यह लेख अनुच्छेद 26 (Article 26) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें। इसकी व्याख्या इंग्लिश में भी उपलब्ध है, इसके लिए आप नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग करें;

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अनुच्छेद 26

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📜 अनुच्छेद 26 (Article 26)

26. धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता – लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को –
(क) धार्मिक और पूर्त प्रयोजनों के लिए संस्थाओं की स्थापना और पोषण का,
(ख) अपने धर्म विषयक कार्यों का प्रबंध करने का,
(ग) जंगम और स्थावर संपत्ति के अर्जन और स्वामित्व का, और
(घ) ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का,
अधिकार होगा।
—-अनुच्छेद 26—–
26. Freedom to manage religious affairs — Subject to public order, morality and health, every religious denomination or any section thereof shall have the right—
(a) to establish and maintain institutions for religious and charitable purposes;
(b) to manage its own affairs in matters of religion;
(c) to own and acquire movable and immovable property; and
(d) to administer such property in accordance with law.
Article 26—-

🔍 Article 26 Explanation in Hindi

धर्म (Religion), विश्वासों, सामाजिक-सांस्कृतिक प्रणालियों, साझा व्यवहार एवं विश्व विचारों का एक संगठित संग्रह है जो मानवता को अस्तित्व के एक क्रम से जोड़ता है।

आमतौर पर धर्म का एक प्रतीक, पवित्र इतिहास या ग्रंथ, पूजा पद्धति एवं विचारधारा होता है जिसका मुख्य उद्देश्य जीवन का अर्थ, उसकी उत्पत्ति या ब्रह्मांड की व्याख्या या आध्यात्मिक उत्कर्ष को प्राप्त करना होता है।

धार्मिक स्वतंत्रता का का उल्लेख हमारे प्रस्तावना में भी है और इससे इसके महत्व का पता चलता है। धार्मिक स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी भी जानी चाहिए। क्योंकि एक तरह से देखें तो हमारे मूल्य, हमारे संस्कार, हमारे सामाजिक प्रतिमान बहुत हद तक धर्म से संचालित होता है।

शायद इसीलिए हमने पंथनिरपेक्षता (Secularism) की राह को चुना ताकि, सब धर्म मिलजुल कर एक बहुधार्मिक समाज की स्थापना कर सकें जिसका साझा लक्ष्य हो, भारत को समृद्ध बनाना, भारत को विश्व में वो प्रतिष्ठा दिलाना जिसके वो हकदार है, आदि।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (right to religious freedom)‘ में कुल चार अनुच्छेद आते हैं (जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं) इस लेख में हम इसी का दूसरा अनुच्छेद यानी कि अनुच्छेद 26 (Article 26) को समझने वाले हैं।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार↗️
अनुच्छेद 25 – अंतःकरण की और धर्म की अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता (Freedom of conscience and free profession, practice and propagation of religion)

अनुच्छेद 26 – धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता (Freedom to manage religious affairs)

अनुच्छेद 27 – धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय से स्वतंत्रता (Freedom as to payment of taxes for promotion of any particular religion.)

अनुच्छेद 28 – धार्मिक शिक्षा में उपस्थित होने की स्वतंत्रता (Freedom to attend religious education)
Article 26

| अनुच्छेद 26 – धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता

जहां अनुच्छेद 25 व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है वहीं अनुच्छेद 26 धार्मिक संप्रदायों के अधिकार को सुनिश्चित करती है।

अनुच्छेद 25 की तरह ही अनुच्छेद 26 भी लोक व्यवस्था (public order), सदाचार (morality) और स्वास्थ्य (Health) के अधीन है।

लेकिन 26 संविधान के भाग 3 के अन्य उपबंधों के अधीन नहीं है। जबकि 25 भाग 3 के अन्य उपबंधों के भी अधीन है। [इसके बारे में हमने विस्तार से अनुच्छेद 25 में समझा है।]

धार्मिक संप्रदाय का क्या मतलब है?

