Fundamental duties

Fundamental duties

मूलमू कर्तव्यों का वि श्लेषण। Fundamental duties [UPSC] 

इस लेख में हम मूलमू कर्तव्यों (Fundamental duties यों ) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके वि भि न्न महत्वपूर्ण पहलुओंलु ओंको समझने का प्रया स करेंगे; 

तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें और मूलमू कर्तव्य को अच्छे से समझें, सा थ ही अन्य संबन्धि त लेखों को भी पढ़ें। 

हम इस धरती (इंडि या ) पर जन्म लि ए है। इस धरती ने हमें अच्छी ज़िं दगी जी ने के लि ए ढेरों अधि का र दि ये है, ऐसे में उसकी , हमसे कुछ अपेक्षा एँ हो ना वा ज़ि ब है। 

मूलमू कर्तव्य क्या है

▶ मूलमू अधि का र जहां हमें अधि का र देती है वहीं मूलमू कर्तव्य हमसे कुछ अपेक्षा एँ रखती है। वैसे मूलमू कर्तव्य मूलमू संवि धा न का हि स्सा नहीं थी इसे 1976 में संवि धा न का हि स्सा बना या गया ।

1/7 

क्यों बना या गया ये थो ड़ा वि वा दास्पद मुद्दामुद्दा है लेकि न फि र भी समा ज या संवि धा न पर इससे को ई बुराबुरा असर पड़ा है ऐसा नहीं कहा जा सकता है। 

▶ आमतौ र पर मूलमू अधि का र अक्सर चर्चा में रहता है। शा यद इसी लि ए क्यों कि वो एक अधि का र है और हम कुछ भी करके अपने अधि का र को तो नहीं छो ड़ने वा ले। उसके लि ए भले ही सुप्सुप्री म को र्ट ही क्यों न जा ना पड़े। पर मूलमू कर्तव्य का क्या ? 

इसके बा रे में आमतौ र पर कम ही चर्चा हो ती है। क्यों कि शा यद हम लेना जा नते हैं देना नहीं ।हीं मूलमू कर्तव्य मो टे तौ र पर रा ष्ट्र को कुछ देने के बा रे में हैं। क्या देने के बा रे में उसकी चर्चा करने से पहले आइये थो ड़ा जा न लेते हैं कि ये कैसे अस्ति त्व में आया ? 

मूलमू कर्तव्यों का अस्ति त्व में आना 

जब संवि धा न बना या गया था उस समय मूलमू कर्तव्य को संवि धा न का हि स्सा नहीं बना या गया था । हा लां कि रा ज्य के नी ति नि देशक तत्व के रूप में रा ज्यों के कर्तव्य तय कर दि ये गए थे पर वि शेष रूप से जनता के लि ए कर्तव्य तय नहीं कि ए गए। इसकी जरूरत समझी इन्दि रा गां धी की सरका र ने। 

हा लां कि उन्हो ने इसकी जरूरत तब समझी जब देश में आपा तका ल लगा हुआ था और ये आपा तका ल लगा या भी उन्हो ने ही था । इसी लि ए कुछ लो ग इसे अच्छी नजर से नहीं देखते हैं, वे मा नते हैं कि इसे ला ने के पी छे उनका नि यत सही नहीं था । 

खैर उन्हो ने जो भी सो चा हो पर इसकी अच्छी बा त ये थी कि उन्हो ने इसके लि ए 1976 में एक समि ति का गठन कि या । ये समि ति सरदार स्वर्ण सिं ह के अध्यक्षता में बना या गया था । 

इस समि ति का का म मूलमू कर्तव्यों की आवश्यकता एवं प्रा वधा न आदि सि फ़ा रि श करना था । उस समय देश में आपा तका ल लगा हुआ था । वि पक्ष के सा रे बड़े नेता जेल में बंद कर दि ये गए थे, प्रेस पर कई प्रका र का प्रति बंध लगा दि या गया था । आपा तका ल 1975 से 1977 तक चला था । 

