इस लेख में हम ‘आरक्षण का संवैधानिक आधार (Constitutional basis of reservation)’ पर चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे।
🔹 समझने की दृष्टि से इस पूरे लेख को चार मुख्य भागों में बाँट दिया गया है। यह इसका दूसरा भाग है। इसे पढ़ने से पहले इसके पहले भाग को अवश्य पढ़ लें, वहाँ हमने भारत में आरक्षण के आधारभूत तत्व[1/4] को समझा था।
आगे आने वाले लेख में हम क्रमश: और आरक्षण का विकास क्रम[3/4] और रोस्टर सिस्टम : आरक्षण के पीछे का गणित[4/4] को समझेंगे, तो बेहतर समझ के लिए संबन्धित सभी लेखों का अध्ययन करें।
चूंकि संपूर्ण आरक्षण प्रणाली मौलिक अधिकारों (विशेषकर समानता के अधिकार) के इर्द-गिर्द घूमती है, हमारा सुझाव है कि बेहतर समझ के लिए आप कम से कम मौलिक अधिकारों पर एक नज़र डालें।

भारत में आरक्षण का संवैधानिक आधार
जब देश आजाद हुआ तब भारत ऐसी स्थिति में नहीं था कि एकदम से सबको समान (equal) मान लिया जाए और सबकुछ ऐसे ही चलने दिया जाए। सैंकड़ों वर्षों की गुलामी और अथाह संसाधनों को गवाने के बाद भारत एक निर्धन, लाचार और कई सामाजिक विकृतियों से ग्रसित था। ऐसे में उस समय के नीति-नियंताओं के पास कई महत्वपूर्ण कामों में से एक काम ये भी था कि किसी भी तरह से सबको एक धरातल पर लाया जाए, क्योंकि जिन आदर्शों और लक्ष्यों को लेकर भारत ने आजादी की लड़ाई लड़ी, समानता (equality) और न्याय (justice) उसका मूल तत्व था।
समानता के लिए जरूरी था कि समाज के उन व्यक्तियों, समुदायों एवं वर्ग विशेषों के साथ न्याय हो जो कि गुलाम भारत में कभी भी गरीबी, शोषण, गंदगी, गुमनामी और बदहाली से निकल नहीं पाया। और न्याय के लिए जरूरी था कि इन लोगों के पक्ष में कुछ विशेष किया जाए।
संविधान निर्माता इस बात से अंजान नहीं थे। इसीलिए संविधान में ही इस बात का जिक्र कर दिया, ताकि ऐसे लोगों के पक्ष में सरकार कुछ विशेष कदम उठा सके।
हमने पिछले लेख में समझा कि किस तरह अनुच्छेद 14 एवं खास कर के अनुच्छेद 15 एवं 16 के तहत समाज के पिछड़े वर्ग के पक्ष में कुछ करने या आरक्षण की व्यवस्था की गई। समाज के अल्पसंख्यक वर्गों को अनुच्छेद 29 एवं 30 के तहत विशेष सुविधाएं दी गई ताकि वे मूल्यों एवं मान्यताओं के साथ अपनी संस्कृति को बचाए रखते हुए समाज के मुख्य धारा में शामिल हो सके।
समय के साथ-साथ जैसे-जैसे महसूस की गई, वैसे-वैसे आरक्षण के दायरे को बढ़ाया गया, जैसे कि पंचायतों एवं नगरपालिकाओं में आरक्षण की व्यवस्था करना, ओबीसी जैसे एक श्रेणी को संवैधानिक आधार देना इत्यादि।
आरक्षण का संवैधानिक आधार सहज़ और स्पष्ट रहे इसके लिए हम इसे चार भागों में बांट लेते हैं –
(1) लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में SC एवं ST का आरक्षण
(2) पंचायतों एवं नगरपालिकाओं में SC, ST एवं महिलाओं का आरक्षण
(3) विभिन्न शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण एवं,
(4) पद के संबंध में या नियुक्ति में आरक्षण।
