इस लेख में हम संविधान की बेसिक्स पर सरल एवं सहज़ चर्चा करेंगे एवं इससे संबंधित सभी जरूरी प्रश्नों के उत्तर समझेंगे, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
“Constitution is not a mere lawyer’s document, it is a vehicle of Life, and its spirit is always the spirit of Age.”
“The Indian Constitution is workable and flexible enough to meet the demands and the challenges of the ever-changing times.”
– B. R. Ambedkar
“We are a socialist, secular, and democratic republic, and the ideals of justice, liberty, equality, and fraternity enshrined in our Constitution are precious to us.”
– Pranab Mukherjee
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| संविधान क्या है?
संविधान का आशय ‘’श्रेष्ठ विधान’’ से है; यानी कि ऐसा विधान जो इतना श्रेष्ठ है कि किसी व्यक्ति, समाज या संस्था को उसमें श्रद्धा रखने के लिए बाध्य करता है या उचित तर्क प्रस्तुत करता है।
मोटे तौर पर कहें तो ये एक ऐसा दस्तावेज़ होता है जो ‘व्यक्ति’ और ‘राज्य’ के बीच सम्बन्धों को स्पष्ट करता है। कैसे?
– एक लोकतांत्रिक देश में व्यक्ति स्वतंत्रता का प्रतीक होता है या यूं कहें कि लोकतंत्र की अवधारणा ही इसी बात पर टिकी हुई है कि व्यक्ति स्वतंत्र रहें।
वहीं दूसरी ओर राज्य शक्ति का प्रतीक होता है यानी कि देश को चलाने के लिए सारी की सारी आवश्यक शक्तियाँ राज्य के पास होती है।
ऐसे में राज्य अपनी शक्तियों का गलत उपयोग न करें और व्यक्ति अपनी आजादी का गलत उपयोग न करें, इन्ही दोनों में संतुलन स्थापित करने के लिए जो दस्तावेज़ बनाए जाते हैं, वही संविधान है।
| किसी देश को संविधान की जरूरत ही क्यों पड़ती है?
जैसा कि हमने ऊपर बात की संविधान एक श्रेष्ठ विधान होता है ऐसे में सभी देश (चाहे वो लोकतंत्र हो या न हो) इस तरह के विधान को सूचीबद्ध करना चाहेगा ताकि देश या राष्ट्र जो भी हो, चलती रहे।
उदाहरण के लिए अफ़ग़ानिस्तान के तालिबान को लें तो वे शरिया कानून के हिसाब से देश को चलाना चाहता है यानी कि हम ये समझ सकते हैं कि वो अपने देश का संविधान उस शरिया कानून को ही मानता है।
कुल मिलाकर यहाँ कहने का भाव ये है कि जिन देशों के पास संविधान है जरूरी नहीं है वो लोकतांत्रिक देश ही हो, उदाहरण के लिए आप कुछ इस्लामिक देश को ले सकते हैं जैसे कि सऊदी अरब, ईरान आदि। ईरान एक धर्मतंत्र आधारित देश है जो थोड़े-बहुत लोकतांत्रिक मूल्यों को अपने में समेटे हुआ है पर संविधान तो है।
यहीं पर कॉन्सेप्ट आता है संविधान और संविधानवाद का, ये क्या चीज़ है आइये समझते हैं।
जैसे कि हमने ऊपर अफ़ग़ानिस्तान का उदाहरण लिया जहां पर तालिबान का शासन है। जिसका कि संविधान शरिया या शरीयत है। यहाँ पर शासन को संभालने वाले जो मुट्ठीभर लोग है वो अप्रतिबंधित शक्तियों का इस्तेमाल करता है जबकि दूसरी ओर जनता के ऊपर ढ़ेरों प्रतिबंध है।
कहने का अर्थ ये है कि उस देश के सभी लोग संविधान के अनुसार नहीं चलते है बल्कि कुछ लोग उससे भी ऊपर है जो कि अपने सुविधानुसार संविधान को रूप दे सकता है। इसी स्थिति को कहा जा सकता है कि वहाँ संविधान तो है लेकिन संविधानवाद नहीं। इसे दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि वहाँ जीवंत संविधान नहीं है।
