इस लेख में हम ‘अभिव्यक्ति की आजादी (Freedom of Expression)’ पर सरल और सहज चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे।

तो अच्छी तरह से समझने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें और साथ ही इस टॉपिक से संबंधित अन्य लेखों को भी पढ़ें – अन्य मौलिक अधिकार

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आजादी की अवधारणा

आजादी किसे अच्छी नहीं लगती! इतिहास पलट के देखों तो पता चलता है कि आधे से ज्यादा इतिहास तो लोगों के आजादी के लिए संघर्ष करते ही बीती है। पर क्यों ?

क्योंकि आजादी सीधे मानवजाति के विकास से जुड़ा है। हम एक विवेकशील प्राणी है और आज हम इतनी तरक्की इसलिए कर पाएँ है क्योंकि हमें इच्छा अनुरूप आजादी मिली।

इसमें भी हम अगर अभिव्यक्ति की आजादी की बात करें तो ये कोई ऐसा अधिकार नहीं है जिसे किसी विधि द्वारा दिया जाए बल्कि ये प्राकृतिक है और इसे छीना नहीं जा सकता।

वैसे परिभाषा की बात करें तो आज़ादी का मतलब होता है, व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबंधों का अभाव। लेकिन याद रखिए कि आज़ादी अपने आप में कोई निरपेक्ष भाव नहीं है, बल्कि समय, काल एवं परिस्थितियों का इस पर गहरा प्रभाव होता है।

आज़ादी सकारात्मक भी हो सकती है और नकारात्मक भी (हमने इसे स्वतंत्रता का अधिकार में समझा है)। इसीलिए हमें प्रतिबंधों की जरूरत पड़ती है और अभिव्यक्ति की आज़ादी इससे अलग नहीं है। आइये इसे विस्तार से समझते हैं;

अनुच्छेद 19 – अभिव्यक्ति की आज़ादी आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण

भारतीय संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 19 से लेकर अनुच्छेद 22 तक स्वतंत्रता का अधिकार की चर्चा की गई है, जिसे कि आप नीचे देख सकते हैं;

अनुच्छेद 19 – छह अधिकारों की सुरक्षा; (1) अभिव्यक्ति (2) सम्मेलन (3) संघ (4) संचरण (5) निवास (6) व्यापार
अनुच्छेद 20 – अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण
अनुच्छेद 21 – प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता
अनुच्छेद 21क – प्रारम्भिक शिक्षा का अधिकार
अनुच्छेद 22 – गिरफ़्तारी एवं निरोध से संरक्षण

अनुच्छेद 19 (1) के तहत सभी नागरिकों को,

(a) अभिव्यक्ति की आजादी का, (b) शांतिपूर्वक और बिना हथियार के सम्मेलन का, (c) संघ या गुट बनाने का, (d) भारत में निर्बाध कहीं भी घूमने का, (e) भारत में कहीं भी बस जाने का, और (f) *** (g) भारत में कहीं भी व्यापार करने का, अधिकार होगा।

*** मूल संविधान के तहत अनुच्छेद 19 में 7 अधिकारों की चर्चा थी, लेकिन (f) जो कि संपत्ति खरीदने या बेचने के अधिकार से संबन्धित था; उसे 1978 में 44वें संविधान संशोधन के माध्यम से हटा दिया गया। और अनुच्छेद 300क के तहत इसे रख दिया गया।

आप देख सकते हैं कि अनुच्छेद 19 के पहले खंड के तहत 6 अधिकारों को सुनिश्चित किया गया है, जिसमें से पहला है अभिव्यक्ति की आज़ादी (Freedom of Expression)।

| अभिव्यक्ति की आज़ादी अवधारणा

अभिव्यक्ति की आज़ादी एक नैसर्गिक या कॉमन लॉ है, यानी कि ये उस श्रेणी की आज़ादी नहीं है जिसे कि विधि द्वारा दिया और छीना जा सकता है, बल्कि ये प्रकृति प्रदत है और किसी कानून द्वारा इसका प्रावधान न भी हो तो भी लोग खुद को अभिव्यक्त करेंगे ही। यहाँ तक कि कानून बनाना भी एक प्रकार की अभिव्यक्ति ही है।

◾ अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार और मत पूर्णतया अभिव्यक्त करने का अधिकार है। वह चाहे बोलकर करे, लिखकर करे, मुद्रण से करे, चित्र द्वारा करे या किसी अन्य रीति से करे (जैसे कि इशारों के माध्यम से)।

