कहानियां या कथाएँ न सिर्फ हमारा मनोरंजन कराती है बल्कि कई कहानियां या कथाएँ तो ऐसी होती है जो हमें इतनी प्रभावित करती है कि हम अपनी ज़िंदगी को एक नई दिशा में मोड़ लेते हैं। इस लेख में हम 10 बेहतरीन प्रेरक लघुकथा को पढ़ेंगे।

इसके अलावा इस लेख में आपको कुछ बेहतरीन प्रासंगिक Quotes भी पढ़ने को मिलेंगे, तो पेज़ के अंत तक जरूर पढ़ें और इसका लाभ उठाए; साथ ही हमारे सोशल मीडिया हैंडल से जुड़ जाएँ;

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| 10 प्रेरक लघुकथा

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प्रेरक लघुकथा

| संतुष्टि

एक लगभग 12–13 साल का बच्चा अपने घर के पास एक दुकान में गया और दुकानदार से बोला – अंकल, क्या मैं एक फोन कर सकता हूँ? दुकानदार ने सहमति जतायी, तो वह बच्चा फोन के पास गया और उसने एक नंबर डायल किया, उधर से एक महिला की आवाज आई।

दुकानदार ध्यान से उस बच्चे की बात सुनने लगा। बच्चे ने पूछा – मैडम, मुझे पता चला है कि आप अपने बगीचे की देखभाल के लिए कोई आदमी ढूंढ रही है, मैं आपके बगीचे में काम करना चाहता हूँ, क्या आप मुझे मौका देंगी? महिला ने जवाब दिया नहीं मैंने कुछ समय पहले एक लड़के को रख लिया है, अब मुझे किसी नए आदमी की कोई जरूरत नही।

बच्चे ने कहा, मैडम यदि आप मुझे मौका दें तो मैं उस लड़के को दी जाने वाली सैलरी से आधी सैलरी पर काम कर सकता हूँ। महिला ने जवाब दिया नहीं, मैं उस लड़के के काम से बहुत संतुष्ट हूँ और अब कोई आदमी बदलना नहीं चाहती।

बच्चे ने फिर कहा, मैडम, मैं उसी वेतन में आपके बगीचे के चारों तरफ के रास्ते को भी साफ कर दिया करूंगा। महिला ने उत्तर दिया नहीं, मुझे कोई नया आदमी नहीं चाहिए, धन्यवाद। इतना कहकर महिला ने फोन रख दिया।

बच्चे के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गयी लेकिन दुकानदार को उस बच्चे पर जैसे दया सी आयी। दुकानदार ने कहा- बच्चे मैं तुम्हारी बात ध्यान से सुन रहा था, मैं तुम्हारी बात से बहुत प्रभावित हुआ। तुम्हें काम की तलाश है और मुझे तुम्हारे जैसे आदमी की ही तलाश थी, मैं तुमको अपनी दुकान पर काम देता दूँ।

बच्चे ने कहा, नहीं अंकल , मुझे कोई नौकरी नहीं चाहिए। दरअसल, मैं ही वह लड़का हूँ, जो उस महिला के यहाँ काम करता है। मैं तो केवल यह देखना चाहता था कि क्या वह मेरे काम से संतुष्ट है या नहीं, मुझे यह जान कर बहुत प्रसन्नता हो रही कि वह मैडम मेरा काम पसंद कर रही है। दुकानदार उस बच्चे की बात सुन कर दंग रह गया।


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प्रेरक लघुकथा न. 2

| एक निश्चय-एक अमल

एक लड़के ने एक दिन बहुत धनी आदमी को देखा। उस धनी आदमी का ठाठ-बाठ देखकर लड़के के दिमाग में आया कि वाह! ज़िंदगी को तो ऐसी और फिर उसने सोच लिया कि अब उसे भी धनवान बनना है।

उसने कई दिनों तक इसके बारे में सोचा और फिर एक काम भी शुरू कर दी। कई दिन तक वह कमाई में लगा रहा और कुछ पैसे भी कमा लिए। चूंकि वो उतना नहीं कमा पा रहा था जिससे कि वो धनवान बन सके इसीलिए अब उसका धैर्य जैसे धीरे-धीरे खत्म हो लगा।

