यह लेख Article 315 (अनुच्छेद 315) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

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📜 अनुच्छेद 315 (Article 315) – Original

भाग 14 [संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं] अध्याय 2 – लोक सेवा आयोग
315. संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग— (1) इस अनुच्छेद के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संघ के लिए एक लोक सेवा आयोग और प्रत्येक राज्य के लिए एक लोक सेवा आयोग होगा।

(2) दो या अधिक राज्य यह करार कर सकेंगे कि राज्यों के उस समूह के लिए एक ही लोक सेवा आयोग होगा और यदि इस आशय का संकल्प उन राज्यों में से प्रत्येक राज्य के विधान-मंडल के सदन द्वारा या जहां दो सदन हैं वहां प्रत्येक सदन द्वारा पारित कर दिया जाता है तो संसद्‌ उन राज्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए विधि द्वारा संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग की (जिसे इस अध्याय में “संयुक्त आयोग” कहा गया है) नियुक्ति का उपबंध कर सकेगी ।

(3) पूर्वोक्त प्रकार की किसी विधि में ऐसे आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध हो सकेंगे जो उस विधि के प्रयोजनों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक या वांछनीय हों।

(4) यदि किसी राज्य का राज्यपाल 1***संघ लोक सेवा आयोग से ऐसा करने का अनुरोध करता है तो वह राष्ट्रपति के अनुमोदन से उस राज्य की सभी या किन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए सहमत हो सकेगा।

(5) इस संविधान में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो संघ लोक सेवा आयोग या किसी राज्य लोक सेवा आयोग के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे ऐसे आयोग के प्रति निर्देश हैं जो प्रश्नगत किसी विशिष्ट विषय के संबंध में, यथास्थिति, संघ की या राज्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है ।
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1. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” शब्दों का (1-11-1956 से) लोप किया गया।
अनुच्छेद 315 हिन्दी संस्करण

Part XIV [SERVICES UNDER THE UNION AND THE STATES] CHAPTER II.— PUBLIC SERVICE COMMISSIONS
315. Public Service Commissions for the Union and for the States— (1) Subject to the provisions of this article, there shall be a Public Service Commission for the Union and a Public Service Commission for each State.

(2) Two or more States may agree that there shall be one Public Service Commission for that group of States, and if a resolution to that effect is passed by the House or, where there are two Houses, by each House of the Legislature of each of those States, Parliament may by law provide for the appointment of a Joint State Public Service Commission (referred to in this Chapter as Joint Commission) to serve the needs of those States.

(3) Any such law as aforesaid may contain such incidental and consequential provisions as may be necessary or desirable for giving effect to the purposes of the law.

(4) The Public Service Commission for the Union, if requested so to do by the Governor 1*** of a State, may, with the approval of the President, agree to serve all or any of the needs of the State.

(5) References in this Constitution to the Union Public Service Commission or a State Public Service Commission shall, unless the context otherwise requires, be construed as references to the Commission serving the needs of the Union or, as the case may be, the State as respects the particular matter in question.
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1. The words “or Rajpramukh” omitted by the Constitution (Seventh Amendment) Act, 1956, s. 29 and Sch. (w.e.f. 1-11-1956).
Article 315 English Version

🔍 Article 315 Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 14, अनुच्छेद 308 से लेकर अनुच्छेद 323 तक में विस्तारित है जैसा कि आप देख सकते हैं यह पूरा भाग संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं (SERVICES UNDER THE UNION AND THE STATES) के बारे में है। जो कि दो अध्याय में बंटा हुआ है जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;

ChaptersSubjectArticles
Iसेवाएं (Services)308 – 314
IIलोक सेवा आयोग (Public Services Commissions) 315 – 323
Part 14 of the Constitution

इस लेख में हम दूसरे अध्यायलोक सेवा आयोग (Public Services Commissions) ” के तहत आने वाले अनुच्छेद 315 को समझने वाले हैं;

संघ लोक सेवा आयोग (UPSC)
Closely Related to Article 315

| अनुच्छेद 315 संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग (Public Service Commissions for the Union and for the States)

ईस्ट इंडिया कंपनी जैसे-जैसे भारत में फैलता गया वैसे-वैसे उसको अपना प्रशासन चलाने के लिए अधिक प्रशासकों की जरूरत पड़ती गयी। उसने इस जरूरत को ब्रिटिश अधिकारियों से ही पूरा किया। कंपनी अपने हित और पसंद के अनुसार लोगों को चुनकर प्रशिक्षण के लिए लंदन के हेलिबरी कॉलेज भेज देता था। प्रशिक्षण उपरांत उसे भारत में प्रशासक बना दिया जाता था।

योग्यता आधारित आधुनिक सिविल सेवा की अवधारणा लॉर्ड मैकाले ने 1854 में प्रस्तुत किया। मैकाले की इस अवधारणा पर 1854 में लंदन में सिविल सेवा आयोग की स्थापना की गई और प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाओं की शुरुआत 1855 से की गई।

उस समय सिलैबस कुछ इस तरह से डिज़ाइन किया गया था कि यूरोपियन लोग ही इसे उत्तीर्ण कर पाये। इसके बावजूद भी रवीन्द्रनाथ टैगोर के भाई सत्येंद्रनाथ टैगोर पहले भारतीय बने जिन्होने इसे क्वालिफ़ाय किया (1864)।

1919 के मोण्टग्यु चेम्सफोर्ड सुधार के तहत इसका एक्जाम इंडिया में भी करवाया जाने लगा। ऐसा पहला एक्जाम 1922 में इलाहाबाद में हुआ था। 1926 में भारत में ही लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।

