यह लेख Article 353 (अनुच्छेद 353) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

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Article 353 अनुच्छेद 353

📜 अनुच्छेद 353 (Article 353) – Original

भाग 18 [आपात उपबंध]
353. आपात की उद्घोषणा का प्रभाव— जब आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है तब

(क) संविधान में किसी बात के होते हुए भी, संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को इस बारे में निदेश देने तक होगा कि वह राज्य अपनी कार्यपालिका शक्ति का किस रीति से प्रयोग करे ;

(ख) किसी विषय के संबंध में विधियां बनाने की संसद्‌ की शक्ति के अंतर्गत इस बात के होते हुए भी कि वह संघ सूची में प्रगणित विषय नहीं है,
ऐसी विधियां बनाने की शक्ति होगी जो उस विषय के संबंध में संघ को या संघ के अधिकारियों और प्राधिकारियों को शक्तियां प्रदान करती हैं और उन पर कर्तव्य अधिरोपित करती हैं या शक्तियों का प्रदान किया जाना और कर्तव्यों का अधिरोपित किया जाना प्राधिकृत करती है :

1[परन्तु जहां आपात की उद्घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केवल किसी भाग में प्रवर्तन में है वहां यदि और जहां तक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबंध में, जिसमें आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, होने वाले क्रियाकलाप के कारण संकट में है तो और वहां तक,-

(i) खंड (क) के अधीन निदेश देने की संघ की कार्यपालिका शक्ति का, और
(ii) खंड (ख) के अधीन विधि बनाने की संसद्‌ की शक्ति का,

विस्तार किसी ऐसे राज्य पर भी होगा जो उस राज्य से भिन्न है जिसमें या जिसके किसी भाग में आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है।
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1.  संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 49 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित ।
अनुच्छेद 353 हिन्दी संस्करण

Part XVIII [EMERGENCY PROVISIONS]
353. Effect of Proclamation of Emergency— While a Proclamation of Emergency is in operation, then—
(a) notwithstanding anything in this Constitution, the executive power of the Union shall extend to the giving of directions to any State as to the manner in which the executive power thereof is to be exercised;
(b) the power of Parliament to make laws with respect to any matter shall include power to make laws conferring powers and imposing duties, or authorising the conferring of powers and the imposition of duties, upon the Union or officers and authorities of the Union as respects that matter, notwithstanding that it is one which is not enumerated in the Union List:

1[Provided that where a Proclamation of Emergency is in operation only in any part of the territory of India,—
(i) the executive power of the Union to give directions under clause (a), and
(ii) the power of Parliament to make laws under clause (b), shall also extend to any State other than a State in which or in any part of which the Proclamation of Emergency is in operation if and in so far as the security of India or any part of the territory thereof is threatened by activities in or in relation to the part of the territory of India in which the Proclamation of Emergency is in operation.]
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1. Added by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 49 (w.e.f. 3-1-1977).
Article 353 English Version

🔍 Article 353 Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 18, अनुच्छेद 352 से लेकर अनुच्छेद 360 तक में विस्तारित है जैसा कि आप देख सकते हैं यह पूरा भाग आपात उपबंध (EMERGENCY PROVISIONS) के बारे में है।

भारतीय संविधान के आपातकालीन प्रावधान विशेष शक्तियों का एक समूह हैं जिन्हें राष्ट्रीय या संवैधानिक संकट के समय भारत के राष्ट्रपति द्वारा लागू किया जा सकता है। ये प्रावधान सरकार को कुछ मौलिक अधिकारों को निलंबित करने और संकट से निपटने के लिए अन्य असाधारण उपाय करने की अनुमति देते हैं।

आपातकालीन प्रावधानों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है:

राष्ट्रीय आपातकाल: यह सबसे गंभीर प्रकार का आपातकाल है और इसकी घोषणा तब की जा सकती है जब राष्ट्रपति संतुष्ट हो जाएं कि भारत या इसके किसी हिस्से की सुरक्षा को युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से खतरा है।

राष्ट्रपति शासन: यह तब घोषित किया जा सकता है जब राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट हो कि किसी राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है।

वित्तीय आपातकाल: यदि राष्ट्रपति संतुष्ट हो कि वित्तीय संकट मौजूद है या होने की संभावना है तो इसे घोषित किया जा सकता है।

आपातकालीन प्रावधान भारतीय संविधान का एक विवादास्पद हिस्सा हैं। कुछ लोगों का तर्क है कि संकट के समय में देश की रक्षा के लिए वे आवश्यक हैं, जबकि अन्य का तर्क है कि वे बहुत शक्तिशाली हैं और सरकार द्वारा उनका दुरुपयोग किया जा सकता है।

उपरोक्त सारे आपातकालीन प्रावधानों को अनुच्छेद 352 से लेकर अनुच्छेद 360 तक में सम्मिलित किया गया है; और इस लेख में हम अनुच्छेद 353 को समझने वाले हैं;

