इस लेख में हम भाषा विज्ञान एवं इससे संबंधित विभिन्न अवधारणाओं (Concept) पर सरल एवं सहज चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे।

भाषा पर लिखे गए लेखों में आप इसे पहला मान सकते हैं। इसे पूरा पढ़ें एवं भाषा से संबंधित मूल अवधारणाओं को समझें, साथ ही बेहतर समझ के लिए, इस विषय पर लिखे गए अन्य लेखों को भी पढ़ें। 📄 भाषा से संबंधित लेख

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भाषा विज्ञान

| भाषा विज्ञान : भूमिका

महाकवि दण्डी ने अपने महान ग्रंथ ‘काव्यादर्श’ में भाषा की महता बताते हुए कहा कि ‘यह सम्पूर्ण भुवन अंधकारपूर्ण हो जाता, यदि संसार में शब्द स्वरूप ज्योति अर्थात, भाषा का प्रकाश न होता।’ और ये सही भी है, भाषा (Language) के बिना इंसानों की ज़िंदगी पृथ्वी पर मौजूद किसी अन्य जीवों की तरह ही होती।

चूंकि भाषा का इतिहास सैंकड़ों सालों का रहा है, और इसके कई आयाम हमारे सामने है, तो ऐसे में भाषा का अध्ययन बहुत ही जरूरी हो जाता है, भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन को भाषा विज्ञान या भाषा शास्त्र कहा जाता है, जिसके लिए इंग्लिश में LInguistics या Philology शब्द का इस्तेमाल किया जाता है।

आधुनिक विषय के रूप में भाषा विज्ञान का सूत्रपात यूरोप में साल 1786 में सर विलियम जोन्स द्वारा किया गया माना जाता है। विलियम जोन्स ने ही सर्वप्रथम ये संभावना जताई थी कि संस्कृत, ग्रीक एवं लैटिन का मूल एक ही हो सकता है।

हालांकि भाषा संबंधी अध्ययन की प्राचीनता की बात करें तो “शिक्षा” नामक वेदांग में भाषा संबंधी सूक्ष्म चर्चा उपलब्ध होती है। ध्वनियों के उच्चारण, अवयव, स्थान, प्रत्यय आदि का इस ग्रंथ में विस्तृत वर्णन मिलता है।

वेदों के अर्थ को समझने में सहायक शास्त्र को वेदांग कहा जाता है। शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त – ये छः वेदांग है।

इसके अलावा एक अन्य वेदांग ‘निरुक्त’ में शब्दों की व्युत्पत्ति, धातु, उपसर्ग-प्रत्यय आदि विषयों पर वैज्ञानिक विश्लेषण प्राप्त होता है। इसके साथ ही भर्तहरि के ग्रंथ ‘वाक्य पदीय’ के अंतर्गत शब्द के स्वरूप का सूक्ष्म गहन एवं व्यपाक चिंतन उपलब्ध होता है।

कहने का अर्थ है कि भाषा पर अध्ययन प्राचीन काल से ही जारी है। हालांकि आज इसके अध्ययन में कई आयाम जुड़ गए हैं, तो आइये इस पर टॉपिक वाइज़ विस्तार पूर्वक चर्चा करते हैं;

भाषा क्या है?

भाषा का मतलब होता है – व्यक्त वाक्; यानी कि ऐसी ध्वनियाँ जिसका मतलब इंसान समझता हो। पशु-पक्षी भी ध्वनियाँ निकालते हैं, लेकिन वो चूंकि हमें समझ में नहीं आता इसीलिए उसे अव्यक्त वाक् कहा जाता है।

भाषा संप्रेषण (Communication) का एक माध्यम है। दूसरे शब्दों में कहें तो अपने विचारों, मनोभावों या कल्पनाओं आदि को अभिव्यक्त करने का माध्यम, भाषा है।

विकिपीडिया के अनुसार, भाषा, संप्रेषण का एक संरचित प्रणाली (structured system) है जो कि बोलने, लिखने, हाव-भाव या संकेतों पर आधारित होता है।

भाषा विद्वान हेनरी स्वीट के अनुसार, “भाषा शब्दों में संयुक्त भाषण-ध्वनियों के माध्यम से विचारों की अभिव्यक्ति है। भाषा कमाल की चीज़ है आप इस लेख को पढ़ रहे हैं यानी कि भाषा अपनी भूमिका निभा रही है।