यहाँ ये याद रखें कि एससी एवं एसटी के संदर्भ में, लोकसभा एवं राज्य विधान मण्डल में इसकी आरक्षण की बात करें तो इसके लिए अलग से संवैधानिक व्यवस्था अनुच्छेद 330 एवं अनुच्छेद 332 में मिलती है। इसीलिए नियुक्ति, पद या प्रवेश में जो आरक्षण मिलता है उसके इसका कोई खास संबंध नहीं है।
| लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में SC एवं ST का आरक्षण
अनुच्छेद 330 लोकसभा में और अनुच्छेद 332 राज्य विधानसभाओं में एससी एवं एसटी के लिए आरक्षण से संबन्धित है। यह दोनों अनुच्छेद मोटे तौर पर कहता है कि – लोकसभा या राज्य विधानसभाओं के संदर्भ में, किसी राज्य में या संघ राज्य क्षेत्र में एससी एवं एसटी के लिए आरक्षित सीटों की संख्या का अनुपात, लोकसभा में या राज्य विधानसभाओं में उस राज्य को आवंटित स्थानों की कुल संख्या से यथासंभव वही होगा जो उसकी जनसंख्या का अनुपात उस राज्य के कुल जनसंख्या में है। [नीचे दिये गए उदाहरण से इसे समझें]
Q. किस राज्य में एससी एवं एसटी की कितनी सीटें आरक्षित होगी; यह कैसे निर्धारित किया जाता है?
इसे समझने के लिए बिहार का उदाहरण लेते हैं, जहां लोकसभा की 40 सीटें है। बिहार की कुल जनसंख्या का लगभग 15 प्रतिशत लोग एससी वर्ग में आते हैं तो इसका मतलब ये हुआ कि 40 सीटों में से 15 प्रतिशत भाग पर एससी सीटों का आरक्षण होगा; यानी कि 6 सीटों पर, और ये वहाँ होगा जहां पर उसकी आबादी है।
वहीं बिहार की कुल जनसंख्या का लगभग 1 प्रतिशत लोग एसटी वर्ग में आते हैं इसीलिए बिहार में एसटी वर्ग को लोकसभा में कोई आरक्षण नहीं मिलता है। कम से कम 1 सीट पाने के लिए कम से 2.5 से 3 प्रतिशत की एसटी आबादी होनी चाहिए।
अनुच्छेद 332 विधानसभा में एससी एवं एसटी वर्ग के आरक्षण के बारे में बताता है और इसका भी प्रावधान वही है जो लोकसभा के मामले में था।
उदाहरण के लिए, बिहार को देखें तो वहाँ विधानसभा में 243 सीटें है और जैसा कि हमने ऊपर बात की एससी वर्ग की जनसंख्या बिहार की कुल जनसंख्या में लगभग 15% है और 1 प्रतिशत से कुछ अधिक एसटी कि जनसंख्या है। इसीलिए बिहार विधानसभा में एससी के लिए 243 सीटों में से 38 सीटें आरक्षित है जबकि 2 सीटें एसटी के लिए आरक्षित है।
कुल मिलाकर बात करें तो, 2001 के जनगणना के अनुसार पूरे देश की जनसंख्या में एससी का प्रतिशत लगभग 16 है और एसटी का प्रतिशत लगभग 8 है, तो इसी हिसाब से मोटे तौर पर कुल लोकसभा के कुल 543 सीटों में से 131 सीटें एससी एवं एसटी के लिए आरक्षित है।
[विधानसभा के मामले में भी हमने यहाँ बिहार का उदाहरण लिया है अगर आप किसी और राज्य का उदाहरण लेंगे तो हो सकता है किसी में एसटी सीटों का आरक्षण सबसे अधिक हो और किसी में एससी का।]
[यहाँ पर ये याद रखिए,
– सीटों की गणना के लिए 2001 की जनगणना का इस्तेमाल किया जाता है। और जब तक 2026 के बाद पहली जनगणना नहीं हो जाती है तब तक यही जनगणना आरक्षण का आधार रहेगा।
– 2008 के परिसीमन (delimitation) के बाद लोकसभा के 543 सीटों में से 84 सीटें एससी वर्ग के लिए आरक्षित है और 47 सीटें एसटी वर्ग के लिए आरक्षित है। इसका ये मतलब नहीं है एससी एवं एसटी वर्ग के लोग इसके अलावा अन्य सीटों पर चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। हाँ, जहां ये सीटें आरक्षित है और अन्य वर्गों के प्रत्यासी इन सीटों पर चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। सामान्य लोग सिर्फ 412 सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं।