इसी बीच उसकी भेंट एक विद्वान से हुई। और वो उस विद्वान से इतना ज्यादा प्रभावित हुआ कि अब उसने विद्वान बनने का निश्चय किया और दूसरे ही दिन से कमाई-धमाई छोड़कर पढ़ने में लग गया। अब जैसे कि वो समझ चुका था कि पैसा-वैसा सब मोह-माया है ज्ञान अर्जित करना सबसे बड़ी बात है। ज्ञान के आगे तो पैसा भी फेल है।

उसने बड़े ज़ोर-शोर से पढ़ाई शुरू की कुछ सालों तक तो पढ़ाई निरंतर करता रहा लेकिन फिर जैसे उसका मन पढ़ाई में थोड़ा कम लगने लगा। धीरे-धीरे वो संगीत की तरफ आकर्षित हुआ, संगीत सुनकर वो अपनी ही धुन में खो जाया करता था। धीरे-धीरे उसे एहसास होने लगा कि वो संगीत को कितना समझता है!, शायद वो संगीत के लिए ही बना है।

संयोग से उसकी भेंट एक संगीतज्ञ से हुई और उस दिन उस संगीतज्ञ से बातचीत के बाद उसने फैसला कर लिया अब वह संगीत सीखेगा। अत: उस दिन से पढ़ाई बंद कर दी और संगीत सीखने लगा।

कुछ सालों बाद संगीत से भी उसका मन ऊब गया और उसने एक नेता बनने का निश्चय किया। उसने सोच लिया कि इस बार कोई गलती नहीं करनी है, नेता बनना है तो बनना है।

काफी उम्र बीत गई, न वह धनी हो सका न विद्वान। न संगीत सीख पाया न नेता बन सका। तब उसे बड़ा दुःख हुआ। एक दिन उसकी एक महात्मा से भेंट हुई।

उसने अपने दुःख का कारण बताया। महात्मा मुस्कुरा कर बोले–“’बेटा! दुनिया बड़ी चिकनी है। जहाँ जाओगे कोई न कोई आकर्षण दिखाई देगा। तुम उसके पीछे भागोगे फिर से तुम्हें कुछ और आकर्षित करेगा।

अगर ज़िंदगी में वाकई कुछ करना है तो एक निश्चय कर लो और फिर जीते-जी उसी पर अमल करते रहो तो तुम्हारी उन्‍नति अवश्य हो जाएगी। बार-बार रुचि बदलते रहने से कभी भी उन्नति न कर पाओगे।”! युवक को समझ आ गया था।।


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प्रेरक लघुकथा न. 3

| चिंता नहीं चिंतन कीजिये

एक कहावत है, चिंता आपके कल की परेशानी दूर करें न करें, लेकिन आज का सुख चैन अवश्य छिन लेता है। बात दशकों पहले की है। गुजरात के एक शहर में एक वकील साहब पत्नी के साथ रहा करते थे।

वकील साहब पत्नी से बेहद प्यार करते थे। एक पेशेवर के रूप में उनकी बहुत इज्जत थी और वह मुवक्किलों के लिए न्यायालय में जी-जान लगा देते थे।

एक बार उनकी पत्नी बेहद बीमार पड़ गयी। डॉक्टर ने कहा उनका बड़ा ऑपरेशन करना पड़ेगा। इत्तेफाक से जिस दिन पत्नी का ऑपरेशन था, उसी दिन दूसरे शहर के एक बड़े कोर्ट में केस की सुनवाई की तारीख थी।

वकील साहब ने एक वकील मित्र को बुलाया और कहा, मैं पत्नी को छोडकर कहीं और नहीं जाना चाहता, इसीलिए तुम जाकर आज के इस केस में बहस कर लो।

यह सुनकर वकील साहब की पत्नी ने कहा- यह आप क्या कर रहे हैं, यदि आप नहीं गए और किसी बेगुनाह को सजा हो गयी तो मैं स्वयं को माफ नहीं कर पाऊँगी, मैं ठीक हूँ, डॉक्टर साहब ऑपरेशन कर ही देंगे, आप जाइए और कोर्ट में अपने केश की बहस कीजिये। पहले तो वकील साहब तैयार नहीं हुए, लेकिन पत्नी की जिद के कारण आखिरकार दु:खी मन से ही लेकिन वह दूसरे शहर, कोर्ट के लिए रवाना हो गए।

मुकदमा शुरू हुआ वकील साहब बहस करने लगे। बहस के बीच ही कोर्ट के दरबान ने उनको एक कागज का टुकड़ा लाकर दिया । वकील साहब ने कागज खोलकर पढ़ा और फिर उसे पढ़ने के बाद पॉकेट में रख लिया और बहस करने लगे। कुछ समय बाद कोर्ट का फैसला आया, वकील साहब केस जीत गए थे, सभी उनको बधाई देने लगे।