भारत में बोली जाने वाली भाषाएँ कई भाषा परिवारों से संबंधित हैं, जिनमें प्रमुख हैं 78.05% भारतीयों द्वारा बोली जाने वाली इंडो-यूरोपीय भाषाएँ और 19.64% भारतीयों द्वारा बोली जाने वाली द्रविड़ भाषाएँ, दोनों परिवारों को मिलाकर कभी-कभी भारतीय भाषाओं के रूप में जाना जाता है। शेष 2.31% आबादी द्वारा बोली जाने वाली भाषाएँ ऑस्ट्रोएशियाटिक, चीन-तिब्बती, ताई-कडाई और कुछ अन्य लघु भाषा परिवारों से संबंधित हैं।

भाषा विज्ञान है या कला ?

भाषा के संबंध में इस बात पर काफी चर्चाएं हुई है कि भाषा विज्ञान को विज्ञान कहा जाना चाहिए या फिर कला।

तो कला चूंकि व्यक्ति प्रधान या पूर्णतः वैयक्तिक होती है और उसका संबंध मानव हृदय की रागात्मक वृति से होता है, इसीलिए इसका मुख्य उद्देश्य सौंदर्यानुभूति कराना या आनंद प्राप्त करना होता है न कि किसी वस्तु का तात्विक विश्लेषण करना।

जबकि विज्ञान की बात करें तो उसका उद्देश्य वस्तु का तात्विक विश्लेषण करना और बौद्धिक चिंतन को प्रखर बनाना होता है। इसके अलावा भाषा विज्ञान के निष्कर्ष किसी व्यक्ति, राष्ट्र या काल के आधार पर परिवर्तित नहीं होता है, इसीलिए भाषा विज्ञान को विज्ञान की श्रेणी में रखा जाना उचित प्रतीत है।

हालांकि यहाँ यह याद रखिए कि भाषा विज्ञान को अभी भी भौतिकी और रसायन विज्ञान जैसे विशुद्ध विज्ञान की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। ऐसा इसीलिए क्योंकि भाषा विज्ञान के सभी प्रयोग अभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं हुए हैं, इसीलिए इसके निष्कर्ष को अभी भी अंतिम नहीं माना जा सकता है। तो टेक्नीकली हम ये कह सकते हैं कि भाषा विज्ञान, विज्ञान की सीमा क्षेत्र में ही आते हैं, लेकिन अभी भी इसे अपनी विशुद्धता को प्राप्त करना बाकी है।

| भाषा विज्ञान के प्रकार

चूंकि भाषा विज्ञान भी किसी भाषा के कारण कार्यपरक युक्तिपूर्ण विवेचन-विश्लेषण के लिए कुछ निश्चित प्रक्रियाओं में बंध कर चलता है, ऐसे में इन प्रक्रियाओं के आधार पर भाषा विज्ञान के कई प्रकार हमारे सामने है;

वर्णनात्मक भाषा विज्ञान (Descriptive linguistics); जिसके तहत किसी एक भाषा के किसी एक ही काल के स्वरूप की व्याख्या या वर्णन की जाती है।

ऐतिहासिक भाषा-विज्ञान (Historical linguistics); जिसके तहत किसी भाषा के क्रमिक इतिहास का अध्ययन विभिन्न कालों के संदर्भ में किया जाता है।

तुलनात्मक भाषा विज्ञान (Comparative linguistics); जिसके तहत दो या दो से अधिक भाषाओं की किसी एक काल में या विभिन्न कालों में तुलना की जाती है। तुलना का आधार शब्द-रचना, वाक्य रचना आदि हो सकता है।

संरचनात्मक भाषा-विज्ञान (structural linguistics); जिसके तहत भाषा में प्रयुक्त सभी तत्वों की संरचना का अध्ययन किया जाता है।

प्रायोगिक भाषा-विज्ञान (Experimental linguistics); इसके तहत देशी व विदेशी भाषा के सिखाने की पद्धति, उच्चारण सिखाने की प्रक्रिया एवं अनुवाद की शैली आदि का अध्ययन किया जाता है।

भाषा-विज्ञान के अध्ययन के विभाग

भाषा-विज्ञान के क्षेत्र के अंतर्गत भाषा से संबंधित निम्नलिखित अध्ययन आते हैं :-

1. वाक्य विज्ञान (Syntax) – भाषा-विज्ञान के जिस विभाग में वाक्यों के आधार पर किया जाने वाला विचार-विनिमय का अध्ययन किया जाता है, उसे वाक्य-विज्ञान कहते है।

