इस लेख में हम शिक्षित बेरोजगारी (Educated unemployment) पर सरल एवं सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे;
तो अच्छी तरह से समझने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें और साथ ही बेरोज़गारी से संबंधित अन्य लेखों को भी पढ़ें, सबका लिंक नीचे दिया गया है।

| शिक्षित बेरोजगारी क्या है?
मोटे तौर पर देखें तो बेरोज़गारी को दो मुख्य हिस्सों में बांट सकते हैं – (1) अनैच्छिक बेरोजगारी और (2) ऐच्छिक बेरोजगारी।
ऐसे व्यक्ति, जो धन उपार्जन करना चाहता है और वह रोजगार की तलाश में भी है लेकिन रोजगार पाने में असमर्थ है, उसे बेरोज़गार कहा जाता है और इस स्थिति को अनैच्छिक बेरोजगारी कहा जाता है। अनैच्छिक इसीलिए क्योंकि काम करने की इच्छा तो है लेकिन काम ही नहीं मिल रहा है।
वहीं दूसरी तरफ, ऐसे व्यक्ति जो खुद ही काम नहीं करना चाहता या अगर करना भी चाहता है तो सैलरी कम मिलने के कारण नहीं करता है, तो ऐसी स्थिति को ऐच्छिक बेरोजगारी कहा जाता है। ऐच्छिक बेरोज़गारी को बेरोज़गारी की श्रेणी में नहीं रखा जाता है; ऐसा इसीलिए क्योंकि काम तो उपलब्ध है लेकिन किसी कारण से व्यक्ति खुद ही नहीं करना चाहता है।
तो कुल मिलाकर यहाँ याद रखने वाली बात ये है कि अनैच्छिक बेरोजगारी को ही बेरोजगारी माना जाता है और इसी अनैच्छिक बेरोजगारी को आगे चक्रीय बेरोजगारी, मौसमी बेरोजगारी, संरचनात्मक बेरोजगारी, संघर्षात्मक एवं प्रच्छन्न बेरोजगारी में विभाजित किया जाता है, (जिसे कि हम बेरोजगारी के प्रकार वाले लेख में विस्तार से चर्चा कर चुके हैं)।
शिक्षित बेरोज़गारी भी अनैच्छिक बेरोजगारी ही है क्योंकि यहाँ भी व्यक्ति काम तो करना चाहता है, धन तो उपार्जन करना चाहता है लेकिन उसे काम ही नहीं मिलता है। आइये विस्तार से समझते हैं;
| शिक्षित बेरोज़गारी (educated unemployment)
कोई व्यक्ति सालों लगाकर स्नातक, स्नातकोत्तर पढ़ाई कर लेता है लेकिन जब वह अपनी पढ़ाई समाप्त करके और डिग्री साथ लेकर बाज़ार में आता है तो उसे कोई काम ही नहीं मिलता है और वह बेरोजगार हो जाता है, तो इसी स्थिति को शिक्षित बेरोजगारी कहा जाता है।
आज के समय में शिक्षित बेरोजगारी भारत के आर्थिक समस्याओं का एक प्रमुख कारण है। क्योंकि आज शिक्षा का मूल मकसद धन उपार्जन करना ही है और इसीलिए लोग लाखों या करोड़ों रुपए खुद पर निवेश करते हैं ताकि जब वह बाज़ार में आए तो उसे मनचाहा काम मिल जाये।
लेकिन जब बाज़ार में रोजगार का सृजन ही नहीं हो रहा हो या अगर हो भी रहा है तो अपेक्षित योग्यता वाले लोग ही नहीं मिल पा रहे हों तो फिर शिक्षित बेरोज़गारी एक समस्या तो बनेगी।
हर साल लाखों स्टूडेंट्स ग्रेजुएट होकर निकलते हैं लेकिन उसमें से कुछ को जॉब मिल पाता है बाकी के नसीब में बेरोज़गारी ही आता है। यह स्थिति हमारे देश की आर्थिक विकास में बाधक बन रहा है, इसीलिए ये जानना जरूरी है कि इसका कारण क्या है?
