यह लेख अनुच्छेद 53 (Article 53) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

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अनुच्छेद 53

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📜 अनुच्छेद 53 (Article 53)

53. संघ की कार्यपालक शक्ति — (1) संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा।
(2) पूर्वगामी उपबंध की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, संघ के रक्षा बलों का सर्वोच्च समादेश राष्ट्रपति में निहित होगा और उसका प्रयोग विधि द्वारा विनियमित होगा।
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात –
(क) किसी विद्यमान विधि द्वारा किसी राज्य की सरकार या अन्य प्राधिकारी को प्रदान किए गए कृत्य राष्ट्रपति को अंतरित करने वाली नहीं समझी जाएगी; या
(ख) राष्ट्रपति से भिन्न अन्य प्राधिकारियों को विधि द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद को निवारित नहीं करेगी।
—-अनुच्छेद 53
53. Executive power of the Union.—(1) The executive power of the Union shall be vested in the President and shall be exercised by him either directly or through officers subordinate to him in accordance with this Constitution.
(2) Without prejudice to the generality of the foregoing provision, the supreme command of the Defence Forces of the Union shall be vested in the President and the exercise thereof shall be regulated by law.
(3) Nothing in this article shall—
(a) be deemed to transfer to the President any functions conferred by any existing law on the Government of any State or other authority; or
(b) prevent Parliament from conferring by law functions on authorities other than the President.
Article 53—-

🔍 Article 53 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का पहला अध्याय है – कार्यपालिका (Executive)

कार्यपालिका के तहत अनुच्छेद 52 से लेकर 78 तक आते हैं। और इस भाग के अंतर्गत संघ के कार्यपालिका की चर्चा की गई है। जिसके तहत राष्ट्रपति (President), उप-राष्ट्रपति (vice president), मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) एवं महान्यायवादी (Attorney General) आते हैं।

कार्यपालिका के तहत यहाँ प्रधानमंत्री की चर्चा इसीलिए नहीं की गई है क्योंकि मंत्रिपरिषद का मुखिया ही प्रधानमंत्री होता है।

यहाँ यह याद रखिए कि संविधान के भाग 5 को संघ या The Union के नाम से भी जाना जाता है।

कुल मिलाकर संविधान के भाग 5 के अंतर्गत अनुच्छेद 52 से लेकर अनुच्छेद 151 तक आता है। इस लेख में हम अनुच्छेद 53 (Article 53) को समझने वाले हैं;

अनुच्छेद-39 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-21 – भारतीय संविधान
——Article 53——-

| अनुच्छेद 53 – संघ की कार्यपालक शक्ति

अनुच्छेद 53 संघ की कार्यपालक शक्ति (executive power) के बारे में है। इस अनुच्छेद के तीन खंड है। आइये इसे बारी-बारी से समझते हैं;

अनुच्छेद 53(1) – संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा।

हमारे संविधान के अनुच्छेद 53 ने राष्ट्रपति में कार्यपालिका शक्ति निहित की है। यानि कि राष्ट्रपति के पास कुछ कार्यपालक शक्तियाँ होती है जिसका इस्तेमाल वे स्वयं करते हैं और अपने अधीनस्थ के माध्यम से करते हैं।

पहला सवाल कार्यपालिका शक्ति क्या होती है?

सामान्यतः कार्यपालिका शक्ति में वे सब सरकारी कृत्य आते हैं जो विधायी और न्यायिक कृत्यों को निकालने पर बचे रहते हैं। यानि कि जो न्यायिक कृत्य है उसे निकाल दे और विधायी कृत्य को निकाल दे तो इसके अलावे जो बचेगा वो कार्यपालिका शक्ति कहलाएगा।

मोटे तौर पर कार्यपालिका कृत्य में निम्न चीज़ें आती है;

  • नीति का अवधारण और उसका निष्पादन (Formulation of policy and its execution),
  • विधायन का प्रारम्भ (initiation of legislation),
  • व्यवस्था बनाए रखना (maintain order),
  • सामाजिक और आर्थिक कल्याण का प्रोन्नयन (Promotion of social and economic welfare),
  • विदेश नीति का संचालन (conduct of foreign policy) इत्यादि।