2. रूप-विज्ञान (Morphology) – चूंकि वाक्य की रचना पदों या रूपों के आधार पर होती है, इसीलिए रूप-विज्ञान के अंतर्गत धातु, उपसर्ग, प्रत्यय आदि पर विचार किया जाता है।

3. शब्द-विज्ञान (Wordology) – चूंकि रूप या पद का आधार शब्द होता है, इसीलिए शब्द विज्ञान के अंतर्गत शब्दों की व्युत्पत्ति एवं उसका इतिहास आदि का अध्ययन किया जाता है।

4. ध्वनि-विज्ञान (Phonetics) – चूंकि शब्द का आधार ‘ध्वनि’ होता है, इसीलिए ध्वनि विज्ञान के अंतर्गत स्वर-तंत्री, ध्वनि यंत्र के साथ सुनने की प्रक्रिया एवं मुख विवर आदि का अध्ययन किया जाता है।

5. अर्थ-विज्ञान – वाक्य या शब्द ध्वनि के साथ खत्म हो जाता है, और इसके आगे एक नया क्षेत्र शुरू होता है, जिसे हम अर्थ कहते हैं। क्योंकि ध्वनि निकल जाने के बाद दूसरों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, ये इस पर निर्भर करता है, कि बोली गई ध्वनि का अर्थ क्या है। इसीलिए इस विज्ञान में शब्दों के अर्थ और उसके कारणों पर अध्ययन किया जाता है।

इसके अलावे भी भाषा-विज्ञान के अध्ययन के दो महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जो कि है (1) भाषा की उत्पत्ति (origin of language) और (2) भाषाओं का वर्गीकरण (classification of languages)।

भाषाओं की उत्पत्ति और भाषाओं के वर्गीकरण पर विस्तृत लेख उपलब्ध है, इसीलिए यहाँ हम उसकी चर्चा नहीं करेंगे, तो दिए गए लिंक पर क्लिक करके आप उसे जरूर पढ़ें। ताकि कॉन्सेप्ट पूरी तरह से स्पष्ट हो सके। आइये अब भाषा की विशेषता को समझते हैं;

भाषा की विशेषताएँ

1. भाषा अर्जित संपत्ति है; यानी कि कोई भी व्यक्ति किसी भी भाषा को सीखकर उसे व्यवहार में ला सकता है, हालांकि वह उस भाषा का इस्तेमाल उस भाषा को जानने वालों के बीच ही कर सकता है।

2. भाषा एक सामाजिक वस्तु है; यानी कि समाज से अलग होकर भाषा की कोई सार्थकता नहीं रह जाती है। सोचिए कि अगर आप समाज के दूर कहीं अकेले हैं तो आप कोई भी भाषा क्यों न जानते हों, उसका कोई फायदा नहीं है।

3. भाषा परंपरागत है; यानी कि भाषा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होने वाली एक संपत्ति है। कहने का अर्थ ये है कि आप भाषा को सीख तो सकते हैं, लेकिन उसे उत्पन्न नहीं कर सकते हैं। आप खुद ही सोचिए कि क्या किसी वैज्ञानिक ने किसी भाषा का ईजाद किया है, जो कि आज चल रहा हो।

4. भाषा निरंतर परिवर्तनशील है; चूंकि भाषा अभिव्यक्त की जाती है, और प्रत्येक व्यक्ति एक ही तरह से इसे अभिव्यक्त नहीं करता है इसीलिए ये हमेशा परिवर्तनशील होता है और इसका कोई अंतिम स्वरूप नहीं होता है।

5. भाषा की प्रवृति कठिनता से सरलता की ओर होती है; सरलता या सुगमता इंसान को पसंद आता है, इसीलिए कठिनता की स्थिति में इंसान उसे सहज ही परिवर्तित करके सरल बनाने की चेष्टा करता है। संस्कृत का प्राकृत और अपभ्रंश में हुआ परिवर्तन इसी सरलीकरण को दर्शाता है।

6. भाषा स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर तथा अप्रौढ़ से प्रौढ़ता की ओर जाती है; इसे समझने के लिए आप एक बच्चे के भाषाई विकासक्रम को देख सकते है कि किस तरह उम्र और अनुभव बढ़ने के साथ उसके भाषा में प्रौढ़ता और सूक्ष्मता आती जाती है।