यहाँ पर ये याद रखिए कि इसमें प्रेस की स्वतंत्रता भी सम्मिलित है और साथ ही किसी भी दृश्य निरूपण द्वारा भावभंगिमा से अपने विचार अभिव्यक्त करने की आज़ादी भी इसी के तहत आता है, जैसे कि नृत्य एवं अभिनय।

◾ अभिव्यक्ति की आजादी में सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित बातों को सम्मिलित किया है;

(1) अपने या किसी अन्य के विचारों को प्रचारित-प्रसारित करने का अधिकार।

(2) प्रेस एवं विज्ञापन की स्वतंत्रता,

(3) सरकारी गतिविधियों की जानकारी का अधिकार,

(4) शांति का अधिकार,

(5) प्रदर्शन एवं विरोध का अधिकार, लेकिन हड़ताल का अधिकार नहीं।

याद रखिए कि ये सारी चीज़ें संविधान में इस तरह से लिखी नहीं गई है, लेकिन अब ये एक स्थापित तथ्य है कि ये सारे अधिकार अभिव्यक्ति की आजादी के तहत ही आएंगी।

🔴 हम आए दिन देखते हैं कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर कुछ भी बोल दिया जाता है, कुछ भी छाप दिया जाता है, कुछ भी दिखा दिया जाता है। यहाँ तक हम इस आज़ादी के नाम पर देश की एकता एवं अखंडता को खंडित करने वाले बयान भी देखते एवं सुनते हैं;

तो सवाल यही आता है कि क्या अभिव्यक्ति की आज़ादी निरपेक्ष (Absolute) है या निर्बंधनों (Restrictions) से मुक्त है? क्या इस आजादी के नाम पर कुछ भी किया जा सकता है?

जवाब है नहीं! आज़ादी दो-धारी तलवार की तरह है और इसकी पूरी गुंजाइश है कि इससे हम खुद का ही नुकसान कर बैठे या अपनी संस्कृति या अपने राष्ट्र का नुकसान कर बैठें।

ऐसा न हो इसीलिए राज्य द्वारा इस पर कुछ युक्तियुक्त प्रतिबंध (reasonable restriction) लगाए गए है, क्या है वो प्रतिबंध, आइए समझते हैं लेकिन आपके मन में ये सवाल आ सकता है कि आखिर ये युक्तियुक्त प्रतिबंध क्या है?

Q. युक्तियुक्त प्रतिबंध (reasonable restriction) क्या है?
युक्तियुक्त प्रतिबंध का मतलब है कि किसी व्यक्ति के अधिकारों के उपभोग पर लगाई गई सीमा न तो मनमानी हो और न लोकहित में जितनी आवश्यक है उससे अधिक हो।

आसान भाषा में कहें तो, प्रतिबंध लगाना तो जरूरी है लेकिन राज्य को खुली छूट तो नहीं दी जा सकती, नहीं तो वो अपने मन से या अपने फायदे की दृष्टि से किसी भी अधिकार पर प्रतिबंध लगा सकता है।

इसीलिए युक्तियुक्त प्रतिबंध की अवधारणा को अपनाया गया ताकि जब भी राज्य प्रतिबंध लगाने की सोचे तो उसका आधार तार्किक एवं न्यायसंगत हो।

अभिव्यक्ति की आजादी और उस पर निर्बंधन

राज्य, अगर चाहे तो निम्नलिखित आधारों पर अभिव्यक्ति की आजादी पर निर्बंधन अधिरोपित कर सकता है। ये आधार अनुच्छेद 19 के खंड 2 में लिखित है;

1. राज्य की सुरक्षा,

2. विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध,

3. लोक व्यवस्था,

4. शिष्टाचार या सदाचार,

5. न्यायालय-अवमान,

6. मानहानि,

7. अपराध उद्दीपन,

8. भारत की प्रभुता और अखंडता।

1. राज्य की सुरक्षा (state security) याद रखिए कि राज्य को लोक सुरक्षा या लोक व्यवस्था के साधारण भंग से कोई खतरा उत्पन्न नहीं होता। बल्कि
राज्य की सुरक्षा को ऐसे हिंसात्मक अपराधों से खतरा होता है जिसका उद्देश्य सरकार को पलटना, सरकार के विरुद्ध युद्ध और विद्रोह करना होता है।

कहने का अर्थ है कि जब भी राज्य को हिंसात्मक अपराधों जैसी कोई स्थिति दिखाई देगी तो वे प्रतिबंधों का इस्तेमाल कर सकती है।

2. विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (friendly relations with foreign states) सह-अस्तित्व के लिए जरूरी होता है कि एक-दूसरे का सम्मान किया जाए। आमतौर पर दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध कुछ बात-व्यवहारों पर ही टिका होता है। तो ऐसे में किसी को भी अभिव्यक्ति के नाम पर विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध को ख़राब करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