किसी ने पूछा- वकील साहब, वह कागज का टुकड़ा कैसा था? वकील साहब बोले, दरअसल, वह टेलीग्राम था, अभी कुछ समय पहले मेरी पत्नी की मृत्यु हो गयी है। वकील साहब का जवाब सुनकर वहाँ लोग स्तब्ध रह गए।

उनलोगों ने पूछा, वकील साहब आपकी पत्नी की तबीयत ठीक नहीं थी, तो आप आज आए ही क्यूँ? वकील साहब ने कहा, दरअसल, पत्नी ने ही मुझसे जिद करके यहाँ भेजा, क्योंकि वह यह नहीं चाहती थी की मेरे नहीं आने के कारण किसी बेगुनाह को सजा हो जाये।

ये बात सुनकर वहाँ लोगों की आँखें नाम हो गयी। वह वकील कोई और नहीं, बल्कि देश के पहले उप-प्रधानमंत्री व गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल थे।


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प्रेरक लघुकथा न. 4

| गधों का सत्कार

बहुत समय पहले की बात है एक जंगल में गधे ही गधे रहते थे। पूरी आजादी से रहते, भरपेट खाते-पीते और मौज करते। गधों के लिए वो जंगल जैसे स्वर्ग की तरह था।

एक दिन एक लोमड़ी को एक मजाक सूझा। उसने मुँह लटकाकर गधों से कहा–“मैं चिंता से मरी जा रही हूँ और तुम इस तरह मौज कर रहे हो। पता नहीं कितना बड़ा संकट सिर पर आ पहुँचा है|”!

गधों ने उत्सुकता से पूछा-““दीदी, भला क्‍या हुआ, बात तो बताओ।”! लोमड़ी ने कहा-‘“मैं अपने कानों सुनकर और आँखों देखकर आई हूँ, जंगल की झील की मछलियों ने एक सेना बना ली है और वे अब तुम्हारे ऊपर चढ़ाई करने ही वाली हैं। उनके सामने तुम्हारा ठहर सकना कैसे संभव होगा ?” इसीलिए तुम्हारे लिए बहुत चिंतित हूँ!!!

गधे असमंजस में पड़ गए। उसने सोचा व्यर्थ जान गँवाने से क्या लाभ। चलो कहीं अन्यत्र चलो। सारे गधे जंगल छोड़कर गाँव की ओर चल पड़े। सबके दिमाग में एक ही बात चल रहा था कि इससे पहले की मछलियाँ हमपर हमला करें, जितना दूर हो सके, निकल लेने में ही भलाई है। और वे सब लोमड़ी को शुक्रिया भी कह रहे थे, कि अगर उसने न बताया होता तो हमारा बचना भी मुश्किल ही था।

जब ये सारे गधे गाँव की तरफ पहुँचने लगे तो सबसे पहले धोबियों की नजर उस पर गई। इस प्रकार घबराए हुए गधों को देखकर गाँव के धोबी ने उनका खूब सत्कार किया। गधों ने अपनी पूरी आपबीती धोबियों को सुनाई।

धोबियों ने अपने छप्पर में गधों को आश्रय दिया और गले में रस्सी डालकर खूँटे में बाँधते हुए कहा–”डरने की जरा भी जरूरत नहीं। उस दुष्ट मछलियों से मैं भुगत लूँगा। तुम मेरे बाड़े में निर्भवतापूर्वक रहो, बस मेरा कपड़ों का बोझ ढो देना।”

गधों की घबराहट तो दूर हुई पर उसकी मूर्खता की उसे कीमत महँगी चुकानी पड़ी। कहा जाता है कि तभी से धोबी गधे का इस्तेमाल करने लगे थे।


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प्रेरक लघुकथा न. 5

| प्रतिक्रिया से पहले समीक्षा कीजिये

किसी नगर में एक वैद्य रहते थे। उनका व्यवहार बेहद कुशल और विनम्र था, इसीलिए वे उस पूरे इलाके में बहुत इज्जत भी पाता था। वे अपने चिकित्सा आश्रम में ही रोगियों का इलाज़ करते थे।

एक बार एक सेठ अपने बच्चे को दिखाने उस वैद्य के पास पहुंचा। बच्चे को देखने के बाद वैद्य ने एक पुड़िया दवा दी और पुर्जे पर आगे चलनेवाली दवा लिख दी।

