सत्यनिष्ठा और ईमानदारी एक ही सिक्के के दो पहलू है इसमें से ईमानदारी वो पहलू है जो हमेशा हमारे सामने होता है और सत्यनिष्ठा वो पहलू है जो आमतौर पर दिखाई नहीं देता है या लोग उसे देखना ही नहीं चाहते है। ऐसा क्यूँ है? आगे समझते हैं।
इस लेख में हम सत्यनिष्ठा और ईमानदारी पर सरल एवं सहज चर्चा करेंगे एवं इसके मध्य के अंतरों को भी समझेंगे, तो लेख को अंत तक जरूर पढ़ें। और हमारे फ़ेसबुक पेज को जरूर करें।

| सत्यनिष्ठा और ईमानदारी
◼ सत्यनिष्ठा और ईमानदारी जिसे कि इंग्लिश में क्रमशः Integrity और Honesty कहा जाता है; को अगर समझना हो तो ये समझ लीजिये कि सत्यनिष्ठा माउंट एवरेस्ट की चोटी है जहां तक पहुँचना सब के बस की बात नहीं है वहीं ईमानदारी माउंट एवरेस्ट से अपेक्षाकृत छोटी ऐसी चोटियाँ है जो आमतौर पर सबके पहुँच में होता है। ऐसा क्यूँ है इसे एक उदाहरण से समझिए।
मान लीजिये कि आपको एक पार्टी में इनवाइट किया गया है, आप वहाँ जाते है तो पता चलता है कि वो दरअसल नॉन-वेज पार्टी है जबकि आप ठहरे शुद्ध शाकाहारी इसीलिए जब सब खा रहे थे, तब आप नहीं खा रहे थे। कुछ लोगों ने आपसे पूछा भी तो आपने कह दिया कि मैं शाकाहारी हूँ इसीलिए ये सब नहीं खा सकता।
लेकिन तभी आपका दोस्त आता है और नॉन-वेज खाने को आपसे जिद करता है और वो कहता है कि किसी को बाहर थोड़ी न पता चलेगा। आप को ये बात जंच गयी फिर क्या था आपने थोड़ी देर के लिए अपने मूल्यों या नैतिक आदर्शों को ताख पर रखा और जमकर नॉन-वेज खाया।
यहाँ पर आपने ईमानदारी तो दिखाई कि आप नॉन-वेज नहीं खाते हैं पर उस पर टिके नहीं रह सके इसीलिए ये कह सकते हैं कि आपमें सत्यनिष्ठा नहीं हैं।
◼ यानी कि सच्चाई का साथ न छोड़ना, मर्यादाओं का पालन करना या फिर अपने मूल्यों के साथ बने रहना ईमानदारी है।
◼ लेकिन विपरीत परिस्थितियों में भी अपने मूल्यों या अपने नैतिक प्रतिमानों के साथ दृढ़ता से जमे रहना सत्यनिष्ठा है।
इसीलिए ईमानदार लोग तो खूब मिलते हैं लेकिन सत्यनिष्ठ मुश्किल से क्योंकि सत्यनिष्ठा, ईमानदारी से कहीं आगे की चीज़ है या यूं कहें कि ईमानदारी की सबसे उच्चतम बिन्दु सत्यनिष्ठा है जहां आप में कोई नैतिक विचलन नहीं आता, जो आपके लिए सही है उसके साथ आप दृढ़ता से जमे रहते हैं।
▶ ईमानदारी को दूसरों के नजरिए से या यूं कहें कि समाज के नजरिए से देखा जाता है। इसका क्या मतलब है, आइये एक दूसरे उदाहरण से इसे और स्पष्ट करते हैं।
| उदाहरण 2
उदाहरण के लिए अगर आप एक सरकारी अधिकारी है और आपको कोई व्यक्ति किसी काम के बदले पैसे दे रहा है और आप मना कर देते हैं, तो इसका मतलब यही समझा जाएगा कि आप ईमानदार है आप घूस नहीं लेते हैं या आप अनैतिक काम नहीं करते हैं।
लेकिन मान लीजिये कि वही व्यक्ति अपना पैसा किसी कारणवश वही भूलकर चला जाता है और आप देखते हैं कि पैसा कुछ ज्यादा है। अब अगर आपने उसे रख भी लिया तो कोई आपके ईमानदारी पर डाउट नहीं करेगा क्योंकि आपने उससे मांगा नहीं है और आपके ऐसा करने से किसी नियम का भी उल्लंघन नहीं हो रहा है। यानी कि अगर आपने वो पैसा रख भी लिया तो भी आप ईमानदार रहेंगे पर क्या आप सत्यनिष्ठ रहेंगे? बिलकुल नहीं।
क्योंकि सत्यनिष्ठा यही कहती है कि आपके मूल्य यानी कि आपके नैतिक आदर्श आपके आचरण में तब भी झलकना चाहिए जब आपको कोई देख नहीं रहा है।
यानी कि अगर आप वो पैसा उसे लौटा दे जिसका वो है तो आप ईमानदार तो हुए ही लेकिन उसके साथ-साथ आप सत्यनिष्ठा वाले व्यक्ति भी हुए क्योंकि आप उस स्थिति में भी अपने नैतिक आदर्शों के साथ टिके रहें जब आप नहीं भी रहते तो आपके ईमानदारी पर उससे कोई आंच नहीं आती।
