यह लेख अनुच्छेद 3 (Article 3) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 भारतीय संघ के भीतर राज्यों की सीमाओं के पुनर्गठन, निर्माण या परिवर्तन से संबंधित है। यह राज्यों की क्षेत्रीय सीमाओं और संरचना को बदलने के लिए रूपरेखा और प्रक्रिया प्रदान करता है।

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अनुच्छेद 3

📜 अनुच्छेद 3 (Article 3)

3.  नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन
संसद, विधि द्वारा –
(क) किसी राज्य में से उसका राज्यक्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्यक्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकेगी।
(ख) किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकेगी;
(ग) किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी ;
(घ) किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी ;
(ङ) किसी राज्य के नाम में परिवर्तन कर सकेगी ;
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1[परंतु इस प्रयोजन के लिए कोई विधेयक राष्ट्रपति की सिफ़ारिश के बिना और जहां विधेयक में अंतार्विष्ट प्रस्थापना का प्रभाव 2*** राज्यों में से किस के क्षेत्र, सीमाओं या नाम पर पड़ता है वहाँ जब तक उस राज्य के विधान-मंडल द्वारा उस पर अपने विचार, ऐसी अवधि के भीतर जो निर्देश में विनिर्दिष्ट की जाए या ऐसी अतिरिक्त अवधि के भीतर जो राष्ट्रपति द्वारा अनुज्ञात की जाए, प्रकट किए जाने के लिए वह विधेयक राष्ट्रपति द्वारा उसे निर्देशित नहीं कर दिया गया है और इस प्रकार विनिर्दिष्ट या अनुज्ञात अवधि समाप्त नहीं हो गई है, संसद के किसी सदन में पुर:स्थापित नहीं किया जाएगा।]
3[स्पष्टीकरण 1 – इस अनुच्छेद के खंड (क) से खंड (ङ) में, “राज्य” के अंतर्गत संघ राज्यक्षेत्र है, किन्तु परंतुक में “राज्य” के अंतर्गत संघ राज्यक्षेत्र नहीं है।
स्पष्टीकरण 2 – खंड (क) द्वारा संसद को प्रदत शक्ति के अंतर्गत किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के किसी भाग को किसी अन्य राज्य या संघ या संघ राज्यक्षेत्र के साथ मिलाकर नए राज्य या संघ राज्यक्षेत्र का निर्माण करना है।]

परंतुक – राज्य को निर्देश करने मात्र से ही परंतुक की शर्त पूरी हो जाएगी। राज्य के विधान मंडल के मत के अनुसार कार्य करने के लिए राज्य सभा आबद्ध नहीं है।
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1.  Formation of new States and alteration of areas, boundaries or names of existing States
Parliament may by law –
(a) form a new State by separation of territory from any States or by uniting two or more States or parts of States or by uniting any territory to a part of any State ;
(b) increase the area of any State ;
(c) diminish the area of any State ;
(d) alter the boundaries of any State ;
(e) alter the name of any State ;

1[Provided that no Bill for the purpose shall be introduced in either House of Parliament except on the recommendation of the President and unless, where the proposal contained in the Bill affects the area, boundaries or name of any of the States 2 ***, the Bill has been referred by the President to the Legislature of that State for expressing its views thereon within such period as may be specified in the reference or within such further period as the President may allow and the period so specified or allowed has expired.]

3[Explanation I.—In this article, in clauses (a) to (e), “State” includes a Union territory, but in the proviso, “State” does not include a Union territory.
Explanation II.—The power conferred on Parliament by clause (a) includes the power to form a new State or Union territory by uniting a part of any State or Union territory to any other State or Union territory.]
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📜 किया गया संशोधन !

1. संविधान (पांचवा संशोधन) अधिनियम, 1955 की धारा 2 द्वारा परंतुक के स्थान पर (24-12-1956 से) प्रतिस्थापित।

2. संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट” शब्दों और अक्षरों का (1-11-1956 से) लोप किया गया।

3. संविधान (अठारहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1966 की धारा 2 द्वारा (27-8-1966 से) अंतःस्थापित।



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🔍 Article 3 Explanation in Hindi

संविधान के भाग 1 के तहत चार अनुच्छेद आते हैं। अनुच्छेद 1 के तहत हमने भारतीय संघ एवं उससे जुड़े कुछ उपबंधों के बारे में समझा। अनुच्छेद 2 के तहत हमने समझा कि जो क्षेत्र भारतीय संघ का हिस्सा नहीं उसे इस अनुच्छेद के तहत भारतीय संघ में प्रवेश कराया जा सकता है।

