प्रेरणा हमें अपने लक्ष्य की दिशा में कर्म करने को उत्प्रेरित करता है और इस प्रेरणा के कई स्रोत हो सकते हैं, ये परिवार और समाज भी हो सकते हैं और प्रेरक कहानी भी।

प्रेरक कहानियों का उद्देश्य सकारात्मक भावनाओं को जगाना, प्रेरणा जगाना और यह विश्वास पैदा करना है कि व्यक्ति कठिनाइयों को दूर कर सकता है और अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।

इस पेज़ पर कुछ दिलचस्प प्रेरक कहानी संकलित की गई है, सभी को पढ़ें, उम्मीद हैं आपको पसंद आएगा। साथ ही हमारे टेलीग्राम चैनल से जुड़ जाएं और यूट्यूब को सबस्क्राइब कर लें;

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प्रेरक कहानी

10+ शिक्षादायी प्रेरक कहानी

प्रेरक कहानियाँ ऐसी कहानियाँ हैं जो व्यक्तियों को प्रेरित करती हैं और उनका उत्थान करती हैं, उन्हें प्रोत्साहन, आशा और दृढ़ संकल्प की भावना प्रदान करती हैं।

इन कहानियों में अक्सर ऐसे नायक शामिल होते हैं जो बाधाओं, चुनौतियों या असफलताओं का सामना करते हैं लेकिन डटे रहते हैं और अंततः सफलता या व्यक्तिगत विकास हासिल करते हैं। तो आइये इन सभी कहानियों को पढ़ें;


प्रेरक कहानी न. 1

सही दिशा

एक बार किसी गाँव के रेलवे स्टेशन पर एक रेल गाड़ी रुकी। रेलगाड़ी से एक फौजी बड़ा सा ट्रंक और बिस्तर लेकर उतरा। स्टेशन से बाहर आकार उसने एक टैक्सीवाले  से पूछा – भैया, कैंप ऑफिस जाना है, चलोगे ?

टैक्सीवाले  ने कहा, जरूर चलूँगा साहब, लेकिन 200 रुपये लगेंगे। फौजी ने कहा – अरे! 200 रूपये तो वहाँ के लिए बहुत ज्यादा है, कुछ कम करो।

टैक्सीवाला बोला, साहब इससे कम किराया नहीं होगा, चलना हो तो चलो। यह सुनकर फौजी ने अपना सामान उठाया और पैदल ही अपने गंतव्य की ओर चल पड़ा। लगभग 20 मिनट चलने के बाद वह थक गया और अपने आस-पास कोई साधन देखने लगा।

तभी उसे वही टैक्सीवाला आता हुआ दिखाई दिया, जिसने थोड़ी देर पहले उससे 200 रूपये मांगे थे। फौजी ने उसे हाथ दिया।

तो टैक्सीवाले ने गाड़ी रोकी, फौजी ने कहा, ठीक है भाई, 200 रूपये ले लेना, कैंप ऑफिस चलो। ये सुनकर टैक्सीवाले ने कहा, साहब, अब तो 400 रूपये लगेंगे। फौजी ने कहा, अब तुम मेरी हालत देखकर मुझे ब्लैकमेल करने लग गये ?

तो टैक्सीवाले  ने कहा, नहीं साहब, आप तो फौजी आदमी है, भला आपको मैं ब्लैकमेल क्यों करूंगा, दरअसल, बात यह है कि आप कैंप ऑफिस से उल्टे रास्ते इतने दूर आ गये है कि अब आपको कैंप ऑफिस जाने के लिए उसी स्टेशन से गुजरना होगा, जहां से आप चलते हुए इतने दूर तक आए है इसीलिए आपका किराया अब ज्यादा होगा।

टैक्सीवाले  कि बात सुनकर फौजी चुपचाप टॅक्सी में बैठ गया। कहानी का सार ये है कि आप कितने भी अच्छे से तैयारी करके क्यूँ न चले हो, अगर आपकी दिशा गलत है तो आप मंजिल तक कभी नहीं पहुँच पाएंगे।


प्रेरक कहानी न. 2

समस्या का समाधान

किसी शहर में एक व्यक्ति था, वह हमेशा दु:खी रहा करता था, क्योंकि उसकी समस्याएँ कभी खत्म नहीं नहीं होती थी। इसीलिए धीरे-धीरे उसे ऐसा लगने लगा कि उससे दु:खी व्यक्ति संसार में कोई और नहीं है।