3. लोक व्यवस्था (public order) लोक व्यवस्था का अर्थ है लोक शांति, सुरक्षा और प्रशांति। अगर कोई अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर सुरक्षा व्यवस्था, या शांति को भंग करता है तो राज्य युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सकती है।

4. शिष्टाचार या सदाचार (manners or morality) इस अपवाद का प्रयोजन उन भाषणों और प्रकाशनों पर निर्बंधन लगाना है जो नैतिकता पर आघात करते हों। कोई कथन शिष्टाचार या सदाचार के विरुद्ध है या नहीं इस प्रश्न का अवधारण इस बात से होगा कि जिन लोगों को वह संबोधित है, उन पर उसका आगे प्रभाव होना तय है।

5. न्यायालय का अवमान (contempt of court) अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार के आधार पर कोई व्यक्ति न्याय के कार्य में हस्तक्षेप नहीं कर सकता या किसी न्यायालय की आलोचना करने का दिखावा करते हुए न्यायालय की प्रतिष्ठा या प्राधिकार को नीचा नहीं कर सकता।

न्यायालय को बकायदे अवमानना पर दंडित करने की शक्ति भी प्राप्त है। हालांकि याद रखिए कि आलोचना का मतलब अवमानना नहीं होता।

6. मानहानि (defamation) ये दरअसल प्रतिष्ठा के अधिकार को बनाए रखने से संबन्धित है। कहने का अर्थ है कि कोई व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग दूसरे व्यक्ति की प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचाने के लिए नहीं कर सकता।

7. अपराध उद्दीपन (Guilt Provocation) – कोई व्यक्ति अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग करके किसी को हत्या करने को उकसा नहीं सकता है।

8. भारत की प्रभुता और अखंडता (India’s sovereignty and integrity) संविधान के 16वें संशोधन द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निर्बंधन के आधार पर इस धारा को जोड़ा गया है। इसका उद्देश्य दक्षिण में द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम और कश्मीर में जनमत मोर्चा जैसे संगठनों द्वारा देश के विभाजन की मांग को और उसके अनुसरण में किए गए कार्यकलाप को रोकना था।

कहने का अर्थ है कि किसी भी ऐसे विचार को फलने-फूलने की इजाजत नहीं दी जा सकती है जो कि देश को तोड़ने से संबन्धित हो।

प्रेस की स्वतंत्रता और संबन्धित तथ्य:

जैसा कि हमने ऊपर भी चर्चा किया है कि प्रेस की स्वतंत्रता नाम से कोई अलग सेक्शन संविधान में नहीं है बल्कि इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी के तहत ही रखा गया है।

यहाँ याद रखिए कि प्रेस की स्वतंत्रता आम नागरिकों को मिलने वाली स्वतंत्रता से उच्चतर नहीं है बल्कि इस पर भी वे सभी प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं जो कि अनुच्छेद 19(2) के तहत अभिव्यक्ति की आज़ादी पर लगाए जाते है।

फिर भी कुछ ऐसी चीज़ें है जिसे राज्य नहीं कर सकती है, जैसे कि –

  1. प्रेस को ऐसी किसी विधि के अधीन नहीं किया जा सकता है जो कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को छीनती है।
  2. प्रेस पर जानबूझकर ऐसा कोई कर (Tax) नहीं लगाया जा सकता है जिससे कि उसकी सूचना के परिचालन की सीमा बंध जाए।
  3. राज्य प्रेस को अपनी पृष्ठ संख्या कम करने को या फिर उसकी कीमत बढ़ाने को नहीं कह सकती।
  4. उस भवन को जानबूझकर नहीं गिराया जा सकता जिससे कि प्रेस कार्य बाधित हो जाए।

सेंसर की संवैधानिकता

किन्ही प्रकार के अभिव्यक्तियों को सेंसर किया जा सकता है अगर वो अयुक्तियुक्त नहीं है तो। जैसे कि अगर आपात स्थितियों में पूर्वानुमान के आधार पर अगर कोई कार्यवाही की जाती है वो युक्तियुक्त होगी। जैसे कि शांति भंग होने की अंदेशा से प्रतिबंध घटना घटने से पहले भी लगाया जा सकता है।

अगर ये प्रतीत होता है कि किसी फिल्म से कुछ विषम परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती है तो फिल्म को सेंसर किया जा सकता है।

तो उम्मीद है आपको अभिव्यक्ति की आज़ादी समझ में आई होगी। विस्तार से समझने के लिए स्वतंत्रता का अधिकार और अनुच्छेद 19 से 22 तक अवश्य समझें।

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