अनुच्छेद 3 की बात करें तो यह भारतीय संघ के नए राज्यों का निर्माण और मौजूदा राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन से संबंधित है।

कहने का अर्थ है कि संसद अपने अनुसार भारत के राजनीतिक मानचित्र का पुनर्निर्धारण कर सकती है। संसद इसके तहत कुल पाँच चीज़ें कर सकती है;

(पहली बात) किसी राज्य में से उसका राज्यक्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्यक्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकती है।

(दूसरी बात) किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकती है;

(तीसरी बात) किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकती है ;

(चौथी बात) किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकती है;

(पांचवी बात) किसी राज्य के नाम में परिवर्तन कर सकती है ;

साल 2014 में तेलंगाना को आंध्रप्रदेश से काटकर एक नया राज्य बनाया गया। इसके अलावा हाल ही में जम्मू और कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया। इसके पहले भी कई ऐसे परिवर्तन किए जा चुके हैं, जिसे कि आप नीचे FAQs वाले सेक्शन में देख सकते हैं;

हालांकि यहाँ यह याद रखिए कि ये काम संसद अपने मन से नहीं कर सकती बल्कि इस तरह के परिवर्तन से संबन्धित विधेयक को संसद में पेश करने से पहले राष्ट्रपति से मंजूरी लेनी पड़ती है। 

और राष्ट्रपति उस विधेयक को संबन्धित राज्य के विधानमंडल में भेजता है ताकि उन लोगों का इस बारे में क्या कहना है, ये जाना जा सके।

पर अगर मान लीजिये कि जिस राज्य में ये परिवर्तन होना है उस राज्य के विधानमंडल ने इसको स्वीकृति नहीं दे तो क्या होगा? कुछ भी नहीं होगा क्योंकि संसद उस राज्य के मत को मानने के लिए बाध्य नहीं है।

इसका मतलब ये हुआ कि अगर संसद ने सोच लिया कि किसी राज्य का नक्शा बदल देना है तो वे ऐसा आसानी से कर सकता है। आसानी से कर सकता है इसका क्या मतलब है? इसके लिए अनुच्छेद 4 पढ़ सकते हैं।

⚫ अनुच्छेद 3 का खंड (ग) अंतरराज्य समायोजन के लिए है। यह किसी विदेशी राज्य के पक्ष में राज्यक्षेत्र के अध्यर्पण को लागू नहीं होता। अतएव, यदि किसी करार से किसी विदेशी राज्य के पक्ष में भारत के राज्यक्षेत्र का कोई भाग अध्यर्पित किया जाता है तो ऐसे करार को इस अधिनियम के अधीन विधि पारित करके लागू नहीं किया जा सकता।

इसके लिए संविधान का संशोधन करना आवश्यक होगा। साल 2015 में 100वें संविधान संशोधन की मदद से भारत के कुछ भूभाग को बांग्लादेश को सौंपा गया जबकि बांग्लादेश के कुछ भूभाग का भारत द्वारा अधिग्रहण किया गया। किन्तु यदि सीमा विवाद का समझौते के द्वारा निपटारा किया जाता है तो इसे राज्यक्षेत्र का अध्यर्पण नहीं समझा जाएगा।

कुल मिलाकर इसका तीसरा प्रावधान जो ये कहता है कि ”संसद किसी राज्य क्षेत्र को घटा सकती है।” इसको लेकर काफी विवाद हुआ; जो कि बेरुबाड़ी मामले के नाम से प्रसिद्ध है। तो इस लेख को अवश्य पढ़ें;

Overall Understanding of Article 3

जैसा कि हमने ऊपर समझा, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 भारतीय संघ के भीतर राज्यों की सीमाओं के पुनर्गठन, निर्माण या परिवर्तन से संबंधित है। अनुच्छेद 3 के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं:

नए राज्यों का गठन और सीमाओं में परिवर्तन: अनुच्छेद 3 भारत की संसद को नए राज्य बनाने या मौजूदा राज्यों की सीमाओं में बदलाव करने की शक्ति देता है। इसमें पूरी तरह से नए राज्यों का निर्माण, दो या दो से अधिक राज्यों का विलय, या एक राज्य से दूसरे राज्य में क्षेत्रों का स्थानांतरण शामिल है।

