यह लेख अनुच्छेद 24 (Article 24) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें। इसकी व्याख्या इंग्लिश में भी उपलब्ध है, इसके लिए आप नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग करें;

अपील - Bell आइकॉन पर क्लिक करके हमारे नोटिफ़िकेशन सर्विस को Allow कर दें ताकि आपको हरेक नए लेख की सूचना आसानी से प्राप्त हो जाए। साथ ही हमारे सोशल मीडिया हैंडल से जुड़ जाएँ और नवीनतम विचार-विमर्श का हिस्सा बनें;
Article 24

Article 24

📌 Join YouTube📌 Join FB Group
📌 Join Telegram📌 Like FB Page
अगर टेलीग्राम लिंक काम न करे तो सीधे टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial
📖 Read in English📥 PDF
Article 24

📜 अनुच्छेद 24 (Article 24)

24. कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा।
—-अनुच्छेद 24—–
24. Prohibition of employment of children in factories, etc. — No child below the age of fourteen years shall be employed to work in any factory or mine or engaged in any other hazardous employment.
Article 24

🔍 Article 24 Explanation in Hindi

अपनी इच्छा के विरुद्ध काम करना या बिना मजदूरी के काम करना या बेचे जाना इत्यादि किसे पसंद होगा। पर यह एक सच्चाई है या यूं कहें कि सच्चाई रही है।

आजाद भारत में किसी व्यक्ति को इन परिस्थितियों से न गुजरना पड़े इसीलिए संविधान के मौलिक अधिकारों वाले भाग (भाग 3) में इसे प्रतिषेध (Prohibit) किया गया है।

इस भाग का नाम है शोषण के विरुद्ध अधिकार और इसके तहत कुल दो अनुच्छेद आते हैं – अनुच्छेद 23 और अनुच्छेद 24। (जैसा कि आप चार्ट में देख सकते हैं) हम यहाँ अनुच्छेद 24 (Article 24) को समझने वाले हैं;

शोषण के विरुद्ध अधिकार↗️
⚫ अनुच्छेद 23 – मानव के दुर्व्यापार और बलातश्रम का प्रतिषेध
अनुच्छेद 24 – कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध
Article 24

शोषण का अर्थ (Meaning of Exploitation): Article 24

शक्ति प्रयोग के द्वारा या फिर हालात का फायदा उठाते हुए जब किसी से इच्छा के विरुद्ध और उसके क्षमता के अधिक काम लिया जाता है और उसके अनुरूप पारिश्रमिक नहीं दिया जाता है तो उसे शोषण (exploitation) कहते हैं।

चूंकि शोषण, स्वार्थ से किसी का या किसी समूह का लाभ उठाने के लिए किया जाता है इसीलिए इसमें व्यक्ति के साथ अमानवीय व्यवहार हो सकता है, उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाला कृत्य हो सकता है, आदि।

कार्ल मार्क्स ने कहा था कि समाज में दो तरह के वर्ग होते है; एक होते है शोषित वर्ग (Exploited class) और दूसरा शोषक वर्ग (Exploiting class)

शोषक वर्ग के पास उत्पादन और वितरण के सभी साधनों पर स्वामित्व होता है जबकि शोषित संपत्तिविहीन एवं लाचार होते हैं। ऐसे में शोषक वर्ग कभी नहीं चाहता कि शोषित वर्ग उसके समकक्ष आ जाये।

हमारा देश मार्क्स के सम्पूर्ण सिद्धान्त पर तो नहीं चलता है पर किसी का शोषण न हो इसका ध्यान बकायदे रखता है। शोषण एक स्वस्थ समाज के बिल्कुल भी अच्छा नहीं है, इसीलिए हमारे संविधान निर्माता ने इसके उन्मूलन को प्राथमिकता देते हुए इसे मौलिक अधिकार का हिस्सा बनाया।