यहाँ पर ये याद रखिए कि संविधान संहिताबद्ध (codified) भी हो सकती है और नहीं भी। संहिताबद्ध संविधान का मतलब सारे संवैधानिक प्रावधानों का एक ही दस्तावेज़ में सम्मिलित होना है।
कुछ देशों को छोड़ दें तो दुनिया के ज़्यादातर देश के पास एक संहिताबद्ध संविधान है जैसे कि भारत, ब्राज़ील, फ्रांस, अमेरिका आदि…..। कुछ ऐसे भी देश हैं जो एक लोकतंत्र तो है लेकिन वहाँ पर संहिताबद्ध संविधान नहीं है जैसे कि यूनाइटेड किंगडम, न्यूजीलैंड, इस्राइल आदि।
इतना समझने के बाद अब अगर हम ये समझें कि किसी देश को संविधान की जरूरत क्यों पड़ती है तो कुल मिलाकर किसी देश को संविधान की जरूरत पड़ती है;
- क्योंकि संविधान उन आदर्शों या बुनियादी नियमों को सूचीबद्ध करता है जिनके आधार पर नागरिक अपने देश को अपने इच्छा और जरूरत के अनुसार रच सकता है। ऐसा कैसे?
हमारी कुछ व्यक्तिगत, पारिवारिक या सामाजिक आकांक्षाएँ होती है कि काश! चीज़ें ऐसी होती। जैसे कि अगर हम ये सोचते हैं कि काश! सामाजिक-आर्थिक असमानता पूरी तरह से खत्म हो जाता। जाहिर है संविधान में हम ऐसी व्यवस्था को शामिल करके इसे हासिल कर सकते है।
किसी देश को संविधान की जरूरत पड़ती है;
- क्योंकि संविधान ये स्पष्ट करता है कि समाज में निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होगी और सरकार कैसे बनेगी। यानी कि दूसरे शब्दों में कहें तो संविधान देश की राजनीतिक व्यवस्था को तय करता है।
यहाँ राजनीतिक व्यवस्था का मतलब हमारी आम समस्याओं या बुनियादी समस्याओं से छुटकारा दिलाने एवं हमारी विकास को सुनिश्चित करने वाली औपचारिक व्यवस्था से है।
किसी देश को संविधान की जरूरत पड़ती है;
- क्योंकि संविधान व्यक्ति और राज्य के लिए एक लक्ष्मण रेखा खींचती है ताकि दोनों को हमेशा पता रहे कि हमें इसी के दायरे में रहना है। दूसरे शब्दों में कहें तो संविधान हमें खुद से ही खुद को बचाता है। ऐसा क्यों?
ऐसा इसीलिए क्योंकि इंसानी फ़ितरत होता है बंधनों से मुक्त होना पर ऐसा व्यक्तिगत निर्णय कभी-कभी समाज के लिए या खुद उसके लिए घातक साबित हो सकता है ऐसे में संविधान ऐसी चीज़ें न करने को बाध्य करता है।
इस बात को आप और भी अच्छी तरह से समझेंगे जब मौलिक अधिकार आप समझ लेंगे। आपके अंदर ये बोध आ जाएगा कि बेशक बंधनों से मुक्त होना हमारी फ़ितरत है पर युक्तियुक्त बंधन हमारी जरूरत है।
किसी देश को संविधान की जरूरत पड़ती है;
- क्योंकि संविधान अल्पसंख्यकों तथा समाज के कमजोर एवं पिछड़े वर्ग के हितों की रक्षा करता है। ऐसा ये अंतर-सामुदायिक वर्चस्व (inter-community domination) एवं अंतः-सामुदायिक वर्चस्व (intra-community domination) के निरंकुशता को क़ाबू करके करता है।
[नोट – यहाँ अंतर-सामुदायिक वर्चस्व का मतलब एक समुदाय द्वारा दूसरे समुदाय को अपने हिसाब से चलाने से है वहीं अंतः-सामुदायिक वर्चस्व का मतलब एक ही समुदाय के भीतर कुछ सामाजिक-आर्थिक रूप से सामर्थ्यवान लोगों द्वारा दूसरे लोगों को चलाये जाने की कोशिश करने से है।]