सेठ ने वैद्य से पूछा, क्या फीस देनी होगी? वैद्य ने कहा, आप मुझे 100 सोने की अशर्फी दे दीजिये। यह बात पास बैठा दूसरा मरीज सुन रहा था, जो बेहद गरीब था। उसने सोचा कि इतनी फीस मैं  कैसे दे पाऊँगा? यह सोच कर वह चुपचाप उठ कर जाने लगा। वैद्य ने उससे पूछा तो उसने सारी बात बता दी। वैद्य ने कहा, तुम यही बैठो, तुम्हारा इलाज़ मुफ्त में होगा, जब तुम ठीक हो जाओ तब आश्रम आकार दूसरों की सेवा कर देना।

यह बात सुन कर सेठ मन ही मन क्रोधित हो गया और वैद्य को बोला, वैद्य जी, आप तो बहुत घटिया इंसान हैं, मेरा पैसा देख कर आपको लालच आ गया और मुझसे इतनी बड़ी रकम मांग बैठे, जबकि इसका इलाज़ आपने मुफ्त में ही कर दिया, मुझे आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। वैद्य मुस्कुराते हुए बोले, नहीं सेठ जी, ऐसी बात नहीं है, दरअसल, मेरे आश्रम को चलाने के लिए मुझे दो चीजों की आवश्यकता होती है – धन और सेवा, जिस व्यक्ति के पास जो चीज़ होती है, मैं वही मांगता हूँ।

आपके पास धन है तो मैं आपसे धन लूँगा और इस व्यक्ति के पास धन नहीं है, इसीलिए ठीक होकर यह मेरे आश्रम में अपनी सेवा प्रदान करेगा, सेठ जी वैद्य जी की बात सुन कर सन्न रह गए।

उन्होने वैद्य से कहा, मुझे माफ कर दीजिये वैद्य जी, मैं बगैर आपका भावार्थ समझे हुए ही किसी गलत निष्कर्ष पर पहुँच गया था। मैं यह भूल गया था कि आप जैसा व्यक्त यदि कुछ कर रह है, तो निश्चित ही उसका कोई विशेष कारण होगा।

यह कहते हुए सेठ ने वैद्य जी की हथेली पर 100 स्वर्ण अशर्फी रखी और मुस्कुराते हुए अपने घर की ओर चल पड़ा। यदि हमें अपने जीवन में शांति और प्रगति चाहिए, तो हमें दूसरों के निर्णय पर प्रतिक्रिया से पहले उसकी एक बार समीक्षा जरूर करनी चाहिए।


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प्रेरक लघुकथा न. 6

| नासमझ को समझ दो, वरदान नहीं

एक राजा वन भ्रमण के लिए गया पर कुछ समय बाद ही वह रास्ता भूल गया और वन में भटक गया। बहुत देर तक भटकने के बाद वो बहुत थक गया था और अब उसका हिम्मत जवाब देने लग गया था। फिर भी वह भूखं-प्यास से पीड़ित होने के बावजूद भी चलता रहा। चलते-चलते उसे एक वनवासी की झोंपड़ी दिखायी दी, और वो वहाँ पर पहुँचा।

वहाँ उसे आतिथ्य मिला और इस तरह से राजा की जान बची। सब कुछ सही लगने पर राजा ने वहाँ से विदा लिया और चलते समय राजा ने उस वनवासी से कहा-“हम इस राज्य-के शासक हैं। तुम्हारी सज्जनता से प्रभावित होकर अमुक नगर का चंदन बाग तुम्हें प्रदान करते हैं। इससे तुम्हारा जीवन आनंदमय बीतेगा।”

इस तरह से उस वनवासी को बहुमूल्य चंदन का उपवन प्राप्त हो गया। चंदन का क्‍या महत्त्व है और उससे किस प्रकार लाभ उठाया जा सकता है, उसकी जानकारी न होने से वनवासी चंदन के वृक्ष काटकर उनका कोयला बनाकर शहर में बेचने लगा। इस प्रकार किसी तरह उसके गुजारे की व्यवस्था चलने लगी।

चूंकि उस लकड़ी के कोयले से बहुत ही कम आमदनी हो पाती थी इसीलिए धीरे-धीरे उसने लगभग सभी वृक्ष को कोयला बनाकर बेच डाले। अब उसके पास कुछ ही पेड़ बचा था। और इसीलिए अब वह चिंतित भी रहने लगा था कि ये भी खत्म हो जाएगा तो फिर गुजारा कैसे चलेगा।