उसकी बातें तक कोई सुनना नहीं चाहता था क्योंकि हमेशा वो नकारात्मक बातें ही किया करता था। इस बात से तो वह और परेशान हो जाता कि उसकी बात कोई सुनने वाला नहीं है।        

एक दिन उसे पता चला कि शहर में कोई महात्मा आया है जिनके पास सभी समस्याओं का समाधान है। यह जानकार वह महात्मा के पास पहुंचा। उस महात्मा के साथ हमेशा एक काफिला चला करता था जिसमें कई ऊंट भी थे ।

महात्मा के पास पहुँच कर उस व्यक्ति ने कहा – गुरुजी, सुना है कि आप सभी समस्याओं का समाधान करते है। मैं बहुत दु:खी व्यक्ति हूँ। मेरे इर्द-गिर्द हमेशा बहुत सारी समस्याएँ रहती है। एक को सुलझाता हूँ तो दूसरी पैदा हो जाती है। मैं अपनी आपबीती किसी को सुनाता हूं तो कोई सुनता ही नहीं है। दुनिया बड़ी मतलबी हो गयी है। अब आप ही बताइये क्या करूँ ?        

महात्मा ने उसकी बातें ध्यान से सुनी और कहा – भाई, मैं अभी तो बहुत थक गया हूँ परंतु कल सुबह मैं तुम्हारी समस्या का समाधान अवश्य करूंगा। इस बीच तुम मेरा एक काम कर दो, मेरे ऊंटों की देखभाल करने वाला आदमी बीमार है। आज रात तुम इनकी देखभाल कर दो ।

जब सभी ऊंट बैठ जाये तब तुम सो जाना। मैं तुमसे कल सुबह बात करूंगा। अगले दिन महात्मा ने उस आदमी को बुलाया। उसकी आंखे लाल थी। महात्मा ने पूछा – तो बताओ कल रात कैसी नींद आयी ?

व्यक्ति बोला – गुरुजी, मैं तो रात भर सोया ही नहीं। आपने कहा था जब सभी ऊंट बैठ जाये तब सो जाना। पर ऐसा नहीं हुआ जब भी कोशिश करके एक ऊंट को बिठाता दूसरा खड़ा हो जाता। सारे ऊंट बैठा ही नहीं इसीलिए मैं भर रात सो नहीं सका।   

महात्मा जी ने मुस्कुराते हुए कहा – मैं जानता था कि इतने ऊंट एक साथ कभी नहीं बैठ सकता, फिर भी मैंने तुम्हें ऐसा करने को कहा।

यह सुनकर व्यक्ति क्रोधित होकर बोला – महात्मा जी, मैं आपसे हल मांगने आया था पर आपने भी मुझे परेशान कर दिया।

महात्मा बोले – नहीं भाई, दरअसल यह तुम्हारे समस्या का समाधान है। संसार के किसी भी व्यक्ति की समस्या इन ऊंटों की तरह ही है। एक खत्म होगी तो दूसरी खड़ी हो जाएगी । अतः सभी समस्याओं के खत्म होने का इंतज़ार करोगे तो कभी भी चैन से नहीं जी पाओगे।

समस्याएँ तो जीवन का ही अंग है। इसे महसूस करते हुए जीवन का आनंद लो। जीवन में सहज रहने का यही एक उपाय है। दुनिया के किसी भी व्यक्ति को तुम्हारी समस्याएँ सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं है क्यूंकी उनकी भी अपनी समस्याएँ है।

महात्मा जी की बात सुनकर व्यक्ति के चेहरे पर संतोष और सहजता के भाव उमड़ पड़े। मानो उसे अपनी सभी समस्याओं से निपटने का अचूक मंत्र प्राप्त हो गया हो। 


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प्रेरक कहानी न. 3

ईमानदार गरीब

सीलोन में एक जड़ी-बूटी बेचकर गुजारा करने वाला व्यक्ति रहता था। नाम था उसका महता शैसा। उसके घर की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब थी, कई कई दिन भूखा रहना पड़ता।

उनकी माता चक्की पीसने की मजदूरी करती, बहिन फूल बेचती तब कहीं गुजारा हो पाता। ऐसी गरीबी में भी उनकी नीयत सावधान थी।

