इस लेख में हम आस्ट्रो-एशियाटिक भाषा [Austroasiatic languages] पर सरल एवं सहज़ चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे।

बेहतर समझ के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें और इसके पिछले वाले लेख को अवश्य पढ़ें ताकि आप समझ सकें कि भाषाओं के वर्गीकरण का आधार क्या है? 📄 भाषा से संबंधित लेख

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आस्ट्रो-एशियाटिक भाषा
Image Source – Britannica

| आस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार की पृष्ठभूमि

भाषा को मुख्य रूप से दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है – आकृतिमूलक वर्गीकरण (morphological या syntactical classification) और पारिवारिक वर्गीकरण (genealogical classification)।

पारिवारिक वर्गीकरण के तहत विद्वानों ने सम्पूर्ण भाषा को भौगोलिक आधार पर पहले चार खंड में विभाजित किया है, जो कि कुछ इस तरह है; (1) अमेरिकी खंड (2) अफ्रीका खंड (3) यूरेशिया खंड (4) प्रशांत महासागर खंड

इसी में से प्रशांत महासागरीय खंड के तहत 4 भाषा परिवारों को रखा गया है, उसी में से एक है आस्ट्रो-एशियाटिक भाषा [Austroasiatic languages] और इस लेख में हम इसी पर चर्चा करने वाले हैं।

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ऑस्ट्रोएशियाटिक भाषाएं, पूरे दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी भारत में फैले हुए 115 मिलियन से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली लगभग 150 भाषाओं का भंडार है।

इनमें से अधिकांश भाषाओं की अनेक बोलियाँ हैं। खमेर, मोन (Mon) और वियतनामी सांस्कृतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण हैं और इनका इतिहास सबसे लंबा दर्ज है। शेष गैर-नगरीय अल्पसंख्यक समूहों की भाषाएं हैं जिसका इतिहास बहुत पुराना नहीं है।

यह ज्ञात नहीं है कि ऑस्ट्रो-एशियाई भाषा बोलने वाले कहाँ से आए या वे दुनिया के इस हिस्से में कब चले गए। आमतौर पर यह अनुमान लगाया जाता है कि वे 2,000-2,500 ईसा पूर्व के बीच दक्षिणी या दक्षिणपूर्वी चीन में उत्पन्न हुए, और दक्षिण में भारत-चीनी प्रायद्वीप और पश्चिम में भारत में चले गए।

ऑस्ट्रोएशियाटिक भाषाएं मुख्यभूमि दक्षिणपूर्व एशिया और दक्षिण एशिया में एक बड़ा भाषा परिवार हैं। ये भाषाएँ थाईलैंड, लाओस, भारत, म्यांमार, मलेशिया, बांग्लादेश, नेपाल और दक्षिणी चीन के कुछ हिस्सों में फैली हुई हैं और वियतनाम और कंबोडिया की बहुसंख्यक भाषाएँ हैं।

इन भाषाओं में से केवल वियतनामी, खमेर और सोम का ही लंबे समय से स्थापित इतिहास है। आधुनिक राष्ट्रीय भाषाओं के रूप में केवल दो को आधिकारिक दर्जा प्राप्त है: वियतनाम में वियतनामी और कंबोडिया में खमेर

सोम या मोन भाषा म्यांमार और थाईलैंड में एक मान्यता प्राप्त स्वदेशी भाषा है। म्यांमार में, वा (Wa) भाषा वा राज्य (Wa State) की वास्तविक आधिकारिक भाषा है।

संताली भारत की 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक है। बाकी भाषाएँ अल्पसंख्यक समूहों द्वारा बोली जाती हैं और उनकी कोई आधिकारिक स्थिति नहीं है।

ऑस्ट्रोएशियाटिक भाषाओं का वर्गीकरण

ऑस्ट्रो-एशियाई भाषा परिवार को दो मुख्य शाखाओं में विभाजित किया जाता है: मोन-खमेर (Mon-Khmer) और मुंडा (Munda)

मोन-खमेर (Mon-Khmer)