7. भाषा संयोगात्मकता से वियोगात्मकता की ओर जाती है; पहले ये माना जाता था कि भाषा विश्लेषण से संश्लेषण की ओर यानी कि वियोग से संयोग की ओर जाती है। लेकिन अब विद्वानों का मत है कि भाषा संयोगात्मक से वियोगात्मक की ओर जाती है। हिन्दी में इसे आसानी से देखा जा सकता है, जहां पर संयुक्ताक्षरों को तोड़ कर सरल बना लेने प्रवृति है। उदाहरण के लिए संस्कृत में ‘गच्छति’ पद है, किन्तु हिन्दी में ‘जाता है’ का प्रयोग किया जाता है।

भाषा के विविध रूप

भाषा का एक रूप ऐतिहासिक है, जैसे कि भारत में एक समय संस्कृत बोली जाती थी फिर कालांतर में ‘पालि’, फिर प्राकृत और इसके पश्चात अपभ्रंश बोली जाने लगी।

भाषा का दूसरा रूप भौगोलिक रूप होता है। इस दृष्टि से अधिक व्यपाक रूप भाषा है, फिर बोली (Dialect) और उससे भी संकीर्ण स्थानीय बोली और सबसे संकीर्णतम रूप है, व्यक्ति बोली या फिर एक व्यक्ति की भाषा

भाषा का जो तीसरा रूप है वो प्रयोग पर आधारित होता है, जैसे कि कौन इसका प्रयोग करता है, प्रयोग हो रहा है या फिर समाप्त हो चुका है, किन मामलों में इस्तेमाल होता है, इत्यादि। इस दृष्टि से जो भाषा के रूप बनते हैं, वे इस प्रकार है – व्यवसायिक भाषा, राजभाषा, राष्ट्र भाषा, साहित्यिक भाषा, राजनयिक भाषा, परिनिष्ठित भाषा, शुद्ध भाषा, प्रचलित भाषा, विकृत भाषा, इत्यादि।

भाषा का जो चौथा रूप है, वो निर्माता पर आधारित होता है, यानी कि उस भाषा को बनाया किसने है, आमतौर पर भाषा परंपरा पर आधारित होती है, क्योंकि उसे समाज द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित किया जाता है।

आइये अब संक्षिप्त में भाषा के रूपों को समझते हैं;

1. मूल भाषा (source language/ original language) प्राचीन काल में एक मानव समूह भावों-विचारों के आदान-प्रदान के लिए किसी एक ही भाषा का प्रयोग करता होगा। फिर व्यक्तियों की संख्या बढ़ जाने के कारण कुछ लोग इधर-उधर चले गए होंगे। भौगोलिक परिवर्तनों एवं समय बीतने के साथ ही उसके मूल भाषा में कुछ अंतर आ गया होगा। और ये क्रम इसी तरह से चला होगा। यानी कि आज हम जिस भाषा का उपयोग करते हैं, वो कई परिवर्तनों के बाद ऐसा बना है, ऐसे में जाहिर है इसका एक मूल स्वरूप रहा होगा।

2. व्यक्ति बोली या व्यक्ति भाषा – किसी एक व्यक्ति का व्यक्तित्व सदैव एक जैसा नहीं रहता उसमें निरंतर विकास होता रहता है। इसी तरह से एक व्यक्ति की बोली या भाषा भी निरंतर परिवर्तित और विकसित होती रहती है। व्यक्ति बोली या व्यक्ति भाषा किसी व्यक्ति द्वारा एक समय में प्रयोग की गई भाषा के लिए भी कहा जा सकता है और उसके जीवनपर्यंत प्रयोग में आने वाली भाषा के लिए भी।

3. अबोली या स्थानीय बोली (local dialect) – किसी स्थान विशेष पर रहने वाले कुछ लोग जब व्यक्ति बोली को परस्पर व्यवहार में लाते हैं, तो वह एक स्थानीय बोली का रूप ले लेता है। इस स्थानीय भाषा को उपबोली या अबोली भी कहा जाता है। इस तरह के भाषा का क्षेत्र काफी छोटा है और यह भाषा असाहित्यक भी होता है, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर अशिक्षित लोग करते हैं।