व्यक्तियों का एक समूह जिसे एक नाम से वर्गीकृत किया जाता हो, या कोई धार्मिक पंथ अथवा निकाय जिसकी समान आस्था और संगठन हो और जिसे एक सुभिन्न नाम से जाना जाता हो, संप्रदाय कहलाता है।

इस अनुच्छेद के तहत धार्मिक संप्रदाय का तो ध्यान रखा ही गया है साथ ही उसके अनुभागों (sections) का भी ध्यान रखा गया है। इसीलिए अनुच्छेद 26 के तहत मठ (monastery) भी धार्मिक संप्रदाय माना जाता है।

यहाँ यह याद रखिए कि जब किसी धार्मिक पंथ को धार्मिक संप्रदाय मान लिया जाता है (जैसे कि शैव एवं वैष्णव) तो वह पृथक धर्म होने का दावा नहीं कर सकता है।

दूसरी बात ये कि इस अनुच्छेद से धार्मिक संप्रदाय की संपत्ति का अर्जन करने के राज्य के अधिकार पर प्रभाव नहीं पड़ता है। यानी कि राज्य सरकार उनकी संपत्ति का अर्जन कर सकती है। केशवानन्द भारती का मामले को देखें तो ये इसी से संबंधित है।

अनुच्छेद 26 के चार उपखंड है, आइये एक-एक करके समझते हैं;

(क) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को धार्मिक और पूर्त प्रयोजनों के लिए संस्थाओं की स्थापना और पोषण का अधिकार होगा।

ये धार्मिक कार्यों के लिए संस्थाओं की स्थापना का और उसे चलाने का अधिकार देता है।

याद रखें, स्थापना और पोषण के अधिकार में उस संस्था का प्रशासन चलाने का अधिकार भी सम्मिलित है। लेकिन यह अधिकार तभी उत्पन्न होगा जब किसी धार्मिक संप्रदाय ने किसी संस्था की स्थापना की हो या उसे जन्म दिया हो।

(ख) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को अपने धर्म विषयक कार्यों का प्रबंध करने का अधिकार होगा।

प्रबंध (Manage) के अधिकार का मतलब – प्रबंध के अधिकार में न्यास संपत्ति या उसकी आय का धर्म के लिए और धार्मिक प्रयोजनों के लिए खर्च करने का अधिकार शामिल है। अथवा, संस्थापक द्वारा बताए गए उद्देश्यों के लिए या किसी विशिष्ट संस्था में प्रथा के अनुसार चले आए उद्देश्यों के लिए खर्च करने का अधिकार शामिल है।

किसी अन्य प्रयोजनों के लिए खर्च करना, इस अधिकार का उल्लंघन माना जाएगा और राज्य चाहे तो कुप्रबंधन को रोकने के लिए विधि भी बना सकती है।

कुल मिलाकर, इस खंड के तहत प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय को धर्म से संबंधित विषयों का प्रबंधन करने का अधिकार है। इन मामलों में राज्य आमतौर पर हस्तक्षेप नहीं करता है, लेकिन अगर लोक व्यवस्था, स्वास्थ्य एवं नैतिकता पर कुठराघात होता हो तो राज्य हस्तक्षेप कर सकता है।

अनुच्छेद 26 के इस खंड (खंड ख) पर दूसरी परिसीमा यह है कि वह अनुच्छेद 17 और अनुच्छेद 25(2)(ख) के अधीन है। यानी कि सभी हिंदुओं को सार्वजनिक मंदिरों में प्रवेश का अधिकार है।

धर्म का अभिन्न अंग क्या होगा ये तय करने का अंतिम अधिकार न्यायालय के पास है। आमतौर पर धार्मिक विश्वास के साथ-साथ उस संप्रदाय द्वारा अपने धर्म के भाग माने जाने वाले आचार (conduct) को भी धर्म का विषय माना जाता है। इसमें खान-पान और वेश-भूषा भी सम्मिलित होते हैं।