| शिक्षित बेरोज़गारी के कारण
◼ जनसंख्या, या यूं कहें कि अधिक जनसंख्या, विकास की राह में रोड़ा अटकाने का काम करते हैं। एक अर्थव्यवस्था जिसमें 1.35 अरब लोग रहते हैं, हम शायद ही यह उम्मीद कर सकते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति की मांगें पूरी होती हैं। यहां बुनियादी खाद्य आपूर्ति और चिकित्सा उपचार को पूरा करने के लिए ही आबादी बहुत अधिक है, नौकरियों और नियुक्तियों की तो बात ही छोड़ दीजिए।
भारत उन शीर्ष 5 देशों में शामिल है जहां विश्वविद्यालयों में जाने वाले छात्रों की संख्या सबसे अधिक है। पर समस्या यह है कि अवसरों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं हुई है।
हर साल लाखों युवा ग्रेजुएट होकर तो निकलते हैं लेकिन ज़्यादातर के हाथ कोई रोजगार आता ही नहीं है। यह अंतर विशेष रूप से मंदी के समय में और बढ़ जाता है, जब कंपनियों और संगठनों को चरमराती अर्थव्यवस्था से निपटने में मुश्किल होती है, जिसके परिणामस्वरूप कर्मचारियों की छंटनी होती है, नए लोगों की भर्ती बहुत कम होती है।
◼ निम्न स्तरीय शिक्षण संस्थान – जब हम अपने शिक्षण संस्थानों की तुलना देश के बाहर के संस्थानों से करते हैं, तो हमें यह समझ में आता है कि हमारी शिक्षण पद्धति अत्यंत त्रुटिपूर्ण है। पुराने पाठ्यक्रम, घटिया शिक्षण संसाधन, बुनियादी ढांचे की कमी इन संस्थानों का पर्याय बन चुका है।
छात्रों को बाज़ार की जरूरतों को पूरा करने, या विषय को मूल रूप से समझने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है, बल्कि पाठ्यक्रम को रटने और सही ग्रेड प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। हालांकि नई शिक्षा नीति 2020 ने इन त्रुटियों को सुधारने का वादा तो किया है, लेकिन ये तो आने वाले समय में ही पता चल पाएगा।
◼ उचित कौशल या योग्यता का अभाव – किसी भी उद्योग में काम करने के लिए, आवश्यक कौशल और योग्यता पर ध्यान केंद्रित करना काफी महत्वपूर्ण है। हालांकि, आज अधिकांश युवाओं के पास डिग्री तो है लेकिन उस उपयुक्त कौशल का अभाव है जो एक नौकरी के लिए उनके पास होना चाहिए।
इस सब का कारण खोजने पर हमें कहीं-न-कहीं बुनियादी शिक्षा व्यवस्था में ही दोष नजर आता है। प्राथमिक स्तर पर ही संचार, भाषा या अन्य प्रासंगिक कौशलों पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है।
◼ महिलाओं का सशक्त न होना – ज्यादातर महिलाएं ग्रेजुएशन के बाद नौकरी लेने का विचार छोड़ देती हैं। यह मुख्य रूप से विवाह की संभावनाओं और अन्य पारिवारिक या सामाजिक अपेक्षाओं को पूरा करने में लग जाने के कारण होता है।
भारत में अभी भी कामकाजी महिला के विचार को व्यापक रूप से स्वीकृति नहीं मिली है, जबकि आज के समय में अधिकांश महिलाएं अपने करियर का निर्माण करने की इच्छा रखती हैं, समय की कमी और पारिवारिक दबाव हमेशा उन्हें अच्छे अवसरों को लेने से दूर करने का एक कारण रहा है।
| शिक्षित बेरोजगारी की समस्या
शिक्षित बेरोजगारों में से कुछ लोग तो ऐसे है जो अल्प-रोजगार की स्थिति में है। इनको थोड़ा बहुत काम तो मिला हुआ होता है लेकिन यह काम या तो उनके शिक्षा के अनुसार नहीं होता या फिर इनकी क्षमता से कम होता है.