4. बोली (Dialect) एक भाषा के अंतर्गत जब कई अलग-अलग रूप विकसित हो जाते हैं तो उसे बोली कहते हैं। कोई बोली तभी तक बोली रहती है जब तक कि उसे साहित्य, धर्म, व्यापार या राजनीति के कारण विशेष महत्व प्राप्त नहीं हो जाता। जब अन्य बोली बोलने वाले लोग उसे समझने लगते हैं, तब वह अमुक बोली धीरे-धीरे भाषा बन जाती है।

यहाँ से समझें भाषा और बोली में अंतर

5. आदर्श या परिनिष्ठित भाषा – शिक्षित समुदाय द्वारा प्रयोग में लायी जाने वाली भाषा आदर्श भाषा काही जाती है। इसे टकसाली, प्रांजल या मानक भाषा (standard language) भी कहा जाता है। समाचार पत्रों एवं साहित्य-लेखन में इसी भाषा का प्रयोग किया जाता है, इसीलिए इसे साहित्यिक भाषा (literary language) भी कहते हैं।

6. राष्ट्रभाषा (national language) जब कोई भाषा राष्ट्र की भावनाओं और विचारों को अभिव्यक्त करने का माध्यम बन जाती है, तो उसे राष्ट्र भाषा कहा जाता है। एक राष्ट्र के निवासी अपने पर्वों-उत्सवों व सार्वजनिक कार्यों में इस तरह के भाषा का प्रयोग करता है। यहाँ यह याद रखिए कि आधिकारिक या संवैधानिक रूप से भारत का कोई राष्ट्र भाषा नहीं है।

7. राजभाषा (official language) राज-काज के कार्यों में प्रयोग में आनेवाली भाषा राजभाषा कही जाती है। इसी भाषा में राजकीय कार्यों एवं राजाज्ञा आदि का प्रसारण किया जाता है। इसके अलावा सभी कार्यालयों में इसी भाषा का प्रयोग किया जाता है। अँग्रेजी और हिन्दी राजभाषा है जिसे कि पहले तो संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत 15 साल के लिए राजभाषा का दर्जा दिया गया और बाद में एक संवैधानिक संशोधन, राजभाषा अधिनियम, 1963, के तहत हिन्दी के साथ अंग्रेजी को अनिश्चित काल तक जारी रखने का फैसला लिया जब तक कि कानून द्वारा इसे बदल नहीं दिया जाता।

8. अनुसूचित भाषा (scheduled language) – भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है, जिन्हें अनुसूचित भाषाओं के रूप में जाना जाता है। ये भाषाएँ कुछ इस प्रकार है; असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिन्दी, कन्नड, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, मैथिली, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगू एवं उर्दू। [यहाँ यह याद रखिए कि 8वीं अनुसूची में इंग्लिश भाषा शामिल नहीं है।]

9. शास्त्रीय भाषा (classical language) – समृद्ध विरासत और स्वतंत्र प्रकृति वाली भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया जाता है। भारत सरकार ने कन्नड़, मलयालम, ओडिया, संस्कृत, तमिल और तेलुगु को शास्त्रीय भाषा का गौरव प्रदान किया है।

यहाँ से समझें भाषा में परिवर्तन का कारण

| समापन टिप्पणी (Closing Remarks)

इस लेख में हमने भाषा के विभिन्न आयामों को समझा जैसे कि भाषा के वैज्ञानिक पहलू, भाषा के अध्ययन के विभाग एवं विभिन्न प्रकार की भाषाएँ एवं बोलियाँ इत्यादि। इतना समझने के बाद ये भी समझना आवश्यक है कि भाषा विज्ञान का संबंध अन्य विषयों से भी है। उदाहरण के लिए आइये कुछ को समझते हैं;

भाषा विज्ञान का शरीर विज्ञान से संबंध – चूंकि भाषा विज्ञान में, हवा शरीर के भीतर कैसे चलती है और स्वरयंत्र, नासिकाविवर, तालु, दाँत, जीभ आदि के कारण उसमें क्या परिवर्तन होते हैं, इत्यादि का अध्ययन किया जाता है तो ऐसे में शरीर विज्ञान की सहायता जरूरी हो जाता है।

भाषा विज्ञान का भूगोल से संबंध – ये एक स्थापित तथ्य है कि भौगोलिक परिस्थितियों का वहाँ के भाषा पर प्रभाव पड़ता है। इसीलिए ऐसा देखा जाता है कि किसी स्थान विशेष में बोली जाने वाली भाषा में वहाँ पेड़-पौधे, जीव-जन्तु आदि के लिए विशिष्ट शब्द होते हैं।