याद रखें, किसी धार्मिक समारोह में कोई व्यक्ति किस स्थान पर खड़े होने के हकदार है, किस प्रकार पूजा की जाएगी ; ये सभी धर्म के विषय माने जाते हैं।

(ग) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को जंगम (moveable) और स्थावर (immovable) संपत्ति के अर्जन और स्वामित्व का अधिकार होगा।

इस खंड के अनुसार, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय को संपत्ति के अर्जन और स्वामित्व का अधिकार है।

हालांकि अगर राज्य चाहे तो विधि के प्राधिकार से उस संपत्ति को अर्जित कर सकता है। लेकिन राज्य को यह ध्यान रखना होता है कि ऐसे अर्जन से धार्मिक संस्था का अस्तित्व ही समाप्त न हो जाए।

संविधान के भाग 4 (यानी कि राज्य के नीति निदेशक तत्व) को ध्यान में रखकर धार्मिक संप्रदाय की संपत्ति को अनुच्छेद 31क(1)(क) के अधीन अर्जित किया जा सकता है। किन्तु इस बात का ध्यान रखना होता कि धर्म के आवश्यक अंग में हस्तक्षेप न हो।

(घ) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का अधिकार होगा।

धार्मिक संप्रदाय को यह अधिकार है कि वह अपने समर्पण के प्रयोजनों के लिए संपत्ति को स्वामित्व में रखें, अर्जन करे और उस पर प्रशासन करे। यह सब विधि के अनुसार होना चाहिए।

राज्य न्यास संपत्ति के प्रशासन को विनियमित कर सकता है लेकिन सिर्फ वैध रूप से बनाई गई विधि के अनुसार ही ऐसा किया जा सकता है।

मतलब कुल मिलाकर देखें तो इस अनुच्छेद के अनुसार आप एक धार्मिक संस्थान बना सकते हैं, उसको अपने हिसाब से चला सकते हैं, उससे पैसे कमा सकते हैं और उस पैसे का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।

[कुछ तथ्य]

अनुच्छेद 26 के खंड (घ) के अधीन संपत्ति के प्रशासन के अधिकार को विधि द्वारा विनियमित किया जा सकता है। लेकिन खंड (ख) के अधीन धार्मिक विषयक कार्य के प्रबंध करने के अधिकार को विधान मण्डल द्वारा लोक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता के आधार पर ही विनियमित किया जा सकता है, और किसी कारण से नहीं।

राज्य अनुच्छेद 26 का प्रयोग करते हुए ऐसी विधि नहीं बना सकता जिसमें संप्रदाय की संपत्ति का ऐसे व्यक्तियों के लिए उपयोग करने का उपबंध किया जाए जिन्हे धर्म के आधार पर संप्रदाय से निकाल दिया गया है।

तो कुल मिलाकर यही है अनुच्छेद 26 (Article 26), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।


अनुच्छेद 26 क्या है?

धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता – लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को –
(क) धार्मिक और पूर्त प्रयोजनों के लिए संस्थाओं की स्थापना और पोषण का,
(ख) अपने धर्म विषयक कार्यों का प्रबंध करने का,
(ग) जंगम और स्थावर संपत्ति के अर्जन और स्वामित्व का, और
(घ) ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का,
अधिकार होगा।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

धार्मिक संप्रदाय किसे कहते हैं?

व्यक्तियों का एक समूह जिसे एक नाम से वर्गीकृत किया जाता हो, या कोई धार्मिक पंथ अथवा निकाय जिसकी समान आस्था और संगठन हो और जिसे एक सुभिन्न नाम से जाना जाता हो, संप्रदाय कहलाता है।
अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक संप्रदाय का तो ध्यान रखा ही गया है साथ ही उसके अनुभागों (sections) का भी ध्यान रखा गया है। इसीलिए अनुच्छेद 26 के तहत मठ (monastery) भी धार्मिक संप्रदाय माना जाता है।

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