इस समि ति ने सि फ़ा रि श कि या कि संवि धा न में मूलमू कर्तव्यों का एक अलग पा ठ हो ना चा हि ए। और उन्हो ने इस बा त को भी रेखां कि त कि या कि ना गरि कों को अधि का रों के प्रयो ग के अला वा अपने कर्तव्यों को भी नि भा ना आना चा हि ए। 

चूंकि सरका र खुदखु भी यही चा हती थी इसी लि ए इस समि ति की सफा रि शों को मा न लि या गया । और 1976 में ही 42वां संवि धा न संशो धन करके संवि धा न में एक नया भा ग – भा ग ‘4क’ को जो ड़ा गया । 

इसी भा ग के अंतर्गत एक अनुच्नुछेद बना या गया जि से कि अनुच्नुछेद 51 ‘क’ कहा गया । और इसी अनुच्नुछेद 51 ‘क’ के अंतर्गत मूलमू कर्तव्यों को वर्णि त कि या गया । 

सरदार स्वर्ण सिं ह की समि ति ने कुल 8 मूलमू कर्तव्यों को जो ड़ने की सि फ़ा रि श की थी लेकि न इन्दि रा गां धी को इसमें कुछ मि सिं ग लगा इसी लि ए उन्हो ने 2 और को जुड़जुवा दि या और इस तरह से कुल 10 मूलमू कर्तव्यों को एक संवैधा नि क प्रा वधा न बना दि या गया । 

आगे चलकर 2002 में जब अटल बि हा री बा जपेयी की सरका र थी तब इसमें एक और मूलमू कर्तव्य को जो ड़ा गया और इस तरह से आज संवैधा नि क रूप से 11 मूलमू कर्तव्य है जो अस्ति त्व में है।

2/7 

“मूलमू कर्तव्यों का नैति क मूलमू अधि का रों को को मल करना नहीं हो ना चा हि ए लेकि न लो कतां त्रि क संतुलतु न बना ते हुए लो गों को अपने अधि का रों के समा न कर्तव्यों के प्रति भी सजग रहना चा हि ए।” 

इन्दि रा गां धी 

List of Fundamental duties (Art. 51A) 

भा रत के प्रत्येक ना गरि क का कर्तव्य हो गा कि वह: – 

1. संवि धा न का पा लन करें और उसके आदर्शों , संस्था ओं, ओं रा ष्ट्र ध्वज और रा ष्ट्र गा न का आदर करें। 

2. स्वतंत्रत् ता के लि ए हमा रे रा ष्ट्री य आंदोलन को प्रेरि त करने वा ले उच्च आदर्शों को हृदय में संजो ए रखें और उनका पा लन करें। 

3. भा रत की संप्रभुताभुता, एकता और अखंडखं ता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें। 

4. देश की रक्षा करें और आह्वा न कि ए जा ने पर रा ष्ट्र की सेवा करें। 

5. भा रत के सभी लो गों में समरसता और समा न भ्राभ् रातृत्तृव की भा वना का नि र्वा ण करें जो धर्म, भा षा और प्रदेश या वर्ग आधा रि त सभी भेदभा व से परे हों , ऐसी प्रथा ओं का त्या ग करें जो स्त्रि यॉं के सम्मा न के वि रुद्ध हैं। 

6. हमा री सा मा सि क संस्कृति (Composite culture) की गौ रवशा ली परंपरा का महत्व समझें और उसका परि रक्षन करें। 

7. प्रा कृति क पर्या वरण की , जि सके अंतर्गत वन, झी ल, नदी और वन्य जी व हैं, रक्षा करें और उसका संवर्धन करें तथा प्रा णि मा त्रत् के प्रति दया भा व रखें। 