– महिलाओं के लिए लोकसभा एवं विधानसभा मेंआरक्षण की व्यवस्था नहीं है। हालांकि स्थानीय स्व-शासनों जैसे कि पंचायत एवं नगर पालिका चुनाव में महिलाओं को 1/3 प्रतिशत आरक्षण मिलता है। इसका क्या माज़रा है आइये समझते हैं]
| पंचायतों एवं नगरपालिकाओं में SC, ST एवं महिलाओं का आरक्षण
संविधान का भाग 9 पंचायत से संबन्धित है और भाग 9 ‘A’ नगरपालिका से संबंधित है। पंचायत में आरक्षण अनुच्छेद 243 ‘D’ के तहत मिलता है और नगरपालिका में आरक्षण अनुच्छेद 243 ‘T’ के तहत मिलता है। दोनों अनुच्छेद मोटे तौर पर क्रमशः पंचायत एवं नगरपालिका के संदर्भ में एक ही बात कहता है और वो ये है कि,
”प्रत्येक पंचायत और नगरपालिका में, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए स्थानों का आरक्षण होगा। और इन आरक्षित सीटों का अनुपात, उस अमुक पंचायत या नगरपालिका के कुल सीटों से यथासंभव उतना ही होगा जितना कि एससी एवं एसटी का अनुपात उस पंचायत या नगरपालिका की जनसंख्या में है। और उन आरक्षित सीटों में से भी एक तिहाई सीटों पर एससी एवं एसटी वर्ग के महिलाओं का आरक्षण होगा।”
[उदाहरण के लिए, अगर किसी पंचायत या नगरपालिका में 12 सीटों पर चुनाव लड़ा जाना है और उस अमुक क्षेत्र में 50 प्रतिशत एससी एवं एसटी वर्ग है तो 6 सीटें एससी एवं एसटी के लिए आरक्षित रहेगी। और इन 6 सीटों में से 2 सीटें एससी या एसटी के महिलाओं द्वारा भरा जाएगा।]
दूसरी बात ये है कि प्रत्येक पंचायत या नगरपालिका के कुल सीटों का एक तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित है। और इसमें एससी एवं एसटी वर्ग के महिलाओं द्वारा भरी जाने वाली सीटें भी शामिल है।
[ऊपर दिए गए उदाहरण के अनुसार, कुल 12 सीटों में से 4 सीटें महिलाओं द्वारा भरी जाएंगी, क्योंकि 1/3 सीटों पर महिलाएं होनी चाहिए। पर जैसा कि हमने ऊपर देखा 2 सीटें पहले ही एससी और एसटी वर्ग के महिलाओं द्वारा भरी जा चुकी है इसीलिए अब जो बाकी के 2 सीटें महिलाओं द्वारा भरी जाएंगी वो सामान्य वर्ग के महिलाओं द्वारा सामान्य सीटों पर भरी जाएंगी। हालांकि अगर विधानसभा चाहे तो बाकी के 2 सीटों को OBC महिलाओं के लिए आरक्षित कर सकती है।]
तो कुल मिलाकर यहाँ तक हमने समझ लिया कि लोकसभा, विधानसभा, पंचायत एवं नगरपालिका में किसको-किसको आरक्षण मिलता है और किसको नहीं। आइये अब मुख्य धारा के आरक्षण का संवैधानिक आधार समझते हैं। यानी कि कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी आदि में प्रवेश में आरक्षण, और किसी पद के संबंध में या नियुक्ति में आरक्षण।
| प्रवेश में आरक्षण का संवैधानिक आधार
अनुच्छेद 30 यह व्यवस्था करता है कि सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थानों की स्थापना और उस पर प्रशासन का अधिकार होगा। यहाँ अल्पसंख्यक का मतलब है मुस्लिम, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी एवं ईसाई। यह अनुच्छेद पूरी तरह से अल्पसंख्यकों को समर्पित है इसीलिए इन संस्थानों में 100 परसेंट आरक्षण इन्ही लोगों का है।