कुल मिलाकर राज्य के सामान्य प्रशासन को चलना या उसका अधीक्षण करना इसमें आता है। साथ ही इसमें राजनीतिक और राजनयिक गतिविधियां भी सम्मिलित है।

लेकिन यहाँ यह याद रखिए कि साल 1956 में 7वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत अनुच्छेद 298 में संशोधन किया गया और संघ एवं राज्य के कार्यपालक शक्तियों का विस्तार निम्नलिखित विषयों पर भी किया गया;

(क) व्यापार एवं कारोबार (trade and business) ,

(ख) संपत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन (acquisition, holding and disposal of property),

(ग) किसी भी प्रयोजन के लिए संविदा (Contract) करना।

दूसरा सवाल राष्ट्रपति की कार्यपालक शक्ति क्या है?

अनुच्छेद 53 में ये कहा गया है कि संघ की सारी कार्यपालक शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित होगी, इसीलिए शासन संबंधी सभी कार्य राष्ट्रपति के नाम पर किए जाते हैं।

अगर राष्ट्रपति के नजरिए से देखें तो केंद्र में भले ही किसी भी पार्टी की सरकार हो लेकिन संवैधानिक दृष्टि से वो राष्ट्रपति की ही सरकार होती है।

अनुच्छेद 77 के तहत  यह स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि भारत सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्यवाही राष्ट्रपति के नाम से की हुई कही जाएगी।

राष्ट्रपति के पास ये शक्ति होती है कि वे इस तरह के नियम बनाए जिससे कि जितने भी आदेश राष्ट्रपति के नाम पर दी जाती है, वे कानूनी रूप से वैध रहे।

साथ ही साथ, वह ऐसे नियम भी बनाए जिससे केंद्र सरकार सहज रूप से कार्य कर सके तथा मंत्रियों को उक्त कार्य सहजता से वितरित हो सकें।

अनुच्छेद 75 के तहत प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। कहने का अर्थ है कि जनता सिर्फ सांसद को चुनती है। प्रधानमंत्री या अन्य मंत्रियों को नहीं। बहुमत प्राप्त दल के सांसद अपना नेता चुनती है। जिसे कि राष्ट्रपति के द्वारा प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त कर दिया जाता है। प्रधानमंत्री अन्य मंत्रियों को चुनती है और इसे भी राष्ट्रपति ही नियुक्त करता है।

इसका मतलब ये होता है कि प्रधानमंत्री और अन्य मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत काम करते हैं। और दूसरी बात ये कि प्रधानमंत्री जो भी काम करते हैं वो राष्ट्रपति के नाम पर ही करते हैं।

अनुच्छेद 74 के तहत इसके लिए एक मंत्रिपरिषद का गठन किया जाता है। ये मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए ही गठित किया जाता है।

अनुच्छेद 76 के तहत महान्यायवादी (Attorney General) की नियुक्ति तथा उसके वेतन आदि का निर्धारण भी राष्ट्रपति करता है।

यानी कि भारत के महान्यायवादी भी राष्ट्रपति के प्रसाद्पर्यंत ही अपने पद पर कार्य करता है और ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त करता है जो राष्ट्रपति अवधारित करे।

इतना ही नहीं, राष्ट्रपति, भारत के महानियंत्रक व महालेखा परीक्षक (CAG), मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों, राज्य के राज्यपालों, वित्त आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों आदि की भी नियुक्ति करता है।

अनुच्छेद 78 में साफ-साफ लिखा है कि केंद्र के कार्यपालक के प्रशासन संबंधी और विधायी संबंधी अगर कोई जानकारी राष्ट्रपति मांगे तो प्रधानमंत्री का ये कर्तव्य होगा कि, राष्ट्रपति के सामने वो उपलब्ध करवाए।

इसी अनुच्छेद में एक और बात का जिक्र है कि – अगर किसी मंत्री द्वारा कोई निर्णय लिया गया हो लेकिन मंत्रिपरिषद ने उस पर विचार नहीं किया हो तो ऐसी स्थिति में अगर राष्ट्रपति कहे तो उस निर्णय को मंत्रिपरिषद के सामने विचार के लिए रखना होगा।