इसका सही से पालन हो इसके लिए समय के साथ कई कानून भी इसके सपोर्ट में बनाए गए ताकि शोषित वर्ग का उन्मूलन हो सकें। तो आइये देखते हैं मौलिक अधिकारों के इस श्रेणी में क्या खास है;

| अनुच्छेद 24 – कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध

ये कहता है कि कारखानों या इसी तरह के किसी भी अन्य जगह में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से ऐसा कोई काम नहीं करवाया जा सकता जो उस बच्चे के लिए उपयुक्त न हो।

◾ इस दिशा में 1986 का बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम (Child Labor (Prohibition and Regulation) Act) काफी महत्वपूर्ण कानून है जिसे कि 2016 में फिर से संशोधित कर इसे बाल एवं किशोर श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986 कर दिया गया।

इसमें अधिनियम में साफ-साफ कहा गया है कि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी परिसंकटमय कामों में नहीं लगाया जा सकता।

इसके अलावा 14 से 18 वर्ष के किशोरों को खतरनाक व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं में रोजगार निषिद्ध (prohibited) करता है।

इसके लिए बकायदे दंड की व्यवस्था भी की गयी है जो कि 6 माह से 2 वर्ष तक की कैद या 20 हज़ार से 50 हज़ार तक का जुर्माना हो सकता है।

◾ 2005 में बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम के तहत बालकों के अधिकारों के संरक्षण के लिए एक राष्ट्रीय आयोग और राज्य आयोगों की स्थापना किया गया ताकि बालकों के विरुद्ध अपराधों या बालक अधिकारों के उल्लंघन पर शीघ्र विचारण किया जा सके।

| बाल श्रम की परिभाषा

बाल श्रम (Child Labor) किसे कहा जाएगा, इसे कई तरह से परिभाषित किया जाता है। जिसे कि आप नीचे देख सकते हैं;

◾ वे बच्चे जो कारखानों, कार्यशालाओं, प्रतिष्ठानों, खानों और घरेलू श्रम जैसे सेवा क्षेत्र में वैतनिक या अवैतनिक कार्य कर रहे हैं।

◾ सड़कों पर रहने वाले बच्चे, जैसे जूते चमकाने वाले लड़के, कूड़ा बीनने वाले, अखबार बेचने वाले, भिखारी आदि।

◾ वे बच्चे जिन्हें या तो उनके माता-पिता ने बहुत कम पैसों के लिए गिरवी रखा है या जो अपने पिता के विरासत में मिले कर्ज को चुकाने के लिए काम कर रहे हैं।

◾ वे बच्चे जो कृषि और घर-आधारित काम में पारिवारिक श्रम के हिस्से के रूप में काम कर रहे हैं।

◾ वे बच्चे जो किसी वेश्यालय में किसी के यौन भूख को पूरा करते हैं।

◾ घरेलू मदद के रूप में मजदूरी (या तो बंधुआ या अन्य) के लिए नियोजित बच्चे।

यहाँ यह याद रखें कि बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए साल 2012 में The Protection of Children from Sexual Offences Act (यानी कि POCSO Act) अधिनियम को अधिनियमित किया गया।

| आँकड़ों में बाल श्रम

भारत में बाल श्रम एक गंभीर समस्या है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, भारत में 5 से 17 वर्ष की आयु के बीच अनुमानित 4.35 मिलियन बाल श्रमिक हैं।

इनमें से कई बच्चों को खतरनाक और अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में लंबे समय तक काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, और अक्सर उन्हें बहुत कम भुगतान किया जाता है। या बिल्कुल भुगतान नहीं किया।

भारत सरकार ने बच्चों को जबरन श्रम और बाल श्रम से बचाने के लिए कई कानून पारित किए हैं, लेकिन इन कानूनों का प्रवर्तन अक्सर ढीला होता है। यह समस्या विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और कृषि, ईंट भट्ठों और कपड़ा कारखानों जैसे कुछ उद्योगों में गंभीर है।

गरीब परिवारों के बच्चों, विशेष रूप से निचली जातियों और आदिवासी समुदायों के बच्चों को श्रम के लिए मजबूर किए जाने की संभावना अधिक होती है।

| भारत में बाल श्रम का कारण

भारत में बाल श्रम की उच्च दर में योगदान देने वाले कई कारक हैं। कुछ मुख्य कारणों में शामिल हैं:

गरीबी: भारत में बाल श्रम का एक प्रमुख कारण गरीबी है। कई परिवार इतने गरीब हैं कि वे अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज सकते और जीवित रहने के लिए अपने बच्चों की मजदूरी पर निर्भर हैं।

शिक्षा की कमी: शिक्षा की कमी भी बाल श्रम का कारण बन सकती है। जिन बच्चों की शिक्षा तक पहुंच नहीं है, उनके बाल श्रम में भर्ती होने की संभावना अधिक है, क्योंकि उनके पास जीविकोपार्जन के कुछ अन्य विकल्प हैं।

पारंपरिक रीति-रिवाज: कुछ समुदायों में पारंपरिक रीति-रिवाज हैं जो बच्चों को आर्थिक संपत्ति के रूप में देखते हैं, और काम को बचपन के सामान्य हिस्से के रूप में देखते हैं। यह सांस्कृतिक रवैया बाल श्रम की प्रथा को बदलना मुश्किल बना सकता है।

बेरोजगारी: भारत में उच्च बेरोजगारी दर गरीबी की ओर ले जाती है और बच्चों को काम में धकेलती है।

आर्थिक कारक: भारत के कुछ हिस्सों में, कुछ उद्योग जैसे कृषि, ईंट भट्ठे और कपड़ा कारखाने, बाल श्रम पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं। इन उद्योगों में नियमन और निरीक्षण की कमी से नियोक्ताओं के लिए बच्चों का शोषण करना आसान हो सकता है।

सरकारी नीतियां: प्रभावी कानूनों की कमी और मौजूदा कानूनों का खराब प्रवर्तन भी भारत में बाल श्रम के मुख्य कारणों में से एक है।

जाति और जनजाति: निचली जातियों और आदिवासी समुदायों के बच्चे विशेष रूप से बाल श्रम के प्रति संवेदनशील होते हैं क्योंकि आमतौर पर वे हाशिए पर होते हैं और अक्सर शिक्षा और अन्य सामाजिक सेवाओं तक सीमित पहुंच रखते हैं।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बाल श्रम कई परस्पर जुड़े कारणों के साथ एक जटिल समस्या है, इसे संबोधित करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी जो गरीबी, शिक्षा की कमी, खराब शासन और सांस्कृतिक मानदंडों जैसे मूल कारणों को संबोधित करे।

| इस क्षेत्र में काम कर रहें मुख्य संघटन

कई संगठन और गैर-सरकारी संगठन (NGO) बच्चों को शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करके और काम करने की स्थिति में सुधार के लिए नियोक्ताओं के साथ काम करके भारत में बाल श्रम के मुद्दे को हल करने के लिए काम कर रहे हैं।

 United Nations Children’s Fund (UNICEF) – यूनिसेफ को 1946 में अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (आईईसीएफ) के रूप में शुरू किया गया, जिसका गठन संयुक्त राष्ट्र राहत पुनर्वास प्रशासन द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद प्रभावित बच्चों और माताओं को राहत और स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए किया गया था।

उसी वर्ष, संयुक्त राष्ट्र ने अपने युद्ध के बाद के राहत कार्य को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र बाल आपातकालीन कोष (यूनिसेफ) की स्थापना की।

हालांकि यह 1953 में संयुक्त राष्ट्र का एक स्थायी हिस्सा बन गया और बाद में इसका नाम बदलकर संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children’s Fund) कर दिया गया।

  • यूनिसेफ पूरी दुनिया में बच्चों के अधिकारों के लिए काम करता है। यह सुरक्षित आश्रय, स्वास्थ्य देखभाल, पोषण, शिक्षा, समानता और आपदा और संघर्षों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए भी काम करता है।
  • यूनिसेफ अन्य क्षेत्रों में भी काम करता है, जैसे कि टीके, सुरक्षित पानी और स्वच्छता, माताओं और शिशुओं में एचआईवी की रोकथाम, बच्चों को हिंसा और दुर्व्यवहार से बचाना, बचपन के शुरुआती विकास, किशोर स्वास्थ्य आदि।
  • यह राहत और पुनर्वास देने के लिए मानवीय संकट में फंसे क्षेत्रों में भी काम करता है।

