प्रेरक लघुकथा
इस लेख में हम 3 बेहतरीन प्रेरक लघुकथा को पढ़ेंगे।

1.संतुष्टि
एक लगभग 12 – 13 साल का बच्चा अपने घर के पास एक दुकान में गया और दुकानदार से बोला – अंकल, क्या मैं एक फोन कर सकता हूँ?
दुकानदार ने सहमति जतायी, तो वह बच्चा फोन के पास गया और उसने एक नंबर डायल किया, उधर से एक महिला की आवाज आई।
दुकानदार ध्यान से उस बच्चे की बात सुनने लगा। बच्चे ने पूछा – मैडम, मुझे पता चला है कि आप अपने बगीचे की देखभाल के लिए कोई आदमी ढूंढ रही है,
मैं आपके बगीचे मे काम करना चाहता हूँ, क्या आप मुझे मौका देंगी? महिला ने जवाब दिया नहीं मैंने कुछ समय पहले एक लड़के को रख लिया है, अब मुझे किसी नए आदमी की कोई जरूरत नही।
बच्चे ने कहा, मैडम यदि आप मुझे मौका दें तो मैं उस लड़के को दी जाने वाली सैलरी से आधी सैलरी पर काम कर सकता हूँ।
महिला ने जवाब दिया नहीं, मैं उस लड़के के काम से बहुत संतुष्ट हूँ और अब कोई आदमी बदलना नहीं चाहती।
बच्चे ने फिर कहा, मैडम, मैं उसी वेतन में आपके बगीचे के चारों तरफ के रास्ते को भी साफ कर दिया करूंगा।
महिला ने उत्तर दिया नहीं, मुझे कोई नया आदमी नहीं चाहिए, धन्यवाद। इतना कहकर महिला ने फोन रख दिया।
बच्चे के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गयी। दुकानदार नए कहा- बच्चे मैं तुम्हारी बात ध्यान से सुन रहा था, मैं तुम्हारी बात स बहुत प्रभावित हुआ। मुझे तुम्हारे जैसे आदमी की ही तलाश थी,
मैं तुमको अपनी दुकान पर काम देता दूँ। बच्चे ने कहा, नहीं अंकल , मुझे कोई नौकरी नहीं चाहिए। दरअसल, मैं ही वह लड़का हूँ, जो उस महिला के यहाँ काम करता हूँ।
मैं तो केवल यह देखना चाहता था कि क्या वह मेरे काम से संतुष्ट है या नहीं, मुझे यह जान कर बहुत प्रसन्नता हो रही कि वह मैडम मेरा काम पसंद कर रही है।
दुकानदार उस बच्चे की बात सुन कर दंग रह गया।
प्रेरक लघुकथा
2.चिंता नहीं चिंतन कीजिये
एक कहावत है, चिंता आपके कल की परेशानी दूर करें न करें, लेकिन आज का सुख चैन अवश्य छिन लेता है।
बात दशकों पहले की है। गुजरात के एक शहर में एक वकील साहब पत्नी के साथ रहते थे। वकील साहब पत्नी से बेहद प्यार करते थे।
पेशेवर के रूप में उनकी बहुत इज्जत थी और वह मुवक्किलों के लिए न्यायालय में जी- जान लगा देते थे। एक बार उनकी पत्नी बेहद बीमार पड़ गयी ।
डॉक्टर ने कहा उनका बड़ा ऑपरेशन करना परेगा। इत्तेफाक से जिस दिन पत्नी का ऑपरेशन था, उसी दिन दूसरे शहर के एक बड़े कोर्ट में केस की सुनवाई की तारीख थी।
वकील साहब ने एक वकील मित्र को बुलाया और कहा, मैं पत्नी को छोडकर कहीं और नहीं जाना चाहता, इसीलिए तुम जाकर आज के इस केस में बहस कर लो।
यह सुनकर वकील साहब की पत्नी ने कहा- यह आप क्या कर रहे हैं, यदि आप नहीं गए और किसी बेगुनाह को सजा हो गयी तो मैं स्वयं को माफ नहीं कर पाऊँगी, मैं ठीक हूँ,
डॉक्टर साहब ऑपरेशन कर ही देंगे, आप जाइए और कोर्ट में अपने केश की बहस कीजिये। पहले तो वकील साहब तैयार नहीं हुए, लेकिन पत्नी की जिद के कारण बहुत दुखी मन से वह दूसरे शहर कोर्ट के लिए रवाना हुए,