इसके अलावा अनुच्छेद 46 के तहत एससी एवं एसटी एवं दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि की बात कही गई है।
इसके तहत राज्य का ये कर्तव्य है कि राज्य जनता के दुर्बल वर्गों विशेष रूप से एससी और एसटी के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक न्याय एवं सभी प्रकार के शोषण से उसकी रक्षा करेगा।
इसके तहत आरक्षण की व्यवस्था की जा सकती है लेकिन समस्या ये है कि ये राज्य के नीति निदेशक तत्व (DPSP) है, मौलिक अधिकार नहीं; इसीलिए अधिकार के रूप में इसकी मांग नहीं की जा सकती है। पर यह अनुच्छेद संविधान में एक संशोधन का कारण जरूर बना जिसके तहत प्रवेश में आरक्षण संबंधी प्रावधान स्पष्ट कर दिया गया।
दरअसल ये बात है चंपकम दोराईराजन मामले 1951 की। उस समय मद्रास सरकार ने समुदाय के आधार पर कॉलेज में आरक्षण की व्यवस्था की थी। इसके खिलाफ चंपकम ने अपील की और दलील दी कि आरक्षण 15(1) अनुच्छेद 29(2) एवं अनुच्छेद 16 के तहत ऐसा नहीं किया जा सकता है।
जो कि सही भी था खासकर के अनुच्छेद 29 (2) तो पूरी तरह से इसके खिलाफ़ था क्योंकि ये कहता है कि राज्य द्वारा संचालित या राज्य निधि से संचालित किसी भी शिक्षण संस्थानों में किसी भी नागरिक को धर्म, नस्ल, जाति एवं भाषा या इनमें से किसी के आधार पर प्रवेश से नहीं रोका जा सकता है।
मद्रास सरकार ने दलील देते हुए कहा कि हम अनुच्छेद 46 को आधार बनाकर आरक्षण दे रहे है। यहाँ पर मद्रास सरकार भी सही था क्योंकि अनुच्छेद 46 इसे सपोर्ट करता है। लेकिन चूंकि अनुच्छेद 46 राज्य का नीति निदेशक तत्व है,
उच्चतम न्यायालय ने मूल अधिकारों को डीपीएसपी पर सर्वोपरि माना। और इसी को खारिज करने के लिए भारत सरकार ने पहला संविधान संशोधन किया। जिसके तहत अनुच्छेद 15(4) जोड़ा गया और ये व्यवस्था कर दी गई कि इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 (2) की कोई भी बात पिछड़े हुए नागरिकों के किन्ही वर्गों के लिए, या एसटी एवं एससी के लिए विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
इस तरह से शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण का रास्ता, पिछड़े वर्ग, एससी वर्ग या एसटी वर्ग के लिए साफ हो गया।
🔹 फिर से 93वां संविधान संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 15(5) जोड़ा गया और ये व्यवस्था किया गया कि – यह अनुच्छेद और अनुच्छेद 19(1)(g) की कोई बात सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों एवं एसटी या एससी के लिए (अनुच्छेद 30(1) को छोड़कर) विशेष उपबंध करने से रोकेगी नहीं।
🔹 और फिर 2019 में 103वां संविधान संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 15(6) जोड़ा गया और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई।