आज, यूनिसेफ 190 से अधिक देशों में संयुक्त राष्ट्र के अन्य भागीदारों के सहयोग से और संयुक्त राष्ट्र की बड़ी प्रणाली के एक भाग के रूप में काम करता है।

यूनिसेफ दुनिया भर के बच्चों से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर शोध रिपोर्ट भी प्रस्तुत करता है। और इसे 1965 में शांति का नोबेल पुरस्कार मिला है।

बाल श्रम पर अंतर्राष्ट्रीय कानून भी अस्तित्व में हैं;

साल 1989 में बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हुआ था। इसके तहत यह विचार किया गया कि बच्चे केवल वस्तु नहीं हैं बल्कि, वे भी एक इंसान हैं और उनके अपने अधिकार हैं।

इस सम्मेलन का मानना है कि बचपन वयस्कता से अलग है, और 18 वर्ष तक रहता है; यह एक विशेष, संरक्षित समय है, जिसमें बच्चों को बढ़ने, सीखने, खेलने, विकसित होने और गरिमा के साथ फलने-फूलने की अनुमति दी जानी चाहिए।

138वें कन्वेंशन (सम्मेलन) से सहमत होने वाला भारत अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) का 170वां सदस्य था। इस सम्मेलन में सदस्य पार्टियों को एक न्यूनतम आयु निर्धारित करने की आवश्यकता होती है जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को नियोजित नहीं किया जाना चाहिए।

भारत 182वें कन्वेंशन से भी सहमत था, जिसमें राज्य को तस्करी, सशस्त्र संघर्ष, वेश्यावृत्ति और अवैध गतिविधियों में बच्चों के उपयोग जैसे चरम बाल श्रम गतिविधियों के किसी भी रूप को खत्म करने और प्रतिबंधित करने की आवश्यकता होती है।

इंडस परियोजना: भारत सरकार और अमेरिकी श्रम विभाग ने संयुक्त रूप से इंडस परियोजना बनाने के लिए सहयोग किया था जिसका उद्देश्य बाल श्रमिकों को रोकना और समाप्त करना था, विशेष रूप से खतरनाक व्यवसायों से। इसे ILO-IPEC (अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन- बाल श्रम के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम) के तहत विकसित किया गया था।

| भारत की स्थिति

भारत की बात करें तो भारत में कई गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) हैं जो बाल श्रम सहित सामाजिक और आर्थिक मुद्दों की एक विस्तृत श्रृंखला को संबोधित करने के लिए काम कर रहे हैं। भारत में बाल श्रम का मुकाबला करने के लिए काम करने वाले कुछ प्रमुख गैर सरकारी संगठनों में शामिल हैं:

बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए): बचपन बचाओ आंदोलन भारत में बाल श्रम का मुकाबला करने के लिए काम करने वाले सबसे प्रसिद्ध गैर सरकारी संगठनों में से एक है।

वर्ष 1980 में “बचपन बचाओ आंदोलन” की शुरुआत नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने की थी जो अब तक 80 हजार से अधिक मासूमों के जीवन को तबाह होने से बचा चुके हैं।

यह मुख्य रूप से बाल श्रमिकों को बचाने और उनके पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करता है, साथ ही साथ बच्चों की सुरक्षा के लिए मजबूत कानूनों और नीतियों के लिए अभियान चलाता है।

Child Rights and You (CRY) – चाइल्ड राइट्स एंड यू एक भारतीय एनजीओ है जिसका उद्देश्य बच्चों के अधिकारों को बहाल करना है, विशेष रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य और शोषण, दुर्व्यवहार और भेदभाव से सुरक्षा के संबंध में।

सेव द चिल्ड्रेन (save the children) : यह अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ भारत में बाल श्रम को समाप्त करने और बाल अधिकारों को बढ़ावा देने पर ध्यान देने के साथ जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य सेवाएं प्रदान करने के लिए काम करता है।

