इस लेख में हम बेरोजगारी के कारण (Cause of unemployment) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे;
तो अच्छी तरह से समझने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें, साथ ही बेरोजगारी से संबन्धित अन्य लेखों का लिंक आपको नीचे मिल जाएगा, उसे भी विजिट करें।

| रोजगार क्या है? (What is employment?)
रोजगारी का अभिप्राय किसी व्यवसाय में काम करने से है, जिसके बदले धन या फिर धन के बदले धन के मूल्य की कोई वस्तु अर्जित की जाए।
गाँव में बहुत से श्रमिकों को धन के बदले में मजदूरी में अनाज मिलता है। इस प्रकार वे स्त्रियाँ जिनकी सेवाएँ देश और परिवार के लिए अमूल्य है, रोजगार नहीं कहीं जा सकती क्योंकि वे आर्थिक उत्पादक नहीं है। वहीं अगर वे घर के अन्दर या बाहर ऐसा काम करती है जिससे वे धन अर्जित कर सकें तो उन्हें रोजगार कहा जाता है।
| बेरोज़गारी क्या है?
जब व्यक्ति धन उपार्जन करना चाहता है और वो इसके लिए काम की तलाश भी करता है लेकिन उसे काम नहीं मिलता है, ऐसे व्यक्तियों को बेरोजगार कहा जाता है, और इस स्थिति को बेरोज़गारी (unemployment) कहा जाता है।
आज बेरोजगारी किसी देश विशेष की समस्या नहीं है, बल्कि ये सभी राष्ट्रों की समस्या है। यहाँ तक कि विकसित देशों में भी कमोबेश बेरोज़गारी दिखायी पड़ती है। हर समय हर देश में एक बड़ी संख्या में अकुशल श्रमिकों के साथ-साथ कुशल व विशिष्ट प्रशिक्षण प्राप्त श्रमिक भी बेरोजगार होते है।
ऐसे श्रमिक देश में प्रचलित मजदूरी की दरों पर काम करने के लिए तैयार होते है, किन्तु काम न मिलने के कारण बेरोजगार होते है। एक बड़ी संख्या में बेरोजगारी अशुभ का सूचक है, सामाजिक व्याधि ग्रस्तता का सूचक है।
तो कुल मिलाकर हम इतना तो जानते हैं कि बेरोज़गारी स्वस्थ समाज के लिए खतरनाक है लेकिन सवाल यही आता है कि बेरोज़गारी शुरू कैसे होती है, बेरोज़गारी के कारण क्या है? इत्यादि। तो आइये इसे समझते हैं;
| बेरोजगारी के कारण (Cause of Unemployment)
बेरोजगारी एक जटिल समस्या है जिसमें अनेक आर्थिक, सामाजिक संस्थाओं और व्यक्तियों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष योगदान है। भारत में बेरोजगारी के निम्नांकित कारण महत्वपूर्ण है:-
। धीमी आर्थिक संवृद्धि
कृषि पर अधिक निर्भरता तथा गैर-कृषि गतिविधियों की धीमी संवृद्धि रोजगार सृजन को सीमित करती है। आजादी के बाद से ही संवृद्धि दर का झुकाव लक्ष्य दर से काफी कम रहा है। इसीलिए, पर्याप्त मात्रा में रोजगार का सृजन नहीं हुआ। और लोग ऐसे रोजगारों पर आश्रित होने लगे जिसका कोई भविष्य नहीं था।
| श्रम शक्ति में वृद्धि
श्रम शक्ति में वृद्धि लाने वाले दो महत्वपूर्ण कारक है, जो निम्नलिखित हैं –
(1) जनसँख्या में वृद्धि (Increase in population) – जनसंख्या वृद्धि और बेरोजगारी अंतर्संबंधित है। जनसंख्या में तीव्र वृद्धि वह कारक है जो काम की उपलब्धता को बहुत अधिक प्रभावित करता है।
भारत में जिस अनुपात में जनसंख्या में वृद्धि हो रही है उस अनुपात में आर्थिक विकास नहीं हो पा रहा है, उद्योग धंधे नहीं चल पा रहे हैं, काम व रोजगार के अवसर नहीं बढ़ पा रहे है, फलस्वरूप बेरोजगारी का बढ़ना स्वाभाविक है। [यहाँ से पढ़ें – जनसंख्या बढ़ने का कारण क्या है?]