महता एक दिन एक बगीचे में जड़ी-बूटी खोद रहे थे कि उन्हें कई घड़े भरी हुई अशर्फियाँ गड़ी हुई दिखाई दीं। उनके मन में दूसरे की चीज पर जरा भी लालच न आया और मिट्टी से ज्यों का त्यों ढक कर बगीचे के मालिक के पास पहुँचे और उसे अशर्फियाँ गड़े होने की सूचना दी।

बगीचे के मालिक लरोटा की आर्थिक स्थिति भी बहुत खराब हो चली थी। कर्जदार उसे तंग किया करते थे। इतना धन पाकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।

सूचना देने वाले शैसा को उसने चार सौ अशर्फियाँ पुरस्कार में देनी चाही पर उसने उन्हें लेने से इनकार कर दिया और कहा -“इसमें पुरस्कार लेने जैसी कोई बात नहीं, मैंने तो अपना कर्तव्य मात्र पूरा किया है।”

बहुत दिन बाद लरोटा ने अपनी बहिन की शादी शैसा से कर दी और दहेज में कुछ धन देना चाहा। शैसा ने वह भी न लिया और अपने हाथ-पैर की मजदूरी करके दिन गुजारे।


प्रेरक कहानी न. 4

ईर्ष्या अपना भी नुकसान करवाता है!

जंगल में गाय और घोड़ा घास चर रहे थे। घोड़े को ईर्ष्या हुई कि वह गाय के सीगों के डर से अच्छी घास नहीं खा पाता, किसी तरह उस पर काबू पाया जाए।

तभी वहाँ इंसान आ निकला और उसने दोनों को ललचाई नजर से देखा। घोड़ा इंसान के पास आकर बोला -”देखते क्या हो, गाय का मीठा दूध पीकर अपनी भूख मिटाओ। ” पर वह तो मुझसे तेज दौड़ सकती है, उस पर काबू कैसे पा सकूँगा ?

मेरी पीठ पर सवार हो जाओ, मैं गाय से तेज दौड़ सकता हूँ ? इनसान घोड़े की पीठ पर सवार हो गया। उसने पहले घोड़े को गुलाम बनाया और फिर गाय को काबू में किया। उसी दिन से दोनों पशु इनसान के गुलाम हैं।


प्रेरक कहानी न. 5

मान्यता अपनी-अपनी

किसी अरब व्यापारी को पता चला कि इथियोपिया के लोगों के पास चाँदी बहुत अधिक है। उसे वहाँ जाकर व्यापार करने की सूझी और एक दिन सैकड़ों ऊँट प्याज लादकर वह इथोपिया के लिए चल भी पड़ा।

इथियोपियावासियों ने पहले कभी प्याज नहीं खाया था। प्याज खाकर वे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने सब प्याज खरीद लिया और उसके बराबर चाँदी तौल दिया। व्यापारी बहुत प्रसन्‍न हुआ। धनवान बनकर देश लौटा।

एक दूसरे व्यापारी को इसका पता चला तो उसने भी इथियोपिया जाने की ठानी। उसने प्याज से भी अच्छी वस्तु लहसुन लादी और इथोपिया जा पहुँचा। वहाँ के लोगों ने लहसुन चखा तो प्रसन्‍नता से नाच उठे। उसे प्याज़ से भी ज्यादा लहसुन अच्छा लगा, इसीलिए सारा लहसुन उन्होंने ले लिया पर बदले में दें क्या, यह प्रश्न उठा।

उन्होने देखा चाँदी तो बहुत है पर इससे भी अच्छी वस्तु उनके पास प्याज है, इसलिए प्याज से दूसरे व्यापारी की बोरियाँ लाद दीं। व्यापारी खीझ उठा पर बेचारा करता क्या करता, चुपचाप प्याज लेकर घर लौट आया।

बेचारा व्यापारी समझ नहीं पा रहा था कि अमूल्यता की कसौटी क्या है ? उसे लगा यह सब अपने-अपने मन की मान्यताओं और प्रसन्‍नता के खेल हैं। सत्य तो कुछ और ही है, जिसे मनुष्य नहीं समझ पा रहा।