Q. आम आदमी को संविधान क्यों पढ़ना चाहिए?
आमतौर पर हमारी सामान्य धारणा यही होती है कि संविधान पढ़ना राजनीति विज्ञान के छात्रों का काम है पर चूंकि हम एक संवैधानिक व्यवस्था वाले देश में रहते हैं जहां हमारे निर्णय इससे प्रभावित होता है तो हमें इसके बारे में जरूर पढ़ना चाहिए और इससे हमें क्या फ़ायदा मिलेगा आइये जानते हैं;
1. हमें राज्य की संरचना एवं शक्तियों के विभाजन का ज्ञान होता है-
हम जान पाते हैं कि हमारा राज्य तीन ऊर्ध्वाधर (vertical) खंडों में विभक्त है जिसे कि हम केंद्र (centre), राज्य (state) एवं स्थानीय स्व-शासन (local governance) कहते हैं। और इनके बीच शक्तियों का विभाजन इस कुछ इस तरह से हुआ है कि केंद्र परिवार की मुखिया की भूमिका में नज़र आता है और बांकी सब परिवार के सदस्य की भूमिका में, जिसे निर्णय लेने की पर्याप्त शक्ति प्राप्त है।
2. हमें सरकार की प्रकृति एवं उसके अंगों का ज्ञान होता है-
हम समझ पाते हैं कि हमारी सरकार संसदीय शासन व्यवस्था पर आधारित है, हम समझ पाते हैं कि जिसे हम सरकार (Government) कहते हैं दरअसल वो और कुछ नहीं बल्कि विधायिका (Legislature) + कार्यपालिका (executive) + न्यायपालिका (Judiciary) है।
3. हमें हमारे अधिकार एवं कर्तव्य का ज्ञान होता है-
हम समझ पाते हैं कि एक लोकतांत्रिक देश का नागरिक होने के नाते हमें कितने अधिकार मिलते हैं। जिसकी मदद से हम अपना चहुंमुखी विकास कर पाने में सक्षम तो होते ही है साथ ही साथ एक बेहतर समाज का निर्माण भी हम कर पाते हैं।
[नोट – चहुंमुखी विकास का आशय ऐसे विकास से होता है जिसमें हम भौतिक, सामाजिक, मानसिक एवं नैतिक; सभी क्षेत्रों में विकास करते हैं।]
इतना पढ़ने के बाद उम्मीद है संविधान के संबंध में आपके मन में एक आधार तैयार हो चुका होगा। अब आइये हम ये समझते हैं कि भारतीय संविधान की ख़ासियत क्या है?
| भारतीय संविधान की ख़ासियतें
संविधान के बारे में इतना समझने के बाद ये हमारे लिए जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर कौन सी बात भारतीय संविधान को ख़ास बनाती है। बहुत सारी ऐसी चीज़ें है जो भारतीय संविधान को खास बनाती है पर उनमें से जो सबसे महत्वपूर्ण है और जो अपने आप में लगभग सभी मूल बातों को समेट लेता है वो है ये तीन ख़ासियतें (इसे हम संविधान का लक्षण भी कह सकते हैं) :-
- संघवाद (federalism)
- संसदीय शासन व्यवस्था (Parliamentary system)
- मौलिक अधिकार (fundamental rights)
| संघवाद (federalism) – संघवाद, यानी कि एकल राजनैतिक व्यवस्था के अंतर्गत एक ऐसा मिश्रित शासन व्यवस्था जहां एक केंद्रीय सरकार होती है और कई प्रांतीय सरकार और दोनों की शक्तियों का विभाजन इस तरह से किया जाता है जिससे कि दोनों स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकने और उसे क्रियान्वित कर सकने में सक्षम हो सके।
भारत के संबंध में इसके क्या मायने है इसे समझने के लिए दिए गए लेख को पढ़ें – भारत की संघीय व्यवस्था
| संसदीय व्यवस्था (Parliamentary System of Govt.) – संसदीय व्यवस्था, यानी कि एक ऐसी व्यवस्था जिसका केंद्र, संसद हो। दूसरे शब्दों में कहें तो इस व्यवस्था में कार्यपालिका अपनी नीतियों एवं कार्यों के लिए विधायिका के प्रति उत्तरदायी होता है।
