मज़दूरी मुख्य रूप से कृषि तथा अनौपचारिक क्षेत्र, जैसे कि- सूती कपड़ा हथकरघा, ईंट भट्टे, पत्थर खदान, घर का काम आदि में प्रचलित है।

झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे अत्यधिक गरीब जनसंख्या वाले राज्यों में बंधुआ मज़दूरी अभी भी चल रही है।

इस को रोकने के लिए और मौलिक अधिकारों के प्रावधानों को शत-प्रतिशत हासिल करने के उद्देश्य से कई कानून बनाए गए हैं जैसे कि – बंधुआ मजदूरी व्यवस्था (निरसन) अधिनियम 1976 तथा समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 आदि।

| बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976

इस एक्ट के तहत बंधुआ मज़दूरी को पूरी तरह से समाप्त कर मज़दूरों को रिहा कर दिया गया और उनके कर्ज़ भी समाप्त कर दिये गए।

इसके साथ ही कोई भी प्रथा, समझौता या अन्य साधन जिसके आधार पर किसी व्यक्ति को बंधुआ मज़दूरी जैसी कोई सेवा देने की बाध्यता थी, को निरस्त कर दिया गया।

बंधुआ मज़दूरी व्यवस्था को एक दंडनीय संज्ञेय अपराध घोषित किया गया। – जो कोई भी, इस अधिनियम के प्रारंभ होने के बाद, किसी भी व्यक्ति को बंधुआ मजदूरी करने के लिए मजबूर करता है, वह कारावास से दंडनीय होगा जिसे तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माने से भी जो दो हजार रुपए तक बढ़ाया जा सकता है।

| समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976

समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 (Equal Remuneration Act 1976) का मुख्य उद्देश्य पुरुषों और महिलाओं को एक समान आधार पर पारिश्रमिक या वेतन का भुगतान प्रदान करना है।

इसे मुख्य रूप से महिलाओं के खिलाफ भेदभाव से बचने और महिलाओं के साथ उचित और न्यायपूर्ण व्यवहार करने के लिए लाया गया था। यानी कि इसका संबंध लैंगिक भेदभाव (gender discrimination) और लैंगिक न्याय (gender justice) से है।

इस अधिनियम के तहत यह व्यवस्था की गई है कि यदि कार्य समान प्रकृति का है, तो प्रत्येक नियोक्ता (employer) अपने कर्मचारियों को नकद या वस्तु के रूप में पारिश्रमिक का भुगतान उस दर पर करेगा जो दूसरे लिंग के लिए भी न्यायसंगत हो।

यहाँ पर यह याद रखिए कि समान कार्य या समान प्रकृति के कार्य का अर्थ यह है कि यदि कोई कार्य समान परिस्थितियों में पुरुष या महिला द्वारा किया जाता है तो इसके लिए समान कौशल, प्रयास और जिम्मेदारी की आवश्यकता होगी।

लेकिन यदि एक महिला की तुलना में एक पुरुष के कौशल, प्रयास और जिम्मेदारी में कोई अंतर है तो वह समान प्रकृति का नहीं माना जाएगा।

  • इस अधिनियम के प्रावधानों का पालन करने के लिए किसी भी नियोक्ता को किसी भी कर्मचारी के पारिश्रमिक को कम करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
  • जब कर्मचारियों को ऐसे काम के लिए भर्ती किया जाता है जो कि समान या समान प्रकृति का होता है, तब महिलाओं के प्रति कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। तब तक, जब तक कि कोई कानून इसे प्रतिबंधित नहीं करता है। यह प्रावधान भर्ती के बाद की गतिविधियों जैसे पदोन्नति, प्रशिक्षण या स्थानांतरण पर भी लागू होता है।
  • प्रत्येक नियोक्ता को अपने द्वारा नियोजित श्रमिकों के संबंध में रजिस्टर और अन्य दस्तावेजों को बनाए रखना आवश्यक है।

अपवाद – यहाँ पर ये याद रखना जरूरी है कि, अनुच्छेद 23 के दूसरे खंड के अनुसार राज्य चाहे तो आप से सैन्य काम और इसी तरह के अन्य काम करवा सकता है वो भी बिना पैसों के। तो इसे शोषण नहीं माना जाएगा। इसीलिए इसे अपवाद की श्रेणी में रखा जाता है।

यहाँ याद रखने वाली बात है कि यह अधिकार नागरिक एवं गैर-नागरिक दोनों के लिए उपलब्ध है और यह किसी व्यक्ति को न केवल राज्य के खिलाफ बल्कि व्यक्तियों के खिलाफ भी सुरक्षा प्रदान करता है।

तो कुल मिलाकर यही है अनुच्छेद 23 (Article 23), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

अनुच्छेद 23 (Article 23) क्या है?

मानव के दुर्व्यापार और बलातश्रम का प्रतिषेध – (1) मानव का दुर्व्यापार और बेगार तथा इसी प्रकार का अन्य बलातश्रम प्रतिषिद्ध किया जाता है और इस उपबंध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।
(2) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए अनिवार्य सेवा अधिरोपित करने से निवारित नहीं करेगी। ऐसी सेवा अधिरोपित करने में राज्य केवल धर्म, मूलवंश, जाति या वर्ग या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
इसे विस्तार से व्याख्या सहित समझने के लिए पूरे लेख को अवश्य पढ़ें;

मानव तस्करी किसे कहते हैं?

जब इन्सानों का वस्तु की तरह खरीद-बिक्री, महिलाओ को जबरन वेश्यावृति करने को मजबूर करनाऔर दास प्रथा जैसे काम को प्रोत्साहित किया जाए तो इसे मानव तस्करी (human trafficking) कहा जाता है।
इस तरह के चीजों को रोकने के लिए 1956 में अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम (The Immoral Traffic (Prevention) Act (ITPA)) बनाया गया था। आइये इसके बारे में थोड़ा समझ लेते हैं;

क्या भारत में मानव तस्करी करना जुर्म है?

हाँ, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 (1) अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 (आईटीपीए) के तहत, मानव या व्यक्तियों की तस्करी भारत में प्रतिबंधित है।

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अस्वीकरण - यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से) और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।