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प्रेरक कहानी न. 6

बुद्धिहीन वैज्ञानिक

एक बार चार मित्र यात्रा पर निकले। उनमें तीन बुद्धिहीन वैज्ञानिक थे और एक बुद्धिमान अवैज्ञानिक। मार्ग में उन्हें एक मरे हुए शेर का अस्थिपंजर मिला। बुद्धिहीन वैज्ञानिकों ने सोचा कि क्यों नहीं हम इस पर अपनी विद्या की परीक्षा कर लें।

तुरंत एक ने उसका अस्थि संचय किया, दूसरे ने उसमें चर्म-मांस और रुधिर संचारित किया और तीसरा उसमें प्राण डालने ही वाला था कि चौथे बुद्धिमान अवैज्ञानिक ने कहा – “अरे-अरे, यह आप क्या कर रहे हैं ? आप सिंह को जीवित करने जा रहे हो। वह जीवित होते ही हमें खा जाएगा।

पहले अपनी रक्षा का उपाय तो कर लो।” लेकिन उसकी बात किसी ने नहीं मानी। लाचार, वह अकेला वृक्ष पर चढ़ गया। उधर तीसरे ने जैसे ही उसमें प्राण डाले शेर जीवित होकर उन तीनों को खा गया।

प्रत्यक्ष को देखने वाला आज का संसार भी इन बुद्धिहीन वैज्ञानिकों की तरह है। जो शरीर के लिए तो साधन बढ़ाते चले जा रहे हैं, पर आत्मा की ओर तनिक भी ध्यान नहीं देते।


प्रेरक कहानी न. 7

सच्चा ज्ञान

एक बार एक नाव में बैठा कोई गणितज्ञ यात्रा कर रहा था। दोनों ही अकेले थे, यात्री तथा मांझी। सो समय काटने तथा अपनी विद्वता की धाक जमाने की दृष्टि से गणितज्ञ महोदय बोले -‘ क्या तुमने गणित पढ़ा है ?” माँझी बोला -”नहीं बाबू गणित का तो मैं नाम भी नहीं ज़ानता।’!

कुछ उपेक्षा भरे स्वर में गणितज्ञ ने कहा – “तब तो तुम्हारी चार आने भर जिंदगी बेकार चली गई।”

कुछ देर मौन रहने के पश्चात फिर गणितज्ञ ने प्रश्न किया- “अच्छा तुमने भूगोल तो पढ़ा ही होगा कभी ?” माँझी ने विनम्र स्वर में पुनः उत्तर दिया-” नहीं बाबूजी भूगोल का क्‍या मतलब होता है मैं नहीं जानता।’! सुनकर गणितज्ञ महोदय बोले – “तब तुम्हारी चार आने भर जिंदगी और यूँ ही चली गई।”

माँझी को झुँझलाहट तो बहुत हुई इन बेढंगे प्रश्नों पर लेकिन वह चुप ही रहा। कुछ देर पश्चात ही दैवयोग से जोर की आँधी आई और नाव लड़खड़ाने लगी। उछलती लहरें मतवाले पवन के झकोरे ले रही थीं।

नाव सँभालते हुए नाविक ने कहा बाबू साहब -”आपको तैरना आता है ?!! गणितज्ञ ने घबराकर कहा – “नहीं तो ! मैंने तो कभी तैरना नहीं सीखा।” अब नाविक कुछ मुस्कराते हुए कहने लगा – “गणित तथा भूगोल न सीखने के कारण मेरी तो आठ आने भर जिंदगी बेकार गई। पर तैरना न जानने के अभाव में आपकी तो पूरी ही जिंदगी यों ही चली जा रही है। नाव का पार लगना मुश्किल है।”

गणितज्ञ सोचने लगा कि ज्ञान की उपयोगिता प्रत्येक के लिए अपनी परिस्थिति, समय तथा उपयोगिता के आधार पर ही होती है। जो समय पर काम आ जाए वही सच्चा ज्ञान है।


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प्रेरक कहानी न. 8

अपरोपकारी का सार निष्फल ही चला जाता है!