इनको विस्तार से समझने के लिए दिए गए लेख को पढ़ें – संसदीय व्यवस्था
| मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) – मूल रूप से संविधान में 7 मूल अधिकार दिये गए थे जैसा कि आप नीचे देख पा रहे हैं। लेकिन यहाँ एक बात याद रखने योग्य है कि संपत्ति का अधिकार को 44वें संविधान संसोधन 1978 द्वारा हटा दिया गया है। इसीलिए अब सिर्फ 6 मूल अधिकार ही है।
मौलिक अधिकार |
1. समता का अधिकार, अनुच्छेद 14 – 18 2. स्वतंत्रता का अधिकार, अनुच्छेद 19 – 22 3. शोषण के विरुद्ध अधिकार, अनुच्छेद 23 – 24 4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, अनुच्छेद 25 – 28 5. शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार, अनुच्छेद 29 – 30 ❌ 6. संपत्ति का अधिकार – अनुच्छेद 31 6. संवैधानिक उपचार का अधिकार, अनुच्छेद 32 |
इन सभी अधिकारों को विस्तार से समझने के लिए दिए गए लेख को पढ़ें – Fundamental Rights
Q. संविधान, विधान/कानून/अधिनियम, नियम एवं परिनियम क्या है?
जैसा कि अब तक हम जान चुके है संविधान का निर्माण संविधान सभा ने किया था। यानी कि संविधान बन चुका है संसद उसे दोबारा नहीं बना सकती है। संसद जो बना सकती है वो कानून या विधान या फिर अधिनियम।
दूसरे शब्दों में कहें तो संविधान संसद को गाइड करता है कि वो क्या बना सकता है और क्या नहीं। यानी कि संसद जो भी बनाएगा उसे संविधान सम्मत होना चाहिए।
जब एक बार कानून या विधान या अधिनियम (Act) बन जाता है तो उसे लागू करने के लिए फिर से कुछ कानून की जरूरत पड़ती है जो कि संसद द्वारा बनाए गए कानून जितना व्यापक नहीं होता है लेकिन लागू करने के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण होता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो जिस तरह कानून को संविधान सम्मत होना पड़ता है उसी तरह नियम (Rules) को कानून सम्मत होना पड़ता है। यानी कि नियम कानून से नीचे की चीज़ है।
और उससे भी नीचे या कभी-कभी लगभग उसी के समकक्ष छोटे कानून जो बनते हैं उसे परिनियम (regulations) कहा जाता है।
Q.संविधान में क्या सब सम्मिलित है?
आमतौर पर हमारे लिए संविधान सिर्फ वो किताब है जिसमें प्रस्तावना, 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ है। लेकिन संविधान सिर्फ इतना भर नहीं है, तो फिर क्या है इसे आप इस समीकरण से समझ सकते है;
संविधान = संविधान की किताब + उच्चतम न्यायालय के निर्णय + संविधान संशोधन + विद्वानों द्वारा संविधान के गूढ़ता को सर्वग्राह्य बनाने के लिए लिखी गई विधिक भाष्य या कमेंट्री + संविधान का अभिसमय या परंपरा।
नोट – उच्चतम न्यायालय के निर्णय का मतलब उन निर्णयों से है जो संविधान की व्याख्या करता है। जैसे कि केशवानन्द भारती मामले में मौलिक अधिकारों के संशोधन पर दिया गया निर्णय।
संविधान संशोधन (constitutional amendment) का मतलब संसद द्वारा संविधान में की गई जोड़ या घटाव है।
विधिक भाष्य (legal commentary) संविधान का ही एक्स्टेंडेड और सिंप्लिफाइड फ़ारमैट होता है।
अभिसमय या परंपरा (convention or tradition) से आशय उन चीजों से है जो कि कहीं लिखा नहीं हुआ है फिर भी संविधान के मानने वाले उसे फॉलो करते हैं।
Q.संविधान में कितने अनुच्छेद, कितने भाग एवं कितनी अनुसूचियाँ है?