भारत सरकार अधिनियम 1935 के अंतर्गत केंद्र और प्रांत के लिए अलग-अलग लोक सेवा आयोग का प्रावधान किया गया। केंद्र वाले लोक सेवा आयोग को फेडरल लोक सेवा आयोग कहा गया।

यही फेडरल लोक सेवा आयोग भारत के आजाद होने के बाद संघ लोक सेवा आयोग के नाम से जाना गया। जिसे कि संविधान के अनुच्छेद 378 (खंड 1) के तहत अधिनियमित किया गया। अनुच्छेद 315 से लेकर अनुच्छेद 323 तक लोक सेवा आयोग के विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट किया गया है;

अनुच्छेद 315 के तहत संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग (Public Service Commissions for the Union and for the States) की व्यवस्था की है। इस अनुच्छेद के तहत कुल 5 खंडों की चर्चा की गई है;

अनुच्छेद 315 के खंड (1) के तहत कहा गया है कि इस अनुच्छेद के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संघ के लिए एक लोक सेवा आयोग और प्रत्येक राज्य के लिए एक लोक सेवा आयोग होगा।

अनुच्छेद के इस खंड के तहत संघ के लिए एक लोक सेवा आयोग की व्यवस्था की गई है साथ ही प्रत्येक राज्य के लिए भी एक लोक सेवा आयोग की व्यवस्था की गई है। संघ के लिए जो लोक सेवा आयोग है उसे संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के नाम से हम जानते हैं वहीं राज्यों के लोक सेवा आयोग में राज्यों का नाम लगा होता है जैसे कि बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) एवं उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) इत्यादि।

अनुच्छेद 315 के खंड (2) के तहत कहा गया है कि दो या अधिक राज्य यह करार कर सकेंगे कि राज्यों के उस समूह के लिए एक ही लोक सेवा आयोग होगा और यदि इस आशय का संकल्प उन राज्यों में से प्रत्येक राज्य के विधान-मंडल के सदन द्वारा या जहां दो सदन हैं वहां प्रत्येक सदन द्वारा पारित कर दिया जाता है तो संसद्‌ उन राज्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए विधि द्वारा संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग की (जिसे इस अध्याय में “संयुक्त आयोग” कहा गया है) नियुक्ति का उपबंध कर सकेगी।

दो या इससे अधिक राज्यों के लिए संविधान में इस खंड के तहत संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग (संयुक्त आयोग) की व्यवस्था भी की गई है।

अंतर इतना ही है कि संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग का गठन जहां सीधे संविधान द्वारा किया गया है। वहीं संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग का गठन राज्य विधानमंडल की आग्रह से संसद द्वारा किया जाता है। इस तरह संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग एक सांविधिक संस्था है न कि संवैधानिक संस्था।

उदाहरण के लिए 1966 में पंजाब से पृथक हुए हरियाणा और पंजाब के लिए अल्पकालीन संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग गठित किया था। अब दोनों के अपने-अपने राज्य लोक सेवा आयोग है।

Haryana Public Service Commission↗️
Punjab Public Service Commission↗️

हालांकि यहां यह याद रखें कि संसद यह अपने मन से नहीं कर सकता है बल्कि दो या अधिक राज्य खुद ही एक करार करते हैं और अपने-अपने विधानमंडल से इस आशय एक प्रस्ताव पारित करते हैं।

अनुच्छेद 315 के खंड (3) के तहत कहा गया है कि पूर्वोक्त प्रकार की किसी विधि में ऐसे आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध हो सकेंगे जो उस विधि के प्रयोजनों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक या वांछनीय हों।

कहने का अर्थ है कि उपरोक्त तरीके से अधिनियमित किसी भी कानून में ऐसे सहायक और परिणामी प्रावधान शामिल हो सकते हैं जो कानून के घोषित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक या उचित हैं।

अनुच्छेद 315 के खंड (4) के तहत कहा गया है कि यदि किसी राज्य का राज्यपाल संघ लोक सेवा आयोग से ऐसा करने का अनुरोध करता है तो वह राष्ट्रपति के अनुमोदन से उस राज्य की सभी या किन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए सहमत हो सकेगा।

कहने का अर्थ है कि संघ लोक सेवा आयोग, राज्यपाल के अनुरोध व राष्ट्रपति की संस्तुति के बाद राज्य के आवश्यकतानुसार भी कार्य कर सकता है।

अनुच्छेद 315 के खंड (5) के तहत कहा गया है कि इस संविधान में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो संघ लोक सेवा आयोग या किसी राज्य लोक सेवा आयोग के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे ऐसे आयोग के प्रति निर्देश हैं जो प्रश्नगत किसी विशिष्ट विषय के संबंध में, यथास्थिति, संघ की या राज्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।

तो यही है अनुच्छेद 315, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial

Related MCQs with Explanation

Question 1: Article 315 of the Indian Constitution deals with the establishment and functions of Public Service Commissions (PSCs) in India.

True
False

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Answer: True Explanation: Article 315 of the Indian Constitution establishes a Public Service Commission for the Union and a Public Service Commission for each State. These PSCs are responsible for conducting competitive examinations for recruitment to various civil services in India.

Question 2: The functions of a Public Service Commission (PSC) include:

(a) Conducting competitive examinations for recruitment to various civil services
(b) It provides advice to the states on all or any matters at the request of a Governor.
(c) It adjudicates pension claims for injury suffered by a person while serving under the Government of India and determines the amount of pension.
(d) All of the above

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Answer: (d)

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