इसके लिए अनुच्छेद 15(6) में लिखवा दिया गया कि अनुच्छेद 15 की कोई बात और अनुच्छेद 29(2) एवं अनुच्छेद 19(1)(g) की कोई बात, EWS को शिक्षण संस्थानों में प्रवेश से रोकेगा नहीं। इस तरह से EWS लिए प्रवेश में 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था कर दी गई।
[यहाँ पर ये याद रखिए कि EWS में वही शामिल होंगे, जिसे कि सरकार द्वारा समय-समय पर पारिवारिक आय एवं अन्य आर्थिक सूचकों पर निर्धारित किया जाएगा।]
तो कुल मिलाकर ये है प्रवेश के संबंध में आरक्षण देने का संवैधानिक आधार।
[नोट- अनुच्छेद 15 (3) में ये लिखा हुआ है कि राज्य स्त्रियों एवं बालकों के लिए विशेष उपबंध कर सकता है। इसे स्त्रियों को आरक्षण या वरीयता से जोड़ कर देखा जा सकता है। पर जैसा कि हमने ऊपर भी चर्चा किया है कि स्त्रियों को वर्टिकल आरक्षण नहीं मिलता है बल्कि क्षैतिज आरक्षण मिलता है, ऐसा कैसे होता है इसे हम आगे समझने वाले है।]
विश्वविद्यालय दो अलग-अलग श्रेणियों से आरक्षण प्रतिशत के आधार पर सीटें आवंटित करते हैं: (1) आरक्षण श्रेणी (एससी, एसटी, ओबीसी, ईडब्ल्यूसी और अन्य अल्पसंख्यक (2) ओपन कैटेगरी (सामान्य, एससी, एसटी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस और अन्य अल्पसंख्यक)।
आवंटन में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण सहित आरक्षण श्रेणी को कुछ इस तरह से प्राथमिकता दी जाती है; अन्य अल्पसंख्यक महिलाएं, एसटी महिलाएं, एससी महिलाएं, एसटी पुरुष, एससी पुरुष, ओबीसी महिलाएं, ओबीसी पुरुष, EWS महिलाएं, EWS पुरुष और फिर ओपन श्रेणी आता है।
| पद या नियुक्ति में आरक्षण का संवैधानिक आधार
अनुच्छेद 16 नियुक्तियों एवं पदों के आरक्षण के संबंध में संवैधानिक आधार प्रस्तुत करता है। और इसके तहत दिया गया आरक्षण बहुत विवादित रहा है। कैसे आइये समझते हैं;
अनुच्छेद 16(4) के अनुसार, राज्य पिछड़े हुए नागरिकों के वर्गों के लिए सरकारी नियोजनों (employment) या नियुक्तियों में आरक्षण की व्यवस्था कर सकती है।
🔹 आज जो एससी, एसटी, ओबीसी को नियोजन या नियुक्तियों में आरक्षण मिलता है वो अनुच्छेद 16 (4) के तहत मिलता है। साथ ही एससी एवं एसटी को जो प्रोन्नति में आरक्षण और पारिणामिक वरिष्ठता का लाभ मिलता है, वो अनुच्छेद 16 (4A) के तहत मिलता है।
परिणामिक वरिष्ठता (Consequential seniority) |
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मान लीजिये एक सामान्य वर्ग का आदमी सरकारी नौकरी में लेवल 3 पर है। अनुसूचित जाति के एक आदमी को उसी लेवल पर लेकिन सामान्य वर्ग के आदमी से जूनियर नियुक्त किया जाता है। चूंकि प्रोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था है इसीलिए अनुसूचित जाति के आदमी को सामान्य वर्ग से पहले प्रोन्नति मिल जाता है और वो अब उस सामान्य वर्ग के आदमी से सीनियर हो जाता है। पारिणामिक वरिष्ठता कहता है कि अब अगर वो सामान्य वर्ग का आदमी को प्रोन्नति मिल भी जाता है तो भी वो अनुसूचित जाति के आदमी से जूनियर ही रहेगा। |
🔹 इसी तरह से किसी साल बची हुई रिक्तियों (Backlogs) को अगले साल अलग से भरे जाने (carry forward) की भी व्यवस्था है, और यह व्यवस्था अनुच्छेद 16 (4B) के तहत किया गया है।
What is Carry Forward Rule ? |