भारत के संविधान को विश्व का सबसे लंबा संविधान होने का दर्जा प्राप्त है जो कि सही भी क्योंकि इसमें कुल 395 अनुच्छेद है जो कि 22 भागों में बंटा हुआ है। साथ ही 12 अनुसूचियाँ भी है जो कि मूल रूप से 8 था।
फ़िर भी बहुत जगह हमें पढ़ने को मिलता है की अनुच्छेदों की संख्या 450 से अधिक हो गया है और संविधान का भाग भी 22 से 25 हो गया है।
ये एक तरह से सही भी है, क्योंकि पिछले 75 से अधिक सालों में 100 से अधिक बार संविधान का संशोधन हो चुका है। और बहुत सारी चीज़ें जोड़ी और घटायी गई है।
जैसे कि भाग 7 को खत्म कर दिया गया और कुछ नए भाग – भाग 4क, भाग 9क, भाग 9ख एवं भाग 9ग जोड़ा गया। इस नजरिये से देखें तो संविधान के 25 भाग हो जाते हैं।
लेकिन यहाँ ध्यान रखने वाली बात ये है कि अंतिम रूप से संविधान मेँ 395 अनुच्छेद ही है और 22 भागों मेँ बंटा हुआ है ऐसा इसीलिए क्योंकि जो भी परिवर्तन हुए है वो सब इसी के बीच मेँ हुए हैं कोई नया भाग (भाग 23) या कोई नया अनुच्छेद (अनुच्छेद 396) नहीं जोड़ा गया है। हाँ अनुसूचियाँ जरूर बढ़ी है जो कि पहले 8 था लेकिन अब 12 है।
अब सवाल ये आता है कि संविधान के किस भाग में क्या-क्या चीज़ें है यानी कि अगर हम संविधान खोलें तो हमें क्या सब पढ़ने या जानने को मिलेगा और किस भाग और अनुच्छेद से मिलेगा? तो आप इसके लिए इस चार्ट को देख सकते हैं, इससे आपको ये स्पष्ट हो जाएगा कि किस भाग के तहत क्या आता है।
भारतीय_संविधान की एक संक्षिप्त तस्वीर
संविधान का भाग | विवरण | अनुच्छेद की संख्या |
1 | संघ और उसका क्षेत्र | 1 से 4 तक |
2 | नागरिकता | 5 से 11 तक |
संविधान के भाग 1 में हम भारत के विवरण के बारे में पढ़ सकते हैं जैसे कि भारत क्या है, भारत में नए राज्य कौन जोड़ सकता है एवं सीमाओं में परिवर्तन कौन कर सकता है आदि।
संविधान के भाग 2 में हम संविधान लागू होने के समय किस-किस को नागरिकता मिला और किसे मिल सकता था उसके बारे में जानते हैं।
3 | मौलिक अधिकार | 12 से 35 तक |
संविधान का यह भाग मौलिक अधिकारों के बारे में है। इसे हमने ऊपर संक्षिप्त रूप में चर्चा भी किया है।
4 | राज्य के नीति निदेशक तत्व | 35 से 51 तक |
संविधान के इस भाग में हम राज्य के नीति निदेशक तत्व, यानी कि वे तत्व जिसका कि समावेशन राज्य के नीतियों में होनी चाहिए; की चर्चा की गई है।
4क | मौलिक कर्तव्य | 51क |
संविधान का ये भाग मूल संविधान का हिस्सा नहीं था बल्कि इसे 42वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा संविधान का हिस्सा बनाया गया। ये भाग देश के नागरिकों के मौलिक कर्तव्य के बारे में है।
5 | संघ सरकार | 52 से 151 तक |
इस भाग में 5 अध्याय है। अलग-अलग अध्याय में हम संघ सरकार के अलग-अलग घटकों के बारे में पढ़ते हैं।
अध्याय 1 में हम कार्यपालिका के बारे में पढ़ते हैं जो कि अनुच्छेद 52 से लेकर 78 तक आता है। इसमें हम राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद एवं महान्यायवादी के बारे में पढ़ते है।