8. वैज्ञा नि क दृष्टिदृष्टि को ण मा नववा द और ज्ञा ना र्जन तथा सुधासुधार की भा वना का वि का स करें। 9. सा र्वजनि क संपत्ति को सुरसुक्षि त रखें और हिं सा से दूरदू रहें। 

10. व्यक्ति गत और सा मूहिमूहिक गति वि धि यों के सभी क्षेत्रोंत् रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रया स करें जि ससे रा ष्ट्र नि रंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊंचा इयों को छू ले। 

11. 6 से 14 वर्ष की उम्रम् के बी च अपने बच्चों के लि ए शि क्षा के अवसर उपलब्ध करा एं।एं (इसे 2002 में 86वें संवि धा न संशो धन द्वा रा जो ड़ा गया ) 

मूलमू कर्तव्यों की वि शेषता एं 

▶ इसमें से कुछ कर्तव्य नैति क कि स्म के हैं जि समें बा ह्य तौ र पर कुछ भी नहीं करना है बस अपने नैति कता के प्रति मा नों को उस हि सा ब से ढा लना है। उदाहरण के लि ए आप दूसदू रे नंबर के कर्तव्य को देखि ये।

3/7 

▶ इसी प्रका र से कुछ कर्तव्य ऐसे है जि समें जरूरत पड़ने पर कुछ करने का भा व है। उदाहरण के लि ए आप कर्तव्य नंबर 4, 6, 7, 9 आदि को देख सकते हैं। 

▶ जहां मूलमू अधि का र के हनन पर आप सी धे न्या या लय जा सकते हैं और न्या या लय मूलमू अधि का रों को ला गू करवा ता है, वहीं मूलमू कर्तव्य गैर-न्या यो चि त है, या नी कि इसके हनन पर न्या या लय इसे क्रि या न्वि त नहीं करवा सकता है। 

▶ कुछ मूलमू अधि का र ऐसे हैं जो वि देशि यों पर भी ला गू हो ता है लेकि न मूलमू कर्तव्य केवल देश के ना गरि कों पर ला गू हो ता है। मूलमू कर्तव्यों को भा रती य परंपरा , पौ रा णि क कथा ओं, ओं धर्म आदि के अनुरूनु प ही बना या गया है ता कि ये आसा नी से लो गों के जी वन का हि स्सा बन जा ये। 

मूलमू कर्तव्यों का महत्व 

▶ ये एक सचेतक के रूप में का म करता है। या नी कि जब भी हम मूलमू अधि का रों का इस्तेमा ल करते हैं तो हमें ये या द दि ला ता है कि देश के प्रति हमा रा कुछ कर्तव्य भी है और हमें उसका भी नि र्वहन करना चा हि ए। 

▶ मूलमू कर्तव्य हमें रा ष्ट्र वि रो धी का म करने से रो कने का का म करता है। जैसे कि रा ष्ट्र ध्वज को जला ना , सा र्वजनि क संपत्ति को नष्ट करना आदि । 

▶ मूलमू कर्तव्य हम में प्रेरणा की भा वना को बलवती करता है और ये हमें एहसा स दि ला ता है कि ये देश हमा रा है और देश को गढ़ने में हमा रा भी यो गदान मा यने रखता है। 

मूलमू _कर्तव्यों से जुड़ेजुड़ेकुछ तथ्य 

▶ जब मूलमू कर्तव्य को संसद में ला या गया था तो वि पक्षी दलों ने इसका का फी वि रो ध कि या था । वे लो ग इसे संवि धा न में जो ड़े जा ने के पक्ष में नहीं थे। 

लेकि न दि लचस्प बा त ये है कि 1977 में जब इन्दि रा गां धी की सरका र गि र गयी और मो रा र जी देशा ई की सरका र सत्ता में आयी तो उसने इसमें को ई बदला व नहीं कि या । 