इस रूप में इनकी बेरोजगारी छिपी होती है। कुछ शिक्षित व्यक्ति ऐसे भी है जिनको कुछ काम मिला नहीं होता है अर्थात् वे खुले रूप से बेरोजगार होते है ।
आज श्रमिक वर्ग की बेकारी उतनी चिंत्य नहीं है जितनी की शिक्षित वर्ग की। श्रमिक वर्ग श्रम के द्वारा कहीं न कहीं सामयिक काम पाकर अपना जीवनयापन कर लेता है, किन्तु शिक्षित वर्ग जीविका के अभाव में शारीरिक और मानसिक दोनों व्याधियों का शिकार बनता जा रहा है।
वह व्यवहारिकता से शून्य पुस्तकीय शिक्षा के उपार्जन में अपने स्वास्थ्य को तो गवां ही देता है, साथ ही शारीरिक श्रम से विमुख हो अकर्मण्य भी बन जाता है। परंपरागत पेशे में उसे एक प्रकार की झिझक का अनुभव होता है।
विश्वविद्यालय, कॉलेज व स्कूल प्रतिवर्ष बुद्धिजीवियों, क्लर्क और कुर्सी से जूझने वाले बाबुओं को पैदा करते जा रहे है। नौकरशाही तो भारत से चली गयी किन्तु नौकरशाही भारतवासियों के मस्तिष्क से नहीं गयी है ।
विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु आया विद्यार्थी आई.ए.एस और पी.सी.एस के नीचे तो सोचता ही नहीं है। यही हाल हाई स्कूल और इंटर वालों का भी है। पुलिस की सब-इंस्पेक्टरी और रेलवे की नौकरियों के दरवाजे खटखटाते रहते है।
कई व्यक्ति ऐसे है, जिनके यहाँ बड़े पैमाने पर खेती हो रही है। यदि अपने शिक्षा का सदुपयोग वैज्ञानिक प्रणाली से खेती करने में करें तो देश की आर्थिक स्थिति ही सुधर जाए। पर ऐसा होता नहीं है क्योंकि खेती करना एक निम्न स्तर का पेशा माना जाता है।
| शिक्षित बेरोजगारी आंकड़ों में
आंकड़ों के मुताबिक देश में बेरोजगारी की संख्या 10 करोड़ से अधिक है। सबसे ख़राब स्थिति पश्चिम-बंगाल, जम्मू-कश्मीर, झारखण्ड, बिहार, ओड़िसा और असम की है। वही सबसे अच्छे राज्यों में गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु है।
वर्ष 2001 की जनगणना में जहाँ 23 प्रतिशत लोग बेरोजगार थे, वही 2011 की जनगणना में इनकी संख्या बढ़कर 28 फिसद हो गयी। और 2020 के कोरोना महामारी के बाद तो लाखों लोग जिसको नौकरी मिली हुई थी, उस भी अपनी नौकरी गवानी पड़ी।
इस बीच अंतर्राष्ट्रीय श्रम आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में भारत में बेरोजगारी के मसले को उठाया। उसके अनुसार, महिला रोजगार संकट में है, पूंजी आधारित रोजगार के अवसर कम हो रहे है।
कृषि जैसे क्षेत्रों में अब उतनी मजदूरी नहीं बची। वहां से लोगों को निकाला जा रहा है। लेकिन ये महिलाएँ अभी दूसरे श्रेणी जैसे सर्विस सेक्टर में काम नहीं कर सकती क्योंकि उनके पास उतनी योग्यता नहीं है।
शैक्षणिक योग्यता के आधार पर आप नीचे दिये गए चार्ट में देख सकते हैं कि 2019 में बेरोज़गारी की क्या स्थिति थी।

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तो कुल मिलाकर ये है भारत में शिक्षित बेरोज़गारी और उसकी स्थिति, उम्मीद है समझ में आया होगा। बेरोज़गारी से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण लेखों का लिंक नीचे दिया जा रहा है, बेहतर समझ के लिए उसे भी अवश्य पढ़ें।
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| बेरोज़गारी से संबंधित महत्वपूर्ण लेख
बेरोजगारी क्या है
बेरोजगारी के प्रकार
बेरोजगारी के कारण
बेरोजगारी के दुष्परिणाम
बेरोज़गारी निवारण के उपाय
जनसंख्या समस्या, उसका प्रभाव एवं समाधान
आज जब जनसंख्या समस्या की बात कर रहे है तो वो समय याद आता है। हाँ ! वही समय – जब भूत प्रेत हुआ करता था, लोगों को अंधेरे से डर लगता था, जंगलों से डर लगता था। पर अब ऐसा समय आ गया है कि अगर भुतिया जंगलों में भी जाओगे तो भूत मिले न मिले लोग जरूर मिलेंगे वो भी अगर फोन से चिपके मिले तो उसमें कोई बड़ी बात नहीं! जिधर देखो लोग ही लोग नजर आते है।
और शायद इसीलिए भारत में जनसंख्या आज एक बहुत बड़ी समस्या का रूप ले चुका है। पता नहीं लोगों को हो क्या गया था।
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