(2) सामाजिक कारक – स्वतंत्रता के पश्चात स्त्रियों की शिक्षा ने रोजगार के प्रति दृष्टिकोण को बदल दिया है। अब श्रम बाज़ार में रोजगार के लिए पुरुषों के साथ स्त्रियाँ भी प्रतियोगिता करती है। किन्तु अर्थव्यवस्था इन चुनौतियों का सामना करने में विफल रही है परिणामस्वरूप बेरोजगारी स्थायी रूप लेने लग गया।
| झूठी सामाजिक प्रतिष्ठा (False social prestige)
झूठी सामाजिक प्रतिष्ठा कुछ इस रूप में पैदा हो रही है कि कुछ व्यक्ति कुछ विशेष कार्यों को करना अपनी मान-मर्यादा के प्रतिकूल समझते है।
उदाहरणस्वरुप – विक्रय कला व टाइप करने जैसे कार्यों को नीचे दर्जे का माना जाता है। कभी-कभी युवा व्यक्ति इस तरह के कार्य को करने से इस लिए कतराते है, क्योंकि उनसे उसके परिवार का स्तर ऊँचा है। वे ऐसे कार्यों के करने के बजाय बेरोजगार रहना पसंद करते है।
| दोषपूर्ण शिक्षा व्यवस्था (Captious Education system)
भारत में वर्तमान शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजी सरकार की देन है। यह शिक्षा सफेदपोश, नौकरी को महत्व प्रदान करती है और शरीर श्रम के प्रति घृणा की भावना बढ़ाती है।
फलस्वरूप आई.ए.एस., आई.पी.एस., डॉक्टर, इंजिनियर, कॉलेज शिक्षक आदि सेवा में जाने की लोगों का झुकाव विशेष रूप से है। जबकि वे सेवाएँ कम उपलब्ध है। फलस्वरूप विश्वविद्यालय शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों में बेरोजगारी भरपूर है।
| गतिशीलता की कमी (Lack of mobility)
गतिशीलता की कमी बेरोजगारी को उत्पन्न करती है। जब व्यक्ति एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने से हिचकते है, तो एक स्थान पर श्रमिकों की जमघट सी लगी रहती है।
वे अपने ही जातीय समूह, गाँव, नगर व राज्यों में सिमटकर रह जाते है। इससे उस क्षेत्र में बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न होती है।
भारत में जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद, पारिवारिक दायित्व, धार्मिक, रुढियों, साम्प्रदायिकता आदि विशेष बाधाएँ प्रस्तुत करती है। जिससे व्यक्तियों में गतिशीलता नहीं हो पाती।
| भौतिक आपदाएं (Physical disasters)
भारतीय कृषक को समय-समय पर अतिवृष्टि, अनावृष्टि, सूखा, अकाल, महामारी आदि जैसी विपदाओं का सामना करना पड़ता है।
सिंचाई आदि के साधन भी बहुत कम है, फलतः जितनी उपज होनी चाहिए उतनी भी नहीं हो पाती है। अधिक उपज हो तो अधिक लोगों को काम दिया जा सकता है। अतः भौतिक विपत्तियों से भी बेरोजगारी उत्पन्न होती है।
| भूमि के भार में वृद्धि (Increase in land load)
भूमि तो ठहरी सीमित उसकी उर्वरा शक्ति की भी एक सीमा है। उस सीमा के बाद उत्पादन में विशेष वृद्धि नहीं होती है। उत्पादन ह्रास का नियम लागू हो जाता है। जनसंख्या बढ़ने से भूमि का भार बढ़ता चला जाता है, उधर उपज में वृद्धि होती नहीं है,
परिणाम यह होता है कि भूमि से अपना निर्वाह करने वालों की स्थिति दिन-प्रतिदिन विषम होती जाती है। भूमि में छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजन कोढ़ खाज की स्थिति उत्पन्न करती है ।