इसके साथ ही वह किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित कर सकता है। उसे अनुसूचित क्षेत्रों तथा जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन की शक्तियाँ भी प्राप्त हैं।

अनुच्छेद 263 के तहत अगर राष्ट्रपति को ये लगता है कि ऐसी परिषद की स्थापना से लोक हित सिद्ध होगा तो वह अपने आदेश से ऐसी परिषद की स्थापना कर सकता है।

अंतर्राज्यीय सम्बन्धों वाले लेख में हमने पढ़ा भी है कि राष्ट्रपति इस प्रकार के कई परिषदों का गठन अतीत में कर चुकी है। जैसे कि – केन्द्रीय स्वास्थ्य परिषद, केन्द्रीय स्थानीय सरकार तथा शहरी विकास परिषद आदि।

◾ केंद्र-शासित प्रदेशों का नियम-कानून आमतौर पर राष्ट्रपति ही बनाता है। इस मामले में राष्ट्रपति के पास बहुत सारा विशेषाधिकार होता है। जैसे कि संसद द्वारा बनाए गए कानून राष्ट्रपति के सहमति के पश्चात ही केंद्र-शासित प्रदेश में लागू होता है। तथा राष्ट्रपति अगर चाहे तो उसमें कुछ बदलाव भी कर सकता है।

◾ यद्यपि हमारे संविधान में शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत का कठोरता से अनुसरण नहीं किया गया है फिर भी इसका यह अर्थ नहीं है कि हमारे संविधान में एक अंग दूसरे अंग की संविधायी शक्ति का अतिचार कर सकता है या अपने सांविधानिक कृत्य किसी अन्य अंग या प्राधिकारी को प्रत्यायोजित कर सकता है।

◾ लिखित संविधान में शक्तियों का वितरण आवश्यक है। यद्यपि संविधान द्वारा विधायी और न्यायिक शक्तियां विधान मंडल और न्यायपालिका में अभिव्यक्त रूप से निहित नहीं की गई है फिर भी संविधान के विभिन्न उपबंधों से यह स्पष्ट है कि विनिर्दिष्ट अपवादों को छोड़कर विधि बनाने की शक्ति का प्रयोग संसद और राज्यों के विधान मंडल करेंगे और संविधान का निर्वचन करने और निर्णय देने की शक्ति का प्रयोग न्यायालय द्वारा किया जाएगा।

तीसरा सवाल अधीनस्थ अधिकारी कौन होते हैं?

मंत्री (Minister), राष्ट्रपति [अनुच्छेद 53(1) के तहत] और राज्यपाल [अनुच्छेद 154(1) के तहत] के अधीनस्थ अधिकारी है। अतएव वे भारतीय दंड संहिता की धारा 21 के अर्थांतर्गत लोकसेवक भी है।

अनुच्छेद 53(2) -पूर्वगामी उपबंध की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, संघ के रक्षा बलों का सर्वोच्च समादेश राष्ट्रपति में निहित होगा और उसका प्रयोग विधि द्वारा विनियमित होगा।

इसका सीधा सा मतलब ये है कि राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का सुप्रीम कमांडर होता है। हालांकि उसका प्रयोग विधि द्वारा विनियमित किया जाएगा।

अनुच्छेद 53(3)(क) इस अनुच्छेद की कोई बात किसी विद्यमान विधि द्वारा किसी राज्य की सरकार या अन्य प्राधिकारी को प्रदान किए गए कृत्य राष्ट्रपति को अंतरित करने वाली नहीं समझी जाएगी; या

(ख) इस अनुच्छेद की कोई बात राष्ट्रपति से भिन्न अन्य प्राधिकारियों को विधि द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद को निवारित नहीं करेगी।

अनुच्छेद 53 के तहत हमने समझा कि संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी। इसी के परंतुक (Proviso) के रूप में आप अनुच्छेद 53(3)(क) और (ख) को देख सकते हैं;

अनुच्छेद 53(3)(क) के अनुसार अगर कोई विधि पहले से अस्तित्व में है और जिसके तहत राज्य की सरकार को या अन्य प्राधिकारी को कुछ कार्यपालिका कृत्य दिए गए हैं तो अनुच्छेद 53 के तहत ये नहीं समझा जाएगा कि वो कृत्य राष्ट्रपति को अंतरित (transfer) की गई है।