एक विधेयक द्वारा शुरूआत: किसी नए राज्य के गठन या राज्य की सीमाओं में परिवर्तन के किसी भी प्रस्ताव को संसद में एक विधेयक के रूप में पेश किया जाना चाहिए। विधेयक संसद सदस्य द्वारा पेश किया जा सकता है।

राष्ट्रपति का संदर्भ: विधेयक पर आगे बढ़ने से पहले, राष्ट्रपति इसे संबंधित राज्य विधानमंडल को उसकी राय के लिए भेज सकता है। हालाँकि राज्य विधायिका की राय बाध्यकारी नहीं है, लेकिन आम तौर पर संसद इस पर विचार करती है।

विधेयक का पारित होना: विधेयक को संसद के दोनों सदनों द्वारा साधारण बहुमत से पारित किया जाना चाहिए।

प्रभावित राज्यों की सहमति: यदि प्रस्तावित विधेयक किसी मौजूदा राज्य की सीमाओं या क्षेत्रों को प्रभावित करता है, तो राष्ट्रपति को संबंधित राज्य विधानमंडल की पूर्व सहमति प्राप्त करनी होगी। हालाँकि, यदि राज्य विधानमंडल अपनी सहमति देने में विफल रहता है, तो यह संसद द्वारा विधेयक के पारित होने को अमान्य नहीं करता है।

राष्ट्रपति द्वारा अधिनियमन: एक बार विधेयक संसद द्वारा पारित हो जाने के बाद, इसे राष्ट्रपति के पास उनकी सहमति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति की सहमति मिलने के बाद विधेयक एक अधिनियम बन जाता है और प्रभावी हो जाता है।

कुल मिलाकर, अनुच्छेद 3 क्षेत्रीय आकांक्षाओं, प्रशासनिक दक्षता, भाषाई और सांस्कृतिक कारकों और अन्य विचारों को समायोजित करने के लिए राज्यों के पुनर्गठन के लिए संवैधानिक तंत्र प्रदान करता है। इसका उद्देश्य भारत के संघीय ढांचे के भीतर संघ के केंद्रीय प्राधिकरण और राज्यों के हितों के बीच संतुलन बनाना है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जबकि अनुच्छेद 3 राज्य की सीमाओं में परिवर्तन की अनुमति देता है, भारत संघ में नए क्षेत्रों का प्रवेश मुख्य रूप से संविधान के अनुच्छेद 2 के अंतर्गत आता है।

FAQs Related to Article 3

यहां भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के बारे में उनके उत्तरों के साथ कुछ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू) दिए गए हैं:

Q1. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 किस बारे में है?

उत्तर: अनुच्छेद 3 भारतीय संघ के भीतर राज्यों की सीमाओं को पुनर्गठित करने, बनाने या बदलने की संसद की शक्ति से संबंधित है।

Q2. अनुच्छेद 3 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

उत्तर: अनुच्छेद 3 के प्रमुख प्रावधानों में नए राज्य बनाने, राज्य की सीमाओं को बदलने या राज्यों का विलय करने की संसद की शक्ति शामिल है। यह राज्यों के पुनर्गठन से संबंधित विधेयकों को शुरू करने और पारित करने की प्रक्रिया की रूपरेखा भी बताता है।

Q3. क्या संसद अनुच्छेद 3 के तहत राज्यों की सीमाओं को एकतरफा बदल सकती है?

उत्तर: नहीं, संसद राज्यों की सीमाओं को एकतरफा नहीं बदल सकती। सीमाओं में किसी भी परिवर्तन के लिए प्रभावित राज्यों की सहमति आवश्यक है।

Q4. अनुच्छेद 3 के तहत राज्य की सीमाओं को बदलने की प्रक्रिया कैसे काम करती है?

उत्तर: यह प्रक्रिया संसद में राज्य की सीमाओं में बदलाव के प्रस्ताव वाले विधेयक को पेश करने के साथ शुरू होती है। राष्ट्रपति विधेयक को संबंधित राज्य विधानसभाओं को उनकी राय जानने के लिए भेज सकते हैं, हालांकि उनकी राय बाध्यकारी नहीं है।

Q5. क्या संसद अनुच्छेद 3 के तहत नये राज्यों का निर्माण कर सकती है?