सोम-खमेर भाषाएँ भारत-चीन के लिए स्वदेशी हैं। दो सहस्राब्दियों से अधिक के लिए, ये भाषाएँ दक्षिण पूर्व एशिया की भाषाएँ थीं। वे अभी भी चीन, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस, थाईलैंड, बर्मा, मलेशिया और भारत में बोली जाती हैं।

सबसे महत्वपूर्ण सोम-खमेर भाषाएँ खमेर हैं जिनमें 7 मिलियन वक्ता हैं और वियतनामी भाषा में 68 मिलियन वक्ता हैं।

सोम-खमेर भाषाएँ निम्नलिखित व्याकरणिक विशेषताओं को साझा करती हैं:

अधिकांश में कोई प्रत्यय (suffix) नहीं है, लेकिन उपसर्ग (prefix) और मध्यसर्ग (infixes) काफी सामान्य हैं।

एक ही उपसर्ग संज्ञा या क्रिया वर्ग के आधार पर विभिन्न कार्यों को व्यक्त कर सकता है जिससे यह जुड़ा हुआ है।

बड़ी संख्या में ओनोमेटोपोइक (onomatopoeic) और अन्य अभिव्यंजक शब्द हैं जो ध्वनियों, रंगों, संवेदनाओं, भावनाओं आदि को संदर्भित करते हैं।

ओनोमेटोपोइया (ओनोमेटोपोइक (onomatopoeic)) एक शब्द बनाने की प्रक्रिया है जो ध्वन्यात्मक रूप से नकल करता है, या उसके जैसा दिखता है, या उस ध्वनि का सुझाव देता है जिसका वह वर्णन करता है। आम ओनोमेटोपोइया में जानवरों के शोर जैसे ओइंक, म्याऊ (या मियाओ), दहाड़ और चहक शामिल हैं।

सामान्य शब्द क्रम कर्ता – क्रिया – कर्म (Subject – Verb – Object) है।

मुंडा (Munda)

मुंडा भाषाएं पूर्वी भारत और बांग्लादेश के पहाड़ी और वन क्षेत्रों में लगभग 9 मिलियन लोगों द्वारा बोली जाती हैं। उनकी उत्पत्ति ज्ञात नहीं है, हालांकि आमतौर पर यह माना जाता है कि, वे पूर्वी भारत के मूल निवासी हैं।

सबसे महत्वपूर्ण मुंडा भाषाएं संताली हैं, जिसमें करीब 6 मिलियन वक्ता हैं। इसके अलावा हो (Ho) बोलने वाले की संख्या करीब 1 मिलियन, मुंडारी (Mundari) बोलने वाले की संख्या करीब 2 मिलियन और कोरकू (korku) बोलने वाले की संख्या करीब 500,000 के करीब है।

कई ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाएँ केवल पृथक समुदायों में पाई जाती हैं और अत्यधिक संकटग्रस्त हैं। 169 ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाओं में से केवल 24 (14%) के पास 50,000 से अधिक वक्ता हैं।

मुंडा नाम मैक्समूलर ने दिया था। इसको कोल भी कहते हैं। मुंडा के उत्तरी और दक्षिणी दो वर्ग हैं; पहला, उत्तरी; इसमें कनवारी, शबर आदि भाषाएँ हैं। यह हिमालय की तराई में शिमला से बिहार तक बोली जाती है।

दूसरा, दक्षिणी; इसमें संथाली, मुंडारी, भूमिज आदि भाषाएँ है। संथाली पूर्वी बिहार और पश्चिमी बंगाल में फैली है। मुंडारी छोटा नागपुर, ओड़ीसा, मध्य-प्रदेश और मद्रास में फैली है। संथाली, मुंडारी आदि का सामान्य नाम शेरबारी है।

मुंडा भाषाएं आसपास की इंडो-आर्यन भाषाओं से काफी प्रभावित हैं। वे आकारिकी की जटिलता में सोम-खमेर भाषाओं से भिन्न हैं। इसकी निम्नलिखित विशेषताएं है;

संज्ञाएं लिंग (चेतन और निर्जीव), और संख्या (एकवचन, दोहरी और बहुवचन) के लिए विभक्त हैं।