अध्याय 2 में हम संसद (Parliament) के बारे में पढ़ते हैं, जो कि अनुच्छेद 79 से लेकर 122 तक आता है। जिसके अंतर्गत लोकसभा, राज्यसभा एवं इसके विभिन्न प्रावधान को पढ़ते हैं।
अध्याय 3 में हम राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ यानी कि अध्यादेश जारी करने की शक्ति के बारे में पढ़ते हैं जो कि अनुच्छेद 123 के तहत आता है।
अध्याय 4 में हम संघीय न्यायालय यानी कि उच्चतम न्यायालय के बारे में पढ़ते हैं जो कि अनुच्छेद 124 से लेकर 147 तक आता है।
अध्याय 5 में हम महानियंत्रक एवं लेखा परीक्षक (CAG) के बारे में पढ़ते हैं जो कि अनुच्छेद 148 से लेकर 151 तक आता है।
6 | राज्य सरकार | 152 से 237 तक |
संविधान का यह भाग 6 अध्यायों में बंटा हुआ है जो कि राज्य सरकार के बारे में बात करता है। यानी कि राज्यपाल, मुख्यमंत्री, राज्य मंत्रिपरिषद, महाधिवक्ता एवं उच्च न्यायालय।
अध्याय 1 में परिभाषा दिया हुआ है जो की अनुच्छेद 152 के अंतर्गत आता है। चूंकि जम्मू-कश्मीर आम राज्यों की तरह नहीं था इसीलिए उसके बारे में यहाँ लिख दिया गया था।
अध्याय 2 में हम कार्यपालिका के बारे में पढ़ते हैं जो कि अनुच्छेद 153 से लेकर 167 तक आता है। इसमें हम मुख्यमंत्री, राज्यपाल, मंत्रिपरिषद एवं महाधिवक्ता के बारे में पढ़ते है।
अध्याय 3 में हम राज्य विधानमंडल के बारे में पढ़ते हैं, जो कि अनुच्छेद 168 से लेकर 212 तक आता है। जिसके अंतर्गत विधानसभा, विधान परिषद एवं इसके विभिन्न प्रावधान को पढ़ते हैं।
अध्याय 4 में हम राज्यपाल की विधायी शक्तियाँ यानी कि अध्यादेश जारी करने की शक्ति के बारे में पढ़ते हैं जो कि अनुच्छेद 213 के तहत आता है।
अध्याय 5 में हम राज्यों के न्यायालय यानी कि उच्च न्यायालय के बारे में पढ़ते हैं जो कि अनुच्छेद 214 से लेकर 232 तक आता है।
अध्याय 6 में हम अधीनस्थ न्यायालय के बारे में पढ़ते हैं जो कि अनुच्छेद 232 से लेकर 237 तक आता है।
7 (निरसित) | राज्य से संबंधित पहली अनुसूची का खंड ‘ख’ | 238 |
दरअसल अब ये भाग अस्तित्व में नहीं है इसे 7वां संविधान संशोधन 1956 द्वारा हटा दिया गया था। क्योंकि इसी संशोधन अधिनियम से राज्यों के बारे में एक नया व्यवस्था लाया गया था।
8 | केंद्रशासित प्रदेश | 239 से 242 तक |
इस भाग में केंद्रशासित प्रदेश और उससे संबंधित विभिन्न प्रावधानों को पढ़ते हैं। जैसे कि अगर दिल्ली के बारे में आपको जानना हो।
9 | पंचायतें | 243 से 243 ‘O’ तक |
संविधान के इस भाग में हम पंचायती राज व्यवस्था के बारे में जान पाते हैं। जैसे कि ग्राम सभा, पंचायत समिति, जिला परिषद एवं इससे जुड़े सभी प्रावधान।
9 A | नगरपालिकाएं | 243 P से 243 ZG तक |
संविधान के इस भाग में हम शहरी स्थानीय स्व-शासन के बारे में जान पाते हैं जैसे कि नगर पंचायत, नगरपालिका, नगरनिगम आदि।
9 B | सहकारी समितियां | 243 ZH से 243 ZT तक |
संविधान के इस भाग में हम सहकारी समिति एवं इससे जुड़े विभिन्न प्रावधान को पढ़ते है।
10 | अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र | 244 से 244 ‘क’ तक |