जबकि आपको पता हो गा कि 1978 में 44वां संवि धा न संशो धन करके मो रा र जी देशा ई की सरका र ने इन्दि रा गां धी द्वा रा बना ए गए बहुत सा रे नि यम-क़ा नूनोंनूनों को खत्म कर दि या था । लेकि न मूलमू कर्तव्यों को खत्म नहीं कि या इससे पता चलता है कि मूलमू कर्तव्य देश के लि ए वा कई जरूरी था । 

▶ 1976 में मूलमू कर्तव्य को ला गू करते समय, इसको और ज्या दा प्रभा वी और बा ध्यका री बना ने को लेकर भी सि फ़ा रि शें आयी थी जैसे कि (1) अगर को ई मूलमू कर्तव्यों का अनुपानुपालन न करें तो उसे आर्थि क दंड या शा री रि क दंड दि या जा ए। (2) कर अदायगी (Tax payment) को ना गरि क का मूलमू कर्तव्य बना या जा ना चा हि ए। 

इसे संवि धा न में शा मि ल तो नहीं कि या गया । लेकि न मूलमू कर्तव्य के असफल रहने रहने पर संसद उनमें उचि त अर्थदंड या सजा का प्रा वधा न कर सकती है। 

हा लां कि जरूरत पड़ने पर बहुत सा रे मूलमू कर्तव्यों को सपो र्ट देने के लि ए कई नि यम-अधि नि यम आदि बना ए गए हैं। जैसे कि इंडि यन फ्लैग को ड को ही लें तो इसे 2002 में जा री कि या गया था जि समें भा रती य झंडे के आदर, सम्मा न और झंडे फहरा ने के नि यम आदि को वर्णि त कि या गया है। आप इसे यहाँ क्लि क करके पढ़ सकते हैं। 

▶ इसके अला वे वन्य जी व संरक्षण संरक्षण अधि नि यम 1972, वन संरक्षण अधि नि यम 1980, सि वि ल अधि का र संरक्षण अधि नि यम 1955, रा ष्ट्री य गौ रव अपमा न अधि नि यम 1971 आदि को देखें तो ये मूलमू कर्तव्यों को और भी जरूरी बनती है।

4/7 

जि तने भी इस प्रका र के कर्तव्य है जि स पर कि सी न कि सी रूप में का नूननू बनी हुई है उसे पहली बा र 1999 में वर्मा समि ति ने आइडेंटि फा ई कि या था । 

मूलमू कर्तव्यों की आलो चना (Criticism of fundamental duties) 

▶ कर्तव्यों की सूची अधूरीधूरी है क्यों कि इसमें बहुत सा रे अन्य कर्तव्यों को शा मि ल नहीं कि या गया है जैसे कि – मतदान, टैक्स आदायगी , परि वा र नि यो जन आदि । हा लां कि 1976 में स्वर्ण सिं ह समि ति ने कर आदायगी को भी मूलमू कर्तव्य बना ने की बा त सरका र के सा मने रखी थी लेकि न उसे श्रीश् रीमती गां धी ने शा मि ल नहीं कि या । 

▶ कुछ कर्तव्यों की भा षा इतनी अस्पष्ट और क्लि ष्ट है कि आम लो गों की समझ से परे है। जैसे कि – सा मा सि क संस्कृति (Composite culture), उच्च आदर्श आदि । 

▶ चूंकि ये गैर-न्या यो चि त है इसी लि ए लो ग इसे मा ने या न मा ने इससे को ई फर्क नहीं पड़ता है। हा लां कि स्वर्ण सिं ह मूलमू कर्तव्य में दंड या सजा को जो ड़ने के पक्ष में थे लेकि न श्रीश् रीमती गां धी ने इसे संवि धा न में शा मि ल करने से मा ना कर दि या था । 

कुल मि ला कर यही है मूलमू कर्तव्य, उम्मी द है आप समझ गए हों गे। अन्य जरूरी लेखों को पढ़ने के लि ए नी चे स्क्रॉ ल करें।