संयोग से एक दिन बहुत जादा वर्षा होने के कारण वह लकड़ी को कोयला न बना सका, तो ऐसे में उसने लकड़ी को ही बेचने का निश्चय किया। उसने लकड़ी का गट्ठर बनाया और जब वो उसे लेकर जब बाजार में पहुँचा तो सुगंध से प्रभावित लोगों ने उसका भारी मूल्य चुकाया।

वनवासी आश्चर्यचकित था और सोच रहा था कि अब तक उसने इसी लकड़ी का कोयला बना कर बेचा तो उसे मुश्किल से कुछ पैसे मिले जबकि लकड़ी से तो कई गुना ज्यादा पैसा मिला। उसने लोगों से इसका कारण पूछा तो लोगों ने कहा–‘“यह चंदन काष्ठ है। बहुत मूल्यवान है। यदि तुम्हारे पास ऐसी ही और लकड़ी हो तो उसका प्रचुर मूल्य प्राप्त कर सकते हो।”

वनवासी अपनी नासमझी पर पश्चात्ताप करने लगा कि उसने इतना बड़ा बहुमूल्य चंदन वन को कोयले बनाकर कौड़ी के भाव बेच दिया। जीवन का एक-एक क्षण बहुमूल्य है पर लोग उसे वासना और तृष्णाओं के बदले कौड़ी मोल में गँवाते हैं। और फिर पूरी ज़िंदगी पछताते रहते हैं की मुझे अवसर नहीं मिला नहीं तो ये कर देता!


प्रेरक लघुकथा न. 7

| पूर्णता का अहंकार

एक बाप ने अपने बेटे को भी मूर्तिकला ही सिखाई, क्योंकि वो खुद भी मूर्ति ही बनाता था। बेटे द्वारा कुछ मूर्तिकला सीख लिए जाने के बाद, अब बाप और बेटे दोनों मूर्तियाँ बनाते और उसे बेचने के लिए हाट जाते एवं अपनी-अपनी मूर्तियाँ बेचकर आते।

बाप की मूर्ति डेढ़-दो रुपए की बिकती पर बेटे की मूर्तियों का मूल्य आठ-दस आने से अधिक न मिलता। हाट से लौटने पर बेटे को पास बिठाकर बाप उसकी मूर्तियों में रही हुई त्रुटियों को समझाता और अगले दिन उन्हें सुधारने के लिए समझाता। लड़का समझदार था, उसने पिता की बातें ध्यान से सुनी और अपनी कला में सुधार करने का प्रयत्न करता रहा।

कुछ समय बाद लड़के की मूर्तियाँ भी डेढ़ रुपए की बिकने लगीं। काफी समय बीत चुका था पर बाप अब भी उसी तरह समझाता और मूर्तियों में रहने वाले दोषों की ओर उसका ध्यान खींचता।

बेटे ने और भी अधिक ध्यान दिया तो कला भी अधिक निखरी। मूर्तियाँ अब पाँच-पाँच रुपए की बिकने लगीं। सुधार के लिए समझाने का क्रम बाप ने तब भी बंद न किया।

एक दिन बेटे ने झुँझला कर कहा – “आप तो दोष निकालने की बात बंद ही नहीं करते। मेरी कला अब तो आप से भी अच्छी है, मुझे पाँच रुपए मिलते हैं जबकि आपको दो ही रुपए।”!

बाप ने कहा–‘पुत्र! जब मैं तुम्हारी उम्र का था तब मुझे अपनी कला की पूर्णता का अहंकार हो गया और फिर सुधार की बात सोचना छोड़ दिया। तब से मेरी प्रगति रुक गई और दो रुपए से अधिक मूल्य की मूर्तियाँ न बना सका।

मैं चाहता हूँ वह भूल तुम न क़रो। अपनी त्रुटियों को समझने और सुधारने का क्रम सदा जारी रखो ताकि बहुमूल्य मूर्तियाँ बनाने वाले श्रेष्ठ कलाकारों की श्रेणी में पहुँच सको।’


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प्रेरक लघुकथा न. 8

| सधन्यवाद वापस

भगवान बुद्ध एक बार भ्रमण करते हुए एक ब्राह्मण के घर जा पहुंचे। रात हो चुकी थी और बुद्ध वहीं ठहरना चाहते थे। जब ब्राह्मण को मालूम हुआ कि वह बुद्ध हैं तो उसने जी भरकर गालियाँ दीं, अपशब्द कहे और तुरंत निकल जाने को कहा।