उत्तर: हां, संसद के पास भारतीय संघ के भीतर नए राज्य बनाने की शक्ति है। इसमें पूरी तरह से नए राज्यों का गठन या मौजूदा राज्यों से नए क्षेत्रों को अलग करना शामिल है।

Q6. क्या अनुच्छेद 3 के तहत नये राज्य के निर्माण के लिए संबंधित राज्य की सहमति आवश्यक है?

उत्तर: नए राज्य के निर्माण के लिए संबंधित राज्य की सहमति की स्पष्ट रूप से आवश्यकता नहीं है। हालाँकि, राष्ट्रपति ऐसे मामलों पर राज्य विधानमंडल की राय ले सकते हैं।

Q7. क्या संसद अनुच्छेद 3 के तहत दो या दो से अधिक राज्यों का विलय कर सकती है?

उत्तर: हां, संसद के पास दो या दो से अधिक राज्यों का विलय कर एक नया राज्य बनाने या राज्य की सीमाओं को बदलने की शक्ति है।

Q8. क्या अनुच्छेद 3 का उपयोग किसी राज्य का नाम बदलने के लिए किया जा सकता है?

उत्तर: हाँ, किसी राज्य का नाम बदलना अनुच्छेद 3 के दायरे में आता है। यह एक विधायी प्रक्रिया के माध्यम से किया जा सकता है।

Q9. क्या अनुच्छेद 3 के तहत राज्यों के पुनर्गठन पर कोई संवैधानिक सीमाएँ हैं?

उत्तर: हां, अनुच्छेद 3 के तहत राज्यों के पुनर्गठन में संवैधानिक सीमाओं का पालन किया जाना चाहिए, जिसमें मौलिक अधिकारों की सुरक्षा, प्रशासनिक दक्षता सुनिश्चित करना और प्रभावित राज्यों और उनके निवासियों के हितों की रक्षा करना शामिल है।

Q10. क्या अनुच्छेद 3 में संशोधन किया जा सकता है?

उत्तर: हाँ, भारतीय संविधान के अन्य प्रावधानों की तरह, अनुच्छेद 368 में उल्लिखित निर्धारित संवैधानिक संशोधन प्रक्रिया के माध्यम से अनुच्छेद 3 में संशोधन किया जा सकता है।

Q11. क्या अनुच्छेद 3 के पांचवे खंड के तहत किसी राज्य का नाम बदला गया है?

उत्तर: हाँ, अब तक कई राज्यों का नाम बदला जा चुका है, जिसे कि आप नीचे लिस्ट में देख सकते हैं;

पहले का नामबदला गया नामसाल
संयुक्त प्रांतउत्तर प्रदेश1950
मध्य भारतमध्य प्रदेश1956
मद्रासतमिलनाडु1969
मैसूरकर्नाटक1973
लकादीव, अमीनदिवि, मिनीकॉयलक्षद्वीप1973
उत्तरांचलउत्तराखंड2006
पोंडीचेरीपुडुचेरी2006
उड़ीसाओडिसा2011

Q12. अनुच्छेद 3 के तहत राज्यों के गठन के लिए कितने कानून बनाए गए हैं?

आजादी के बाद से अब तक ढेरों कानून अनुच्छेद 3 के तहत बनाए गए हैं, जिसे कि आप नीचे देख सकते हैं;

Assam (Alteration of Boundaries) Act, 1951 – संसद ने असम की सीमा के कुछ हिस्से में बदलाव करके भूटान को क्षेत्र की एक पट्टी सौंपने के लिए यह अधिनियम बनाया।

Andhra State Act, 1953 – इस अधिनियम से आंध्र का गठन हुआ और यह भारत का पहला भाषाई राज्य बन गया।

Andhra Pradesh and Madras (Alteration of Boundaries) Act 1959 – इस अधिनियम के माध्यम से आंध्र प्रदेश और मद्रास राज्य की सीमाओं को बदल दिया गया।

Andhra Pradesh and Mysore (Transfer of Territory) Act 1968 – इसके तहत मैसूर से आंध्र प्रदेश राज्य को हस्तांतरित क्षेत्र प्रदान किया।

Himachal Pradesh and Bilaspur (New State) Act 1954 – इसके तहत हिमाचल प्रदेश राज्य और बिलासपुर नामक क्षेत्र को मिलाकर एक नया राज्य हिमाचल प्रदेश बनाया गया।

