39वें संविधान संशोधन के माध्यम से उसे नौंवी अनुसूची में डाल दिया गया ताकि उसकी न्यायिक समीक्षा न हो सके।
मिनर्वा मिल्स का पक्ष
इन्होने मिनर्वा मिल्स के राष्ट्रीयकरण के ऑर्डर को चैलेंज किया, साथ ही इनकी तरफ से Sick Textile Undertakings (Nationalisation) Act, 1974 के कुछ प्रावधानों को भी चैलेंज किया गया जैसे कि धारा 5(b), 19(3), 21, 25 आदि।
42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के धारा 4 और धारा 55 को चैलेंज किया गया
इसके अलावा मौलिक अधिकार के ऊपर नीति निदेशक तत्वों की सर्वोच्चता को भी चैलेंज किया गया।
सुप्रीम कोर्ट के सामने प्रश्न
42वें संविधान संशोधन के धारा 4 के तहत अनुच्छेद 31C में और धारा 55 के तहत अनुच्छेद 368 में जो परिवर्तन किया गया है, क्या वो संविधान के मूल ढांचे को हानि पहुंचाता है?
क्या राज्य के नीति निदेशक तत्व को मौलिक अधिकार के ऊपर सर्वोच्च माना जा सकता है?
42वें संविधान संशोधन की धारा 4
इस संशोधन अधिनियम के धारा 4 के माध्यम से अनुच्छेद 31C में परिवर्तन कर दिया गया था। जहां पहले ये लिखा हुआ था कि – अनुच्छेद 39 ख और ग के आधार पर बनाया गया कोई विधि इस आधार पर शून्य करार नहीं दिया जा सकता कि वो अनुच्छेद 14 या 19 का उल्लंघन करती है।
अब इसमें बदलाव करके ये लिखवा दिया गया था कि राज्य के नीति निदेशक तत्व के किसी भी प्रावधान के तहत अगर कोई विधि बनायी जाती है तो उसे इस आधार पर खारिज नहीं किया जाएगा कि वो अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19 का हनन करती है। इसी को मौलिक अधिकार पर DPSP की सर्वोच्चता कहा गया।
42वें संविधान संशोधन की धारा 55
इस धारा के माध्यम से अनुच्छेद 368 में क्लॉज़ 4 और 5 जोड़ा गया, जिसके प्रावधान निम्न थे –
4 – संविधान का कोई भी संशोधन (मूल अधिकारों में संशोधन सहित) जो अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित किया है भले ही वो धारा 55 के आने से पहले का हो या उसके बाद का हो; न्यायालय में उसको किसी भी आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है।
5 – संदेह को दूर करने के लिए, यह घोषित किया गया है कि अनुच्छेद 368 के तहत संविधान के प्रावधान में संशोधन या निरस्त करने के लिए संसद की घटक शक्ति पर कोई सीमा नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 से फैसला सुनाते हुए कहा कि (1) 42वें संविधान संशोधन अधिनियम की धारा 4 और 55 असंवैधानिक है। संसद की संविधान संशोधन करने की शक्ति असीमित नहीं है, क्योंकि संसद की संविधान संशोधन करने की सीमित शक्ति ही संविधान का मूल ढांचा है। (2) Nationalization Act 1974 के वैधता को सही माना गया।
इस तरह से फिर से एक बार मौलिक अधिकारों के महत्व को राज्य के नीति निदेशक तत्व से ज्यादा माना गया और मौलिक अधिकारों एवं नीति निदेशक सिद्धांतों के बीच सौहार्द एवं संतुलन को संविधान का मूल ढांचा माना गया।
39वें संविधान संशोधन के माध्यम से उसे नौंवी अनुसूची में डाल दिया गया ताकि उसकी न्यायिक समीक्षा न हो सके।
39वें संविधान संशोधन के माध्यम से उसे नौंवी अनुसूची में डाल दिया गया ताकि उसकी न्यायिक समीक्षा न हो सके।
मिनर्वा मिल्स का पक्ष
इन्होने मिनर्वा मिल्स के राष्ट्रीयकरण के ऑर्डर को चैलेंज किया, साथ ही इनकी तरफ से Sick Textile Undertakings (Nationalisation) Act, 1974 के कुछ प्रावधानों को भी चैलेंज किया गया जैसे कि धारा 5(b), 19(3), 21, 25 आदि।
42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के धारा 4 और धारा 55 को चैलेंज किया गया
इसके अलावा मौलिक अधिकार के ऊपर नीति निदेशक तत्वों की सर्वोच्चता को भी चैलेंज किया गया।
सुप्रीम कोर्ट के सामने प्रश्न
42वें संविधान संशोधन के धारा 4 के तहत अनुच्छेद 31C में और धारा 55 के तहत अनुच्छेद 368 में जो परिवर्तन किया गया है, क्या वो संविधान के मूल ढांचे को हानि पहुंचाता है?
क्या राज्य के नीति निदेशक तत्व को मौलिक अधिकार के ऊपर सर्वोच्च माना जा सकता है?
42वें संविधान संशोधन की धारा 4
इस संशोधन अधिनियम के धारा 4 के माध्यम से अनुच्छेद 31C में परिवर्तन कर दिया गया था। जहां पहले ये लिखा हुआ था कि – अनुच्छेद 39 ख और ग के आधार पर बनाया गया कोई विधि इस आधार पर शून्य करार नहीं दिया जा सकता कि वो अनुच्छेद 14 या 19 का उल्लंघन करती है।
अब इसमें बदलाव करके ये लिखवा दिया गया था कि राज्य के नीति निदेशक तत्व के किसी भी प्रावधान के तहत अगर कोई विधि बनायी जाती है तो उसे इस आधार पर खारिज नहीं किया जाएगा कि वो अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19 का हनन करती है। इसी को मौलिक अधिकार पर DPSP की सर्वोच्चता कहा गया।
42वें संविधान संशोधन की धारा 55
इस धारा के माध्यम से अनुच्छेद 368 में क्लॉज़ 4 और 5 जोड़ा गया, जिसके प्रावधान निम्न थे –
4 – संविधान का कोई भी संशोधन (मूल अधिकारों में संशोधन सहित) जो अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित किया है भले ही वो धारा 55 के आने से पहले का हो या उसके बाद का हो; न्यायालय में उसको किसी भी आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है।
5 – संदेह को दूर करने के लिए, यह घोषित किया गया है कि अनुच्छेद 368 के तहत संविधान के प्रावधान में संशोधन या निरस्त करने के लिए संसद की घटक शक्ति पर कोई सीमा नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 से फैसला सुनाते हुए कहा कि (1) 42वें संविधान संशोधन अधिनियम की धारा 4 और 55 असंवैधानिक है। संसद की संविधान संशोधन करने की शक्ति असीमित नहीं है, क्योंकि संसद की संविधान संशोधन करने की सीमित शक्ति ही संविधान का मूल ढांचा है। (2) Nationalization Act 1974 के वैधता को सही माना गया।
इस तरह से फिर से एक बार मौलिक अधिकारों के महत्व को राज्य के नीति निदेशक तत्व से ज्यादा माना गया और मौलिक अधिकारों एवं नीति निदेशक सिद्धांतों के बीच सौहार्द एवं संतुलन को संविधान का मूल ढांचा माना गया।