प्यासा मनुष्य अथाह समुद्र की ओर यह सोचकर दौड़ा कि महासागर से जी भर अपनी प्यास बुझाऊँगा। वह किनारे पहुँचा और अंजलि भरकर जल मुँह में डाला किंतु तत्काल ही बाहर निकाल दिया।

प्यासा असमंजस में पड़कर सोचने लगा कि सरिता सागर से छोटी है किंतु उसका पानी मीठा है। सागर सरिता से बहुत बड़ा है पर उसका पानी खारी है।

कुछ देर बाद उसे समुद्र पार से आती एक आवाज सुनाई दी- “सरिता जो पाती है उसका अधिकांश बाँटती रहती है, किंतु सागर सब कुछ अपने में ही भरे रखता है।

दूसरों के काम न आने वाले स्वार्थी का सार यों ही निःसार होकर निष्फल चला जाता है।’ आदमी समुद्र के तट से प्यासा लौटने के साथ एक बहुमूल्य ज्ञान भी लेता गया जिसने उसकी आत्मा तक को तृप्त कर दिया।


प्रेरक कहानी न. 9

पात्रता की परीक्षा

एक महात्मा के पास तीन मित्र गुरु-दीक्षा लेने गए। तीनों ने बड़े नम्र भाव से प्रणाम करके अपनी जिज्ञासा प्रकट की। महात्मा ने शिष्य बनाने से पूर्व पात्रता की परीक्षा कर लेने के मंतव्य से पूछा – “बताओ कान और आँख में कितना अंतर है?”

एक ने उत्तर दिया -”केवल पाँच अंगुल का, भगवन्‌!” महात्मा ने उसे एक ओर खड़ा करके दूसरे से उत्तर के लिए कहा। दूसरे ने उत्तर
दिया -”महाराज आँख देखती है और कान सुनते हैं, इसलिए किसी बात की प्रामाणिकता के विषय में आँख का महत्त्व अधिक है।”

महात्मा ने उसको भी एक ओर खड़ा करके तीसरे से उत्तर देने के लिए कहा। तीसरे ने निवेदन किया -” भगवन्‌! कान का महत्त्व आँख से अधिक है।

आँख केवल लौकिक एवं दृश्यमान जगत को ही देख पाती है, किंतु कान को पारलौकिक एवं पारमार्थिक विषय का पान करने का सौभाग्य प्राप्त है।” महात्मा ने तीसरे को अपने पास रोक लिया।

पहले दोनों को कर्म एवं उपासना का उपदेश देकर अपनी विचारणा शक्ति बढ़ाने के लिए विदा कर दिया। क्योंकि उनके सोचने की सीमा ब्रह्म तत्त्व की परिधि में अभी प्रवेश कर सकने योग्य सूक्ष्म बनी न थी।


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प्रेरक कहानी न. 10

कंजूसी किस काम की!

एक महात्मा ने किसी भक्त की सेवा भावना से प्रसन्‍न होकर उसे सात दिन के लिए पारसमणि देकर कहा -”इसे छूने से लोहा सोना हो जाता है। जितने सोने की जरूरत हो, बना लो। दो दिन बाद वह वापस ले ली जाएगी।”

भक्त बड़ा प्रसन्‍न हुआ कि अब मेरा सारा दरिद्र दूर हो जाएगा। पर वह था बड़ा कंजूस। सस्ता लोहा बड़ी तादात में ढूँढ़ने लगा। जिस दुकान पर वह गया वहाँ उसकी समझ में लोहा थोड़ा था और मँहगा भी था बहुत, सस्ता और बहुत बड़ा ढेर ढूँढ़ने के लालच में वह कई बाज़ारों एवं दुकानों में गया पर उसे कहीं संतोष न हुआ।

इसी भाग-दौड़ में दो दिन पूंरे हो गए। मणि वापस ले ली गई और वह रत्तीभर भी सोना प्राप्त न कर सका। अधिक सयाने बनने वाले और अधिक कंजूस सदा घाटे में रहते हैं।


प्रेरक कहानी न. 11

समय के पंख

एक बार एक कलाकार ने अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगाई। उसे देखने के लिए नगर के सैकड़ों धनी-मानी व्यक्ति भी पहुँचे। एक लड़की भी उस प्रदर्शनी को देखने आई। उसने देखा सब चित्रों के अंत में एक ऐसे मनुष्य का भी चित्र टंगा है जिसके मुँह को बालों से ढक दिया गया है और जिसके पैरों पर पंख लगे थे।

चित्र के नीचे बड़े अक्षरों से लिखा था -‘अवसर ‘। चित्र कुछ भद्‌दा सा था इसलिए लोग उस पर उपेक्षित दृष्टि डालते और आगे बढ़ जाते। लड़की का ध्यान प्रारंभ से ही इस चित्र की ओर था।

जब वह उसके पास पहुँची तो चुपचाप बैठे कलाकार से पूछ ही लिया – “श्रीमान जी यह चित्र किसका है?”