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इंदिरा साहनी मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने आगे बढ़ने के नियम को मंजूरी दी, लेकिन एक शर्त भी लगाई कि यह 50% से अधिक नहीं होनी चाहिए। आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं – मान लीजिए कि एक वर्ष में कुल 50 सीटें रिक्त हैं और उसमें से 10 सीटें अनुसूचित जाति वर्ग के व्यक्तियों द्वारा भरी जानी हैं। अगर किसी कारण से मान लें कि 10 में से 8 सीटें खाली रह गईं। तो उन 8 सीटों को अगले साल तक ले जाया जाएगा। विवरण के लिए – अगले लेख का यह भाग पढ़ें |
🔹 और हाल ही में, 103वां संविधान संशोधन अधिनियम 2019 की मदद से अनुच्छेद 16(6) क्लॉज़ जोड़ा गया और इसके तहत पदों एवं नियुक्तियों में आर्थिक आधार कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई।
आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को आरक्षण क्यों मिलता है? |
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1991 में पी. वी. नरसिंहराव की सरकार ने सामान्य वर्गों के गरीब या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 % अलग से आरक्षण देने की पहल की। लेकिन उस समय उच्चतम न्यायालय ने इन्दिरा साहनी मामले में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की मांग को खारिज कर दिया। दरअसल इस आरक्षण के पीछे का मूल तर्क यही है कि उच्च कहे जाने वाले जातियों में भी सभी की स्थिति ठीक नहीं है वहाँ भी ऐसे लोग है जो कि गरीबी, बदहाली या अपने ही लोगों द्वारा दबाये गए है। 2019 में 103वां संविधान संशोधन के माध्यम से बीजेपी की सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की जो कि अभी चल रही है। |
[अनुच्छेद 16 (4ए और 4B क्या है और क्यों है एवं पारिणामिक वरिष्ठता का सिद्धांत क्या है, इस सब को हम उदाहरणों के साथ अगले भाग में समझने वाले है]
[🔹 यहाँ ये भी याद रखिए कि ग्रूप सी एवं ग्रुप D की नियुक्तियों के मामले में जहां किसी राज्यक्षेत्र से लोगों को नियुक्ति किया जाना होता है वहाँ पर उस समुदाय की जनसंख्या उस राज्य की जनसंख्या में जितनी होती है उतनी ही आरक्षण उसे मिल सकती है। हालांकि ये प्रतिशत 27 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है। साथ में ये भी ध्यान में रखा जाता है कि एससी एसटी एवं ओबीसी को दिये जाने वाले आरक्षण 50 परसेंट को क्रॉस न करें।
खुली प्रतियोगी परीक्षाओं के तहत जब सीधी भर्ती की जाती है तो उस केस में एसटी को 7.5 प्रतिशत, एससी को 15 प्रतिशत, ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मिलता है। वहीं अगर भर्ती बिना किसी खुली प्रतियोगिता के हो तो उस केस में 16.66 प्रतिशत एससी को, 7.5 प्रतिशत एसटी को और 25.84 प्रतिशत ओबीसी को आरक्षण मिलता है।]
जैसे कि हमने ऊपर भी बात की है एससी, एसटी एवं ओबीसी को वर्टिकल आरक्षण मिलता है जबकि महिलाओं एवं दिव्याङ्गजनों आदि को हॉरिजॉन्टल आरक्षण मिलता है इसका क्या मतलब आइये समझते हैं।
वर्टिकल आरक्षण एवं हॉरिजॉन्टल आरक्षण क्या है?