बुद्ध देर तक सुनते रहे। जब ब्राह्मण ने बोलना बंद किया तो उन्होंने पूछा–‘हे, प्रिय साथी ! आपके यहाँ कोई अतिथि आते होंगे तो आप उनका सुंदर भोजन और मिष्ठान से स्वागत करते होंगे।” इसमें क्या शक -ब्राह्मण ने उत्तर दिया। और यदि किसी कारणवश मेहमान उसे स्वीकार न करे तो आप उन पकवानों को फेंक देते होंगे।

“फेंक क्‍यों देते हैं, हम स्वयं ग्रहण कर लेते”–उन्होंने विश्वासपूर्वक उत्तर दिया। “तो हम आपकी यह गालियों की भेंट स्वीकार नहीं करते, अपनी वस्तु आप ग्रहण करिए।” यह कहकर बुद्ध मुसकराते हुए वहाँ से चल पड़े।


प्रेरक लघुकथा न. 9

| सज्जन की खोज

एक बादशाह को एक नौकर की आवश्यकता थी। उसके मंत्रियों ने तीन उम्मीदवार उनके सामने पेश किए गए। बादशाह ने उन तीनों उम्मीदवारों से पूछा-“ यदि मेरी और तुम्हारी दाढ़ी में साथ-साथ आग लगे तो पहले किसकी बुझाओगे ?!!

एक ने कहा, पहले आपकी बुझाऊँगा। दूसरे ने कहा, पहले मैं अपनी बुझाऊँगा। तीसरे ने कहा, एक हाथ से अपनी और दूसरे हाथ से आपकी बुझाऊँगा।

बादशाह ने तीसरे आदमी की नियुक्ति कर दी और दरबारियों से कहा-‘जो अपनी उपेक्षा करके दूसरों का भला करता है वह अव्यावहारिक है।

जो स्वार्थ को ही सर्वोपरि समझता है वह नीच है और जो अपनी और दूसरों की भलाई का समान रूप से ध्यान रखता है उसे ही सज्जन कहना चाहिए। मुझे सज्जन की आवश्यकता थी, सो उस तीसरे आदमी की नियुक्ति की गई।”


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प्रेरक लघुकथा न. 10

| छोटी भूल का बड़ा दुष्परिणाम

कलंग देश का राजा मधुपर्क, एक बार जब खा रहा था। उसके प्याले में से थोड़ा सा शहद टपक कर जमीन पर गिर पड़ा। उसने उसे साफ करने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि उसके दिमाग में ये ख्याल आया कि अरे! मैं क्यूँ साफ करूँ, मैं तो राजा हूँ। नौकर आएगा, साफ करेगा।

नौकर आया, पर उसका ध्यान उस तरफ नहीं गया और वो उसे साफ किए बगैर ही चला गया। हुआ ये कि उस शहद को चाटने मक्खियाँ आ गईं। मक्खियों को इकट्ठी देख छिपकली ललचाई और उन्हें खाने के लिए आ पहुँची। छिपकली को मारने बिल्ली पहुँची, जो कि राजमहल में ही रहती थी।

इतना ही कम नहीं था कि राजमहल के बाहर बगीचे में घूम रहे कुत्ते वहाँ पर किसी तरह से आ पहुंचे और बिल्ली पर दो-तीन कुत्ते टूट पड़े। बिल्ली तो किसी तरह भाग गई पर कुत्ते आपस में लड़कर घायल हो गए।

कुत्ते के मालिक को जब ये बात पता चली तो वे वहाँ पहुंचे। कुत्तों के मालिक अपने-अपने कुत्तों के पक्ष का समर्थन करने लगे और दूसरे का दोष बताने लगे। इस पर लड़ाई ठन गई।

लड़ाई में दोनों ओर की भीड़ बढ़ी और आखिर सारे शहर में बलवा हो गया। दंगाइयों को मौका मिला तो सरकारी खजाना लूटा और राजमहल में आग लगा दी।

जब ये सब शांत हुआ और राजा ने इतने बड़े उपद्रव का कारण पूछा तो मंत्री ने जाँचकर बताया कि आपके द्वारा असावधानी से गिराया हुआ थोड़ा सा शहद ही इतने बड़े दंगे का कारण बना। तब राजा समझा कि छोटी सी असावधानी भी मनुष्य के लिए कितना बड़ा संकट उत्पन्न कर सकती है।

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