संविधान का यह भाग अनुसूचित और जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है।
11 | केंद्र-राज्य संबंध | 245 से 263 तक |
संविधान के इस भाग में हम केंद्र-राज्य सम्बन्धों के बारे में पढ़ते हैं, जैसे कि केंद्र-राज्य विधायी संबंध, केंद्र-राज्य प्रशासनिक संबंध एवं अंतरराज्यीय संबंध।
12 | वित्त, संपत्ति, संविदाएं एवं वाद | 264 से 300 ‘क’ तक |
संविधान के इस भाग में हम विभिन्न प्रकार के टैक्सों, वित्त आयोग, टैक्स से छूट, भारत सरकार या राज्य सरकार द्वारा ऋण लेने की व्यवस्था आदि के बारे में समझते हैं।
13 | भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य एवं समागम | 301 से 307 तक |
संविधान के इस भाग में हम भारत के राज्यक्षेत्र में व्यापार एवं वाणिज्य आदि की स्वतंत्रता या इस पर लगने वाले प्रतिबंधों के बारे में पढ़ते हैं।
14 | संघ और राज्य के अधीन सेवाएँ | 308 से 323 तक |
संविधान के इस भाग में हम मुख्य रूप से संघ लोक सेवा आयोग एवं राज्य लोक सेवा आयोग के बारे में पढ़ते हैं।
14 A | न्यायाधिकरण | 323 A से 323 B तक |
संविधान का यह भाग हमेशा से संविधान का हिस्सा नहीं था इसे 1976 में जोड़ा गया। इसके तहत हम अधिकरण (Tribunals) के बारे में पढ़ते हैं।
15 | निर्वाचन | 324 से 329 ‘क’ तक |
संविधान के इस भाग में हम चुनाव आयोग एवं इससे संबंधित विभिन्न प्रावधानों के बारे में पढ़ते हैं।
16 | कुछ वर्गों के संबंध में विशेष उपबंध | 330 से 342 तक |
संविधान के इस भाग में बहुत सारी चीज़ें आती है जैसे कि लोकसभा में अनुसूचित जाति एवं जनजाति का आरक्षण, आंग्ल-भारतीय को मनोनीत किया जाना (जिसे कि 2020 में समाप्त कर दिया गया) आदि।
17 | राजभाषा | 343 से 351 तक |
संविधान के इस भाग में हम संघ की राजभाषा, राज्य की राजभाषा, उच्चतम न्यायालय की राजभाषा आदि के बारे में पढ़ते हैं।
18 | आपात उपबंध | 352 से 360 तक |
संविधान के इस भाग में हम राष्ट्रीय आपातकाल एवं राष्ट्रपति शासन आदि के बारे में विस्तार से पढ़ते हैं।
19 | प्रकीर्ण | 361 से 367 तक |
संविधान के इस भाग में हम अलग-अलग प्रकार के अलग-अलग प्रावधानों के बारे में पढ़ते हैं। जैसे कि राष्ट्रपति और राज्यपालों का संरक्षण, केंद्र द्वारा दिये गए निदेश का राज्यों द्वारा पालन न करने पर पड़ने वाला प्रभाव आदि।
20 | संविधान का संशोधन | 368 |
संविधान के इस भाग में हम संविधान के संशोधन करने से संबन्धित प्रावधानों के बारे में पढ़ते हैं।
21 | अस्थायी, संक्रामणशील एवं विशेष प्रबंध | 369 से 392 तक |
संविधान के इस भाग में विभिन्न राज्यों के लिए लागू विशेष उपबंध पर अलग-अलग अनुच्छेदों में चर्चा की गई है।
22 | संक्षिप्त नाम, प्रारम्भ, हिन्दी में प्राधिकृत पाठ एवं निरसन | 393 से 395 तक |
इसी तरह से अगर हम अनुसूचियों की बात करें तो अनुसूचियों में निम्नलिखित चीज़ें पढ़ने को मिलती है।
अनुसूची 1 – अनुसूची 1 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों की लिस्टिंग के बारे में है।