राष्ट्रीय आपातकाल और उसके प्रावधान (National Emergency)
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| अनुच्छेद 353 – आपात की उद्घोषणा का प्रभाव (Effect of Proclamation of Emergency)

मान लें कि अगर देश पर बाहर से आक्रमण हो गया। राज्य इतने सक्षम होते नहीं हैं कि ऐसे आक्रमण का मुक़ाबला कर पाये, ऐसे में अराजकता फैल सकता है, लोग संविधान को मानने से इंकार कर सकता है, सामाजिक सौहार्द बिगड़ सकता है, इत्यादि-इत्यादि।

इसीलिए संविधान केंद्र सरकार पर ये कर्तव्य आरोपित करता है कि इस तरह की असामान्य परिस्थितियों में वह राज्य को बाह्य आक्रमण से बचाए और ये सुनिश्चित करे कि सब कुछ संविधान के अनुसार काम करता रहे।

दूसरे शब्दों में कहें तो विपरीत परिस्थितियों में देश की संप्रभुताएकता, अखंडता एवं लोकतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था को कायम रखने के लिए आपातकालीन प्रावधानों की व्यवस्था की गई है।

अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा की बात की गई है। इस अनुच्छेद के तहत कुल 9 खंड है। जिसे की हमने विस्तार से समझ लिया है। अब सवाल यह आता है कि इस आपातकाल की उद्घोषणा का प्रभाव क्या होगा? इसी का उत्तर अनुच्छेद 353 के तहत दिया गया है।

अनुच्छेद 353 के तहत मुख्य रूप से दो बातें कही गई है;

क) जब आपातकाल लागू हो गया हो तब संविधान में किसी बात के होते हुए भी, संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को इस बारे में निदेश (instructions) देने तक होगा कि वह राज्य अपनी कार्यपालिका शक्ति का किस रीति से प्रयोग करे ;

इसका मतलब यह है कि केंद्र सरकार राज्य सरकारों को विशिष्ट निर्देश दे सकती है कि उन्हें कुछ स्थितियों या मुद्दों को कैसे संभालना चाहिए, और राज्य सरकारें उन निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं।

यह प्रावधान संविधान में यह सुनिश्चित करने के लिए शामिल किया गया है कि संघ युद्ध या प्राकृतिक आपदा जैसी संकट की स्थिति से निपटने के लिए त्वरित और प्रभावी कार्रवाई कर सके, जिससे देश की सुरक्षा या अखंडता को खतरा हो।

आपातकाल के दौरान, देश की सुरक्षा के लिए आवश्यक उपाय सुनिश्चित करने के लिए संघ को एक राज्य या यहां तक कि कई राज्यों के प्रशासन का नियंत्रण अपने हाथ में लेने की आवश्यकता हो सकती है।

यह प्रावधान संविधान के किसी भी अन्य प्रावधान को ओवरराइड करता है जो राज्य सरकारों को निर्देश देने की संघ की शक्ति को सीमित कर सकता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस प्रावधान के तहत संघ को दी गई शक्ति असीमित नहीं है, इसका उपयोग केवल राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान और केवल देश की सुरक्षा या अखंडता की रक्षा के उद्देश्य से किया जाना चाहिए और इसे सुसंगत तरीके से किया जाना चाहिए।

ख) जब आपातकाल लागू हो गया हो तब किसी विषय के संबंध में विधियां बनाने की संसद्‌ की शक्ति के अंतर्गत इस बात के होते हुए भी कि वह संघ सूची में प्रगणित विषय नहीं है, ऐसी विधियां बनाने की शक्ति होगी जो उस विषय के संबंध में संघ को या संघ के अधिकारियों और प्राधिकारियों को शक्तियां प्रदान करती हैं और उन पर कर्तव्य अधिरोपित करती हैं या शक्तियों का प्रदान किया जाना और कर्तव्यों का अधिरोपित किया जाना प्राधिकृत करती है;

इसमें कहा गया है कि संसद के पास संघ सूची के विषय के इत्तर भी कानून बनाने का अधिकार है जो केंद्र सरकार या संघ के अधिकारियों को शक्तियां प्रदान करता है।

इसका मतलब यह है कि भले ही कोई विशेष मामला विशेष रूप से संघ सूची में सूचीबद्ध नहीं है जिसे केंद्र सरकार के पास संभालने का अधिकार है, फिर भी संसद के पास कानून बनाने की शक्ति है जो केंद्र सरकार को उस मामले पर कार्रवाई करने का अधिकार देती है। यानि कि आपातकाल की स्थिति में केंद्र सरकार राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बना सकती है।

हालांकि यहाँ यह याद रखिए कि जहां आपात की उद्घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केवल किसी भाग में प्रवर्तन में है वहां यदि और जहां तक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबंध में, जिसमें आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, होने वाले क्रियाकलाप के कारण संकट में है तो और वहां तक खंड (क) के अधीन निदेश देने की संघ की कार्यपालिका शक्ति का, और खंड (ख) के अधीन विधि बनाने की संसद्‌ की शक्ति का, विस्तार किसी ऐसे राज्य पर भी होगा जो उस राज्य से भिन्न है जिसमें या जिसके किसी भाग में आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है।