| औद्योगिकरण (Industrialization)
नगरों में जहाँ बड़े उद्योग है, वहाँ पर हजारों लोगों को काम मिलता है पर यन्त्र तो ऐसा दानव है जो दानवीय गति से उत्पादन करता है।
जिस काम को 100 आदमी पूरे दिन में नहीं कर पाते, उसे एकाध घंटे में ही कर डालता है फलस्वरूप उतने लोगों की रोजी स्वतः छीन जाती है। स्वचालित यंत्रीकरण और विवेकीकरण की चपेट में हजारों व्यक्ति आते रहते है और रोजी-रोटी से वंचित होते रहते है।
| तेजी-मंदी का चक्र (Cycle of recession)
व्यापार में जो तेजी-मंदी का जो चक्र चलता रहता है, उसकी चपेट में भी हजारों व्यक्ति आते रहते है उसके कारण भी समय-समय पर लोगों की छंटनी होती रहती है और बेकारी बढ़ती रहती है।
| ग्रामीण-शहरी प्रवासन
शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी बढ़ने का एक कारण ये भी है कि ग्रामीण जनसंख्या बहुत बड़ी मात्रा में शहरों की ओर पलायन करता है। इससे शहरों पर बहुत ज्यादा दवाब बढ़ गया है वो इतनी बड़ी अकुशल एवं अशिक्षित जनसंख्या को झेल सकने में असमर्थ हो रहा है।
| बेरोजगारी के अन्य कारण
बेरोजगारी के उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त अन्य कारणों की चर्चा की जाती है, जैसे कि प्रॉडक्शन और एक्सपोर्ट हब बनने के लिए जो आधारिक संरचना की जरूरत थी वो भारतीय अर्थव्यवस्था पूर्ति न कर सके।
साथ ही कुपोषण या अन्य स्वास्थ्य समस्या भी बेरोजगारी बढ़ाने में अपना योगदान देता है। इसके अलावा अगर कुछ विद्वानों के वक्तव्यों पर नजर डालें तो वो भी बेरोजगारी बढ़ने का एक कारण हो सकता है;
‘Adamsmith’ ने पूंजी की कमी को बेरोजगारी का कारण माना है। ‘जॉन मेनार्ड कीन्स’ बचत की इच्छा को बेरोजगारी का कारण बताया है कुछ अर्थशास्त्री मांग और आपूर्ति में असंतुलन को बेरोजगारी बताया है
‘एलियट एवं मेरिल’ ने बेरोजगारी का कारण औद्योगिकरण समृद्धि के बाद व्यापार चक्र में आई मंदी को माना है।
इस प्रकार उपर्युक्त वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि बेरोजगारी विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और व्यैक्तिक कारणों का परिणाम है। यह सामाजिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि कौन कारण कहाँ विशेष कारगर है।
कुल मिलाकर यही है मुख्य कारण बेरोजगारी बढ़ने के, उम्मीद है समझ में आया होगा। बेरोजगारी से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण लेखों का लिंक नीचे दिया जा रहा है बेहतर समझ के लिए उसे भी अवश्य पढ़ें।
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| बेरोज़गारी से संबंधित महत्वपूर्ण लेख
बेरोजगारी के प्रकार
शिक्षित बेरोजगारी
बेरोजगारी के दुष्परिणाम
बेरोजगारी क्या है
बेरोज़गारी निवारण के उपाय
जनसंख्या समस्या, उसका प्रभाव एवं समाधान
https://nios.ac.in/media/documents/SrSec318NEW/318_Economics_Hindi/318_Economics_Hindi_Lesson4.pdf