अनुसूची 2 – सरकारी ओहदे पर बैठे लोगों के वेतन एवं भत्तों के बारे में है। खासकर के राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश आदि के बारे में।
अनुसूची 3 – ये अनुसूची राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश आदि द्वारा शपथ ली जाने वाली कथनों के बारे में है।
अनुसूची 4 – यह अनुसूची राज्यसभा में सीटों के आवंटन के बारे में है।
अनुसूची 5 – यह अनुसूची अनुसूचित जाति एवं जनजाति के प्रशासन एवं नियंत्रण आदि के बारे में है।
अनुसूची 6 – असम, मेघालय, त्रिपुरा एवं मिज़ोरम राज्यों में जनजातीय प्रशासन से संबन्धित है।
अनुसूची 7 – यह अनुसूची संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची के बारे में है।
अनुसूची 8 – यह अनुसूची संविधान द्वारा मान्यताप्राप्त भाषाओं के बारे में है जिसमें कि अभी 22 भाषाएँ है।
अनुसूची 9 – यह अनुसूची पहला संविधान संशोधन द्वारा बनाया गया था। इसमें जो भी विषय रखा जाता है उसकी न्यायिक समीक्षा आमतौर पर न्यायालय नहीं करता है।
अनुसूची 10 – इसे 52वें संविधान संशोधन द्वारा बनाया गया, इसमें दल-बदल से संबन्धित निरर्हता (disqualification) के बारे में प्रावधान है।
अनुसूची 11 – इसे 73वें संविधान संशोधन द्वारा बनाया गया इसमें पंचायती राज से संबन्धित कार्यकारी विषयों को रखा गया है।
अनुसूची 12 – इसे 74वें संविधान संशोधन द्वारा बनाया गया, इसमें नगरपालिका से संबन्धित कार्यकारी विषयों को रखा गया है।
Q.संविधान बनाने वाला सबसे पहला देश कौन था?
USA पहला देश था जिसने संविधान बनाया था। इसने 21 जून 1788 को अपना संविधान बनाया था और संघीय गणतन्त्र का रास्ता अपनाया था।
Q. हमारे देश के संविधान में किन देशों से क्या-क्या चीज़ें ली गई है?
| अमेरिका – • मूल अधिकार • न्यायपालिका की स्वतंत्रता • न्यायिक पुनरावलोकन का सिद्धांत • उपराष्ट्रपति का पद • राष्ट्रपति पर महाभियोग।
| कनाडा – • सशक्त केंद्र के साथ संघीय व्यवस्था • अवशिष्ट शक्तियों का केंद्र में निहित होना • केंद्र द्वारा राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति • उच्चतम न्यायालय का परामर्शी न्याय निर्णयन।
| ब्रिटेन – • संसदीय शासन • विधि का शासन • विधायी प्रक्रिया • एकल नागरिकता • मंत्रिमंडल प्रणाली • परमाधिकार लेख • संसदीय विशेषाधिकार • द्विसदनीय व्यवस्था।
| आयरलैंड – • राज्यसभा के लिए सदस्यों का नामांकन • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत • राष्ट्रपति की निर्वाचन पद्धति।
| ऑस्ट्रेलिया – • समवर्ती सूची • व्यापार, वाणिज्य एवं समागम की स्वतंत्रता • दोनों सदनों की संयुक्त बैठक।
| भारत शासन अधिनियम 1935 – • संघीय तंत्र • राज्यपाल का कार्यालय • न्यायपालिका • लोक सेवा आयोग • आपातकालीन उपबंध।
इसके साथ ही मूल कर्तव्य रूस से, संविधान में संशोधन की प्रक्रिया दक्षिण अफ्रीका से एवं गणतंत्रात्मक फ्रांस से लिया गया।
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– संविधान की बेसिक्स –