यह जो प्रावधान है उसे 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के द्वारा इसमें जोड़ा गया है, और इसे आप अनुच्छेद 352(1) का अनुपूरक प्रावधान मान सकते हैं। जिसके तहत मुख्य रूप से यह कहा गया है कि आपात को किसी क्षेत्र विशेष तक सीमित किया जा सकता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उसके अगल बगल का क्षेत्र इसके दायरे में नहीं आता है। आपात को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए उसके आस-पास के दूसरे क्षेत्र को भी संघ की शक्ति के अंतर्गत रहना होगा।

अनुच्छेद 353 के मुख्य बिंदु:

  • संघ की कार्यकारी शक्ति: आपातकाल के दौरान, राष्ट्रपति किसी भी राज्य को अपनी कार्यकारी शक्ति का प्रयोग करने के संबंध में “दिशा-निर्देश” जारी कर सकता है। इससे राज्य प्रशासन पर केंद्र सरकार का नियंत्रण बढ़ जाता है।
  • संसदीय शक्ति: आपातकाल के दौरान संसद को व्यापक विधायी शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। यह किसी भी विषय पर कानून बना सकता है, यहां तक कि सामान्यतः सातवीं अनुसूची की राज्य सूची के अंतर्गत आने वाले विषयों पर भी। यह मौजूदा राज्य कानूनों को ओवरराइड या निलंबित कर सकता है।
  • मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध: आपातकाल के दौरान कुछ मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है, जैसे भाषण और सभा की स्वतंत्रता का अधिकार। हालाँकि, जीवन के अधिकार जैसे कुछ मौलिक अधिकारों को निरस्त नहीं किया जा सकता है।

विवाद और बहस:

अनुच्छेद 353 के दोनों संस्करण निम्नलिखित चिंताओं के कारण विवादास्पद रहे हैं:

  • आपातकालीन शक्तियों का दुरुपयोग: आलोचकों का तर्क है कि आपातकाल के दौरान केंद्र सरकार को दी गई व्यापक शक्तियों का दुरुपयोग लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर करने और असहमति को दबाने के लिए किया जा सकता है।
  • संघवाद पर प्रभाव: चिंताएं मौजूद हैं कि अनुच्छेद 353 संघ को राज्यों पर अत्यधिक नियंत्रण देता है, जो संभावित रूप से भारतीय संविधान के संघीय ढांचे को कमजोर करता है।
  • मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध: आपातकाल के दौरान कुछ मौलिक अधिकारों का निलंबन व्यक्तिगत स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों के बारे में चिंता पैदा करता है।

कुल मिलाकर, अनुच्छेद 353 भारतीय संविधान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन आपातकालीन शक्तियों और संवैधानिक संशोधनों से संबंधित इसके प्रावधान संवेदनशील बने हुए हैं और चल रही बहस और व्याख्या के अधीन हैं।

तो यही है अनुच्छेद 353, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

आपातकाल 1975 : एक कड़वा सच
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(a) The effect of the proclamation of emergency.
(b) The power of the Union to protect States against internal disturbance.
(c) The power of the President to suspend the enforcement of fundamental rights during emergencies.
(d) The power of the Parliament to make laws on subjects in the State List during emergencies.

(a) The distribution of revenues between the Union and the States may be altered by the President.
(b) The executive power of the Union shall extend to the giving of directions to any State as to the manner in which the executive power thereof is to be exercised.
(c) The Parliament may make laws for a State with respect to any matter in the State List.
(d) The President may suspend the enforcement of fundamental rights.

Question 3: Article 353 has been invoked in India on _______ occasions.

(a) One
(b) Three
(c) Four
(d) Five

(a) Enable the Union Government to effectively deal with threats to the security of India, both external and internal.
(b) Centralize power in the Union Government and reduce the autonomy of the States.
(c) Suppress political dissent and opposition to the government.
(d) All of the above.

Answer 1: (a) Explanation: Article 353 specifically addresses the effect of a proclamation of emergency on the distribution of legislative powers between the Union and the States.

Answer 2: (d) Explanation: While the President has the power to suspend fundamental rights during an emergency, this action is governed by Article 359, not Article 353.

Answer 3: (b) Explanation: India has declared a state of emergency under Article 352 three times: in 1962 (China war), 1971 (Pakistan war), and 1975 (internal disturbance).

Answer 4: (a) Explanation: The primary aim of Article 353 is to empower the Union Government to take swift and decisive action during times of national crisis, ensuring the safety and integrity of the nation.

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अनुच्छेद 354 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद 352 – भारतीय संविधान
Next and Previous to Article 353
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भारत की कार्यपालिका
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।