वर्टिकल आरक्षण का आशय ऐसे आरक्षण से है जो कानून के तहत निर्दिष्ट प्रत्येक समूह के लिए अलग से लागू होता है। अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण को ऊर्ध्वाधर आरक्षण या वर्टिकल आरक्षण (vertical reservation) के रूप में जाना जाता है।
क्षैतिज आरक्षण या हॉरिजॉन्टल आरक्षण (horizontal reservation) का तात्पर्य अन्य श्रेणियों के लाभार्थियों जैसे महिलाओं, बुजुर्गों, ट्रांसजेंडर समुदाय और विकलांग व्यक्तियों को समान अवसर प्रदान करना है, जो ऊर्ध्वाधर श्रेणियों में कटौती करते हैं।
कहने का अर्थ ये है कि महिलाओं एवं दिव्याङ्गजनों आदि के लिए कोई अलग से कैटेगरी नहीं बनी है जैसे कि एससी, एसटी एवं ओबीसी बनाया गया है। इसीलिए महिलाओं एवं दिव्याङ्गजनों आदि को जो आरक्षण मिलता है वो अलग से नहीं मिलता है बल्कि एससी, एसटी एवं ओबीसी के कोटे से ही कटौती की जाती है। मान लीजिए कि महिलाओं के लिए 30% आरक्षण है तो यह आरक्षण उसे अलग से नहीं मिलेगा बल्कि एससी, एसटी एवं ओबीसी कोटे के तहत जितनी सीटें भरी जानी है उसमें से 30% महिला होना चाहिए।
समझने के लिए मान लीजिए कि ST, SC एवं OBC; प्रत्येक वर्ग के लिए 100 सीटों पर रिक्तियाँ निकली है, ऐसे में एससी के 100 सीटों में से 30 सीटें महिलाओं द्वारा भरा जाएगा, एसटी के 100 सीटों में से 30 सीटें महिलाओं द्वारा भरा जाएगा और ओबीसी के 100 सीटों में से 30 सीटें महिलाओं द्वारा भरा जाएगा।
कुल मिलाकर यही इसका कॉन्सेप्ट है, वैसे विस्तार से समझने के लिए इस लेख को अवश्य पढ़ें – Vertical and Horizontal Reservation Concept Explained
FAQs Related to Reservation [pdf]
तो कुल मिलाकर इस लेख में हमने चार अलग-अलग प्रकार के आरक्षण और उस आरक्षण के संवैधानिक आधार को समझा है, कुछ भागों को जानबूझ कर ज्यादा विस्तार नहीं दिया गया है क्योंकि अगले भाग में हम विस्तार से उन सभी पहलुओं पर चर्चा करने वाले हैं।
अगले भाग को यहाँ से पढ़ें –
References,
https://legislative.gov.in/sites/default/files/COI.pdf
https://dopt.gov.in/sites/default/files/ch-11.pdf
Reservation in India
https://persmin.gov.in/DOPT/Brochure_Reservation_SCSTBackward/Ch-01_2014.pdf
https://socialjustice.nic.in/UserView/index?mid=76663
Commentary on constitution (fundamental rights) – d d basu
https://en.wikipedia.org/wiki/Reservation_in_India
FAQs Related to Reservation
https://dopt.gov.in/sites/default/files/FAQ_SCST.pdf
National Commission for Scheduled Castes [NCSC
National Commission for Scheduled Tribes [NCST]
National Commission for Backward Classes (NCBC)
Right to Equality
Fundamental Rights Introduction : Article 12 & 13
Conflict Between Fundamental Rights and DPSP & Encyclopedia Etc