मुंडा भाषा अस्लिष्ट योगात्मक है। संबंधतत्व मध्य या अंत में लगता है। उपसर्ग भी लगते हैं। ‘प’ बहुवचन सूचक है, जो कि बीच में जुड़ता है। मंझि (मुखिया) > म पं झि (कई मुखिया)। सैन (जाना) > अ सैन (ले जाना, प्रेरणार्थक)।

(1) अशिलिष्ट योगात्मक (simple agglutinating)
इसमें अर्थ तत्व के संग रचना तत्व का भी अंश होता है। लेकिन दोनों की स्थिति बिलकुल स्पष्ट होता है। यानी कि इस वर्ग की भाषाओं में अर्थ तत्व के साथ प्रत्यय या विभक्ति का योग एक जगह होते हुए भी अलग-अलग दिखायी देता है।
इस वर्ग के भाषा का उत्कृष्ट उदाहरण तुर्की है। वहाँ शब्द में अवयव का योग अत्यंत सुंदर होता है। जैसे कि
एव = घर (एकवचन)
एव-देन = घर से,
एव-इम – हमारा घर,
एव-इम-देन = हमारे घर से।
अशिलिष्ट योगात्मक में रचना तत्व और अर्थ तत्व कभी पहले तो कभी मध्य में तो कभी अंत में एवं कभी-कभी पूर्वान्त में जुटता है।

मुंडा भाषा की ध्वनियाँ समृद्ध है। इसमें सभी स्वर, सभी स्पर्श वर्ण (पांचों वर्ग – क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग और प वर्ग), अंत:स्थन, ड़, स, ह हैं। महाप्राण ध्वनियाँ अधिक है। शब्द के आदि में संयुक्त व्यंजन नहीं आता। बलाघात स्वर का प्रयोग होता है जो प्रायः दीर्घ स्वर पर रहता है।

तीन वचन हैं। कीन (द्विवचन), को (बहू)। उदाहरण के लिए, हाड़ (आदमी) हाड़कीन (2 आदमी), हाड़ को (कई आदमी)।

लिंग बोध मूल शब्द में पुरुष और स्त्रीवाचक शब्द जोड़कर कराया जाता है। आँडिया (नर), एंगा (मादा), कूलं (बाघ)। आँडिया कूलं (नर बाघ) एंगा कूलं (बाघिन)

मूल शब्द क्रम कर्ता – कर्म – क्रिया (Subject – Object – Verb) है, जो भारत की इंडो-आर्यन और द्रविड़ भाषाओं की विशिष्ट है।

संज्ञा, क्रिया आदि शब्द विभाग नहीं है। एक ही शब्द प्रकरण और आवश्यकता के अनुसार संज्ञा, क्रिया, क्रिया विशेषण आदि होता है। और विभक्ति का काम परसर्गों से लिया जाता है।

उम्मीद है आस्ट्रो-एशियाटिक भाषा आपको समझ में आया होगा। भाषा विज्ञान को अच्छे से समझने के लिए भाषा पर लिखे अन्य लेखों को भी पढ़ें;

भाषा विज्ञान एवं संबंधित अवधारणा [Basic Concept]
भाषा और बोली में अंतर।Language and Dialect in Hindi
भाषा में परिवर्तन का कारण : संक्षिप्त परिचर्चा [भाषा-विज्ञान]
भाषा का पारिवारिक वर्गीकरण [संक्षिप्त एवं सटीक विश्लेषण]

References,
भाषा विज्ञान [ आस्ट्रो-एशियाटिक भाषा ] DDE MD University [Text Book]
Diffloth, G. (2018, May 14). Austroasiatic languages. Encyclopedia Britannica. https://www.britannica.com/topic/Austroasiatic-languages
Wikipedia contributors. (2022, September 24). Austroasiatic languages. In Wikipedia, The Free Encyclopedia. Retrieved 05:59, September 26, 2022, from https://en.wikipedia.org/w/index.php?title=Austroasiatic_languages&oldid=1112055278
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