प्रथम (Pratham) : यह एनजीओ भारत में वंचित बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए काम करता है, जो उन बच्चों पर ध्यान केंद्रित करता है जो स्कूल में नहीं हैं या जो स्कूल छोड़ चुके हैं।

चाइल्डफंड इंडिया: चाइल्डफंड इंडिया शिक्षा, स्वास्थ्य और सामुदायिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने वाले विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से कमजोर और वंचित बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए काम करता है।

गुडवीव इंडिया (Goodweave India): यह एनजीओ भारत में कालीन उद्योग में बाल श्रम के उपयोग के बिना बने कालीनों को प्रमाणित और बढ़ावा देकर और बाल श्रमिकों को बचाने और पुनर्वास करके बाल श्रम का मुकाबला करने के लिए काम करता है।

ये भारत में बाल श्रम का मुकाबला करने के लिए काम कर रहे कई गैर सरकारी संगठनों के कुछ उदाहरण हैं। इस मुद्दे के बारे में जागरूकता बढ़ाने और बाल श्रम से प्रभावित बच्चों और परिवारों को सेवाएं और सहायता प्रदान करने में इन संगठनों का काम महत्वपूर्ण है।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि, बड़े एनजीओ के अलावा, कई स्थानीय और जमीनी संगठन हैं जो अपने समुदायों में बच्चों की सुरक्षा और सहायता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

उन्हें स्थानीय संस्कृतियों, रीति-रिवाजों और सामाजिक गतिशीलता की गहरी समझ हो सकती है जो बाल श्रम को संबोधित करने में फायदेमंद हो सकती है।

| भारत में बच्चों के कल्याण के लिए कानूनी व्यवस्था

बाल श्रम एक ऐसा मामला है जिस पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारें दोनों कानून बना सकती हैं। और दोनों स्तरों पर कई विधायी पहल की भी गई हैं। प्रमुख राष्ट्रीय विधायी घटनाक्रमों में निम्नलिखित शामिल हैं:

◾ भारतीय संविधान, अनुच्छेद 24 के तहत कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध करता है। जिसके बारे में हमने ऊपर जाना है।

राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (एनसीएलपी) : सरकार ने देश के 12 बाल श्रम स्थानिक जिलों में कामकाजी बच्चों के पुनर्वास के लिए 1988 में राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (एनसीएलपी) योजना शुरू की थी।

बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम [Child Labour (Prohibition and Regulation) Act, 1986] –

बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम 1986 एक बच्चे को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में नामित करता है जिसने अपनी आयु के 14 वर्ष पूरे नहीं किए हैं।

इस अधिनियम का उद्देश्य बाल श्रमिकों के काम के घंटों और परिस्थितियों को विनियमित करना और बाल श्रमिकों को खतरनाक उद्योगों में नियोजित करने से रोकना है।

2016 में इस अधिनियम को संशोधित कर इसे बाल एवं किशोर श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986 कर दिया गया।

अब जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है इस अधिनियम का उद्देश्य, सभी व्यवसायों में बच्चों की संलिप्तता (involvement) को प्रतिबंधित करना और खतरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं में किशोरों की संलिप्तता को प्रतिबंधित करना था।

  • अधिनियम में इस संशोधन के अनुसार, भारत सरकार अधिनियम का उल्लंघन करने वाले नियोक्ताओं (employers) के लिए कड़ी सजा का प्रावधान करेगी।
  • अधिनियम सरकार को उन किशोरों के रोजगार पर रोक लगाने की भी अनुमति देता है जो किसी भी खतरनाक स्थिति में काम कर रहे हैं।
  • रचनात्मक बाल श्रमिकों या कलाकारों के लिए सुरक्षा उपाय की व्यवस्था, जिन्हें अधिनियम के तहत काम करने की अनुमति दी गई है।
  • 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के रोजगार पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • बच्चों को केवल स्कूल के समय के बाद या छुट्टियों के दौरान इस शर्त पर काम करने की अनुमति दी जाती है कि व्यवसाय खतरनाक नहीं हैं।
  • 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को पारिवारिक व्यवसाय/उद्यमों में काम करने की अनुमति तभी दी जाएगी जब वे व्यवसाय गैर-खतरनाक हों।
  • बचाए गए प्रत्येक बच्चे के लिए उचित सरकार के अंशदान के साथ एक बाल और किशोर श्रम पुनर्वास कोष के लिए वैधानिक प्रावधान भी सुनिश्चित किया गया।
  • जिला मजिस्ट्रेट या अधीनस्थ अधिकारी को प्रवर्तन के लिए जिम्मेदार बनाया जा सकता है और उन्हें ऐसी शक्तियां प्रदान की जा सकती हैं।