Chandernagore (Merger) Act, 1954 – इसके तहत एक पूर्व फ्रांसीसी क्षेत्र, चंद्रनगर को पश्चिम बंगाल में विलय कर दिया गया था।

West Bengal (Transfer of Territories) Act, 1956 – इसके तहत बिहार के कुछ क्षेत्र को पश्चिम बंगाल में स्थानांतरित कर दिया गया।

States Reorganisation Act, 1956 – 1956 में फ़ज़ल अली आयोग की सिफ़ारिश के बाद संसद ने यह अधिनियम बनाया इसके तहत 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए। विस्तार से समझने के लिए पढ़ें – भारतीय राज्यों के बनने की कहानी

Bombay Reorganisation Act 1960 – संसद ने बॉम्बे से गुजराती भाषी आबादी को अलग करके 15वां राज्य बनाया और इस अधिनियम द्वारा इसका नाम गुजरात रखा और बॉम्बे का नाम बदलकर महाराष्ट्र कर दिया।

State of Nagaland Act, 1962 – इस अधिनियम के माध्यम से संसद ने असम की नागा पहाड़ियों (विशेष रूप से तुएनसांग क्षेत्र) को काटकर भारत का 16वां राज्य यानी नागालैंड बनाया।

Punjab Reorganisation Act 1966 – पंजाब के हिंदी भाषी क्षेत्र को अलग करके 17वां राज्य हरियाणा बनाया गया और चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश और दोनों राज्यों की राजधानी बनाया गया।

State of Himachal Pradesh Act 1970 – इस अधिनियम ने हिमाचल प्रदेश को अपना 18वां राज्य बना दिया जो प्रारंभ में एक केंद्र शासित प्रदेश था।

North-Eastern Areas (Reorganisation) Act 1971 – इसके तहत भारत के 19वें, 20वें और 21वें राज्य का निर्माण किया गया जो क्रमशः मणिपुर, त्रिपुरा और मेघालय थे। इसने मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश के दो केंद्र शासित प्रदेश भी बनाए।

State of Mizoram Act 1986 – केंद्र शासित प्रदेश मिजोरम को भारत के 23वें राज्य का दर्जा दिया गया।

Goa, Daman and Diu Reorganisation Act, 1987 – इस अधिनियम ने गोवा के क्षेत्र को केंद्र शासित प्रदेश गोवा, दमन और दीव से अलग करके भारत के 25वें राज्य गोवा का गठन किया।

Madhya Pradesh Reorganisation Act, of 2000 – इसने मध्य प्रदेश राज्य के क्षेत्रों से छत्तीसगढ़ राज्य (26वां राज्य) बनाया।

Uttar Pradesh Reorganisation Act, 2000 – उत्तरांचल राज्य उत्तर प्रदेश राज्य के क्षेत्रों से काटकर (27वां राज्य) बनाया गया।

Uttaranchal (Alteration of Name) Act, 2006 – इसके तहत उत्तरांचल राज्य का नाम बदलकर उत्तराखंड राज्य कर दिया गया।

Bihar Reorganisation Act, 2000 – झारखंड राज्य (28वाँ राज्य) को बिहार राज्य के क्षेत्रों से अलग करके बनाया गया।

Telangana Andhra Pradesh Reorganisation Act, 2014 – तेलंगाना राज्य (29वाँ राज्य) आंध्र प्रदेश राज्य के क्षेत्रों से कुछ क्षेत्र को अलग करके बनाया गया।

The Jammu and Kashmir Reorganisation Act, 2019 – इस अधिनियम ने प्रभावी रूप से जम्मू और कश्मीर राज्य की विशेष स्वायत्त स्थिति को रद्द कर दिया और इसे दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में पुनर्गठित किया।

तो कुल मिलाकर यही है अनुच्छेद 3 (Article 3), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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अनुच्छेद 2
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—————
भारतीय संविधान
संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
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अनुच्छेद 3 (Article 3) क्या है?

3.  नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन
संसद, विधि द्वारा –
(क) किसी राज्य में से उसका राज्यक्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्यक्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकेगी।
(ख) किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकेगी;
(ग) किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी ;
(घ) किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी ;
(ङ) किसी राज्य के नाम में परिवर्तन कर सकेगी ;
[ज्यादा जानकारी के लिए व्याख्या पढ़ें ]

अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।