भाषा विज्ञान का इतिहास से संबंध – भाषा विज्ञान का इतिहास से घनिष्ठ संबंध होता है, चाहे वो इतिहास का राजनीतिक पक्ष हो, धार्मिक पक्ष हो या फिर सामाजिक पक्ष। धार्मिक पक्ष की बात करें तो हम पाते है कि भाषा में बहुत सारे ऐसे शब्द है जो सिर्फ धर्म के कारण अस्तित्व में है। इसी तरह से सामाजिक पक्ष की बात करें तो हम देखते हैं कि भारतीय समाज में पारिवारिक सम्बन्धों का विशेष महत्व होने के कारण ढेरों शब्द चलन में हैं, जैसे कि जीजा, साला, साढू, बुआ, बहनोई इत्यादि

भाषा विज्ञान का साहित्य से संबंध – भाषा विज्ञान के अध्ययन में या भाषा विज्ञान को स्थापित करने में साहित्य का बहुत बड़ा योगदान रहा है। साहित्य का कितना बड़ा योगदान है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि यदि हमारे पास संस्कृत, ग्रीक और अवेस्ता साहित्य न होता तो भाषा-विज्ञान कभी यह जानने में सफल न होता कि ये तीनों भाषाओं का मूल एक ही है।

हालांकि यहाँ यह याद रखिए कि व्याकरण और भाषा-विज्ञान में अंतर होता है। क्योंकि व्याकरण में किसी विशेष भाषा के नियम होते हैं जबकि भाषा विज्ञान कई भाषाओं के अध्ययन एवं विश्लेषण आदि पर आधारित होता है। भाषा विज्ञान में किसी भाषा के व्याकरण भी उसके अध्ययन के दायरे में होते हैं जबकि व्याकरण उसी भाषा के नियमों तक सीमित रहता है।

भाषा विज्ञान न केवल हमारी जिज्ञासाओं को शांत करता है बल्कि यह हमें इतिहास और संस्कृति की भी जानकारी देता है। तो कुल मिलाकर हमने संक्षिप्त में समझा कि भाषा विज्ञान क्या है और इसका अध्ययन क्यूँ जरूरी है।


FAQs

1. कृत्रिम भाषा (Artificial Language) क्या है?

जब लोगों का एक समूह अपने विचार-विनिमय के लिए एक विशेष प्रकार के सांकेतिक भाषा का निर्माण कर ले तो उसे कृत्रिम भाषा कहा जाता है। 1880 के दशक में Dr. Zamen Hof द्वारा एक ऐसे ही भाषा का निर्माण किया गया था, जिसे कि एसपरान्तो (esperanto) नाम दिया गया। अपने शुरुआती दौर में इसने खूब सुर्खियां बटोरी, किन्तु बाद में इसका प्रचार और व्यवहार बंद हो गया। Add Image

2. अंतरराष्ट्रीय भाषा किसे कहते हैं?

अधिकांश देशों के लोग जिस भाषा का प्रयोग अपने व्यापार-विनिमय एवं राजनीतिक-सम्बन्धों का निर्वाह करने के लिए करते हैं वह अंतरराष्ट्रीय भाषा कहलाती है। अंग्रेजी को इसी भाषा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।

3. राष्ट्र भाषा और राजभाषा में अंतर क्या है?

किसी विशेष देश या क्षेत्र में रहने वाले सामान्य वंश, इतिहास, संस्कृति या भाषा से एकजुट लोगों का एक बड़ा समूह, राष्ट्र कहलाता है। इस तरह से राष्ट्र भाषा (national language) का मतलब है, ऐसी भाषा जो कि राष्ट्र की भावनाओं और विचारों को अभिव्यक्त करने का माध्यम हो। एक राष्ट्र के निवासी अपने पर्वों-उत्सवों व सार्वजनिक कार्यों में इस तरह के भाषा का प्रयोग करता है।
वहीं राजभाषा (official language) की बात करें तो राज-काज के कार्यों में प्रयोग में आनेवाली भाषा राजभाषा कही जाती है। इसी भाषा में राजकीय कार्यों एवं राजाज्ञा आदि का प्रसारण किया जाता है। इसके अलावा सभी कार्यालयों में इसी भाषा का प्रयोग किया जाता है।