यहाँ पर याद रखें कि बच्चों या किशोरों की किसी ऐसे काम में भागीदारी जो उनके स्वास्थ्य और व्यक्तिगत विकास को नकारात्मक रूप से प्रभावित नहीं करती है या उनकी स्कूली शिक्षा में बाधा नहीं डालती है, तो आमतौर इसे सकारात्मक माना जाता है।

जैसे कि घर के आसपास अपने माता-पिता की मदद करना, पारिवारिक व्यवसाय में सहायता करना, या स्कूल के समय के बाहर और स्कूल की छुट्टियों के दौरान पॉकेट मनी कमाने जैसी गतिविधियाँ।

  • गुरुपादस्वामी समिति 1979 – भारत की केंद्र सरकार द्वारा गठित एक वैधानिक समिति थी, जिसने पाया कि भारत में बाल श्रम के पीछे का अविवेकी कारण सीधे गरीबी से जुड़ा था।
  • समिति के निष्कर्षों और विश्लेषण का उपयोग तब केंद्र सरकार द्वारा बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 को लागू करने के लिए किया गया था।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right to Education Act, 2009)

अनुच्छेद 21क – प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित करता है। इसके तहत राज्य, 6 से 14 वर्ष तक के बच्चे को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करेगा।

यहाँ यह याद रखिए कि ये हमेशा से संविधान का भाग नहीं था बल्कि इसे 2002 में 86 वां संविधान संसोधन द्वारा जोड़ा गया था।

हालांकि संविधान के भाग 4 के नीति निदेशक तत्व के तहत अनुच्छेद 45 में बच्चों के लिए नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था थी लेकिन निदेशक सिद्धांत होने के कारण वो प्रवर्तनीय नहीं था। इसीलिए मूल अधिकार में जोड़कर इसे प्रवर्तनीय बनाया गया।

अनुच्छेद 21क को सही से क्रियान्वित करने के लिए 2009 में, बकायदे केंद्र सरकार ने एक अधिनियम भी पारित किया ”बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम”। जिसके तहत इसे एक उचित कानूनी रूप दिया गया।

बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009, जो अनुच्छेद 21-ए के तहत परिकल्पित परिणामी कानून का प्रतिनिधित्व करता है।

इसका उद्देश्य प्रत्येक बच्चे को एक औपचारिक स्कूल में संतोषजनक और समान गुणवत्ता वाली पूर्णकालिक प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार उपलब्ध कराना है।

इस विषय पर अनुच्छेद 21क के तहत हमने विस्तार से चर्चा की है, विशेष जानकारी के लिए आप उसे पढ़ें – अनुच्छेद 21क – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]

किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) बाल अधिनियम, (Juvenile Justice (Care and Protection) of Children Act, 2000)

किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) बाल अधिनियम 2015 ने किशोर न्याय अधिनियम, 2000 का स्थान लिया। और इसके तहत कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए;

यह अधिनियम अपराध के आरोपी बच्चे को दंड के माध्यम से नहीं बल्कि परामर्श के माध्यम से जवाबदेह ठहराने का प्रयास करता है।

अधिनियम अनाथ, समर्पित और परित्यक्त बच्चों को परिभाषित करता है।

यह बच्चों द्वारा छोटे, गंभीर और जघन्य अपराधों की परिभाषा भी देता है।

  • इसके तहत, एक जघन्य अपराध (heinous offence ) वह है जो किसी भी मौजूदा कानून के तहत अधिकतम 7 साल की कैद की सजा का प्रावधान करता है।
  • एक गंभीर अपराध (serious offence ) वह है जो 3 से 7 साल के कारावास को आकर्षित करता है।
  • एक छोटा अपराध (petty offence ) वह है जो अधिकतम 3 वर्ष के कारावास को आकर्षित करता है।