यानि कि अगर वो कृत्य राज्य सरकार को दिया गया है तो उसे राज्य सरकार ही करेगा या वो कृत्य राज्य सरकार के पास ही रहेगा, राष्ट्रपति के पास ट्रान्सफर नहीं होगा, भले ही अनुच्छेद 53 में जो भी लिखा हो।

या फिर, अनुच्छेद 53(3)(ख) के तहत इस अनुच्छेद की कोई बात राष्ट्रपति से भिन्न अन्य प्राधिकारियों को विधि द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद को निवारित नहीं करेगी।

यानि कि राष्ट्रपति को छोड़कर अन्य किसी प्राधिकारी (Authority) को अगर संसद द्वारा कोई कृत्य (काम) प्रदान किया जाता है तो अनुच्छेद 53 इसमें रोड़ा नहीं बनेगा। भले ही अनुच्छेद 53 में ये लिखा हो कि संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी।

ध्यान रखने योग्य तथ्य:

कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग पूर्ववर्ती विधान पर आश्रित नहीं है – कार्यपालिका का एक काम विधियों का निष्पादन (Execution) करना भी है। इसका यह अर्थ नहीं है कि किसी विषय के बारे में कार्यपालिका तभी काम कर सकती है जब कोई विधि पहले से विद्यमान हो।

कुछ कार्यों के लिए विधान होना अनिवार्य है। जैसे कि लोक निधि (public fund) से व्यय करने के लिए विनिर्दिष्ट (specified) विधान होना आवश्यक है। किंतु इसके अतिरिक्त यह अभिनिर्धारित नहीं किया जा सकता कि कोई कार्य करने के लिए जैसे व्यापार या कारबार चलाने के लिए यह आवश्यक है कि कार्यपालिका पहले विधायी मंजूरी प्राप्त कर ले।

कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में सरकार कोई भी ऐसा कार्य कर सकती है जो,

(1) ऐसा कार्य नहीं है जो संविधान द्वारा किसी अन्य प्राधिकारी या निकाय को सौंपा गया है जैसे विधान मंडल या न्यायपालिका या लोकसेवा आयोग।

(2) संविधान या किसी अन्य विधि के उपबंधों के प्रतिकूल नहीं है।

(3) किसी व्यक्ति के विधिक अधिकारों का उल्लंघन या अतिक्रमण नहीं करता है।

इसी सिद्धांत के अनुसार यह अभिनिर्धारित हुआ है कि संधि करना कार्यपालिका का कार्य है और देशीय न्यायालय भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 53 के अधीन शक्ति के प्रयोग में की गई संधि की विधिमान्यता के प्रश्न पर विचार नहीं कर सकते और संधि को इस आधार पर दोषपूर्ण नहीं ठहराया जा सकता कि उसके समर्थन में कोई विधान नहीं है।

संधि को प्रभावी करने के लिए विधान की वहाँ आवश्यकता होगी, –

(क) जहां किसी विदेशी शक्ति को धन का संदाय (payment) करने का उपबंध किया गया है क्योंकि धन भारत की संचित निधि से निकाला जाएगा।

(ख) जहां संधि से भारत के नागरिकों के अधिकार प्रभावित होते हैं। किसी विदेशी शक्ति द्वारा भारत को अध्यर्पित संपत्ति (surrendered property) के अर्जन के लिए विधायी मंजूरी की आवश्यकता नहीं है, किंतु भारत के राज्यक्षेत्र को किसी विदेशी राज्य को अध्यर्पित करने के लिए संविधान का संशोधन किया जाना आवश्यक है।

तो यही है अनुच्छेद 53 (Article 53), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

अनुच्छेद-31(ख) – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-31(क) – भारतीय संविधान
—————————
अनुच्छेद 53 क्या है?

अनुच्छेद 53 कहता है कि संघ की कार्यपालक शक्तियाँ राष्ट्रपति (President) में निहित होगी और वह इस शक्ति का प्रयोग या तो स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

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अनुच्छेद 52
अनुच्छेद 54
⚫ Article 52
⚫ Article 54
——Article 53—
भारतीय संविधान
संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
——Article 53——–
अस्वीकरण - यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से) और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।