मुकदमा शुरू हुआ वकील साहब बहस करने लगे। बहस के बीच ही कोर्ट के दरबान ने उनको एक कागज का टुकड़ा लाकर दिया । वकील साहब ने कागज खोलकर पढ़ा और फिर उसे पढ़ने के बाद पॉकेट में रख लिया और बहस करने लगे।
कुछ समय बाद कोर्ट का फैसला आया, वकील साहब केस जीत गए थे, सभी उनको बधाई देने लगे।
किसी ने पूछा- वकील साहब, वह कागज का टुकड़ा कैसा था? वकील साहब बोले, दरअसल, वह टेलीग्राम था,
अभी कुछ समय पहले मेरी पत्नी की मृत्यु हो गयी है। वकील साहब का जवाब सुनकर वहाँ लोग स्तब्ध रह गए।
उनलोगों ने पूछा, वकील साहब आपकी पत्नी की तबीयत ठीक नहीं थी, तो आप आज आए ही क्यूँ? वकील साहब ने कहा, दरअसल, पत्नी ने ही मुझसे जिद करके यहाँ भेजा,
क्योंकि वह यह नहीं चाहती थी की मेरे नहीं आने के कारण किसी बेगुनाह को सजा हो जाये।
ये बात सुनकर वहाँ लोगों की आंखे नाम हो गयी। वह वकील कोई और नहीं, बल्कि देश के पहले उप-प्रधानमंत्री व गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल थे।
प्रेरक लघुकथा
3.प्रतिक्रिया से पहले समीक्षा कीजिये
किसी नगर में एक वैद्य रहते थे। उनका व्यवहार बेहद कुशल और विनम्र था। उनके चिकित्सा आश्रम में रोगियों का इलाज़ होता था
एक बार एक सेठ अपने बच्चे को दिखाने उस वैद्य के पास पहुंचा। बच्चे को देखने के बाद वैद्य ने एक पुड़िया दवा दी और पुर्जे पर आगे चलनेवाली दवा लिख दी।
सेठ ने वैद्य से पूछा, क्या फीस देनी होगी? वैद्य ने कहा, आप मुझे 100 सोने की अशर्फी दे दीजिये।
यह बात पास बैठा दूसरा मरीज सुन रहा था, जो बेहद गरीब था। उसने सोचा कि इतनी फीस मैं कैसे दे पाऊँगा? यह सोच कर वह चुपचाप उठ कर जाने लगा।
वैद्य ने उससे पूछा तो उसने सारी बात बता दी। वैद्य ने कहा, तुम यही बैठो, तुम्हारा इलाज़ मुफ्त में होगा, जब तुम ठीक हो जाओ तब आश्रम आकार दूसरों की सेवा कर देना।
यह बात सुन कर सेठ मन ही मन क्रोधित हो गया और वैद्य को बोला, वैद्य जी, आप तो बहुत घटिया इंसान हैं, मेरा पैसा देख कर आपको लालच आ गया और मुझसे इतनी बड़ी रकम मांग बैठे,
जबकि इसका इलाज़ आपने मुफ्त में ही कर दिया, मुझे आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। वैद्य मुस्कुराते हुए बोले, नहीं सेठ जी, ऐसी बात नहीं है,
दरअसल, मेरे आश्रम को चलाने के लिए मुझे दो चीजों की आवश्यकता होती है – धन और सेवा, जिस व्यक्ति के पास जो चीज़ होती है, मैं वही मांगता हूँ।
आपके पास धन है तो मैं आपसे धन लूँगा और इस व्यक्ति के पास धन नहीं है, इसीलिए ठीक होकर यह मेरे आश्रम में अपनी सेवा प्रदान करेगा,
सेठ जी वैद्य जी की बात सुन कर सन्न रह गए। उन्होने वैद्य से कहा, मुझे माफ कर दीजिये वैद्य जी, मैं बगैर आपका भावार्थ समझे हुए ही किसी गलत निष्कर्ष पर पहुँच गया था।
मैं यह भूल गया था कि आप जैसा व्यक्त यदि कुछ कर रह है, तो निश्चित ही उसका कोई विशेष कारण होगा।
यह कहते हुए सेठ ने वैद्य जी की हथेली पर 100 स्वर्ण अशर्फी रखी और मुस्कुराते हुए अपने घर की ओर चल पड़ा,
यदि हमें अपने जीवन में शांति और प्रगति चाहिए, तो हमें दूसरों के निर्णय पर प्रतिक्रिया से पहले उसकी एक बार समीक्षा जरूर करनी चाहिए ।
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