अधिनियम किशोर न्याय बोर्ड और बाल कल्याण आयोग के कार्यों और शक्तियों पर अधिक स्पष्टता प्रदान करता है।

संशोधित अधिनियम का एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि यह जघन्य अपराधों के मामले में 16-18 वर्ष की आयु के नाबालिगों को वयस्कों के रूप में माना जाने का प्रावधान करता है।

16 – 18 आयु वर्ग के किसी भी नाबालिग और जिस पर जघन्य अपराध करने का आरोप लगाया गया है, उस पर एक वयस्क की तरह मुकदमा चलाया जा सकता है।

इसके लिए किशोर न्याय बोर्ड बच्चे की शारीरिक और मानसिक क्षमताओं, अपराध के परिणामों को समझने की उसकी क्षमता आदि का आकलन करेगा और यह निर्धारित करेगा कि क्या बच्चे को एक वयस्क के रूप में माना जा सकता है।

इस सब के अलावा भी कई अधिनियम एवं प्रावधान है जिसके तहत बच्चों के कल्याण का ध्यान रखा जाता है; जैसे कि

  • Factories Act, 1948
  • Mines Act, 1952
  • National Child Labour Programme, 1988

| बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस

बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस की शुरुआत 2002 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा की गई थी। यह दुनिया भर में हर साल 12 जून को मनाया जाता है।

2020 में, COVID-19 महामारी के कारण, यह दिन एक आभासी अभियान के माध्यम से मनाया गया, जिसे ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर और इंटरनेशनल पार्टनरशिप फॉर कोऑपरेशन ऑन चाइल्ड लेबर इन एग्रीकल्चर (IPCCLA) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था। 2020 की थीम थी “बच्चों को बाल श्रम से बचाओ, अब पहले से कहीं ज्यादा”।

| समापन टिप्पणी [Article 24]

अंत में, बाल श्रम भारत में एक गंभीर मुद्दा है और यह हर साल लाखों बच्चों को प्रभावित करता है। बच्चों को जबरन श्रम और बाल श्रम से बचाने के लिए सरकारी कानूनों और नीतियों के बावजूद, प्रवर्तन अक्सर ढीला होता है, और समस्या लगातार बनी रहती है।

भारत में बाल श्रम के कारण बहुआयामी हैं और इसमें गरीबी, शिक्षा की कमी, पारंपरिक रीति-रिवाज और कानूनों का खराब प्रवर्तन शामिल है। समस्या को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो गरीबी, शिक्षा की कमी, खराब शासन और सांस्कृतिक मानदंडों जैसे मूल कारणों को संबोधित करे।

इसमें बच्चों को शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना, काम की परिस्थितियों में सुधार के लिए नियोक्ताओं के साथ काम करना, इस मुद्दे के बारे में जागरूकता पैदा करना और सख्त कानूनों और प्रवर्तन की वकालत करना शामिल हो सकता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बाल श्रम न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि पूरे समाज के लिए इसके नकारात्मक आर्थिक और सामाजिक परिणाम भी हैं।

हालाँकि भारत ने 2001 एवं 2011 की जनगणना के आँकड़ों में सुधार दिखाया है, फिर भी देश से बाल श्रम को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है।

सरकार को बाल श्रम के खिलाफ सख्त कानून और सजा लागू करनी चाहिए और प्राथमिक शिक्षा सभी के लिए मुफ्त की जानी चाहिए ताकि कोई भी शिक्षा और ज्ञान से वंचित न रहे।

तो कुल मिलाकर यही है अनुच्छेद 24 (article 24), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

अनुच्छेद 24 (Article 24) क्या है?

कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध – चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा।

| Related Article

अनुच्छेद 23
अनुच्छेद 20
अनुच्छेद 21
——Article 24——
भारतीय संविधान
संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
——Article 24—-
अस्वीकरण - यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से) और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।