इसीलिए तो कहा जाता है कि किसी भी स्थिति में अपने मूल्यों से विचलित न होना या फिर दूसरे जो सही है उस पर दृढ़ता से अड़े रहना सत्यनिष्ठा है।
| कुल मिलाकर सत्यनिष्ठा और ईमानदारी में अंतर
सत्यनिष्ठा और ईमानदारी |
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जब आप सत्यनिष्ठ होते हैं तो आप आप ईमानदार भी होते हैं। यानी कि बिना ईमानदारी के आप सत्यनिष्ठ हो ही नहीं सकते हैं। |
लेकिन आप बिना सत्यनिष्ठा के ईमानदार हो सकते हैं क्योंकि पहले ईमानदारी आएगी तभी सत्यनिष्ठा आएगा। यानी कि सत्यनिष्ठा के रास्ते ईमानदारी से होकर गुजरती है। |
ईमानदारी में थोड़ा उथलापन होता है, या यूं कहें कि इसमें नैतिक प्रतिमान थोड़ा फ्लैक्सिबल होता है। आप ईमानदार न होते हुए भी ईमानदारी दिखा सकते हैं क्योकि ये आमतौर पर दूसरों से नजरिए से देखा जाता है। |
लेकिन सत्यनिष्ठा बहुत ही गहरी चीज़ है। ये ईमानदारी से भी कई गुना आगे की चीज़ है क्योंकि ऐसी स्थिति में जहां ईमानदार लोग भी अनैतिक हो जाये या अपने मूल्यों से समझौता कर ले, एक सत्यनिष्ठा वाला व्यक्ति उस स्थिति में भी जरा सा भी विचलित नहीं होता है। |
यानी कि ”सत्यनिष्ठा वाले व्यक्ति ने एक बार अगर कमिटमेंट कर दी तो फिर वो अपने आप की भी नहीं सुनता” ऐसा कहा जा सकता है। |
लेकिन जो सिर्फ ईमानदार है वो आपको कभी-कभी ”मुख में राम बगल में छुरी” को भी चरितार्थ करते नजर आ जाएगा। |
| सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और शुचिता (Integrity and Honesty and Probity)
▶ अब तक आपने देखा कि सत्यनिष्ठा और ईमानदारी खासतौर पर लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन किसी संस्था का भी तो वैल्यू होता है ऐसे में जाहिर है कि संस्था भी ईमानदार या सत्यनिष्ठ हो सकता है। हाँ बिलकुल होता है।
लेकिन संस्थागत या प्रक्रियागत प्रयोगों के लिए सत्यनिष्ठा या ईमानदारी शब्द का प्रयोग न करके उसी के समरूप एक शब्द शुचिता का प्रयोग किया जाता है।
यानी कि मान लीजिये कि हम किसी व्यक्ति के बारे में अगर ये कहें कि उसकी सत्यनिष्ठा बेदाग है इस पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता है। यहीं बात हम अगर किसी संस्था के बारे में कहना चाहे तो हम ये कहेंगे कि उसकी शुचिता बेदाग है इस पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
◼ ये एक छोटा सा टिप्स था आप इसे याद रखें। इसके अलावा आप ये भी याद रखें कि कई बार कोई व्यक्ति अपने प्रोफेसनल लाइफ में तो बहुत ईमानदार होता है लेकिन नॉर्मल लाइफ में वो बेईमान होता है और इसका उल्टा भी हो सकता है।
कहने का मतलब बस इतना है कि जब आप गौर करेंगे तो आपको ज़िंदगी में एक ही चीज़ के कई शेड देखने को मिलेंगे। सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और शुचिता के भी ढेरों अलग-अलग शेड आपको ज़िंदगी में देखने को मिल जाएँगे। ये आप पर डिपेंड करता है कि आप चीजों को किस तरह से देखते हैं।
FAQs
सत्यनिष्ठा किसे कहते है?
विपरीत परिस्थितियों में भी अपने मूल्यों या अपने नैतिक प्रतिमानों के साथ दृढ़ता से जमे रहना सत्यनिष्ठा है। सत्यनिष्ठा बहुत ही गहरी चीज़ है। ये ईमानदारी से भी कई गुना आगे की चीज़ है क्योंकि ऐसी स्थिति में जहां ईमानदार लोग भी अनैतिक हो जाये या अपने मूल्यों से समझौता कर ले, एक सत्यनिष्ठा वाला व्यक्ति उस स्थिति में भी जरा सा भी विचलित नहीं होता है।
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