इस लेख में हम दोनों सदनों की संयुक्त बैठक (Joint sitting of both houses) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, ये लेख संसद सिरीज़ का एक पार्ट है। ↗️संसद (Parliament) को विस्तार से समझने के लिए दिये गए लिंक पर क्लिक करें।
दोनों सदनों की संयुक्त बैठक
(Joint sitting of both houses)
हमने संसद में कानून बनने की प्रक्रिया वाले लेख में देखा था कि सामान्य स्थितियों में कोई विधेयक लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों से बारी-बारी से पास होता है फिर राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए जाता है। लेकिन हमेशा सामान्य स्थिति बनी नहीं रहती है, कभी-कभी ऐसी स्थिति बन जाती जाती है कि किसी जरूरी विधेयक पर सदन में सहमति नहीं बन पाती और उस पर गतिरोध उत्पन्न हो जाती है।
इसी प्रकार की गतिरोध की स्थिति में विधेयक पर चर्चा और उसे पास कराने के लिए संविधान द्वारा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की एक असाधारण व्यवस्था की गई है।
यह निम्नलिखित तीन में किसी एक परिस्थिति में बुलाई जाती है, जब एक सदन द्वारा विधेयक पारित कर दूसरे सदन को भेजा जाता है और ; 1. यदि उस विधेयक को दूसरे सदन द्वारा अस्वीकृत कर दिया जाए। 2. यदि सदन विधेयक में किए गए संशोधनों को मानने से इंकार कर दे। 3. दूसरे सदन द्वारा बिना विधेयक को पास किए 6 महीने से ज्यादा समय हो जाये।
(नोट- छह माह की अवधि में उस समय को नहीं गिना जाता जब अन्य सदन में चार क्रमिक दिनों हेतु सत्रावसान या स्थगन रहा हो।)
उपरोक्त तीन परिस्थितियों में विधेयक को निपटाने और इस पर चर्चा करने और मत देने के लिए राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाता है। (यहाँ पर याद रखने वाली बात ये है कि संयुक्त बैठक साधारण विधेयक या वित्त विधेयक के मामलों में ही आहूत की जा सकती है)।
धन विधेयक या संविधान संशोधन विधेयक के बारे में इस प्रकार की संयुक्त बैठक आहूत करने की कोई व्यवस्था नहीं है क्योंकि धन विधेयक के मामले में सम्पूर्ण शक्तियाँ लोकसभा के पास होता है,जबकि संविधान संशोधन विधेयक के बारे में विधेयक को दोनों सदनों से अलग-अलग पारित होना आवश्यक होता है।
दोनों सदनों के संयुक्त बैठक के जुड़े प्रावधान
(Provisions related to joint sitting of both houses)
यदि कोई विधेयक लोकसभा विघटन होने के कारण छुट जाता है तो संयुक्त बैठक नहीं बुलाई जा सकती है। लेकिन अगर राष्ट्रपति लोकसभा विघटन से पूर्व एक नोटिस जारी कर दिया हो तो फिर संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है।
⚫जब राष्ट्रपति इस प्रकार की बैठक की नोटिस देते हैं, जो राष्ट्रपति द्वारा इस प्रकार का नोटिस देने के बाद कोई भी सदन इस विधेयक पर कोई कार्यवाही नहीं कर सकता है।
दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा का अध्यक्ष करता है तथा उसकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष इस दायित्व को निभाता है। यदि उपाध्यक्ष भी अनुपस्थित हो तो राज्यसभा का उप-सभापति यह दायित्व निभाता है। यदि राज्यसभा का उप-सभापति भी अनुपस्थित हो तो संयुक्त बैठक में उपस्थित सदस्यों द्वारा इस बात का निर्णय किया जाता है कि इस संयुक्त बैठक अध्यक्षता कौन करेगा।
(यहाँ याद रखने वाली बात ये है कि साधारण स्थिति में इस संयुक्त बैठक की अध्यक्षता राज्यसभा का सभापति नहीं करता क्योंकि वह किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता है।)
विधेयक पारित होने की प्रक्रिया
इस संयुक्त बैठक का कोरम दोनों सदनों की कुल सदस्य संख्या का दसवां भाग होता है। यानी कि संयुक्त बैठक के संचालन के लिए कम से कम दोनों सदनों से सदस्य संख्या का 10 प्रतिशत तो होना ही चाहिए।
संयुक्त बैठक की कार्यवाही लोकसभा के प्रक्रिया नियमों के अनुसार संचालित होती है, न कि राज्यसभा के नियमों के अनुसार।
यदि विवादित विधेयक को इस संयुक्त बैठक में दोनों सदनों के उपस्थित एवं मत देने वाले सांसदों की संख्या के बहुमत से पारित कर दिया जाता है तो यह मान लिया जाता है कि विधेयक को दोनों सदनों ने पारित कर दिया है। समान्यतः लोकसभा के सदस्यों की संख्या अधिक होने के कारण इस संयुक्त बैठक में उसकी शक्ति ज्यादा होती है।
संविधान में यह उपबंध है कि इस संयुक्त बैठक में कोई भी संशोधन केवल दो परिस्थितियों के अलावा नहीं जा सकता है:
1. वे संशोधन जिनके बारे में दोनों सदन अंतिम निर्णय न ले पाए हो, तथा 2. वे संशोधन जो इस विधेयक के पारित होने में विलंब कारणों से अनिवार्य हो गए हो।
⚫1950 के बाद से दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों को तीन बार बुलाया गया है। इस दौरान जो विधेयक इस संयुक्त बैठक द्वारा पारित हुए, वे हैं: 1. दहेज प्रतिषेध विधेयक 1960 2. बैंक सेवा आयोग विधेयक 1977 3. आतंकवाद निवारण विधेयक 2002।
तो कुल मिलाकर यही है दोनों सदनों की संयुक्त बैठक (Joint sitting of both houses), उम्मीद है समझ में आया होगा। संसद पर लिखे अन्य महत्वपूर्ण लेखों को नीचे दिया जा रहा है, उसे भी जरूर विजिट करें।
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Joint sitting of both houses
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