“अवसर का” कलाकार ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।

आपने इसका मुँह क्यों ढक दिया है ? लड़की ने दुबारा प्रश्न किया। इस बार कलाकार ने विस्तार से बताया–” बच्ची !

प्रदर्शनी की तरह अवसर हर मनुष्य के जीवन में आता है और उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है, किंतु साधारण मनुष्य उसे पहचानते तक नहीं इसलिए वे जहाँ थे वहीं पड़े रह जाते हैं। पर जो अवसर को पहचान लेता है वही जीवन में कुछ काम कर जाता है।”!

“और इसके पैरों में पंखों का क्या रहस्य है?”” लड़की ने उत्सुकता से पूछा। कलाकार बोला–“यह जो अवसर आज चला गया वह फिर कल कभी नहीं आता।” लड़की इस मर्म को समझ गई और उसी क्षण से अपनी उन्नति के लिए जुट गई।


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प्रेरक कहानी न. 12

अमानत की वापसी

धर्मगुरु रबी मेहर और दिनों की भाँति आज भी अपनी पाठशाला में बच्चों को पाठ सिखाते रहे। उस दिन उन्होंने भगवान की न्यायकारिता का उपदेश दिया।

अपनी धर्मपत्नी को भी वह प्रात:काल यही समझा कर आए थे कि यह संसार और यहाँ का सब कुछ भगवान का है उसे समर्पित किए बिना किसी वस्तु का उपभोग नहीं करना चाहिए।

उन दिनों नगर में महामारी फैली थी। दुर्भाग्य ने उस दिन उन्हीं के घर डेरा डाला और मेहर के दोनों फूल से सुंदर बच्चों को मृत्यु की गोद में सुला दिया।

मेहर की धर्मशीला पत्नी ने दोनों बच्चों के शव शयनागार में लिटा दिए और उन्हें सफेद चादर से ढक दिया। आप घर की सफाई और भोजन व्यवस्था में व्यस्त हो गई। साँझ हुई और रबी मेहर घर लौटे।

मेहर ने आते ही पूछा- “दोनों बच्चे कहाँ हैं ?’ संतोष स्मित मुद्रा में पत्नी ने कहा -”यहीं कहीं खेल रहे होंगे, जल लीजिए, हाथ-मुँह धोकर भोजन लीजिए। भोजन तैयार है।”

मेहर ने निश्चित होकर भगवान का ध्यान किया और फिर शयनकक्ष में आए। उन्हें घर में आज कुछ उदासी दिख रही थी। बच्चे नहीं थे। पूछा – “बच्चे अभी खेलकर नहीं लौटे क्या ?” पत्नी ने कहा – अभी बुलाए देती हूँ लीजिए दिनभर उपवास किया है भोजन कर लीजिए।!

रबी ने भोग लगाया और फिर उस अन्न को प्रसाद मानकर प्रेम-पूर्वक ग्रहण किया। हाथ-मुँह धोकर उठे तो फिर पूछा- “बच्चे अभी तक नहीं आए, बाहर जाकर पता लगाऊँ क्या?”

पत्नी ने कहा -“नहीं स्वामी ! बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है पर हाँ यह तो बताइए, आप जो कह रहे थे कि संसार में जो कुछ है वह सब भगवान का है, यदि भगवान अपनी कोई वस्तु वापस ले ले तो क्या मनुष्य को उसके लिए दुःख करना चाहिए।”!

इसमें दुःख की क्या बात भद्रे ! रबी मेहर ने आत्मसंतोष की मुद्रा में कहा। पर आज तुम्हारी बातें कुछ रहस्यपूर्ण सी लगती हैं प्रिये! कहो न बात क्या है, कुछ छुपाना चाहती हो क्या ?

नहीं स्वामी! आप से क्या छुपाना, मैं तो आपके ही आदर्श का पालन कर रही हूँ। यह लीजिए यह रहे आपके दोनों बच्चे, प्राण भगवान के थे सो उन्होंने वापस ले लिए, यह कहकर मेहर की पत्नी ने बच्चों के कफन मुँह से हटा दिए।


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